________________ आगम निबंधमाला .. वह अवसन्न(ओसन्ना) कहा जाता है। ३-कुशील :- जो विद्या, मंत्र, तंत्र, निमित्त कथन या चिकित्सक वत्ति आदि निषिद्ध कृत्य करता है एवं उससे अपनी मान संज्ञा या लोभ संज्ञा का पोषण करता है तथा इन प्रवत्तियों का कोई प्रायश्चित्त भी नहीं लेता है, वह कुशील(कुशीलिया) कहा जाता है / 4- संसक्त :- जो उन्नत आचार वालों का संसर्ग प्राप्त कर उन्नत आचार का पालन करने लग जाता है एवं शिथिलाचार वालों का संसर्ग पाकर वैसा भी बन जाता है अर्थात् नट के समान अनेक स्वाँग धर सकता है और ऊन के समान अनेक रंग धारण कर सकता है / वह संसक्त (संसत्त) कहा जाता है। 5- नित्यक :- जो चातुर्मास कल्प एवं मास कल्प के बाद विहार नहीं करता है या उससे दुगुना काल अन्यत्र व्यतीत करने के पूर्व पुनः उस क्षेत्र में आकार रह जाता है अर्थात् जो चातुर्मास के बाद आठ मास अन्यत्र बिताये बिना ही वहाँ पुनः आकर रह जाता है वह नित्यक(नितिया) कहा जाता है / __जो शक्ति होते हुए भी कभी विहार नहीं करता है एवं एक जगह निष्कारण ही कल्प उपरात ठहर जाता है, वह भी नित्यक (नितिया) कहा जाता है / 6- यथाच्छंद :- जो स्वच्छंदता से आगम विपरीत मनमाना प्ररुपण या आचरण करता है, वह यथाच्छंद स्वच्छंदाचारी कहा जाता है / 7- प्रेक्षणिक :- जो अनेक दर्शनीय स्थलों एवं दृष्यों के देखने की अभिरूचि वाला होता है एवं उन्हें देखते रहता है तथा उसका सूत्रोक्त कोई भी प्रायश्चित्त ग्रहण नहीं करता है वह प्रेक्षणिक (पासणिया) कहा जाता है। 8- काथिक :- जो आहार कथा, देश आदि कथा करने, सुनने, जानने में अभिरूचि रखता है एवं उसके लिए स्वाध्याय के समय की हानि करके समाचार पत्र पढ़ता है, वह काथिक(काहिया) कहा जाता है।अथवा जो अमर्यादित समय तक धर्मकथा करता ही रहता है जिसक कारण प्रतिलेखन, प्रतिक्रमण स्वाध्याय, ध्यान, विनय, वैयावत्य आदि / 38