________________ आगम निबंधमाला जो भगवान के निर्वाण समय में जन्म नक्षत्र पर लगा था। जिसका कथन वर्तमान मे पयूषणा कल्प सूत्र में है और वही कथन प्राचीन काल में नदी सूत्र सूची में कहे महाकल्प सूत्र अथवा चुल्लकल्प सूत्र में रहा था। नंदी में कहे उन्हीं दोनों सूत्रों को साथ जोङकर तैयार किया गया पर्युषणा कल्प सूत्र विक्रम की चौदहवीं सदी के आस-पास अस्तित्व में आया है / इसी कारण उस समय के पूर्व के मलयगिरि आचार्य तक के आगम व्याख्याकारों की व्याख्या में या उनके ग्रंथों में पर्युषणा कल्प सूत्र के नाम का किसी प्रकार का उल्लेख नहीं है। कल्पसूत्र पर स्वतंत्र व्याख्याएँ भी विक्रम की चौदहवीं सदी में या उसके बाद ही बनने लगी है / ... भगवान महावीर का विशिष्ट शासन :- तेवीस तीर्थंकरों का शासन बिना किसी छेद-भेद के, बिना उत्थान-पतन के, एक रूप से चलता आता है / महाविदेह क्षेत्र में भी हजारों लाखों वर्षों तक तीर्थंकरों का शासन छेदन-भेदन के बिना एक रूप से श्रृंखलाबद्ध चलता रहता है / (कुछ तीर्थंकरों (7) के शासन में विच्छेद रूप अछेरा हुआ है तो भी छेद-भेद एवं उत्थान पतन उसे नहीं कहा जा सकता / ) किंतु भगवान महावीर स्वामी का शासन प्रारंभ से अर्थात् उनके जीवन काल से ही छेदन-भेदन वाला चला है जिसमें आजतक भी समय-समय पर कुछ न कुछ छेदन-भेदन चलता जा रहा है / गोशालक :- भगवान के शासन की शरूआत से ही गोशालक तीर्थंकर रूप में प्रसिद्धि में आया और लाखों जैनी उसने अपने मत प्रमाणे अलग बनाये। जिनकी संख्या अपेक्षा से भगवान के श्रावकों से अधिक थी। फिर मरने के पूर्व भी उस गौशालक ने सर्वज्ञ सर्वदशी, 34 अतिशय युक्त भगवान के समक्ष ऐसा तांडव उदंगल खडा किया कि आवेश और आक्रोश में अपनी बहुसंख्यक मंडली के साथ भगवान के समवसरण में पहुँचकर भगवान के सामने बेतुकी निरर्थक कई प्रकार की झूठी बकवास रखी। दो श्रमण श्रेष्ठों को सब के देखत ही देखते तेजोलेश्या से भस्म कर दिया ! वे शुभ परिणामों में काल करके देवलोक में गये और आराधक एक भवावतारी बने / उस गौशालक के / 29.