________________ आगम निबंधमाला 4. लिंग पुलाक- आवश्यक वेशभूषा व उपधि के सम्बन्ध में किसी के द्वारा किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न की जाने पर विकट परिस्थिति में जो कोई पुलाक लब्धि का प्रयोग करता है वह लिंग पुलाक निर्ग्रन्थ कहलाता है। 5. यथा सूक्ष्म पुलाक- अन्य विविध कारणों से अर्थात् संघ या व्यक्ति विशेष (साधु, श्रावक, दीक्षार्थी आदि) पर आई हुई आपत्ति आदि की विकट परिस्थिति में जो पुलाक लब्धि का प्रयोग करता है वह यथा सूक्ष्म पुलाक कहलाता है / आगम में 36 द्वारों से पुलाक का स्वरूप बताया गया है जिसके प्रथम द्वार में ये पाँच भेद करके व्याख्या की गई है / इस नियंठे के नाम से ही यह स्पष्ट है कि यह नियंठा पुलाक नामक लब्धि के प्रयोग करने से साधु को प्राप्त होता है / यद्यपि 36 ही द्वारों से इसका यही उक्त अर्थ फलित होता है, फिर भी 1. प्रज्ञापना, 2. लेश्या, 3. स्थिति, 4. गति, 5. भव 6. आकर्ष, 7. अंतर, 8. प्रतिसेवना, 9. लिंग, 10 संयमपर्यव, 11. समुद्घात आदि द्वारों से तो अत्यन्त ही स्पष्ट हो जाता है कि यह अवस्था लब्धि प्रयोग के समय की ही है / अन्य कोई भी पुलाक अवस्था सूत्रकार को अपेक्षित या विवक्षित नहीं है / ___ अत: टीकाकारों द्वारा कल्पित लब्धि पुलाक और आसेवना पुलाक दो भेद करना अनुपयुक्त है और आसेवना पुलाक के ही ये पाँच भेद है ऐसा कहना भी, सूत्रानुकूल नहीं है / क्यों कि ऐसी कोई सूचना 36 द्वारों में नहीं की गई है किन्तु केवल लब्धि पुलाक को ही इन भेदों में विवक्षित कर समस्त वर्णन किया गया है और ऐसा मानने पर ही शेष द्वारों में वर्णित विषयों की संगति सम्यक् प्रकार से हो सकती है। व्याख्याकारों ने लब्धि पुलाक और आसेवना पुलाक दो मूल भेद किए हैं फिर आसेवना पुलाक के सूत्रोक्त पाँच भेद सूचित किए हैं। जिसमें केवल ज्ञान पलाक को ही लब्धि प्रयोग करने वाला कहा है, साथ ही केवल स्खलना से "ज्ञान पुलाक", शंका करने से "दर्शन - AnameR e ep