________________ आगम निबंधमाला निग्रंथ और संयम गुणस्थानवर्ती रह सकता है, तभी भाव वंदनीय निग्रंथ रहेगा। अतः प्रत्येक साधक को इस विषद् विवेचन से सही समझ बना कर आत्म निरीक्षण करना चाहिए एवं सही प्ररूपण ही करना चाहिए। साथ ही संयम आराधना करनी हो तो इस विशद विवेचन में सूचित सावधानियों का सतर्कता से आचरण करना चाहिए / निबंध-८ संयमोन्नति के 10 आगम चिंतन कण (1) जिस वैराग्य भावना एवं उत्साह से संयम लिया है उसी भावना ए वं उत्साह से मुनि अन्य सभी संकल्प रूपी बाधाओं को दूर करते हुए सदा संयम का पालन करे / -आचा.१-१-३, दशवै. अ.८,गा.६१। (2) किसी व्यक्ति को यह(या वह) कुशीलिया है, शिथिलाचारी है, आचार भ्रष्ट है इत्यादि न कहो और अपनी बढाई भी नहीं करो। किसी को गुस्सा आवे वैसा अन्य भी निंदक शब्द नहीं बोलो ।-दशवै. अ.१०, गा. 18 / (3) जो दूसरों की हीलना, निंदा, तिरस्कार इन्सल्ट करता है, हल्की लगाने व नीचा गिराने की हीन भावना करता है, वह महान संसार में परिभ्रमण करता है / क्यों कि यह पर निन्दा पापकारी वति है। -सूय. अ. 2, उद्दे. 2, गा. 2 / (4) भिक्षु को भली-भाँति विचार कर क्षमा, सरलता, निर्लोभता नम्रता, हृदय की पवित्रता, अहिंसा, त्याग तप व्रत, नियम आदि विषयों पर प्रवचन देना चाहिए / उसमें अन्य किसी की भी अवहेलना आशातना नहीं करना चाहिए। -आचा. 1-6-5, प्रश्न. 2 / अन्य किसी साध की या गहस्थ की किसी भी प्रकार की आशातना करने पर चौमासी प्रायश्चित्त आता है / -निशीथ, उद्दे.१३ और 15 / (5) सरलता धारण करने पर ही आत्मा की शुद्धि होती है एवं आत्मा में धर्म ठहरता है / माया झूठ-कपट के संकल्पों से धर्म आत्मा में से निकल जाता है / -उत्तरा. अ.३, गा. 12 / / - -