________________ आगम निबंधमाला . . निकट सबन्ध वाले कुछ आगम विषयों का संग्रह इस प्रकार है१. जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तइ महं / अदु इंखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी न मज्जइ // -सूय श्रु.१ अ.२, उ.२, गा.२ / दूसरों की निन्दा करना, पराभव (अवहेलना आदि) करना पाप है / ऐसा करने वाला महान संसार में परिभ्रमण करता है / 2. न परं वइज्जासि अयं कुसीले जेणं च कुप्पिज्ज न तं वइज्जा। दशवै. अ. 10 गा. 18 / ___यह कुशीलिया है, ऐसा नहीं बोलना और जिससे दूसरों को गुस्सा आवे वैसे निंदक शब्द भी नहीं बोलना / 3. निदं च न बहु मणिज्जा, सप्पहासं विवज्जए / मिहो कहाहिं न रमे, सज्झायम्मि रओ सया // - दशवै.अ.८ गा.४८ आपस में बातें करने में आनन्द नहीं आना, स्वाध्याय में सदा लीन रहना, निद्रा को ज्यादा आदर नहीं देना और हंसी ठट्ठा का त्याग करना। 4. मुँह फाड़-फाड़कर अर्थात् आवाज करते हुए हंसने से प्रायश्चित्त आता है / निशीथ-४ / / 5. प्रतिलेखन करते हुए आपस में बातें करना नहीं, पच्चक्खाण भी कराना नहीं ।-उत्तरा. अ. 26 गा.२६ / 6. सुबह शाम दोनों वक्त उपधि प्रतिलेखन करना / आव. 4 / पात्र पुस्तक आदि किसी भी उपकरण की एक ही बार प्रतिलेखन : करने का कोई भी आगम प्रमाण नहीं है / मात्र परम्परा को आगम पाठ के सामने महत्वहीन समझना चाहिये / 7. चारों काल में स्वाध्याय नहीं करे तो चौमासी प्रायश्चित्त / निशीथ. उद्दे. 19 / आव. 4- असज्झाए सज्झाइय, सज्झाए न सज्झाइयं / काले न कओ सज्जाओ, अकाले कओ सज्झाओ // तात्पर्य यह है कि सेवा कार्य के सिवाय और गुरु आज्ञा के सिवाय आगम स्वाध्याय करना प्रत्येक साधु-साध्वि को अपना आवश्यक कर्तव्य