________________ आगम निबंधमाला 18. जल्दी खाना, अति धीरे खाना, मुंह से आवाज करते हुए खानापीना, नीचे गिराते हुए खाना, स्वाद के लिए संयोग मिलाना आदि परिभोगेषणा के दोष है / - प्रश्न.अ.६ / 19. साधु-साध्वी को तीन जाति के पात्र रखना कल्पता है।-ठाणांग-३ इसके सिवाय धातु हो या कांच, दांत, वस्त्र, पत्थर आदि कोई भी नहीं कल्पते हैं / - निशीथ- उद्दे.११। 20. आचार्य, उपाध्याय की विशिष्ट आज्ञा बिना विगय खाने का भी प्रायश्चित्त आता है / -निशीथ उ.४। 21. अन्य साधु कार्य करने वाले हों तो कोई भी सेवा कार्य सीवन आदि साध्वी से कराना नहीं कल्पता है / अन्य साध्वी कार्य करने वाली हो तो साध्वी, साधु के द्वारा अपना कोई भी कार्य नहीं करा सकती है / चाहे कपड़ा सीना हो या बाजार से लाना या आहार औषध आदि लाना देना / -व्यवहार उद्दे०५ / 22. स्वपक्ष वाले के अभाव की स्थिति बिना साधु-साध्वी को आपस में आलोचना, प्रायश्चित्त करना भी नहीं कल्पता है ।-व्यव. उ. 5 / 23. साधु-साध्वी दोनों को एक दूसरे के उपाश्रय में जाना बैठना आदि कोई भी कार्य करना नहीं कल्पता है / वाचणी लेना देना हो व स्थानांग कथित पाँच कारण हो तो जा सकते हैं इसके सिवाय केवल दर्शन करने, सेवा(पर्युपासना) करने, इधर उधर की बातें करने आदि के लिए जाना नहीं कल्पता है। -बृहत्कल्प उद्दे. 3, सू. 1, 2 / व्यव. उ. 7 / ठाणा. अ. 5 / 24. जो साधु मुख आदि को वीणा रूप बनावे और उनसे वीणा रूप में आवाज निकाले तो प्रायश्चित्त आता है / -निशीथ- 5 / 25. किसी के दीक्षार्थी या साधु के भाव पलटाने व अपना बनाने का गुरू चौमासी प्रायश्चित्त / - निशीथ- 10 / 26. गहस्थ का औषध उपचार करे या उसे बतावे तो प्रायश्चित्त / -निशीथ- 12 / 27. विहार आदि में गहस्थ से भण्डोपकरण उठवावे या गृहस्थ क घर पर रखे तो प्रायश्चित्त / -निशीथ- 12 / / 60 / - -