Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुघा टीका स्था.५ उ.२ २.६ गर्भविषयनिरूपणम् यथा सा १, अतिक्रान्त यौवना-अतिक्रान्तं यौवनं यस्याः सा-गतयौवना २, जातिवन्ध्या-जाते जन्मत आरभ्य वन्ध्या निर्बीजा, ३ ग्लान्यस्पृष्टा-ग्लान्येनरोगेण स्पृष्टाअस्ता ४, तथा-दौमनस्थिका-दौमनस्यं-शोकादिकमस्ति यस्याः सा, "दौमनस्यिता'-इति च्छायापक्षे तु दौमनस्य संजातं यस्याः सा,-शोकादि संकुलेत्यर्थः ५, इत्येतैः पञ्चभिः स्थानः स्त्री पुरुषसंगताऽपि गर्भ न धरेत् । ____पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धिं' इत्यादि सूत्र ६। टीकार्थ-पुरुषके साथ संगम करती हुई भी स्त्री इन पांच कारणों से गर्भवती नहीं हो सकती है-वे पांच कारण इस प्रकार से हैं-यदि वह अप्राप्त यौव. नवाली है, तो वह पुरुषके साथ रत होती हुई भी गर्भवती नहीं हो सकती है १। इसी तरहसे वह यदि गत यौवनवाली है, यौवनावस्थासे वह रहित हो चुकी है, तो ऐसी स्थिति में भी यह पुरुष द्वारा भुक्त होती हुई भी गर्भवती नहीं हो सकती है । तथा-यदि वह जातिसे जन्मसेही बन्ध्या है, निर्बीजा है, तो वह पुरुषसे रतिक्रिया करती हुई भी गर्भवती नहीं हो सकती है३, यदि वह ग्लान्य स्पृष्टा है, रोगग्रस्त है, तो भी वह पुरुषके साथ संगम करती हुई भी गर्भवती नहीं हो सकती है ४, और यदि वह रतिक्रियामें रत होती हुई भी शोकादिसे युक्त मनवाली बनी रहती है-प्रसन्न चित्त नहीं रहती है, तब भी यह गर्मयती नहीं हो सकतीहै५, अथवा-" दोमणंसिया" को छाया-"दोर्मनस्थिता" ऐसी भी होती है, इस पक्षमें यदि वह शोक आदिसे युक्त
11-" पचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धि ''
પુરુષની સાથે સંભંગ કરવા છતાં પણ નીચેના પાંચ કારણોને લીધે સ્ત્રી ગર્ભ ધારણ કરી શકતી નથી. (૧) સુવાવસ્થામાં આવ્યા પહેલાં જે કંઈ કન્યા પુરુષ સાથે રતિક્રિયા કરે. તે તે ગર્ભવતી થતી નથી. (૨) જે સ્ત્રી યૌવન વ્યતીત કરી ચુકી છે, એટલે કે પ્રૌઢા અથવા વૃદ્ધા બની ચુકી છે, તે પુરુષ સાથે સંભોગ કરવા છતાં પણ
धा२९ शशाती नथी. (3) श्री मथी 4-ध्या (निमा) હોય, તે પુરુષ સાથે રતિક્રિયા કરવા છતાં પણ ગર્ભવતી બની શકતી નથી. (૪) જે તે રોગગ્રસ્ત હોય, તે પણ પુરુષની સાથે સંભોગ કરવા છતાં ગર્ભવતી બની શક્તી નથી. (૫ પુરુષની સાથે રતિક્રિયા કરવા છતાં પણ જે શ્રી શેકાકુલ હોય એટલે કે પ્રસન્નચિત્ત ન હોય, તે ગર્ભવતી બની શકતી नथी. “ दो मणंसिया' मा पनी संस्कृत छ।। " दामनस्यिता " सेवामा स्था०-४
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૪