________________ आगम निबंधमाला करते हैं / [भारत के पाामेंट के सदस्यों के समान, भारत के संविधान के समान / ] जो तीर्थंकर के शासन का श्रुत-आगम कहलाता है / इसीलिये कहा जाता है कि तीर्थंकर अर्थ का निरुपण करते हैं, गणधर सूत्रों की रचना करते हैं / तीर्थंकर अर्थरूप में वाणी सदा फरमाते रहते है और गणधर तीर्थ स्थापना के शरू दिन ही द्वादशांगी सूत्र रूप आगमों का सर्जन कर देते है तभी शिष्यो में (साधु-साध्वी समुदाय में) उनका अध्ययन प्रारंभ कर दिया जाता है। साध्वियों के लिये पहले प्रवर्तिनी गणधरों से प्राप्त कर श्रुत को स्थित कर लेती है फिर क्रमिक अध्ययन साधु-साध्वी का अलग-अलग कंठस्थ परंपरा में चलता है / सैकड़ों हजारों श्रमण-श्रमणियों में कंठस्थ परंपरा से श्रुत ज्ञान आगे से आगे सुव्यवस्थित सुचारु रूप से प्रवाहित होता है / आवश्यक सूत्र की रचना भी गणधर प्रारंभ से कर देते हैं क्यों कि श्रुत ज्ञान के अध्ययन में प्राथमिकता आवश्यक सूत्र की रहती है जिसके सीखने के बाद ही बडी दीक्षा होती है / तदनंतर ग्यारह अंग क्रमशः कराये जाते हैं / बारहवाँ अंग केवल साधु समुदाय में ही प्रवाहित होता है / साध्वी समुदाय में उसका अध्ययन शारीरिक मानसिक क्लिष्टता एवं विशिष्ट साधनाओं से संयुक्त होने के कारण निषिद्ध माना गया है / साधुओं में भी विशिष्ट योग्यता संपन्न अत्यल्प को ही वह ज्ञान दिया जाता है। इसी कारण श्रमणों में भी 12 वें अंग के अध्येता सभी नहीं होते हैं कोई विशिष्ट क्षमता एवं क्षयोपशम वाले ही इसका अध्ययन करते हैं / अन्य को मना कर दिया जाता है / श्रुत विच्छेद विचारणा :- भगवान महावीर स्वामी के शासन में संपूर्ण द्वादशागी के अध्येता 14000 संतों में से 300 साधु ही हुए। इस कारण भगवती सूत्र अनुसार वीरनिर्वाण के 1000 वर्ष बाद 12 वे अंग सूत्र का विच्छेद माना गया है जो उपयुक्त एवं संभव भी लगता है / ग्यारह अंग सूत्र यथाविधि अनेक साधु एवं साध्वियाँ कंठस्थ एवं अध्ययन की परंपरा को व्यवस्थित चलाते रहते हैं / शासन में हजारों साधु-साध्वी सदा रहते ही आये हैं और आज तक / 23 /