________________ आगम निबंधमाला हैं / अन्य आराधक साधकों के प्रति आदरभाव न रखते हुए मत्सर भाव रखते हैं एवं अपने बुद्धि बल या ऋद्धि बल से उनके प्रति निंदा आदि प्रकारों से असद्भाव प्रकट करते हैं अर्थात् शुद्ध आराधना करने वालों के प्रति गुणग्राही न बन कर छिद्रान्वेषी बने रहते हैं / इन सभी आराधक एवं विराधक साधकों को प्रस्तुत निबंध रूप दर्पण में खुद ही आत्म निरीक्षण करना चाहिए / आगमों में साधक के दो विभाग :1- जैन आगम भगवती सूत्र में उत्तम-साधक, शुद्धाचारी साधुओं को निर्ग्रन्थ के विभागों में समाविष्ट किया है / वर्तमान में उन छ: विभागों में से तीन निर्ग्रन्थ विभाग के साधु हो सकते हैं। 2- अनेक आगमों(ज्ञाता सूत्र, निशीथ सूत्र-व्यवहार सूत्र आदि) में शिथिलाचारी सामान्य साधकों के अनेक विभाग कहे हैं / वे सब मिलाकर कुल दस होते हैं / वर्तमान में ये दसों ही शिथिलाचारी विभाग हो सकते हैं / इन दोनों विभागों का परिचय इस प्रकार हैवर्तमान में संभावित निर्ग्रन्थ के तीन विभाग :1- बकुश निर्ग्रन्थ :- संयम समाचारी के आगमिक प्रमुख-अप्रमुख प्रायः सभी नियमों का पालन करते हुए भी इस निर्ग्रन्थ के शरीर एवं उपधि की शुद्धि में विशेष लक्ष्य हो जाता है / शरीर के प्रति निर्मोह भाव भी कम हो जाता है / जिससे वह तप स्वाध्यायादि की वद्धि न करते हुए खान-पान में आसक्ति, औषध सेवन में रूचि, आलसनिंद्रा में वद्धि करता है, साथ ही उसके अनेक संयम गुणों के विकास मे जागरूकता कम हो जाती है / अन्य संयम समाचारी के नियमों के भंग करने पर या उनके प्रति उपेक्षा भाव रखने पर यह साधक क्रमश: निर्ग्रन्थ विभाग से च्युत हो जाता है / कष्ण नील एवं कापोत इन तीन अशुभ लेश्या के परिणाम आने पर तो यह साधक निर्ग्रन्थ विभाग से तत्काल (उसी क्षण) गिर जाता है अर्थात् उनमें निर्ग्रन्थ विभाग के छट्ठा सातवाँ आदि गुणस्थान नहीं रहते हैं / तब वह शिथिलाचारी विभाग के पासत्था आदि म पहुँच जाता है। 35 /