________________ आगम निबंधमाला 28. 40 वर्ष से कम उम्र वाले तरुण, नवदीक्षित और बाल मुनि इन प्रत्येक साधु को बिना आचार्य उपाध्याय के रहना नही कल्पता है / क्यों कि ये श्रमण दो से संग्रहित होने पर ही समाधिवन्त रह सकते है अर्थात् आचार्य और उपाध्याय दो की इन पर संभाल रहना आवश्यक है / -व्य. उद्दे. 3 / इन तीनों को आचार्य उपाध्याय से युक्त ही होना सूत्र में कहा है / अत: मात्र स्थविर की नेश्राय से या केवल एक पदवीधर की निश्राय से इनका सदा के लिए रहना आगम विपरीत है / अर्थात् किसी भी विशाल गच्छ को आचार्य उपाध्याय व प्रवर्तिनी की पद व्यवस्था के बिना लम्बे समय तक रहना नहीं कल्पता है / -व्यवहार सूत्र, उद्दे. 3 / 29. संघाड़े का मुखिया बनकर विचरने वाले में 6 गुण होने चाहिए / - ठाणा.६ / उसमें एक यह भी है कि बहुश्रुत होना चाहिए / जघन्यसम्पूर्ण आचारांग एवं निशीथ सूत्र अर्थ सहित कंठस्थ धारण करने वाला बहुश्रुत कहलाता है। -निशीथ, चूर्णि, गा-४०४।-बहकल्प भा. गा. 693 / 30. अपने परिवारिक कुलों में "बहुश्रुत" ही गोचरी जा सकता है अन्य नहीं। -व्यव. 6 / बड़े आज्ञा दे दे तो भी अकेले नहीं जा सकता। साथ में या स्वयं बहुश्रुत होना चाहिए। 31. योग्य अयोग्य सबको एक साथ वाँचणी देना प्रायश्चित्त का कारण है / - निशीथ-१९ / 32. प्रतिक्रमण- तच्चिते, तम्मणे, तल्लेसे, तदज्झवसिए, तत्तिव्वज्झवसाणे, तदट्ठोवउत्ते, तदप्पियकरणे, तब्भावणा भाविए, अणत्थ कत्थई मण अकरेमाणे, इस तरह एकाग्रचित्त होकर करने से भाव प्रतिक्रमण होता है अन्यथा नींद और बातों में या अस्थिर चित्त में द्रव्य प्रतिक्रमण होता है ।-अनुयोगद्वार सूत्र का २७वाँ सूत्र / कहा भी है- द्रव्य आवश्यक बहु किया गया व्यर्थ सहु / अनुयोग द्वार देख जाओ रे ॥भवि भाव आवश्यक अति सुखदाई रे ।टेर॥ अतः प्रक्रिमण में नींद और बातें करना क्षम्य नहीं हो सकता है।