________________ आगम निबंधमाला अप्रमत्त गुणस्थानों वाले सभी यथासूक्ष्म कषाय कुशील कहलाते हैं तथा किसी प्रकार के छोटे बड़े अनुकूल प्रतिकूल परीषह उपसर्ग सहन नहीं होने से, खान-पान, रहन-सहन में अपने अनुकूल प्रवत्ति नहीं होने से, अपनी इच्छा या आज्ञा से विपरीत कार्य होने से, साथी के निमित्त से अर्थात् किसी से कोई गल्ती हो जाने पर इत्यादि परिशेष निमित्तों से, किसी प्रसंग में, संज्वलन के उदय से, प्रमत्त दशा में, प्रगट रूप से संज्वलन कषाय अवस्था आ जाय, वह भी यथासूक्ष्म कषाय कुशील कहलाता है। इस नियंठे का कषाय संज्वलन दशा से आगे बढ़ जाय या उस कषाय के कारण विनय, विवेक, संयम प्रवतियों में, समिति आदि में दोष की स्थिति हो जाय तो वह कषाय कुशील नियंठा नहीं रह सकता, वह अन्य नियंठों में या असंयम में परिवर्तित हो जाता है / वर्तमान काल में तीन नियंठे संयम अवस्था में आ सकते हैं(१) बकुश (2) प्रतिसेवना (3) कषाय कुशील / 5. निर्ग्रन्थ नियंठा- यह नियंठा 11 वें 12 वें गुणस्थान में होता है। इसमें कोई प्रकार का दोष सेवन या कषाय उदय कुछ भी नहीं होता। अकषाय दशा होने से वीतराग कहलाते है और ज्ञानावरणीय आदि का क्षय न होने से व उदय होने से छदमस्थ कहलाते हैं / चार नियंठो के 5-5 भेद की शैली का अनुकरण करते हुए इसके भी पाँच भेद किये हैं परंतु भेद बनने का कोई निमित्त प्रतिसेवना और कषाय तो यहाँ नहीं रहे हैं / किसी के कषाय पूर्ण उपशांत है, किसी के पूर्ण क्षय है। किन्तु यह नियंठा अशास्वत है, इसलिये उस अपेक्षा को लेकर इसके पाँच भेद किये हैं / वे इस प्रकार है 1. किसी समय एक भी निर्ग्रन्थ लोक में नहीं होते हैं और होते हैं तो किसी विवक्षित समय में सभी शीर्फ प्रथम समयवर्ती होते हैं 2. किसी विवक्षित समय में सभी शीर्फ अप्रथम समयवर्ती होते हैं अथवा 3. किसी विवक्षित समय में सभी केवल चरम. समयवर्ती ही होते हैं 4. किसी विवक्षित समय में सभी केवल अचरम समयवर्ती ही होते हैं और 5. किसी विवक्षित समय में द्विसंयोगी आदि भंग से [53 /