________________ आगम निबंधमाला परिपूर्ण वह क्रियोद्धार पनपता बढता चला / कुछ ही वर्षों में 15 लाख जैनों में से 8 लाख जैनों ने उस क्रियोद्धार में अपनी सहमती दिखाई / यही प्रवाह, वही समाज, चतुर्विध संघ बनकर स्थानक वासी धर्म के नाम से प्रख्यात हुआ। [मंदिर मार्गियों के लोकागच्छ के अपने स्वतंत्र मंदिर एवं उपाश्रय भी थे उसी गच्छ में से लक्ष्मीविजयजी म.सा. आदि दस संत की टुकडी ने यथासमय पुन: नई दीक्षा लेकर क्रियोद्धार-जिनशासन का पुनरुत्थान किया / ... स्थानकवासी धर्म :- ऐसे समय में अवशेष श्वेतांबर मूर्तिपूजक संत समाज ने भी अपने संगठन के प्रयत्न किये कुछ आचार को भी उन्नत बनाया / साथ-साथ मंत्र-तंत्र बल से विरोध भी किया किंतु कल्पसूत्र कथित 2000 वर्ष के भस्मग्रह हटने के कारण शासन उन्नतोन्नत होता रुका नहीं / स्थानकवासी साधु-साध्वी संख्या भी बढती गई / एक लोकाशाह (लोकागच्छीय उत्तम संत पुरुष) खड़े होने पर उसके सहयोगी अनेक क्रांतिकारी वीर लोकाशाह रूप श्रमण आदि बनते गये और जिनशासन उन्नतोन्नत होता रहा / . , . पुनः उत्थान पतन के चक्र में :- सैकड़ों वर्ष के इस उत्थान के बाद हुंडावसर्पिणी के पाँचवे आरे के कारण पुनः उत्थान-पतन, चढावउतार चलते-चलते आज जिन-शासन में 14 हजार जैन संत सतीजी एवं लाखों करोड़ों (5 करोड) जनता रूप जैन समाज अपने अपने दायरे-संप्रदाय में बढता जा रहा है साथ ही वक्र जड़ता की बुद्धि के कारण कुछ छिन्न-भिन्न, संप्रदायभेद, फूट-कलह, राग-द्वेष, मेरे तेरे, आपसी मन मुटावों आदि अनगिनत ग्रहों के साथ भी ज्ञानदर्शन चारित्र तथा तप में चहुँ ओर सापेक्ष (स्थूल दृष्टि से) प्रगति भी होती जा रही है। वर्तमान जिनशासन की सत्य दशा :- एकता के अभाव में जहाँ महावीर जयंती, पयूषणा-संवत्सरी भी अलग-अलग मनाते जा रहे हैं; शिथिलाचार, लोकप्रवाहादि दूषण बढ़ते ही जा रहे है एवं पुनः आडबर, आरंभ-समारंभ, मिथ्या प्रवृतिएँ बढती ही जा रही है। यों धर्म के रूप को विकृत बनाते हुए भी जिनशासन के एवं जिनधर्म क प्रति जनता में एवं व्यक्ति में अतिशय भक्ति की वृद्धि आज भी