________________ आगम निबंधमाला मौलिक आगमों में इसी अर्थ के लिए उग्गा, उग्गविहारी एवं प्रतिपक्ष में पासत्था-पासत्थविहारी, ओसण्णा-ओसण्णविहारी, कुसीला-कुसीलविहारी,संसत्ता-संसत्तविहारी, अहाछंदा-अहाछंदविहारी शब्द का प्रयोग हुआ है / - ज्ञाता. अ. 5 उग्रहारी, उद्यत विहारी और शुद्धाचारी ये तीनों लगभग एक श्रेणी के शब्द है तथा पासत्था, पासत्थविहारी आदि शब्दों के स्वरूप को एक शब्द से कहने रूप शीतलविहारी और शिथिलाचारी शब्द अलग समय में प्रयुक्त हुए हैं। अशद्ध स्वरूप का दिग्दर्शन :- शद्धाचार या शिथिलाचार की छाप लगाना किसी के व्यक्गित अधिकार का विषय नहीं समझना चाहिये। जिसके जो मन भावे वह अपनी समाचारी या नियम बना लेवे और उसे अन्य गच्छ वाले पालन नहीं करे उनको शिथिलाचारी की छाप / लगादे तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता है / किसी समय अमुक द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव की परिस्थिति से कोई समाचारी बना दी जाय उसे अन्य काल में अन्य परिस्थिति में अन्य गच्छ में पालन नहीं करने वालों को शिथिलाचारी कहना भी उचित नहीं हो सकता है। अथवा :- 1. मलीन कपड़े रखने वाले, 2. ध्वनियंत्र में नहीं बोलने वाले, 3. प्रेस कार्य में भाग नहीं लेने वाले तो सभी शुद्धाचारी हैं और शेष सभी शिथिलाचारी है तथा ये तीनों गुण वाले जो कहे और करे वह सब शुद्धाचार है और ये कह दे वह सब शिथिलाचार है, ऐसा समझ लेना भी उचित नहीं कहा जा सकता। शुद्ध स्वरूप का विश्लेषण :- पाँच महाव्रत, पाँच समिति का जो स्पष्ट आगम सिद्ध वर्णन है तथा आचार शास्त्रों में व अन्य शास्त्रों में जो-जो संयम विधियों का स्पष्ट वर्णन है, निशीथ सूत्र आदि में जिनका स्पष्ट प्रायश्चित्त विधान है, उनमें से किसी भी विधि व निषेध के विपरीत आचरण, विशेष परिस्थिति बिना, प्रायश्चित्त लेने की भावना बिना और शुद्ध संयम पालन के अलक्ष्य से, करना शिथिलाचार कहा जा सकता है। किन्तु समय समय पर चले गये व्यक्तिगत या सामाजिक