Book Title: Jyotish Kaumudi
Author(s): Durga Prasad Shukla
Publisher: Megh Prakashan Delhi
Catalog link: https://jainqq.org/explore/002762/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पं. दुर्गा प्रसाद शुक्ल ज्योतिष कौमुदी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय ज्योतिष में ‘नक्षत्र-विचार' का अत्यन्त महत्व है। किसी भी व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक फैले सोलह संस्कारों में नक्षत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम जिसे मुहूर्त कहते हैं, उसके मूल में नक्षत्र ही है। नक्षत्र जातक की कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल के साथ-साथ नाना प्रकार की व्याधियों के कारक भी बनते हैं। किसी भी जातक के जन्म नक्षत्र का उस जातक के व्यक्तित्व, स्वभाव आदि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। नक्षत्रों के शुभ-अशुभ प्रभावों का आकलन कर कोई भी व्यक्ति अपने दोषों को दूर कर गुणों में वृद्धि कर सकता है। 'ज्योतिष कौमुदी' के प्रथम खंड में नक्षत्रों पर सम्पूर्ण एवं प्रामाणिक विवेचन उपलब्ध है। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्योतिष-कौमुदी ( ज्योतिष के प्राचीन और अर्वाचीन सिद्धांतों का सार - ग्रंथ ) खंड - 1 नक्षत्र - विचार पं. दुर्गाप्रसाद शुक्ल संपादन सेवाराम जयपुरिया प्राचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ वास्तु एवं जॉयफुल लिविंग भूमिका अशोक सहजानन्द परामर्श संपादक- 'आपकी समस्या - हमारा समाधान (मासिक) मेघ प्र दि मेघ प्रकाशन facci-110006 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • विलुप्त हो रहे प्राचीन एवं अधुनातन मौलिक साहित्य को विश्वसनीय रूप में प्रकाशित करेन के लिए प्रतिबद्ध • पाठकों की रुचि का संस्कार एवं स्तर-निर्माण के लिए मार्गदर्शक ग्रंथ-प्रस्तुति के लिए समर्पित • देशगत किंवा जातिगत आग्रहों एवं व्यामोहों से मुक्त रहकर विश्वजनीन शाश्वत मूल्यों की प्रेरणा देने वाले चिंतन को प्रसारित करने के लिए संकल्पशील • स्वस्थ परम्परा और उदात्त आचार-व्यवहार की स्थापना के लिए एक शालीन सारस्वत प्रयास की ओर अग्रसर मेघ प्रकाशन 239, दरीबाकलाँ, दिल्ली -110006 (भारत) दूरभाष : (011) 23278761, 22913794 ई-मेल : megh_prakashan@rediffmail.com द्वारा प्रकाशित प्राप्ति स्थान:इंस्टीट्यूट ऑफ वास्तु एण्ड जॉयफुल लिविंग बी-292, सरस्वती विहार, पीतमपुरा, दिल्ली-34 फोन : 27020736, 27030966, 27030967 फैक्स : 27028228 प्रथम संस्करण : सन् 2004 © सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन सुरक्षित आवरण : इमेज ग्राफिक्स, दिल्ली-110053 शब्द-संयोजन : धामा कम्प्यूट्रस (फोन : 9811894166) मुद्रण : अरोड़ा आफसेट, दिल्ली-110051 JYOTISH KAUMADI (Vol I.) Pt. Durga Pd. Shukla " Rs.200/ - - ISBNNo.81-85781-95.8 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्योतिष शास्त्र : मृत परंपरा का बोझ या सनातन सत्य इक्कीसवीं शती में जब अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अत्यधिक समुन्नत उपकरण उपयोग में लाये जा रहे हैं और हमारे चिर-परिचित ग्रहों के संबंध में अब तक अज्ञात नयी-नयी खोजें की जा रही हैं, तब क्या हम प्राचीन ज्योतिष ग्रंथो में वर्णित इन ग्रहों के विवरणों और तथाकथित प्रभावों को किस सीमा तक मानें ? क्या ज्योतिष शास्त्र सटीक वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है ? क्या ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास महज एक अंध-विश्वास है, क्या वह एक मृत परंपरा के बोझ को ढोने के समान नहीं है ? और भी ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जो ज्योतिष शास्त्र के संबंध में प्रबुद्ध जनमानस में उठते हैं। ज्योतिष शास्त्र की उपयोगिता के संबंध में एक संभ्रम की स्थिति दिखायी देती है। उसकी वैज्ञानिकता पर प्रश्न चिह्न लगाये जाते हैं और कभी-कभी उसका उपहास भी किया जाता है। इस स्थिति के लिए कुछ अंशों तक वे तथाकथित ज्योतिषी एवं ज्योतिष कृतियां भी जिम्मेदार हैं, जो नक्षत्रों, राशियों, ग्रहों आदि के शुभ-अशुभ प्रभावों को विधाता का लेख घोषित कर, उनके निवारणार्थ उपाय और उपचार भी पेश करती हैं। जबकि तथ्य यह है कि ज्योतिष शास्त्र के सुधी विद्वान भी मानते हैं, ग्रहादि विधायक नहीं, किसी शुभ-अशुभ स्थिति के सूचक ही होते हैं और व्यक्ति अपने कर्म द्वारा इन फलों में न्यूनता भी ला सकता है। मनुष्यों और करोड़ों मील दूर स्थित ग्रहों और नक्षत्रों के बीच क्या कोई संबंध है ? Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह संबंध काल्पनिक है अथवा उसका कोई वैज्ञानिक आधार है ? इस तरह की जिज्ञासाएं होना स्वभाविक है । और, इन जिज्ञासाओं का सम्यक् समाधान ही हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायक हो सकता है। हम सभी जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य-परिवार अर्थात् सौर मंडल का अंग है। इस सौर मंडल के केंद्र में सूर्य है और पृथ्वी सहित अन्य हमारे ज्ञात ग्रह अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि अपनी-अपनी कक्षा में इसी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है, जो उसकी परिक्रमा करता हुआ, उसके साथ-साथ ही सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। चंद्रमा जैसे उपग्रह अन्य ग्रहों के भी हैं, जैसे गुरु एवं शनि की परिक्रमा करने वाले अनेक उपग्रह हैं। भारतीय ज्योतिष में राहु-केतु सहित नव ग्रहों की चर्चा है । अर्थात् सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु (राहु-केतु पार्थिव ग्रह नहीं, काल्पनिक है, इसीलिए उन्हें छाया ग्रह कहा जाता है ।) इधर पाश्चात्य खगोलविदों ने तीन और ग्रहों की खोज की है, ये हैं- नेपच्यून, यूरेनस और प्लूटो । अब यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरिक्ष में हमारे सौर मंडल की भांति अनेक सौर मंडल हैं, असंख्य सूर्य हैं। इसी तरह हमारा सौर मंडल जिस आकाश गंगा या 'गैलेक्सी' में स्थित है, वैसी आकाश गंगाएं भी असंख्य हैं। इन्हें नीहारिकाएं नाम भी दिया गया है। नीहार कहते हैं, रूई के फाये के समान गिरते हुए बर्फ को । आकाश में जो इस प्रकार के बर्फ या धुएं या हल्के बादल के समान फैले हुए धब्बे दिखायी पड़ते हैं, उन्हें नीहारिका कहते हैं। इनकी भी संख्या लाखों में है। ज्योतिषियों का अनुमान है कि कम से कम एक अरब नीहारिकाएं तो हैं ही और प्रत्येक नीहारिका में लगभग इतने ही तारे अर्थात् सूर्य हैं। हमारी आकाश गंगा एक खासी बड़ी नीहारिका है। इसका व्यास लगभग 30,000 पासैक है और एक पासैक 191 खरब मील के बराबर होता है । हमारे सबसे निकट जो नीहारिका है, उसे एंड्रोमीडा नाम दिया गया है। T एंडोमीडा की दूरी बीस लाख प्रकाश वर्ष से अधिक है। जानकारी के लिए बता दें कि एक प्रकाश वर्ष 58,69,71,36,00,000 मील का होता है। दूसरे शब्दों में प्रकाश एक वर्ष में इतनी दूरी तय करता है । अनुमान किया जाता है कि आरंभ में गैस और रजकण का फैलाव था । लेकिन यह सर्वत्र समान नहीं, कहीं अधिक कहीं ज्यादा था । आकर्षण के नियम के अनुसार, यह गैस घनीभूत होने लगी होगी ओर ज्यों-ज्यों घनीभूत ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 4 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टुकड़े परस्पर निकट आये होंगे तो वे टकराये भी होंगे। इस प्रकार वह सामग्री पिंडीभूत हुई होगी और उसका तापमान भी बढ़ गया होगा। वह जलने और चमकने भी लगी होगी। इस प्रकार तारों अथवा सूर्यो की उत्पत्ति हुई होगी। ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई, इस विषय में धर्मग्रंथों एवं वैज्ञानिक जगत में अनेक सिद्धांतों का अनुमान लगाया गया है। एक सिद्धांत यह है कि ब्रह्मांड अथवा महादांद या शून्य का आरंभ एक आणविक विस्फोट से हुआ, जिसके कारण पदार्थ के छिटकने से अनेक तारों, ग्रहों तथा तारामंडलों का निर्माण हुआ। __ 1046 में जॉर्ज गैमक ने आर.ए. एल्फर के साथ मिलकर सृष्टि के उदय के पूर्व एक उच्च तापीय स्थिति की कल्पना की तथा अनुमान लगाया कि ब्रह्मांड का प्रारंभ दस अरब से बीस अरब वर्ष पूर्व एक विस्फोट के फलस्वरूप हुआ। इस विस्फोट को ही 'बिग बैंग' कहा जाता है। इस विस्फोट के तत्काल बाद ब्रह्मांड सशक्त विकिरणों से भरा था। इन विकिरणों से एक ऐसे क्षेत्र का निर्माण हुआ, जो तीव्रता से फैलता चला गया। इसे आद्य अग्निपिंड भी कहा जाता है। प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक जयंत विष्णु नारलीकर का कहना है कि एक नहीं, अनेक विस्फोट हुए। उन्हीं के कारण ब्रह्मांडों की रचना हुई। हमारे भारतीय ज्ञान की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र है। अतः ब्रह्मांड के वैज्ञानिक विकास को तात्विक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ते हैं। उनके अनुसार बिंदु विस्फोट का प्रयोजन ब्रह्मांड के साथ-साथ तीन दैवी शक्तियों को जन्म देना भी था। बिंदु के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा जिन तीन दैवी शक्तियों, त्रिमूर्ति में विभाजित होती है, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश माना गया है। __वैज्ञानिकों की मान्यता है कि जिन तत्वों से ग्रहों एवं तारों की रचना हुई है, उन्हीं तत्वों से पृथ्वी और उसमें उत्पन्न, विकसित जीवों का भी निर्माण हुआ है। अब यह भी सिद्ध हो चुका है कि मंगल, शुक्र की रचना का पृथ्वी से अद्भुत साम्य है। सृष्टि के निर्माण के इस विवरण से यह माना जा सकता है कि भारतीय ज्योतिष में ग्रहों के मनुष्य जीवन पर पड़ने का जो सिद्धांत है, उसका एक वैज्ञानिक आधार है। सूर्य और चंद्र का प्राणी-जगत एवं वनस्पति-जगत पर पड़ने वाले प्रभाव से सभी परिचित हैं। सूर्य से ही धरती पर जीवन है, पर वैज्ञानिकों ने शोध कर पता लगाया है कि यदि चंद्रमा या गुरु ग्रह न होता तो भी सूर्य के होने के बावजूद धरती पर आज जैसा जीवन नहीं होता। यदि चंद्रमा न ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 5 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता तो शायद मनुष्य का वर्तमान रूप भी नहीं होता। धरती पर सारा जीवन जलमय ही होता अर्थात् पृथ्वी पर थलचर की बजाय जलचर ही होते। अर्थात् पानी में रहने वाले जीव। इसी प्रकार यदि गुरु अपने गुरुत्वाकर्षण से अंतरिक्ष के शीतकाय उल्का पिंडों को अपनी ओर नहीं खींचता तो शायद वे धरती से टकराते रहते और उस स्थिति में पृथ्वी पर आज जैसा जीवन होता, इसमें संदेह है। डाइनासोरो आदि का विनाश ऐसे ही एक भीमकाय उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने से हुआ था। सूर्य और चंद्रमा की राशियों का प्रभाव हम प्रतिदिन अनुभव करते हैं। यह भी स्वीकार किया गया है कि पूर्णिमा की रात्रि को लोगों को पागलपन के दौरे ज्यादा पड़ते हैं। कुछ समुद्र तटों का भी पता चला है, जहाँ पूर्णिमा की रात हजारों मछलियां तट पर आकर प्राण गंवाती हैं। क्या सूर्य, चंद्र को छोड़ मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि नेपच्यून, यूरेनस, प्लेटो आदि का भी धरतीवासियों पर ऐसा ही कोई प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र तो यह मानता ही है कि ग्रहों का मनुष्य के व्यक्तित्व-कृतित्व आदि पर प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक भी अब इन ग्रहों के मानव-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। अतः जब तक कोई विपरीत वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं प्राप्त होता, तब तक ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों की अंधविश्वास' कहकर उपेक्षा करना हितकर नहीं होगा। भारत, ग्रीस (यूनान), अरब आदि देशों में ज्योतिष शास्त्र का प्रचलन सदियों से है। अगर ये सिद्धांत 'मात्र अंधविश्वास होते तो सदियों तक जीवित ही नहीं रहते। प्रचार-प्रसार की तो बात दूर। ज्योतिष शास्त्र का उद्देश्य क्या है ? या उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए। इन प्रश्नों के उत्तर में बहुत विस्तार से भी लिखा जा सकता है लेकिन हमारी समझ के अनुसार ज्योतिष शास्त्र का उद्देश्य यही है कि कोई भी व्यक्ति नक्षत्र-ग्रहादि के अपने पर पड़े प्रभावों को समझे। अच्छे प्रभावों में वृद्धि करे। बुरे प्रभावों को दूर करने का प्रयत्न करे। इसी तरह जीवन में आगे पड़ने वाले इन ग्रहादि के अच्छे-बुरे प्रभावों को पहले ही समझ कर तदनुसार अपने जीवन को संवारने के लिए चेष्टा करे। क्योंकि ग्रहादि केवल संकेतमात्र की सूचना देते हैं। ज्योतिष शास्त्र को समझ कर हम यह जान सकते हैं कि भविष्य में ऐसा घटित हो सकता है। ऐसा ही होगा, यह विश्वास करना भूल ही होगी। ऐसा सोचना खतरनाक भी है, यह हमारी मान्यता है। यों भी फलादेश उतना आसान नहीं है, जितना उसे समझ लिया गया है। आप किसी पंडितजी या ज्योतिषीजी के पास जाते हैं। वह आपकी ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 6 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लग्न कुंडली देखते हैं और फलादेश बतलाने लगते हैं। उनका यह फलादेश सतही और स्थूल भी हो सकता है (और अक्सर होता भी है) क्योंकि किसी कुंडली का संपूर्ण अध्ययन समय की मांग करता है। जैसे ग्रहों के अंश क्या हैं? वे अस्त हैं अथवा उच्च या निर्बल स्थिति में हैं। वे मित्रगृह में हैं या शत्रु गृह में। उन पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है। वे किन नक्षत्रों में, नक्षत्रों के किन चरणों में हैं। उन नक्षत्रों से उनके कैसे संबंध हैं। प्रश्नकर्ता वर्तमान में किस ग्रह की महादशा में, किसकी अंतर-प्रत्यंतर दशा से गुजर रहा है, आदि। नक्षत्रों का महत्त्व प्राचीनकाल से ही रहा है। पाश्चात्य विद्वान यूनानियों, रोमनों, बेबीलोनिया निवासियों एवं मिस्रियों को उनकी खोज एवं नामकरण का श्रेय देता है। अपनी पठनीय कृति 'भारतीय ज्योतिष में स्वर्गीय डॉ. नेमिचंद शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने भारतीय ज्योतिष में काल वर्गीकरण पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए ईसापूर्व 10001 में ई.पू. 500 तक को उदयकाल से संबोधित किया है तथा प्रभावित किया है कि "उदयकाल में भारतीयों को नक्षत्रों का पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने अपने पर्यवेक्षण द्वारा मालूम कर लिया था कि संपात बिंदु भरणी का चतुर्थ चरण है, अतएव कृतिका से नक्षत्र गणना की जाती थी। ऋगवेद में हमें वर्तमान प्रणाली के अनुसार नक्षत्र-चर्चा मिलती हैं: अभी य ऋथा विहितास उध्रां नकुन्दहश्रे-कुद्रच्छिवेपुः अद्धब्धानि वहणस्य वतानि विचाक सश्चंद्रमा नक्तमेति इस मंत्र में रात्रि में नक्षत्र प्रकाश एवं दिन में नक्षत्र-प्रकाश भाव का निरूपण किया गया है। ऋग्वेद सूर्य को भी एक नक्षत्र मानता हैअग्ने नक्षत्रमचरमा सूर्य रोहियो दिवि वेद के अनुसार, सूर्य भी नक्षत्र है, जो कभी जीर्ण नहीं होता तथा धुलोक में आरोहमान है। अथर्ववेद में सूर्य को सभी नक्षत्रों का अधिपति माना गया है दिवे चक्षुणे नक्षत्रेभ्य सूर्यायाऽधिपतये स्वाहा वेद में विष्णु को नक्षत्र रूप कहा गया है। गो का एक अर्थ नक्षत्र भी है और नक्षत्र मंडल में विचरने वाले प्रकाश पिंड गोचर अथवा ग्रह हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन हमें चमत्कृत कर देता है कि आज से सहस्रों वर्षों पूर्व जब आज जैसे वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे, तब हमारे प्राचीन ऋषियों-मनीषियों ने किस तरह प्रकाश में उपस्थित असंख्य तारों ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 7 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के संबंध में इतना ज्ञान प्राप्त किया। कैसे उन्होंने तारों को मिलाकर नक्षत्रों और नक्षत्रों को मिलाकर राशियों की कल्पना की, कैसे इन राशियों और उनमें विचरते ग्रहों के मनुष्यों पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभावों का अध्ययन किया और जो निष्कर्ष प्राप्त किये वे आज भी प्रासंगिक हैं। निश्चित रूप से यह एक पीढ़ी का काम नहीं था। इसमें कई पीढ़ियों ने अपना जीवन होम दिया होगा। भारतीय ज्योतिष के सिद्धांत हमारे लिए आज भी उपयोगी हैं। कठिनाई यह है कि हम इन सिद्धांतों के मर्म को बिना समझे उनका शब्दशः अर्थ ग्रहण कर लेते हैं या फिर हम बिना उन्हें समझे उनकी निंदा-आलोचना में लगते हैं। आवश्यकता है, ज्योतिष सिद्धांतों के आधुनिक काल की आवश्यकतानुसार समझने और उनकी व्याख्या करने की, साथ ही उनमें शोध करने की। आज विज्ञान भी इसमें सहायक हो सकता है। कोई पंद्रह-बीस वर्ष पूर्व की बात है। मैं एक पत्रिका में एक लेख पढ़ रहा था। लेखक पुणे के कोई विद्वान थे, जिन्होंने अपनी ध्यानावस्था में गुरु ग्रह के धरातल एवं वायुमंडल के दर्शन किये थे। लेखक ने अपनी ध्यानावस्था में बृहस्पति में अपने सूक्ष्म शरीर से जो देखा, उसका विवरण उन्होंने लिखकर अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान 'नासा' को भेज दिया था। उसकी एक प्रतिलिपि उन्होंने कुछ समाचार-पत्रों को भी एक सीलबंद लिफाफे में भेजी थी। 'नासा' को भी उन्होंने सीलबंद लिफाफा भेजा था। उन दिनों 'नासा' ने एक खोजी यान 'वाइजर' अंतरिक्ष में शुक्र, गुरु, शनि आदि की जानकारी करने के लिए भेजा था। उन लेखक महोदय ने 'नासा' के अधिकारियों से निवेदन किया था कि जब 'वाइजर' से गुरु ग्रह के संबंध में प्रेषित विवरण प्राप्त हो जाए तो वे उनका सीलबंद लिफाफा खोलकर उसमें लिखे गये विवरण से 'वाइजर' द्वारा प्राप्त विवरण का मिलान करें। समाचार पत्रों के संपादकों से भी उन्होंने इसी तरह का अनुरोध किया था। कुछ समय बाद 'वाइजर' ने गुरु ग्रह से संबंधित विवरण भेजा। 'नासा' अधिकारियों ने उक्त सज्जन द्वारा प्रेषित लिफाफे को खोलकर उसमें लिखे गये विवरण का ‘वाइजर' द्वारा प्रेषित विवरण से मिलान किया तो वे आश्चर्यचकित रह गये। दोनों विवरणों में अद्भुत साम्य था। उक्त पत्रिका में उक्त लेखक महोदय ने इन्हीं सब बातों का उल्लेख किया था। इस प्रसंग के उल्लेख का उद्देश्य यही तथ्य प्रतिपादित करना है कि हमारे प्राचीन ऋषियों का ज्ञान खोखला नहीं था। वह चिंतन की एक सुदीर्घ परंपरा का परिणाम था। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार . 8 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय ज्योतिष सिद्धांतों पर अनेक ग्रंथ हैं। उन्हें पढ़ते हुए हमें यह तथ्य भी याद रखना चाहिए कि जिस तरह रीतिकालीन एवं बाद के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की तुष्टि-संतुष्टि के लिए काव्यग्रंथों की रचना की, उसी तरह कुछ ज्योतिषाचार्यों ने भी अपने आश्रयदाताओं की प्रसन्नता के लिए ज्योतिष सिद्धांतों की अलग-अलग व्याख्या की है। यही कारण है कि अनेक ज्योतिषाचार्यों के कुछ ग्रहों के प्रभावों के बारे में सर्वथा विपरीत फल भी मिलते हैं। इसलिए हमारी राय में ज्योतिष सिद्धांतों को जांच-परख कर ही अपनाना चाहिए। कर्मकांड एवं पुरोहित परंपरा ने ज्योतिष सिद्धांतों पर जो आवरण चढ़ा दिये हैं, हमें उन्हें हटाकर उनके वास्तविक अर्थ को समझने की चेष्टा करनी चाहिए। विडंबना यह है कि हम किसी भी शास्त्र का क्रैशकोर्स कर उसमें पारंगत होना चाहते हैं। जिस तरह आज योग, रेकी, वास्तु शास्त्र का ज्ञान देने वाली अनेक संस्थाएं, शालाएं और गुरु हैं, उसी तरह ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान कराने का दावा करने वाली भी अनेक संस्थाएं एवं ज्योतिषाचार्य हैं। इनसे ज्योतिष शास्त्र का प्रचार-प्रसार तो हो रहा है, और यह एक शुभ संकेत भी है, तथापि शीघ्रातिशीघ्र 'भविष्यवक्ता बन, ज्ञान को आय का स्रोत बना लेने की जल्दबाजी ज्योतिष के नये अध्येताओं को 'गहरे पानी नहीं पैठने देती। ज्योतिष शास्त्र हो या वास्तुशास्त्र, अथवा योग, अथवा रेकी के सच्चे ज्ञान के लिए हमें अपने जीवन को आध्यात्मिक अनुशासन में ढालना पड़ेगा। यही आध्यात्मिक अनुशासन हममें एक अंतर्ज्ञान शक्ति विकसित करेगा, जिसकी सहायता से दृष्टिमात्र में हम किसी भी कुंडली के मर्म तक पहुंचने में सफल हो सकते हैं। __ समस्त भारतीय ज्ञान की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र है। भारतीय दर्शन आत्मा को अजर एवं अमर मानता है। इस आत्मा का अनादिकाल से कर्मप्रवाह के फलस्वरूप लिंग शरीर और भौतिक शरीर से संबंध है। आत्मा मनुष्य के भौतिक शरीर में रहते हुए भी अनेक जगतों से संबंध रखता है। हमारा यह शरीर मुख्यतः ज्योति, मानसिक और पौद्गलिक, इन तीन उप-शरीरों में विभक्त है। वह ज्योति उपशरीर द्वारा नक्षत्र जगत से, मानसिक-उपशरीर द्वारा मानसिक जगत से तथा पौद्गलिक-उपशरीर द्वारा भौतिक जगत से संबद्ध रहता है। आत्मा की क्रियाविशेषता के कारण मनुष्य के व्यक्तित्व को दो भागों में बांटा गया है। एक बाह्य व्यक्तित्व एवं दूसरा आंतरिक व्यक्तित्व । ज्योतिष इस व्यक्तित्व चेतना के तीन रूप मानता है-ये हैं, रूप, अनुभव और क्रिया। बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप आंतरिक व्यक्तित्व के इन ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 9 : Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीनों रूपों से संबद्ध है। आंतरिक व्यक्तित्व की विशेषता एवं शक्ति के कारण मनुष्य के भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक जगत का संचालन होता है । मनुष्य के बाह्य व्यक्तित्व के तीन एवं आंतरिक स्वरूप के तीन रूपों एवं अंतःकरण का सौर मंडल में विचरण करने वाले मुख्य ग्रहों से संबंध माना गया है । इन ग्रहों को इन रूपों एवं अंतःकरण का प्रतीक कहा गया है। सारांश में ये ग्रह ही हमारे बाह्य एवं आंतरिक व्यक्तित्व को संचालित और प्रभावित करते हैं । तात्पर्य यह है कि अच्छा ज्योतिषी बनने के लिए हमें भारतीय अध्यात्म का भी पर्याप्त ज्ञान रखना चाहिए । लेकिन आज कितने 'स्वनाम धन्य' ज्योतिषियों को इन सब बातों का 'हस्तकमलावत्' ज्ञान है ? 'नीम हकीम' सदा 'खतरा-ए-जान' साबित होता है ! पर आज ज्योतिष शास्त्र में बहुलता ऐसे ही नीम-हकीमों की है, फलतः एक सनातन ज्ञान मृत परंपरा का बोझ या अंधविश्वास लगने लगता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले अनेक ग्रंथ हैं । 'ज्योतिष कौमुदी' के लेखन एवं प्रकाशन का एकमात्र उद्देश्य यही है कि पाठकों को एक ही स्थल पर इन ग्रंथों की सामग्री का सार प्राप्त हो जाए। पं. दुर्गाप्रसाद शुक्ल एक अनुभवी पत्रकार एवं लेखक हैं। मेरे अनुरोध पर उन्होंने ज्योतिष शास्त्र पर अनेक परिचयात्मक पुस्तकें लिखी हैं, जिनका पाठकों ने स्वागत किया है। एक परिचित युवा पुजारी पंडितजी पं. शुक्ल रचित 'द्वादश भाव रहस्य' के आधार पर कुंडलियों में विभिन्न ग्रहों का फल विवेचन किया करते हैं। उनका कहना है कि उनके यजमान उनकी कुंडलियों में प्रस्तुत फल कथन से बहुत प्रभावित होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्वयं शुक्लजी कभी ऐसा कोई भविष्य कथन नहीं करते । हाँ, वे अपने पास मित्रों, परिचितों द्वारा लायी जाने वाली कुंडलियों के आधार पर ज्योतिष सिद्धांतों की उपयोगिता - सत्यता जानने का प्रयत्न अवश्य किया करते हैं । मेघ प्रकाशन की अन्य कृतियों की तरह पाठक 'ज्योतिष कौमुदी के इस प्रथम खंड से भी लाभान्वित होंगे, ऐसा विश्वास है । पाठक अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्य अवगत कराएं, यह अनुरोध है । -अशोक सहजानंद ज्योतिष - कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र विचार 10 . Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका जीवन में नक्षत्रों का क्या महत्त्व ? 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिर 6. आर्द्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ़ा 21. उत्तराषाढ़ा 22. अभिजित श्रवण 24. धनिष्ठा 25. शतभिषा 26. पूर्वाभाद्रपद 27. उत्तराभाद्रपद 28. रेवती 12-48 49-63 64-71 72-79 80-87 88-94 95-100 101-106 107-114 115-122 123-129 130-136 137-143 144-150 151-156 157-162 163-168 169-178 179-187 188-195 196-202 203-207 208-209 210-215 216-219 220-224 225-229 230-234 235-239 23. ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 11 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ जीवन में नक्षत्रों का महत्त्व ? भारतीय ज्योतिष में नक्षत्र का अत्यंत महत्त्व है। किसी भी व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक फैले षोड्श अर्थात् सोलह संस्कारों में नक्षत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम जिसे मुहूर्त कहते हैं, उसके मूल में नक्षत्र ही है। किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वही उसका जन्म-नक्षत्र मान लिया जाता है तथा वह नक्षत्र पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से जिस राशि के अंतर्गत आता है, वही राशि उस व्यक्ति की जन्म-राशि मान ली जाती है। , नक्षत्र का भी एक स्वामी ग्रह मान लिया गया है, इसलिए जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उस नक्षत्र के स्वामी ग्रह की दशा या महादशा में उस व्यक्ति का जन्म हुआ, यह कहा जाता है। फिर ग्रहों के क्रमानुसार उस व्यक्ति के जीवन में उन ग्रहों की महादशाएं आती रहती हैं। (तैत्तिरीय ब्राह्मण कृष्ण आयुर्वेद, रामायण वाल्मीकीकृत) भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का विशद् अध्ययन किया गया है। यह भी माना गया है कि नक्षत्र जातक की कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल के साथ-साथ नाना प्रकार की व्याधियों के भी कारक बनते हैं। नक्षत्रों पर विस्तृत अध्ययन करने के पूर्व यह समझा जाए कि आखिर नक्षत्र हैं क्या ? नक्षत्रों और तारों का क्या संबंध है ? इसी प्रकार राशियों और ग्रहों के साथ उनके रिश्ते कैसे हैं ? नक्षत्र का शाब्दिक अर्थ क्या है ? 'नक्षत्र' संस्कृत भाषा का शब्द है तथा उसकी व्याख्या करते हुए कहा ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 12 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गया है-न क्षरति, न सरति इति नक्षत्र-जो न हिले, न चले, वह नक्षत्र है। कुछ विद्वानों ने नक्षत्र का यह भी अर्थ लगाया हैनक्ष-पहुँचना, ‘स्प्रोच', त्र-चौकसी। अंग्रेजी भाषा में नक्षत्र को 'कांस्टलेशन' (Constellation) कहते हैं। चीनी ज्योतिष में नक्षत्र को सिओ (Sieou) कहा जाता है, जबकि अरबी नजूमी नक्षत्रों को मनाजिल, जो 'मंजिल' शब्द का बहुवचन है, कहते हैं। नक्षत्र : तारों के समूह पाश्चात्य विश्वकोशों में कहा गया है कि चीनी, अरब, बेबीलोनिया-निवासी और मिस्री वे पहले लोग थे, जिन्होंने आकाश में नजर आने वाले तारों के समूहों में किसी विशिष्ट आकृति को आरोपित कर उन्हें नाम दिया है। (संभवतः उन्होंने भारतीय प्राचीन वेदों उपनिषदों आदि का ज्ञान नहीं पाया इसलिए ऐसा लिखा है) यहीं पर नक्षत्रों एवं तारों का अंतर स्पष्ट हो जाता है। वास्तविकता तो यह है कि नक्षत्र सूर्य, चंद्र, मंगल की तरह कोई अकेली इकाई नहीं होते। दरअसल नक्षत्र कुछ तारों के समूह का ही विशिष्ट नाम हैं। नक्षत्र बनाम तारे आकाश में नक्षत्रों की रचना तारे करते हैं। ये तारे क्या हैं ? सबसे पहले हमें तारों के बारे में परिचय प्राप्त करें फिर नक्षत्रों, राशियों या ग्रहों और उनमें क्या अंतर है, यह अपने आप स्पष्ट हो जाएगा। तारे क्या हैं ? रात्रि के समय स्वच्छ आकाश में असंख्य तारे नजर आते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में इनके अतिरिक्त और भी तारे हैं, जो हमें नजर नहीं आते, दूसरे शब्दों में जिनका प्रकाश या जिनकी रोशनी हम धरतीवासियों को नजर नहीं आती। पर वे मौजूद हैं, और जैसे-जैसे अंतरिक्ष विज्ञान उन्नति कर रहा है, जैसे-जैसे खगोलशास्त्री निरंतर शोधों में लगे हुए हैं, हमारे सामने नये-नये तारों की, नये-नये ग्रहों की और नये-नये सौर मंडलों की उपस्थिति स्पष्ट होती जा रही है। तारे किन तत्वों के बने होते हैं ? उनकी रचना की प्रक्रिया क्या है ? कुछ खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों का विश्वास है कि तारे वस्तुतः अंतरिक्ष में धूल के विशाल बादलों और उद्जन गैस अर्थात् हाइड्रोजन गैस से बने हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस गैस के अणुओं की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उन्हें परस्पर पास लाती है और विशाल बादल, जिसे 'प्रोटोस्टार' कहा जाता है, लघुकाय होने लगता है। जैसे-जैसे यह प्रोटोस्टार सिकुड़ने लगता है, उसके केंद्र का तापमान बढ़ने लगता है। जब यह तापमान 1,800,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है, तो तारा अपनी मध्यावस्था की ओर अपेक्षाकृत धीमी और स्थिर गति से अग्रसर होने लगता है। क्या तारों में ऊर्जा होती है ? हाँ, तारों में ऊर्जा होती है। तारे की मध्यावस्था में उद्जन या हाइड्रोजन गैस के अणु निरंतर परस्पर निकट आकर एक नयी गैस-हीलियम गैस-की रचना करने लगते हैं। हर बार जब उद्जन गैस के अणुओं से हीलियम गैस का कोई अणु बनता है तो प्रकाश एवं ताप के रूप में उससे ऊर्जा का प्रवाह होता है। किसी भी तारे द्वारा निसृत की जाने वाली अपार ऊर्जा के लिए करोड़ों टन उद्जन गैस हीलियम गैस में परिवर्तित होती है। तारों की यह ऊर्जा कहाँ जाली है ? अधिकांश तारों की ऊर्जा अंतरिक्ष में समाहित हो जाती है, लेकिन जो थोड़ी ऊर्जा शेष रहती है, उससे तारा निरंतर गर्म होने लगता है। जब तारे के मध्य का तापमान 100 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है तो तारा फैलने लगता है और हीलियम के अणु, और भारी हीलियम अणुओं की संरचना के लिए परस्पर मिलने लगते हैं। क्या तारों में विस्फोट भी होता है ? यदि यह सम्मिलन क्रिया तीव्र गति से होती है तो तारों में विस्फोट हो जाता है और अंतरिक्ष में उसके तत्व विलीन होने लगते हैं। क्या तारों का अवसान भी होता है ? हाँ, तारे भी जन्म-मरण की प्रक्रिया के शिकार होते हैं। जब तारों में विस्फोट होता है तो तारे के जीवन का यह चरण 'सुपरनोवा' चरण कहलाता है। हालांकि ऐसा यदा-कदा ही होता है। अक्सर तारे धीरे-धीरे विस्तारित होकर एक विशाल लाल रंग के तारे ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का रूप धर लेते हैं। इन्हें 'रेड जाइंट' कहा जाता है अर्थात् 'लाल राक्षस । अंत में जब तारे के तमाम उदजन 'ईंधन' का इस्तेमाल हो चुका होता है तो वह सिकुड़ कर 'व्हाइट ड्वार्फ' अर्थात् 'श्वेत वामन' का रूप धर लेता है और धीरे-धीरे ठंडा होकर धूमिल पड़ने लगता है। यह उसके अवसान' का संकेत माना गया है । तारों के जन्म और मरण की इस क्रिया में करोड़ों-करोड़ों वर्ष लगते हैं । इसीलिए मनुष्य की पिछली अनेक पीढ़ियों ने उन्हें सदा एक-सा देखा है। उन्हें वे स्थिर प्रतीत होते हैं, 'न क्षरति, न सरति पर वास्तविकता इसके विपरीत है। करोड़ों वर्षों की अवधि के बाद तारों का भी एक न एक दिन अवसान होता ही है । सन् 1054 ईस्वी में एक दिन अचानक आकाश में एक दैदीप्यमान तारा नजर आया। दो वर्षों तक वह आकाश में चमकता रहा, इतना कि उसे दिन में भी देखा जा सकता था। लेकिन धीरे-धीरे वह तिरोहित होता चला गया । अब उसके स्थान पर गैस का केवल एक समूह नजर आता है । मध्यम चमक वाले इस गैस समूह को नाम दिया गया है - 'क्रैब नेबुला' । तारों के आकार के बारे में बताइए ? टिम - टिम करते या झिलमिलाते इन तारों में कुछ तारे तो इतने विशाल हैं कि यदि हमारे सूर्य को उनके मध्य रखा जाए तो हमारी पृथ्वी भी उनमें समा जाएगी। कुछ तारे सूर्य से भी छोटे हैं। तारों का वर्गीकरण धरती से दिखायी देने वाले तारों के प्रकाश के आधार पर उनका वर्गीकरण भी किया गया है। तारों की चमक को 'मेग्नीट्यूड' कहा जाता है पर इस मेग्नीट्यूड से किसी भी तारे की असली चमक का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता । तारों के इन प्रकाश के आधार पर उन्हें तरह-तरह के नाम दिये गये हैं । तारों के ऐसे अध्ययनों ने खगोल शास्त्रियों को अंतरिक्ष को तो समझने में मदद की ही है, वे उनके प्रकाश से उनके 'हल्के' या भारी होने का भी पता लगा सकते हैं । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या तारे रेडियो तरंगें भी प्रवाहित करते हैं ? 1968 में खगोलशास्त्रियों ने ऐसे तारों का पता लगाया जो नियमित रूप से रेडियो तरंगें प्रवाहित कर रहे थे तथा एक क्षण में या सेकंड में तीस 'बार चमकते थे। कुछ तारों की ऐसी ही रेडियो तरंगों के कारण इस अनुमान ने भी जन्म लिया कि शायद अंतरिक्ष में कहीं कोई और सभ्यता है, जो इस तरह की रेडियो तरंगें प्रवाहित कर रही है। तारों के संबंध में यह संक्षिप्त विवरण ही है। पर तारों के संबंध में जानना इसलिए जरूरी है कि वे ही 'नक्षत्र' की रचना करते हैं । नक्षत्र की परिभाषा हमने पहले पढ़ी कि 'न क्षरति, न सरति । ऐसी बात नहीं है। चूंकि तारों की स्थिति में करोड़ों-करोड़ों वर्षों में परिवर्तन आता है, अतः वे धरती पर रहने वाले नश्वर मनुष्य को, जिसका जीवन इन तारों के जीवन की तुलना में किसी बुदबुदे से भी बेहद गौण होता है, वे स्थिर नजर आते हैं । तो फिर क्या तारे ही नक्षत्रों का आधार हुए ? हाँ, तारे ही नक्षत्रों का आधार हैं। मनुष्य हजारों वर्षो से इन तारों को देखता आया है । सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने आकाश में सतत चमकने वाले इन तारों के समूहों में कुछ आकृतियां आरोपित कर दीं। कालांतर में वे नक्षत्र या 'कांस्टलेशन' कहलाने लगे। प्राचीन काल में इन नक्षत्रों की सहायता से नाविक और यात्री दिशा निर्धारित करते थे । इसीलिए अरब में इन्हें 'मनाजिल' कहा जाने लगा । नक्षत्रों का नामकरण कब हुआ और उसका आधार क्या है ? माना जाता है कि प्राचीन यूनानियों को लगभग 49 कांस्टलेशन या नक्षत्रों का ज्ञान था और उनका नामकरण उन्होंने अपने वीर नायकों और देवताओं के नाम पर किया था। बाद में रोमन खगोलशास्त्रियों ने उन्हें जो नाम दिये, वे आज तक प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कांस्टलेशन 'उर्सा मेजर' या 'ग्रेट बीयर' है, (भारतीय लोग इसे सप्तऋषि तारामंडल कहते थे) जिसके सात मुख्य तारे एक हल के फल की रचना करते हैं। इसे 'प्ला' भी कहा जाता है। इस 'प्ला' के दो तारे प्वाइंटर कहलाते हैं, क्योंकि वे हमेशा ध्रुव तारे की ओर होते हैं। इसे 'पोलारिस' भी कहा जाता है तथा यह हमेशा उत्तरी ध्रुव के पास नजर आता है । आज के खगोलशास्त्रियों ने 88 कांस्टलेशन या नक्षत्रों की पहचान की ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। इनमें से 23 तो दक्षिणी गोलार्द्ध के ध्रुर दक्षिण में हैं। 18वीं शती के खगोलशास्त्रियों ने पहली बार इनका नामकरण किया। पृथ्वी और नक्षत्रों का क्या संबंध है ? ___ यद्यपि हमारी पृथ्वी अपने क्रांतिवृत्त पर सूर्य की परिक्रमा करती रहती है तथापि धरती से ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य ही पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। और एक समय यह विश्वास इतना बद्धमूल था कि अनेक खगोलशास्त्रियों को इस तथ्य को प्रतिपादित करने के लिए धार्मिक मठाधीशों के हाथों कठोर दंड सहने पड़े। क्रांतिवृत्त क्या है ? पृथ्वी जिस मार्ग पर सूर्य की परिक्रमा करती है, उसे क्रांति वृत्त (तारों के बीच पश्चिम से पूर्व की ओर खिसकता हुआ सूर्य जिस आभासित मार्ग पर भ्रमण करता हुआ दिखाई देता है उसको KV कहते हैं) कहते हैं। यह मार्ग अंडाकार है। इसे भचक्र भी कहते हैं। इस क्रांतिवृत्त की पृष्ठभूमि में असंख्य तारे नजर आते हैं। आज यह कल्पना भी कर पाना मुश्किल है, कब, कहाँ, किन लोगों ने इन असंख्य तारों के बीच कुछ चिर-परिचित छवियां खोजीं। निस्संदेह यह किसी एक पीढ़ी का काम नहीं होगा फिर भी संसार में अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग जगह एक-एक समूह बनाया। कालांतर में इन तारों को 27 आकृतियों में बांटा गया है। यही आकृतियां नक्षत्र कहलाती हैं। यों एक नक्षत्र अभिजित को भी माना गया है। इसे मिला दें तो नक्षत्र 28 हो जाते हैं। इसे (Vega Star) के नाम से जाना जाता है। नक्षत्रों एवं राशियों का क्या संबंध है ? - नक्षत्र 27 हैं और राशियां 12। अतः जब इन 27 नक्षत्रों का बारह से विभाजन किया गया तो प्रत्येक राशि में सवा दो नक्षत्रों की स्थिति की कल्पना की गयी। क्रांतिवृत्त के 360 अंशों को बारह राशियों में विभाजित करने पर प्रत्येक राशि में तीस अंश आये। और जब 27 नक्षत्रों को बारह से विभाजित किया गया तो प्रत्येक नक्षत्र को 13.20 अंश प्राप्त हुए। सवा दो नक्षत्र प्रत्येक राशि में आये। सुविधा के लिए प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में बांटा गया और उसके ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13.20 अंशों को चार से विभाजित करने पर प्रत्येक चरण में 3 अंश 20 कला की स्थिति मानी गयी। - हम आगे देखेंगे कि किस तरह किसी नक्षत्र का एक अंश या चरण किसी एक राशि में आता है, तो दूसरा किसी अन्य पिछली या अगली राशि में। राशियों में नक्षत्रों की स्थिति का उद्देश्य क्या है ? ___ज्योतिष शास्त्र ने यह सब 'झमेला', अनुमानित ‘झमेला', क्यों खड़ा किया ? यह 'माथा-पच्ची' अकारण नहीं थी। दरअसल ज्योतिष शास्त्री क्रांतिपथ के 360 अंशों को बारह से विभाजित कर, (बारह ही क्यों ? (शायद 12 विशेष आकृतियों के कारण) क्योंकि राशियां बारह मानी गयीं) तथा बाद में सत्ताइस नक्षत्रों को बारह राशियों में विभाजित कर, तथा बाद में नक्षत्रों को भी चरणों में विभाजित कर एक दूरी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे ताकि पता लगा सकें कि कोई भी ग्रह विशेष किस समय, किस राशि में और उस राशि में भी किस नक्षत्र में तथा उसके भी किस चरण में है। कारण यह है कि प्रत्येक नक्षत्र तारों के समूह से बनता है, और प्रत्येक नक्षत्र में आने वाले तारों की भी संख्या एक जैसी नहीं है। यदि आर्द्रा नक्षत्र में मात्र एक तारा है तो शतभिषा में, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, सौ तारे हैं। जना शुक्र नक्षत्रों के नाम बताइए ? क्या राशियों की तरह उनके भी स्वामी होते हैं ? यहाँ हम प्रारंभ में ज्योतिष शास्त्र में वर्णित एवं उपयोगी सत्ताइस नक्षत्रों के नाम उनके देवता एवं उनके स्वामी ग्रहों का परिचय दे रहे हैं-- क्रम नक्षत्र देवता स्वामी 1. अश्विनी अश्विनी कुमार केतु 2. भरणी यम (काल) कृत्तिका अग्नि सूर्य रोहिणी ब्रह्मा (प्रजापति) चंद्रमा मृगशिरा चंद्रमा मंगल आर्द्रा शिव (रूद्र) राहु 7. पुनर्वसु अदिति (आदित्य) पुष्य वृहस्पति ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 18 गुरु शनि Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रा शुक्र सूर्य चंद्रमा राहु आश्लेषा , सर्प मघा पितर पूर्वा फाल्गुनी भग शुक्र उत्तरा फाल्गुनी अर्यमा सूर्य हस्त सूर्य (सविता) चंद्रमा चित्रा त्वष्टा (विश्वकर्मा) मंगल स्वाति पवन (मरूत्) विशाखा इंद्राग्नि अनुराधा मित्र ज्येष्ठा इंद्र मूल राक्षस (निऋति) पूर्वाषाढ़ा जल उत्तराषाढ़ा विश्वदेव श्रवण विष्णु (गोविन्द) धनिष्ठा वसु मंगल शतभिषा वरुण 25. पूर्वाभाद्रपद अजपाद (अजैकपाद) गुरु 26. उत्तराभाद्रपद अहिर्बुध्न्य शनि 27. रेवती पूषा बुध उपरोक्त तालिका से पता चलता है कि ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों को तीन-तीन नक्षत्रों का आधिपत्य दिया गया है, जैसे__ 1. सूर्य के आधिपत्य के नक्षत्र हैं, कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा। 2. चंद्र के नक्षत्र हैं : रोहिणी, हस्त एवं श्रवण। 3. मंगल के नक्षत्र हैं : मृगशिरा, चित्रा तथा धनिष्ठा। 4. बुध के नक्षत्र हैं-आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती। 5. गुरु के नक्षत्र हैं-पुनर्वसु, विशाखा एवं पूर्वाभाद्रपद। 6. शुक्र के नक्षत्र हैं-भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा। 7. शनि के नक्षत्र हैं-पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद । 8. राहु के नक्षत्र हैं-आर्द्रा, स्वाति तथा शतभिषा। 9. केतु के नक्षत्र हैं-अश्विनी, मघा, एवं मूल। जैसा कि पहले बताया गया है विंशोत्तरी दशा के निर्धारण में नक्षत्रों का ज्योतिष-कौमुदी : (रांड-1) नक्षत्र-विचार । 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही आधार होता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, जातक का उसी ग्रह की दशा में जन्म मान लिया जाता है। जातक अपने जन्म नक्षत्र के कारण किस ग्रह की पूर्ण दशा का कितना अंश भोग चुका है या उसे उस ग्रह की पूरी दशा का भोग करना है, यह सब नक्षत्र के चरण-विभाजन के फलस्वरूप ज्ञात हो जाता है। कृपया राशियों के बारे में भी संक्षिप्त में बताएं ?. हमने देखा कि तारों को मिलाकर राशियों की कल्पना की गयी है और प्रत्येक राशि में सवा दो नक्षत्रों की स्थिति मानी गयी है। राशि तीस अंशों की होती है और नक्षत्र 13 अंश 20 कलांश के तथा . उनका प्रत्येक चरण 3 अंश 20 कला का होता है। सूर्य की पृथ्वी द्वारा परिक्रमा का पथ अंडाकार है। इस परिक्रमा पथ की पृष्ठभूमि में जो तारे सतत् नजर आते हैं, उनका ही सुविधा के लिए किसी आकृति विशेष में समायोजन कर विभाजन किया गया है। पृथ्वी का यह राशिपथ अंग्रेजी में 'जोडियक' कहलाता है। हिंदी में 'जोडियक' को ही राशिपथ कहते हैं। क्रांतिवृत के विषय में हमने पहले भी बताया है। सुविधा के लिए एक बार पुनः । इस अंडाकार परिक्रमा पथ या वृत्त को 360 अंशों में बांटा गया है। फिर इन 360 अंशों को बारह से विभाजित किया है। 360 में बारह से भाग देने पर एक संख्या में तीस अंश आते हैं। इन तीस अंशों में आने वाले तारों के समूह को एक राशि मान लिया गया है। सुविधा के लिए इन राशियों को भी एक नाम दे दिया गया है। इन नामों में हम सब परिचित हैं। हमारे यहाँ बारह राशियां हैं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। ____ अंग्रेजी में या पाश्चात्य खगोलशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में इनके ही नाम हैं--क्रमशः एरियस (मेष), टॉरस (वृष), जेमिनी (मिथुन), कैंसर (कर्क), लियो (सिंह), वर्गो (कन्या), लिब्रा (तुला), स्कोरपियो (वृश्चिक), सैगीटेरियस (धनु), कैप्रीकॉर्न (मकर), एक्वारियस (कुंभ), पाइसीज (मीन)। ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक राशि को सात ग्रहों में से किसी न किसी के आधीन माना गया है। इसका परिचय आगे प्रसंगानुसार। यहाँ हम यह जानेंगे कि प्रत्येक राशि में कौन-कौन से नक्षत्र या उनके चरण आते हैं। सुविधा के लिए हम राशि के स्वामी ग्रह तथा इन राशियों ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में आने वाले नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों का भी परिचय दे रहे हैं। उद्देश्य यही है कि पाठक यह समझने की कोशिश करें कि किसी व्यक्ति के जीवन में, ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतानुसार भी न तो अकेला नक्षत्र, न अकेली राशि और न अकेला कोई ग्रह प्रभाव डालता है। किसी भी व्यक्ति पर इन सबका सम्मिलित प्रभाव ही पड़ता है। कृपया राशियों एवं उनके नक्षत्रों का परिचय दीजिए ? प्रथम राशि, मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। मेष राशि में अश्विनी (स्वामी : केतु), भरणी (स्वामी : शुक्र) के सभी चार-चार चरण तथा कृत्तिका (स्वामी : सूर्य) का एक चरण आता है। एक राशि में तीस अंश माने गये हैं। यहाँ अश्विनी के 13.20, भरणी के 13.20 तथा कृत्तिका के प्रथम चरण 3.20 मिलकर 30 अंश पूरे होते हैं। । अब यदि मेष राशि में जन्मे दो व्यक्तियों के नक्षत्रों में अंतर है तो फलों में भी अंतर पड़ेगा, यद्यपि वह व्यक्ति मेष राशि में जन्मा माना जाएगा तथापि मेष राशि के अश्विनी, भरणी अथवा कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने से कुछ न कुछ फर्क अवश्य पड़ेगा। यही बात शेष राशियों एवं उनके नक्षत्रों पर भी लागू होती है। - मेष के बाद वृषभ अथवा वृष दूसरी राशि है। कुंडली में 2 के अंक से इसे संकेतित किया जाता है। इसका स्वामित्व शुक्र को दिया गया है। वृष राशि में कृत्तिका (स्वामी : सूर्य) के शेषं तीन चरण (प्रथम चरण मेष में होता है), रोहिणी (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) और मृगशिरा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) होते हैं। मिथुन राशि (स्वामी : बुध) में मृगशिरा के शेष दो चरण (6.40), आर्द्रा (स्वामी : राहु) के चारों चरण (13.20) एवं पुनर्वसु (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) होते हैं। कर्क राशि (स्वामी : चंद्र) में पुनर्वसु का अंतिम चरण (3.20) पुष्य (स्वामी : शनि) के चारों चरण (13.20) तथा आश्लेषा (स्वामी : बुध) के चारों चरण (13.20) शामिल हैं। सिंह राशि (स्वामी : सूर्य) में मघा के चारों चरण (13.20), पूर्वा फाल्गुनी (स्वामी : शुक्र) के चारों चरण (13.20) तथा उत्तरा फाल्गुनी (स्वामी : स्वयं सूर्य) का प्रथम चरण (3.20) होता है। - कन्या राशि (स्वामी : बुध) में उत्तरा फाल्गुनी के शेष तीन चरण (10. ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00), हस्त (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) तथा चित्रा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) की गणना होती है। तुला राशि (स्वामी : शुक्र) में चित्रा के दो चरण (6.40), स्वाति (स्वामी : राहु) के चारों चरण (13.20) तथा विशाखा (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) का समावेश माना गया है। वृश्चिक राशि (स्वामी : मंगल) में विशाखा का अंतिम चरण (3.20), अनुराधा (स्वामी : शनि) तथा ज्येष्ठा (स्वामी : बुध) के समस्त चरणों की गणना होती है। अर्थात् अनुराधा के (13.20) तथा ज्येष्ठा के (13.20)। धनु राशि में मूल (स्वामी : केतु) के चारों चरण (13.20), पूर्वाषाढ़ा (स्वामी : शुक्र) के चारों चरण (13.20) तथा उत्तराषाढ़ा (स्वामी : सूर्य) के प्रथम चरण (3.20) का समावेश माना गया है। मकर राशि (स्वामी : शनि) में उत्तराषाढ़ा के शेष तीन चरण (10.00), श्रवण (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) तथा धनिष्ठा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) की गणना होती है। कुंभ राशि (स्वामी : शनि) में धनिष्ठा के अंतिम दो चरण (6.40) तथा शतभिषा (स्वामी : राह) के चारों चरण (13.20) तथा पूर्वभाद्रपद (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) का समावेश है। ___मीन राशि (स्वामी : गुरु) में पूर्वभाद्रपद का अंतिम चरण तथा उत्तरा भाद्रपद (स्वामी : शनि) के चारों चरण (13.20) तथा रेवती (स्वामी : बुध) के चारों चरणों (13.20) का समावेश माना गया है। नक्षत्रों के चरणाक्षर से क्या आशय है ? उनका महत्त्व बताइए? भारतीय ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण विशेषता है-गोपनीयता के साथ-साथ सरलता। तंत्र शास्त्र में भी यही विशेषता है। जो मंत्र अपने अर्थ की गोपनीयता के कारण निरर्थक प्रतीत होते हैं, वे मंत्र का ज्ञान होने पर अर्थवान् एवं प्राणवान् सिद्ध हो जाते हैं। प्रत्यक्ष देखने पर प्रत्येक नक्षत्र के पृथक-पृथक चरणों के लिए नियत अक्षर भी अर्थहीन लगते हैं। जैसे अश्विनी के चार चरणों के लिए नियत अक्षर हैं-चू, चे, चो, ला। अश्विनी को आज प्रथम नक्षत्र माना जाता है, जबकि प्राचीन काल में यह स्थान कृत्तिका का कहा जाता था। इस पर आगे चर्चा प्रसंग अनुसार। नक्षत्रों के लिए नियत चरणाक्षर आज अपने ज्ञान की सीमा के कारण ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भले ही अर्थहीन लगते हों, पर उनका एक महत्त्व और उपयोग है। अकेले चरणाक्षर से ज्योतिष शास्त्र का कोई भी अनुभवी अध्येता किसी भी व्यक्ति की चंद्र लग्न एवं नक्षत्र एवं वह नक्षत्र जिस राशि के अंतर्गत आता है, तथा नक्षत्र एवं राशि के स्वामी ग्रह की जानकारी के आधार पर उस व्यक्ति विशेष के संबंध में पर्याप्त जानकारी पा सकता है। अगर भारतीय ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों पर विश्वास रखते हैं तो हम यह भी जानते हैं कि किसी भी जातक के जन्म नक्षत्र, राशि एवं नक्षत्र एवं राशि के स्वामी आदि का उस जातक के व्यक्तित्व, स्वभाव आदि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है । और यही बातें किसी भी व्यक्ति के भाग्य-1 - निर्धारण में भी पर्याप्त भूमिका निभाती हैं। जन्म नक्षत्र, राशि, राशि के स्वामी ग्रहों के शुभ - अशुभ प्रभाव का आकलन कर कोई भी व्यक्ति अपने दोषों को दूर कर गुणों में वृद्धि कर सकता है। अतः जन्म नक्षत्र का महत्त्व है तथा उसके चरणों के लिए नियत अक्षरों की भी अपनी कम उपयोगिता नहीं है । यहाँ प्रस्तुत है, विभिन्न नक्षत्रों के चरणाक्षरः प्रथम द्वितीय चे नक्षत्र अश्विनी भरणी कृत्तिका रोहिणी स्वाति मृगशिरा आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य आश्लेषा मघा मो पूर्वा फाल्गुनी उत्तरा फाल्गुनी टे हस्त चित्रा विशाखा चू अनुराधा ज्येष्ठा हिल ले 10 180 15 hco te 5 to 501 টিটি tos the খত4 tu to to Ft 1tott w मा ती न नो लू इ वा बो घ को टो य तृतीय चो 14 डि (i) ho to th t 4 5 5 1 1 1 वी ङ पा ण यी चतुर्थ ला लो ए बू की 10 he tफ कि 104 10 1 1 1 तो ने यू ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र - विचार ■ 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल ७ 45 + 5 D4ER 4G पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा अभिजित श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद दु रेवती दे दो चा ची राशियों की रचना नक्षत्रों से होती है, अत: जिस राशि में जो नक्षत्र होता है-उसके चरण अक्षरों का उस राशि में समावेश हो जाता है। और राशि के आधार पर चंद्र राशि तय कर दी जाती है। पाठकों की सुविधा के लिए इसे और स्पष्ट कर देते हैं: चू चे चो ला, ली लू ले लो, मेषः ---- -- अश्विनी . भरणी कृत्तिका ओ आ वी वू वे वो वृषः इ उ व ------- कृत्तिका -- ----- रोहिणी मृगशिरा कू घ ङ छ के को ह क की, मिथुन :------ मृगशिरा आर्द्रा पुनर्वसु हू हे हो डा डी डू डे डो कर्क: पुनर्वसु पुष्य आश्लेषा मो ट टी टू सिंह: मा मी मे मो ------- मघा पू. फाल्गुनी ------- उ. फाल्गुनी ज्योतिष-कोमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू ष ण ठ पे पो कन्या : टो पा पी ------- उ. फाल्गुनी हस्त चित्रा रू रे रो ता ती तू ते तुला: रारी ------- चित्रा स्वाति विशाखा तो न नी नू ने नी य री यू ज्येष्ठा वृश्चिक:------------ विशाखा पे पो भ भी धनुः ------- अनुराधा भू ध फ ढ भ पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा भो ज जी खि खू खे खी ग गी मकर: - - - - - - - - - - - - - - उत्तराषाढ़ा श्रवण धनिष्ठा गू गे गो सा सी सू से सो दा धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद दी दूध झत्र दे दो चा ची . पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद रेवती 'गंड' से क्या तात्पर्य है ? ___ उपरोक्त तालिका के अध्ययन से एक और तथ्य स्पष्ट होता है और वह यह कि इन बारह राशियों में तीन स्थल ऐसे हैं, जहाँ राशि एवं नक्षत्र, दोनों की ही समाप्ति होती है। जैसे कर्क राशि, जिसकी समाप्ति के साथ उसके अंतर्गत आने वाले आश्लेषा नक्षत्र के भी चारों चरण समाप्त होते हैं। Page #28 --------------------------------------------------------------------------  Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उग्र संज्ञक नक्षत्र हैं : पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, एवं मघा । ओर मंगलवार मिश्र संज्ञक नक्षत्रों में विशाखा, कृत्तिका और बुधवार का समावेश है । क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र हैं: हस्त, अश्विनी, पुष्य एवं अभिजित । और गुरुवार मृदु संज्ञक नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा का समावेश है। शुक्रवार तीक्ष्ण एवं दारुण संज्ञक नक्षत्र हैं: मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा । शनिवार नक्षत्रों की इन संज्ञाओं का क्या उपयोग है ? नक्षत्रों की इन संज्ञाओं से उनके फल का पता चलता है । जैसे कहा गया है कि ध्रुव संज्ञक नक्षत्रों अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र में स्थायित्व रखने की कामना वाले कार्य शुरू करने चाहिए । अर्थात् ऐसे कार्य जिनमें हम स्थायित्व चाहते हैं, जैसे गृह-निर्माण, ग्रह शांति, उद्यान एवं बीजारोपण आदि । चर संज्ञक नक्षत्रों का संबंध गति से है। अतः जिन कामों में हम गति चाहते हैं, उन्हें चर संज्ञक नक्षत्रों में शुरू करना चाहिए। चर संज्ञक नक्षत्रों में, हमें पता है, स्वाति, पुनर्वसु श्रवण, धनिष्ठा एवं शतभिषा का समावेश है । उग्र संज्ञक नक्षत्रों यथा पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी एवं मघा को मारण, शस्त्र-निर्माण, विष प्रयोग आदि के लिए उपयुक्त कहा गया है। मिश्र संज्ञक नक्षत्रों जैसे विशाखा, कृत्तिका आदि को यज्ञादि एवं मिश्रित कार्य के लिए श्रेष्ठ बताया गया है। क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र शास्त्र अध्ययन, आभूषण निर्माण, हस्तशिल्प के कार्य, दुकानदारी शुरू करने के कार्य तथा रतिकर्म के लिए शुभ कहे गये हैं। क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र हैं - हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित । मृदु संज्ञक नक्षत्र ललित कला, विशेषकर गायन आदि, खेलकूद, उत्सव, वस्त्राभूषण आदि कार्यों के लिए शुभ माने गये हैं। मृदु संज्ञक नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा आदि की गणना होती है । मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा आदि की गणना तीक्ष्ण एवं दारुण संज्ञक नक्षत्रों में होती है तथा जैसा कि इनकी संज्ञा में स्पष्ट है, ये नक्षत्र मारण, तांत्रिक प्रयोगों, आक्रमण आदि के लिए उपयुक्त पाये गये हैं । मुहुर्त चिंतामणि में नक्षत्रों को ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यङमुख भी ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माना गया है। अधोमुख नक्षत्र हैं-मूल, आश्लेषा, कृत्तिका, विशाखा, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी और मघा। अधोमुख नक्षत्रों में कूप खनन, खनिज कार्य, धरती के गर्भ में किये जाने वाले कार्यों को शुरू करने का परामर्श दिया जाता है। तिर्यंङ मुख नक्षत्रों में बांध बनवाने, वाहन आदि से संबंधित कार्य किये जाते हैं। ऐसे नक्षत्र हैं-मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, ज्येष्ठा और अश्विनी। नक्षत्रों की नेत्र संज्ञा इसी तरह नक्षत्रों को अल्प, दृष्टि, अंध, सुअक्षि तथा एकाक्षी भी माना गया। एकाक्षी अर्थात् काना। यह वर्गीकरण चोरी संबंधी प्रश्नों में उपयोगी होता है। अल्प दृष्टि नक्षत्र हैं-रोहिणी, पुष्य, विशाखा, रेवती, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा एवं उत्तराफाल्गुनी। अंध नक्षत्र है-भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, पूर्वाभाद्रपद । सुअक्षि नक्षत्र हैं-कृत्तिका, पुनर्वसु, पूर्वा फाल्गुनी, स्वाति, श्रवण, मूल, उत्तराभाद्रपद। एकाक्षी नक्षत्र हैं-मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा। नक्षत्रों के वर्ण ग्रहों, राशियों की भांति नक्षत्रों का भी वर्गों में विभाजित किया गया है। तदनुसार ब्राह्मण वर्ण के नक्षत्र हैं पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद और कृत्तिका । क्षत्रिय वर्ण में इन नक्षत्रों का समावेश है : उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, पुष्य । वैश्य वर्ण के नक्षत्रों में रोहिणी, अनुराधा, मघा, रेवती की गणना होती है। शूद्र या सेवक वर्ण के नक्षत्र हैं-हस्त, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजीत। इसी तरह मूल, आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा नक्षत्रों की उग्र जाति का तथा आश्लेषा, विशाखा, श्रवण एवं भरणी नक्षत्रों को चंडाल जाति का माना गया है। नक्षत्रों का फलादेश करते समय इन सब बातों का भी विचार किया जाता है। नक्षत्रों के गुणों के बारे में भी बताइए ? योगदर्शन महर्षि पातंजलि के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र में सत्व, रज या तम, कोई न कोई एक गुण होता है तथा वह नक्षत्र स्वयं में स्थित ग्रह विशेष को अपना वह गुण प्रदान कर देता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 28 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'यहाँ अपने में स्थित' को थोड़ा और स्पष्ट कर दें। नक्षत्र ग्रहों से भी बहुत दूर होते हैं। कुछ नक्षत्रों को मिलाकर राशियों की कल्पना की गयी है, यह हम जानते ही हैं। जब हम कहते हैं कि कोई ग्रह विशेष, किसी विशिष्ट राशि में है तो तात्पर्य यही कि हमें धरती से देखने पर वह ग्रह विशेष, उसी विशिष्ट राशि के सामने नजर आता है। या यों कहें कि राशिपथ के मंच पर वह राशि उस ग्रह की पृष्ठभूमि में पड़े परदे की भांति होती है। ___ मगर राशि तीस अंशों की होती है। उसमें सवा दो नक्षत्रों की कल्पना की गयी है। सूक्ष्मता के लिए ज्योतिष में यह जानने की विधि विकसित की गयी कि राशि में भी ग्रह उस राशि के किस नक्षत्र और उसके किस चरण में हैं। ___ जैसे कोई कहे कि मैं दिल्ली में रहता हूँ। लेकिन दिल्ली तो बहुत बड़ी है। पूछने पर वह अपनी कॉलोनी या मोहल्ले का नाम बताता है। पर कॉलोनी भी कोई छोटी नहीं होती। अतः वह अपने घर का नंबर, गली आदि । बताता है। बस, कुछ ऐसा ही ग्रहों की राशि, नक्षत्र और उसके चरण विशेष में उसकी स्थिति के बारे में समझ लीजिए। इस प्रकार जब कोई ग्रह किसी राशि के घटक किसी नक्षत्र विशेष के सामने होता है तो हम कहते हैं कि वह ग्रह उस नक्षत्र में है। ___ हमारे यहाँ तीन गुणों की विशेष महिमा बतायी गयी है। मनुष्यों में भी इन्हीं गुणों का वास बताया गया है। ये गुण हम सभी जानते हैं। ये हैं-सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण। निम्न तालिका से ज्ञात होता है कि किस नक्षत्र पर कौन-सा गुण आरोपित किया गया है। नक्षत्र, उनका गुण एवं स्वामी ग्रह सत्व गुण रजोगुण पुनर्वसु भरणी (गुरु) (शुक्र) आश्लेषा कृत्तिका (सूर्य) तमोगुण अश्विनी (केतु) मृगशिरा (राहु) (बुध) ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशाखा (गुरु) ज्येष्ठा (बुध) पूर्वाभाद्रपद (गुरु) रेवती (बुध) रोहिणी (चंद्र) पूर्वाफाल्गुनी (शुक्र) उत्तरा फाल्गुनी (सूर्य) हस्त (चंद्र) पूर्वाषाढ़ा (शुक्र) उत्तराषाढ़ा (सूर्य) श्रवण (चंद्र) आर्द्रा (मंगल) पुष्य (शनि) मघा (केतु) चित्रा (मंगल) स्वाति (राहु) अनुराधा (शनि) मूल (केतु) धनिष्ठा (राहु) शतभिषा (मंगल) उत्तरा भाद्रपद (बुध) वर-वधू की कुंडली मिलान में क्या नक्षत्रों पर भी ध्यान दिया जाता है ? जी हाँ, वर-वधू की कुंडली मिलान में नक्षत्रों की बहुत अहम् भूमिका होती है। मिलान के लिए जो नियम बनाये गये हैं, उनकी तालिका मेलापक सारणी कहलाती है । इसी मेलापक सारिणी के आधार पर विवाह के समय वर-वधू की कुंडली मिलाने का आम प्रचलन है। कुंडली मिलान का एकमात्र उद्देश्य यही जानना था कि दो लोगों के मध्य आजीवन संबंध शुभ, सुखद और फलप्रद होगा या नहीं । पहले जब आज जैसे विवाह योग्य कन्याओं और युवकों के परिचय - सम्मेलन के आयोजनों का न प्रचलन था और न लड़की या लड़के को एक-दूसरे को मिलाने-दिखाने का रिवाज, तब दोनों की कुंडली के अध्ययन से ही यह ज्ञात किया जाता था कि प्रस्तावित संबंध करने योग्य है या नहीं। इस कार्य में सुविधा के लिए जिस मेलापक सारिणी की रचना ज्योतिष- कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र विचार 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की गयी, उसमें नक्षत्रों की एक अतिशय महत्त्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट नजर आती है। मेलापक सारिणी का मुख्य आधार नक्षत्र ही हैं। उत्तर भारत में वर-वधू . के मध्य छत्तीस गुणों के मिलान को देखने की प्रथा है । वर्ण, वश्य, तारा, योनि, गण मैत्री, भकूट और नाड़ी। इन्हें अष्टकूट या आठ कूटों की संज्ञा दी गयी है। इनमें से प्रत्येक के लिए निश्चित गुण या गुणों का निर्धारण कर दिया गया है। जैसे वर्ण, वश्य के 2, तारा के 3, योनि के 4, ग्रह मैत्री के 5, गुण मैत्री के 6, भकुट के 7 और नाड़ी के 8 (कुल योग : 36 ) गुण तय किये गये हैं । इनमें तारा, योनि, गण, नाड़ी का मूलाधार नक्षत्र ही है । अर्थात् 36 में से 21 गुणों का निर्धारण नक्षत्रों के आधार पर ही होता है, जैसे तारा के 3, योनि के 4, गण मैत्री के 6 और नाड़ी के 81 कुल योग 3+4+6+8 = 21 | तारा कूट में वर-वधू के जन्म नक्षत्रों की परस्पर दूरी देखी जाती है। कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक की गिनती की जाती है। प्राप्त संख्या में 9 का भाग दिया जाता है। विषम संख्या जैसे 3,5,7 शेष बचे तो इसे अशुभ समझा जाता है। योनि कूट का आधार भी नक्षत्र ही है विभिन्न नक्षत्रों को अश्व, भैंस, सिंह, बकरी, मेष, वानर, नेवला, सर्प आदि 14 योनियों में विभाजित किया गया है तथा उनमें परस्पर मैत्री अथवा शत्रुता आरोपित की गयी है । यदि वर-कन्या की योनियों में मैत्री है तो इसके चार गुण प्राप्त माने जाते हैं। इसी तरह गण निर्धारण का आधार भी नक्षत्र हैं । विभिन्न नक्षत्रों को देव, मनुष्य एवं राक्षस गणों में विभाजित किया गया है । जातक का जो जन्म नक्षत्र होता है, वह जिंस वर्ग के अंतर्गत आता है, उसे ही वर या कन्या का गण माना जाता है। देव, राक्षस एवं मनुष्य गण में मैत्री, समता और शत्रुता के भाव आरोपित कर गणों की अनुकूलता - प्रतिकूलता देखी जाती है । जब वर-कन्या का गण एक ही होता है तो 6 गुण प्राप्त माने जाते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि गण एक होने पर परस्पर मैत्री होगी । यदि वर- - वधू में से एक का गण देव तथा दूसरे का मनुष्य हो तो मध्यम प्रीति का फलादेश किया जाता है। इसके गुण मिलते हैं । ज्योतिष- कौमुदी : (खंड - 1 ) नक्षत्र विचार 31 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी प्रकार वर-कन्या में से यदि किसी का गण मनुष्य हो और दूसरे का राक्षस तो इसे घोर अशुभ माना जाता है। किसी एक की मृत्यु का भी फलादेश कहा गया है। एक का देव तथा दूसरे का राक्षस होने पर दोनों में परस्पर वैर भाव बना रहता है। ___ मेलापक में नाड़ी कूट को सर्वाधिक गुण दिये गये हैं। विभिन्न नक्षत्रों का आदि, मध्य, अंत नाड़ी में विभाजन किया गया है। यह आयुर्वेद की प्रकृति नाड़ी वात, पित्त, कफ से मिलती है। एक ओर जहाँ वर-कन्या के गणों का एक होना शुभ माना गया है, वहीं दोनों की नाड़ियों के एक होने पर विवाह की वर्जना की गयी है। यहाँ प्रस्तुत है, नक्षत्रों का आदि, मध्य, अंत नाड़ी में विभाजन:.. आदि नाड़ी : अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उ.फा., हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद __ मध्य नाड़ी : भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पू.फा: चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद अंत नाड़ी : कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, रेवती सर्वतोभद्र चक्र क्या है ? “फल दीपिका' के अनुसार, यह चक्र तीनों लोकों को प्रकाशमान करने वाला है। सर्वतोभद्र चक्र का उपयोग गोचर फल कहने के लिए किया जाता है। इस सर्वतोभद्र चक्र का निर्माण इस प्रकार किया जाता है सर्वप्रथम दस खड़ी एवं दस रेखाएं बना कर 81 वर्गों वाला एक चक्र तैयार किया जाता है। इसमें शीर्षस्थ अर्थात् ऊपर वाली दिशा को उत्तर, उसके बाद दायीं दिशा को पूर्व, बायीं दिशा को पश्चिम तथा ठीक सामने वाली दिशा को दक्षिण दिशा माना जाता है। । इसके उपरांत उत्तर पूर्व कोण में 'अ', दक्षिण पूर्व में 'आ' दक्षिण पश्चिम में इ एवं पश्चिमोत्तर कोण में 'ई' अक्षर लिखे जाते हैं। ग्रहों की महादशा एवं नक्षत्र भारतीय ज्योतिष में अनेक प्रकार की दशाओं के उल्लेख मिलते हैं। किसी भी जातक के जीवन में कब कौन-सा ग्रह प्रमुख प्रभाव डालते हुए शुभ या अशुभ फल देगा, यह उस व्यक्ति के जीवन में आने वाली ग्रहों की महादशा से जानने का प्रयत्न किया जाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 32 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन सभी दशाओं में नक्षत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहाँ प्रस्तुत है, विभिन्न दशाओं का परिचय । किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्वामी ग्रह की दशा का उसके जीवन में प्रारंभ मान लिया जाता है। जैसा कि पहले कहा गया है, नक्षत्र 27 होते हैं। इन सत्ताइस ग्रहों का स्वामित्व तो ग्रहों को दिया गया है। यथा-यहाँ केवल विशोंतरी में हैं ये स्वामी। सूर्य के स्वामित्व के नक्षत्र हैं : कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी एवं पूर्वाषाढ़ा। चंद्रमा का जिन नक्षत्रों पर आधिपत्य माना गया है, वे हैं-रोहिणी, हस्त एवं श्रवण। मंगल के नक्षत्र हैं-मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा। बुध के नक्षत्र हैं-आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती। गुरु के नक्षत्र हैं-पुनर्वसु, विशाखा तथा पूर्वाभाद्रपद । शुक्र के नक्षत्र हैं-भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा। शनि को जिन नक्षत्रों का स्वामित्व प्रदान किया गया है, वे हैं-पुष्य, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद । राहु के नक्षत्र हैं-आर्द्रा, स्वाति तथा शतभिषा। केतु के नक्षत्रों में अश्विनी, मघा एवं मूल की गणना होती है। . विंशोत्तरी दशा पद्धति में जातक की आयु को 120 वर्ष की मान कर विभिन्न ग्रहों का दशाओं में इन वर्षों का काल-विभाजन किया गया है। जैसेसूर्य की महादशा 6 वर्ष चंद्र की महादशा 10 वर्ष मंगल की महादशा 7 वर्ष राहु की महादशा 18 वर्ष गुरु की महादशा 16 वर्ष शनि की महादशा 19 वर्ष बुध की महादशा 17 वर्ष केतु की महादशा 7 वर्ष शुक्र की महादशा 20 वर्ष इस तरह यदि किसी जातक का जन्म कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा में होगा तो जन्म के समय उसे सूर्य की 6 वर्ष की दशा का प्रारंभ माना जाएगा। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 33 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी तरह यदि रोहिणी, हस्त या श्रवण नक्षत्र में जन्म होगा तो चंद्र की 20 वर्ष की महादशा लगेगी। इसी प्रकार मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म होने पर मंगल की 6 वर्ष की। आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर बुध की 17 वर्ष की। पुनर्वसु, विशाखा या पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म होने पर गुरु की 16 वर्ष की। भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढा नक्षत्र में जन्म होने पर शुक्र की 20 वर्ष की। ____ पुष्य, अनुराधा या उत्तराभाद्र नक्षत्र में जन्म होने पर शनि की 19 वर्ष की। आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा नक्षत्र में जन्म होने पर राहु की 18 वर्ष की, तथा . अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र में जन्म होने पर केतु की 7 वर्ष की दशा . का प्रारंभ माना जाएगा। विंशोत्तरी महादशा में ग्रहों की महादशा का क्रम इस प्रकार रखा गया है-कारण? इसका आधार नक्षत्र है। सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु एवं शुक्र। दूसरे शब्दों में यदि सूर्य की दशा में जातक का जन्म हुआ तो आने वाले जीवन में ग्रहों की महादशाएं उपरोक्त क्रम में आएंगी। - अब यदि किसी जातक का जन्म गुरु की महादशा में होता है तो उपरोक्त क्रम के अनुसार गुरु के बाद शनि की, फिर बुध केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु की दशाएं आएंगी। यही सिद्धांत अन्य ग्रहों की जन्म समय की महादशा के बाद लागू होगा। इस तरह हम देखते हैं कि महादशा के निर्धारण में नक्षत्रों की एक विशिष्ट भूमिका होती है। हम नक्षत्र का चरण ज्ञान कैसे जान सकते हैं ? नक्षत्र के चरण ज्ञान की विधि इस प्रकार है : किसी भी नक्षत्र के कुल समय अर्थात् भभोग मान को चार से विभाजित करने पर उस एक चरण का समय पर भोग जाना जा सकता है। चार से भाग इसलिए कि प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण माने गये हैं, या उसके अंशों को चार हिस्सों में बांटा गया है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 34 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदाहरण के लिए किसी का जन्म कालिक भभोग या पूर्ण समय 60. घड़ी 40 पल है तो उसके नक्षत्र का चरण मान इस प्रकार निकाला जा सकता है: 60.40 4 तथा = 15.10 इस तरह प्रथम चरण = 15.10 तक दूसरा चरण 30.20 तक तीसरा चरण = 45.30 तक चौथा चरण = 60.40 तक होगा । - नक्षत्र के चरण ज्ञान का क्या महत्त्व है ? इसके लिए हमें महादशा के सिद्धांत को समझना पड़ेगा। इसकी चर्चा विस्तृत रूप से ही की जा सकती है। फिर भी सुविधा के लिए हम आवश्यक जानकारी सार रूप में ही दे रहे हैं। ज्योतिष शास्त्र में चंद्र राशि, जिसे आम तौर पर जन्म राशि भी कहते हैं, का अर्थ है, किसी भी जातक के जन्म के समय चंद्रमा किस नक्षत्र में स्थित था । (यह नक्षत्र जिस राशि के अंतर्गत आता है, उस राशि को ही उस व्यक्ति की चंद्र राशि या जन्म राशि मान लिया जाता है ।) हमने यह देखा कि प्रत्येक नक्षत्र का एक ग्रह-विशेष स्वामी होता है । जैसा अश्विनी नक्षत्र का केतु, भरणी का शुक्र । दशाएं भी कई प्रकार की हैं। उत्तर भारत में विंशोत्तरी दशा का प्रचलन हैं । विंशोत्तरी दशा में जातक की आयु 120 वर्ष मान कर उसका विभिन्न ग्रहों की महादशाओं में विभाजन किया जाता है। ग्रहों की इन दशाओं की अवधि समान नहीं है । निम्नलिखित तालिका से पाठक यह भी जान जाएंगे कि किस नक्षत्र में जन्म लेने पर किस ग्रह विशेष की दशा में जन्म माना जाएगा । स्वामी ग्रह नक्षत्र कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा रोहिणी, हस्त, श्रवण मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा पुनर्वसु विशाखा, पूर्वाभाद्रपद सूर्य चंद्र मंगल दशा काल 6 वर्ष 10 वर्ष 7 वर्ष राहु 18 वर्ष गुरु 16 वर्ष ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार ॥ 35 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती मघा, मूल, अश्विनी पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी शनि बुध केतु शुक्र 19 वर्ष 17 वर्ष 7 वर्ष 20 वर्ष प्रश्न किया जा सकता है कि क्या किसी नक्षत्र विशेष में जन्म लेने पर जातक को उसके स्वामी ग्रह की पूरी अवधि की दशा लगती है या उसका कुछ भाग । क्योंकि कुंडलियों में अक्सर 'भुक्त' एवं भोग्य काल का उल्लेख होता है । तो 'भुक्त' एवं 'भोग्य' से क्या तात्पर्य है ? यह कोई पेचीदा विषय नहीं है। 'भुक्त' का सामान्य अर्थ है, भोगा हुआ। और भोग्य का अर्थ है - जिसे भोगा जाना है I नक्षत्रों का कारकत्व भारतीय ज्योतिष में जिस तरह ग्रहों को कुछ बातों, कुछ वस्तुओं का कारक माना गया है, उसी प्रकार नक्षत्रों का भी कारकत्व निर्धारित किया गया है । कारक का सामान्य अर्थ है यहाँ हम विभिन्न नक्षत्रों के कारकत्व का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं अश्विनी (केतु) : वैद्य, सेवक, वैश्य, स्वरूपवान पुरुष, अश्व, अश्वारोही । क्रूर भरणी (शुक्र) : आसक्ति युक्त, गुण हीन व्यक्ति, मांस भक्षी, कर्मी । कृत्तिका (सूर्य) : द्विज, पुरोहित, ज्योतिषी, कुंभकार (कुम्हार) नाई, श्वेत पुष्प । रोहिणी (चंद्र) : राजा, धन-संपन्न व्यक्ति, योगी, कृषक, दुकानदार, सुव्रती । मृगशिरा (मंगल) : कामी, वस्त्र, पद्म, फल-फूल वनचर मृग, नभचर (पक्षी) आर्द्रा (राहु) : भरणी - उच्चाटण प्रिय, मिथ्याभाषी, परनारी आसक्त । पुनर्वसु (गुरु) : राज्य सेवक, बुद्धिमान, यशस्वी, धनी, सत्यवादी, उदार । पुष्य (शनि) : मंत्रज्ञ, मछुआरे, यज्ञ के प्रति आसक्तं, साधु, अन्न, (जौं गेहूँ, चावल ) ईंख । ज्योतिष- कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 36 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्लेषा (बुध) : वैद्य, परधनहर्ता, कंद-मूल, कीट-सर्प, विष - तुष धान्य । मघा (केतु) : स्त्री द्वेषी, पितृभक्त, वैश्य, पर्वतवासी, धन-धान्य संपन्न, अन्न भंडार | पूर्वा फाल्गुनी (शुक्र) : गायक, नटनी, शिल्पी, नमक, कपास । उत्तरा फाल्गुनी (सूर्य) : पवित्र, विनयी, दानी, शास्त्रज्ञ, स्वधर्मानुरागी । हस्त (चंद्र) : वेदज्ञ, ज्योतिषी, वणिक, मंत्री, शिल्पी, चोर | चित्रा (मंगल) : गणितज्ञ, मणि, अंगराग । स्वाति (राहु) : निपुण व्यापारी, अस्थिर स्वभाव वाले, मृग, अश्व, पृथ्वी । विशाखा (गुरु) : अग्निमूलक, अन्न- मूंग, उड़द, चने, तिल, लाल वर्णी फूल । अनुराधा (शनि) : साधु-संतों के प्रति प्रेम वाले, शूरवीर, महानायक । ज्येष्ठा (बुध) : कुलीन, यशस्वी, धनी, विजय कामी नरेश, सेनानायक, परधन - हर्ता । मूल (केतु) : धनी, वैद्य, फूल, फल, बीज और कंदमूल से आजीविका चलाने वाले (माली) । पूर्वाषाढ़ा (शुक्र) : सत्यवादी, धनी, मृदु, सेतु - निर्माता । उत्तराषाढ़ा (सूर्य) : तेजस्वी, वीर, देवभक्त, मंत्री, मल्ल, अश्व । श्रवण (चंद्र) : भगवद् भक्त, सत्यवादी, कर्मठ, परिश्रमी, मायावी । धनिष्ठा (मंगल) : शांतिप्रिय, दानी, स्त्री द्वेषी, मान रहित । शतभिषा (राहु) : कलाकार, मछलीमार, शकुन जानने वाले पूर्वाभाद्रपद (गुरु) हिंसक, नीच, पशुपालक, शठ । उत्तराभाद्रपद (शनि) : दानी, वैभवशाली, तपस्वी, पाखंडी । रेवती (बुध): वैश्य, केवट, जल में उत्पन्न वस्तु पर आश्रित । क्या राशियों की तरह नक्षत्रों की भी शरीर में स्थिति मानी गयी है ? हाँ, राशियों की भांति शरीर के विभिन्न अंगों में नक्षत्रों की स्थिति मानी गयी है। ऐसा माना जाता है कि किसी अशुभ ग्रह का नक्षत्र पर प्रभाव, शरीर के उस अंग को भी प्रभावित करता है, जहाँ उस नक्षत्र विशेष की स्थिति मानी गयी है । नक्षत्रों द्वारा प्रभावित होने वाले शरीर के अंग इस प्रकार हैं : : पैरों का ऊपरी भाग 1. अश्विनी 2. भरणी : पैरों का निचला भाग ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार 37 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : भौंहे 3. कृत्तिका : सिर 4. रोहिणी : माथा (ललाट) 5. मृगशिरा 6. आर्द्रा : नेत्र 7. पुनर्वसु : नाक 8. पुष्य ... : चेहरा 9. आश्लेषा : कान 10. मघा : ओंठ एवं ठुड्डी 11. पूर्वा फाल्गुनी : दायां हाथ 12. उत्तर फाल्गुनी : बायां हाथ 13. हस्त : हाथों की अंगुलियां 14. चित्रा : गर्दन (गला) 15. स्वाति : फेफड़े 16. विशाखा : वक्षस्थल 17. अनुराधा : उदर 18. ज्येष्ठा : दायां भाग 19. मूल : बायां हाथ 20. पूर्वाषाढ़ा : पृष्ठ भाग (पीठ) 21. उत्तराषाढ़ा : कमर भाग (कमर) 22. अभिजित : मस्तिष्क 23. श्रवण : गुप्तांग 24. धनिष्ठा :: गुदा 25. शतभिषा : दायीं जांघ 26. पूर्वाभाद्रपद : बायीं जांघ 27. उत्तराभाद्रपद : पिंडली का अगला हिस्सा 28. रेवती : एड़ी (घुटना भी) आपने पहले 27 नक्षत्रों की चर्चा की है। लेकिन यहाँ एक अतिरिक्त नक्षत्र अभिजित का भी समावेश है ? ऐसा क्यों ? ज्योतिष शास्त्र में आम तौर पर 27 नक्षत्रों का ही प्रचलन है पर ज्योतिर्विद उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की 15 और श्रवण नक्षत्र की शुरू की चार घड़ियों को मिलाकर 19 घड़ी के अभिजित नक्षत्र की भी नक्षत्र मंडल में गणना करते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 38 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19 घटियों वाला अभिजित नक्षत्र सभी कार्यों के लिए शुभ माना गया है। मध्य रात्रि व दोपहर में लगभग अभिजीत मुहुर्त होता है। भगवान श्री राम और भगवान कृष्ण इसी मुहुर्त में पैदा हुए थे। सिक्ख धर्म के सरदार लोग दोपहर में इसी मुहुर्त में शादी करते हैं। क्या कोई ग्रह किंसी नक्षत्र में होने से एक ही फल देता है या उस नक्षत्र में भी उसके फलों में अंतर आ जाता है ? ऐसा होता है तो क्यों ? किसी भी नक्षत्र में कोई ग्रह एक जैसा फल नहीं देता। ग्रह विशेष नक्षत्र के किस चरण में स्थित है और उस चरण विशेष का स्वामी ग्रह कौन है, उस चरण-स्वामी ग्रह से नक्षत्र स्थित ग्रह के कैसे संबंध हैं, दोनों शुभ हैं, दोनों अशुभ हैं, या दोनों में मैत्री है या शत्रुता है, आदि का अध्ययन कर फल का निर्णय किया जाता है। नक्षत्रों के चरणों के स्वामी-ग्रहों के बारे में बताएं। प्रत्येक नक्षत्र की चर्चा करते हुए हमने आगे के पृष्ठों में उनके चरणों के स्वामी-ग्रहों की भी जानकारी दी है। 'जातक सारदीप का अध्ययन हमें इस विषय को समझने में सहायक हो सकता है। उसमें बताया गया है कि किस नक्षत्र-विशेष के चरण विशेष में स्थित ग्रह उस चरण के स्वामी ग्रह के कारण कैसा प्रभाव डालता है। निस्संदेह यह एक सूक्ष्म अध्ययन है। और हमें ज्योतिष ग्रंथ कर्ताओं के अध्ययन, शोध पर आधारित फल निर्णयों के पीछे छिपी वैज्ञानिकता और तार्किकता का कायल होना ही पड़ता है। यहाँ सारांश में नक्षत्र के चरणों के स्वामी-ग्रहों का परिचयः पाठक जब आगे विभिन्न नक्षत्रों के चरणों में स्थित ग्रहों के फलों को पढ़ें, तो उसके साथ उस चरण-विशेष के स्वामी ग्रह के गुण-धर्मों के संदर्भ में वर्णित फल को कसौटी पर कसने का प्रयत्न करें। नक्षत्र स्वामी ग्रह चरण एवं स्वामी ग्रह अश्विनी केतुः प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र भरणी शुक्र, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल कृत्तिका सूर्य, प्रथम: गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु रोहिणी चंद्र, प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र मृगशिरा मंगल, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 39 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्द्रा राहु, प्रथमःगुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु पुनर्वसु गुरु, प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र पुष्य शनि, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल । आश्लेषा बुध, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु मघा केतु, प्रथम: मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र पूर्वा फाल्गुनी शुक्र, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल उत्तरा फाल्गुनी सूर्य, प्रथम: गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु हस्त चंद्र, प्रथम: मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र . चित्रा मंगल, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थ: मंगल स्वाति राहु, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु विशाखा गुरु, प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र अनुराधा शनि, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल ज्येष्ठा बुध, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु मूल केतु, प्रथम: मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र पूर्वाषाढ़ा शुक्र, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल उत्तराषाढ़ा सूर्य, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु श्रवण चंद्र, प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र धनिष्ठा मंगल, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल शतभिषा राहु, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु पूर्वा भाद्रापद गुरु, प्रथमः मंगल, द्वितीयः शुक्र, तृतीयः बुध, चतुर्थः चंद्र उत्तरा भाद्रापद शनि, प्रथमः सूर्य, द्वितीयः बुध, तृतीयः शुक्र, चतुर्थः मंगल रेवती बुध, प्रथमः गुरु, द्वितीयः शनि, तृतीयः शनि, चतुर्थः गुरु ग्रहों को चरणों का स्वामित्व किस आधार पर दिया गया, यह एक विचारणीय प्रश्न है ? ज्योतिष शास्त्र को पढ़ते समय मन में ऐसी प्रत्येक जिज्ञासाएं कभी-कभी सनातन प्रश्न का रूप ले लेती हैं। उनका समाधान कोई अनुभवी, अध्ययन एवं शोधप्रिय ज्योतिष ही दे सकता है। . हमारा प्रयत्न यही है कि हम पाठकों के लिए अध्ययन योग्य सभी सामग्री एक जगह रखें ताकि प्रबुद्ध पाठक इस संबंध में अधिक अध्ययन एवं शोध के लिए प्रवृत्त हों। नक्षत्रों के नौ भेद नक्षत्रों की तारा का अर्थः (कौन सी तारा जन्म की मुहुर्त की) तारा नौ प्रकार की मानी गयी है :ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 40 . Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. जन्म, 2. सम्पत, 3. विपत, 4. क्षेम, 5. प्रत्यरि, 6. साधक, 7. वध 8: मित्र, 9. अतिमित्र। (केवल मुहुर्त शास्त्रों में) नाम ही इन ताराओं का अर्थ एवं महत्त्व स्पष्ट कर देते हैं। जन्म नक्षत्र 1 से इष्ट दिवस तक नक्षत्र संख्या गिनकर उसमें नौ का भाग देने पर शेष तुल्य तारा प्राप्त होती है। 3, 5, 7 संज्ञा वाली ताराओं को छोड़कर शेष ताराएं अर्थात् 1, 2, 4, 6, 8, 0 ताराएं शुभ होती हैं। 3, 5, 7 ताराओं में यात्रा, विवाह, आदि प्रतिबंधित माने गये हैं। नक्षत्रों का नेष्ट काल किसी भी व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के संदर्भ में कुछ अन्य नक्षत्रों के चरण विशेष उस व्यक्ति के लिए अशुभ माने गये हैं। जैसे-जन्म नक्षत्र से ग्यारहवें, बारहवें एवं इक्कीसवें नक्षत्र के प्रथम चरण को घातक या अशुभ माना गया है। उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो उसके लिए अश्विनी से ग्यारहवें नक्षत्र में पूर्वा फाल्गुनी एवं बारहवें नक्षत्र में उत्तरा फाल्गुनी तथा इक्कीसवें नक्षत्र में उत्तराषाढ़ा का पहला चरण अशुभ होगा। इसी तरह किसी भी जन्म नक्षत्र से चौथे एवं चौदहवें नक्षत्रों का दूसरा चरण तथा सातवें, सोलहवें एवं चौबीसवें नक्षत्र का तीसरा चरण तथा सत्रहवें नक्षत्र का चौथा चरण अशुभ होगा। 4, 11, 17, 24 सुविधा के लिए सूत्र रूप मेंजन्म नक्षत्र से 11, 12, 21वें नक्षत्र का प्रथम चरण जन्म नक्षत्र से 4, 14वें नक्षत्र का दूसरा चरण जन्म नक्षत्र से 7, 16, 24वें नक्षत्र का तीसरा चरण जन्म नक्षत्र से 17वें चरण का चौथा चरण पाठक चाहें तो किसी भी वांछित वर्ष में इन नक्षत्रों के चरणों का काल लिख लें और इन चरणों के अशुभ समय में सावधान रहें। पंचांगों में प्रत्येक नक्षत्र का काल समय दिया जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का जन्म किसी न किसी नक्षत्र के काल में होता है। व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है, उसे आद्य नक्षत्र (आधान नक्षत्र) या आदि नक्षत्र कहते हैं। ___ आद्य नक्षत्र से दसवें नक्षत्र को कर्म नक्षत्र कहा गया है। (आद्य नक्षत्र भी कर्म नक्षत्र कहलाता है)। इसी तरह इस जन्म नक्षत्र से सोलहवां नक्षत्र सांधातिक नक्षत्र, अठारहवां समुदाय नक्षत्र, तेइसवां वैनाशिक नक्षत्र, पच्चीसवां ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 41 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानस नक्षत्र कहलाता है। 19वां नक्षत्र आधान नक्षत्र कहलाता है । उपरोक्त छह नक्षत्र अशुभ माने गये हैं तथा उनमें शुभ कार्य नहीं करना चाहिए । यदि ये नक्षत्र 'पीडित' हैं तो विशेष अशुभ फल मिलते हैं। जैसे आद्य नक्षत्र पीड़ित हो तो रोगादि के अतिरिक्त धनक्षय होता है। कर्म नक्षत्र आदि अशुभ स्थिति में है तो संकल्प पूरे नहीं होते, सार रूप में कर्मों का क्षय या हानि होती है। सोलहवें नक्षत्र - साधातिक नक्षत्र के पीड़ित होने से संबंधियों के व्यवहार से हानि उठानी पड़ती है। अठारहवें नक्षत्र समुदाय नक्षत्र के पीड़ित होने से सुख में न्यूनता आती है । तेइसवें नक्षत्र वैनाशिक नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्याधि, मृत्यु आदि के योग बनते हैं तथा पच्चीसवें नक्षत्र मानस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति मानसिक क्लेश, चिंताओं से मुक्त रहता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो यह नक्षत्र अर्थात् अश्विनी नक्षत्र उसके लिए आद्य नक्षत्र होगा । अश्विनी से दसवां नक्षत्र मघा कर्म नक्षत्र, सोलहवां विशाखा नक्षत्र सांघातिक नक्षत्र, अठारहवां ज्येष्ठा समुदाय नक्षत्र, तेइसवां धनिष्ठा वैनाशिक नक्षत्र और पच्चीसवां पूर्वाभाद्रपद मानस नक्षत्र माना गया है। अन्य नक्षत्रों में जन्म होने पर इसी क्रम से उपरोक्त नक्षत्रों का पता लगाया जा सकता है। नक्षत्र पंचक ज्योतिष शास्त्र में पांच नक्षत्रों को पंचक नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है। इन नक्षत्रों में कुछ कार्यों को करने का निषेध है। जैसे - आवास निर्माण के लिए लकड़ी आदि का क्रय या संग्रह, दक्षिण दिशा की यात्रा, मृतक का दाह, घर छवाना या छत डालना, खाट बनवाना, चूल्हा बनाना, झाडू खरीदना आदि । ये पांच नक्षत्र हैं 1. धनिष्ठा, 2. शतभिषा, 3. पूर्वाभाद्रपद, 4. उत्तराभाद्रपद, 5. रेवती । इनमें हानि या लाभ पाँच गुना होता है। नक्षत्र एवं रोग नक्षत्र के कारण व्यक्ति रोगादि से भी पीड़ित होता है तथा उसके निवारण के लिए जड़ी - विशेष को शरीर पर धारण करने एवं नक्षत्र के देवता का मंत्र जाप करने से रोग दूर हो जाते हैं, ऐसा विश्वास है । पाठकों के लाभार्थ यहाँ सारांश में प्रस्तुत है, विभिन्न नक्षत्रों के पीड़ित होने के कारण हो सकने वाले रोग आदि एवं निवारण के उपाय: ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 42 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्विनी: वायु प्रकोप, अनिद्रा, मतिभ्रम, बुखार । उपचारः चिरचिटे की जड़ को चौहरा कर भुजदंड में बांधने से लाभ । मंत्र: ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम् वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम् । ॐ अश्विनीकुमाराभ्यो नमः जप संख्या: 5,000 बार । भरणीः आलस्य, तीव्र ज्वर, शरीर - प्रकंपन | उपचारः आक के पेड़ की जड़ को तिहरा कर पहनने से लाभ । मंत्र: ॐ यमाय त्वा मरखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपते देवस्त्वा सविता मध्वा नक्तु । पृथिव्या स्पशुस्पाहि अर्चिरसि शोचरसि तपोसि। ॐ यमाय नमः । जप संख्या: 10,000 बार । कृत्तिकाः नेत्र पीड़ा, अनिद्रा, शरीर में जलन, घुटने में दर्द । उपचारः कपाल की जड़ तिहरा कर भुजदंड में बांधे । मंत्र: ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपां रेतांसि जिन्वति । ॐ अग्नये नमः | जप संख्या: 10,000 बार । रोहिणीः ज्वर, सिरदर्द, घबराहट । उपचार: चिरचिटे की जड़ को तिहरा बनाकर बांह में पहनें । मंत्र: ॐ ब्रह्मज्ज्ञानं प्रथम पुरस्ता द्विसीमत: सुरुचो वेन आवः । सुबुधन्या उपमा अस्यविष्ठा संतश्च योनिमतश्च विवः ॐ ब्रह्मणे नमः जप संख्या: 5,000 बार । मृगशिराः नजला, जुकाम, खांसी, ताप, मलेरिया, जलभय । उपचारः जयंती घास की जड़ को चौहरा कर पहनें। मंत्र: ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाव महते जानराज्यायेन्द्रास्येन्द्रियाथ । इम मनुष्य पुत्रमभ्रष्यै पुत्र मस्य विष एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्माणामां राजा । ॐ चंद्रमसे नमः जप संख्या: 10,000 बार | ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र-विचार 43 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्द्राः ज्वर, नजला, अनिद्रा, आधाशीशी का दर्द, उपचारः चंदन का लेप, पीपल की जड़ दुहरी कर दायें हाथ में बांधे। मंत्र: ॐ नमस्ते रुद्रमन्यव उतोत इषवे नमः । बाहुभ्यामुत ते नमः । ॐ रूद्राय नमः। जप संख्या : 10,000 बार पुनर्वसुः बुखार, सिर-कमर में दर्द, उपचारः आक के पौधे को रविवार को पुष्य नक्षत्र में उखाड़कर चौहरा कर भुजदंड में बांधे। मंत्रः ॐ अदितिधौरदितिरन्तरिक्षमद्रितिर्माता स पिता स पुत्रः विश्वेदेवा अदितिः पंचजना अदिति जातमदिरर्जनित्वम् ॐ अदित्याय नमः जपसंख्या : 10,000 बार पुष्यः तीव्र ज्वर, शूल, दर्द-कष्ट उपचारः कुश की जड़ को चौहरा कर भुजाओं में बांधे। मंत्रः ॐ बृहस्पते अतियदर्योअर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । पद्दीदयच्छव स ऋतुप्रजातदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम। ॐ गुरवे नमः जप संख्या : 10,000 बार। आश्लेषाः रोगों का आधिक्य । सर्वांग पीड़ा। सर्प भय, विष भय। उपचारः पटोलमूल को पंचहेरी कर भुजाओं में बांधे। मंत्र: ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु ये अंतरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः । ॐ सर्पेभ्यो नमः । जप संख्याः 10,000 बार। मघाः आधाशीशी का दर्द। उपचारः शृंगराज की जड़ को चौहरा कर दोनों भुजाहों में बांधे। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 44 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्र: ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्वः स्वघाविभ्यः स्वाधा नमः। प्रपितामहेभ्य स्वाधायिभ्यः स्वधा नमः, अक्षन्न पितरोभीमदंत पितरोऽती तृपंतपितरः पितरः शुन्यध्वम् । ॐ पितरेभ्ये नमः। जप संख्याः 10,000 बार। पूर्वा फाल्गुनीः बुखार, खांसी, नजला, पसली चलना। उपचार: नीले फूल की कटैली की जड़ को तिहरा कर भुजाओं में बांधे। मंत्रः भगप्रणेतर्भगसत्य राधो भगे मां धियमुदवाददन्नः भगणोजनगो गोभिरवर्भगप्रनृभिनृर्वतेस्याम। ॐ भगाय नमः। जप संख्याः 10,000 बार। उत्तरा फाल्गुनीः बुखार, सिरदर्द, वायु प्रकोप। पितृ पीड़ा। उपचारः श्वेत आक की जड़ भुजाओं में बांधे। मंत्रः देव्यावह्वआगतं रथेन सूर्यत्वचा। मध्वा यज्ञ समंजाये तं प्रत्नया यं वेनचित्रम देवानाम।। ॐ अर्यम्णे नमः। जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वान इसकी संख्या 5000 भी मानते हैं।) हस्तः उदर दर्द, पैरों में दर्द, पसीने का आधिक्य । उपचार: जावित्री की जड़ भुजाओं में बांधे। मंत्रः ॐ विभ्राबृहस्पतिबतु सौम्यं मञ्वायुर्दघद्यज्ञपतावविहुँतम वातजूतो यो अभि रक्षतित्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा विराजति। ॐ सवित्रे नमः। जप संख्या: 5,000 बार। चित्राः अनेक रोगों की आशंका। उपचारः असगंध की जड़ भुजाओं में धारण करें। मंत्र: ॐ त्वष्टानुरोयो अद्भुत इन्द्राग्नी पुष्टिवर्धना द्विपदाच्छन्दऽइन्द्रयमक्षा गौनविमोदधु। ॐ विश्वकर्मणे नमः। जप संख्या: 10,000 बार। (कुछ विद्वजन 5000 भी मानते हैं) ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 45 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वातिः वायु प्रकोप, पेट में अफारा, टांगों में दर्द। उपचार: जावित्री की जड़ भुजदंड में बांधे। मंत्रः ॐ वायो ये ते सहस्त्रिणो स्थासस्तेभिरागहि मित्युत्वान सोम पीतये। ऊँ वायवे नमः। जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वजन 5000 भी मानते हैं) विशाखाः पूरे शरीर में दर्द । फोड़े-फुसी आदि। उपचार: चौटली की जड़ को भुजदंड में बांधे। मंत्र: ऊँ इंद्राग्नी आगतं सुतं गीर्भिर्नमो वरेण्यम् अस्पातं घियेषिता। ॐ इन्द्राग्निभ्यां नमः जप संख्या : 10,000 बार। अनुराधाः तेज बुखार, सिर-दर्द। उपचार: गुलाब की जड़ भुजदंडों में बांधे। मंत्र: ॐ नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महादेवाय तदृतं सर्पयतं दूरदृशे देवजाताय केतवे, दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत। ॐ मित्राय नमः। जप संख्या : 10,000 बार। ज्येष्ठाः पित्त प्रकोप, चित्त में व्याकुलता। उपचारः चिरचिटे की जड़ चौहरी कर बांधे। मंत्र: ॐ त्रातारभिन्द्रमवितारमिद्रं हवे हवे सुद्दवं शूरमिन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र स्वस्ति नो मधवा धात्विन्द्रः । ॐ शक्रायः नमः ____ जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वान 5000 भी मानते हैं) मूलः सन्निपात ज्वर, उदर दर्द, मंद रक्तचाप। उपचार: मंदार की जड़ हाथ में बांधे। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 46 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्र: ॐ मातेव पुत्रं पृथ्वी पुरीप्यमग्नि स्वे योनावभारखा, ता विश्वदेव ऋतुभिः संवदानप्रजापतिर्विश्व कर्म विमञ्चतुः । ॐ निऋतये नमः जप संख्या: 7,000 बार । पूर्वाषाढ़ाः सिर में दर्द, शरीर में पीड़ा, कंपन । उपचारः कपास की जड़ भुजदंड में धारण करें । मंत्रः ॐ अबाधमपकिल्विषमपकृत्यामपोरपः अपामार्गत्वमस्मदषदुःप्वप्यं सुव। ॐ अद्भ्यो नमः । जप संख्या: 5,000 बार । उत्तराषाढ़ाः कटि पीड़ा, गठिया, प्रलाप की मनःस्थिति । उपचारः कपास की जड़ चौहरी कर हाथ में बांधें । मंत्र: ॐ विश्वेदेवा श्रृणुतेमं हवं ये मे अंतरिक्षेय उपद्यविष्ठा ये अग्निजिव्हा उतवा य जत्रा आसद्यास्मिन यज्ञे वर्हिषि मादयध्वम् । ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः जप संख्या: 10,000 बार । श्रवणः अतिसार, ज्वर, अनेक पीड़ाएं। उपचारः चिरचिटे की जड़ चौहरी कर भुजदंड में बांधे । मंत्र: ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नपत्रेस्थोविष्णोः स्यूरसि विष्णोर्धुवोऽसि वैष्णवम सि विष्णवे त्वा ॐ विष्णवे नमः जप संख्या: 10,000 बार । धनिष्ठाः रक्तातिसार, ज्वरादि । मंत्र: ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रभसि सहस्त्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्ष / ॐ वसुभ्यो नमः । जप संख्या: 10,000 बार । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 47 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतभिषाः सन्निपात ज्वर, वातप्रकोप, ज्वर आदि। मंत्र: ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जवीस्यो वरुणस्य ऋतऽसदन्पसि वरुणस्य ऋतमदनमसि वरुणास्य ऋतस्मदनमासीद। ॐ वरुणाय नमः। जप संख्या : 10,000 बार। पूर्वाभाद्रपदः वमन, चित्त की व्याकुलता। उपचारः शृंगराज की जड़ हाथों में बांधे। मंत्र: ॐ उत नोऽहिर्बुध्भ्य श्रणोत्वज एकपात्पृथिवी समुद्रः। विश्वेदेवा ऋतावधीन वहुवानः स्तुता मंत्रा कर्विशस्ता अवन्तु। ॐ अजैकादे नमः। जप संख्याः 10,000 बार । (कुछ विद्वजन 5000 भी मानते हैं) उत्तराभाद्रपदः अतिसार, पीलिया आदि उपचार: पीपल की जड़ हाथ में बांधे। मंत्रः ॐ शिवो नामासि स्वधितिते पिता नमस्ते अस्तु मामाहिंसी: निवर्तयाभ्याधुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाथ सुप्रजास्त्वाय युवीर्याप। ॐ अहिर्बुध्न्यायः नमः । जपसंख्याः 10,000 बार। रेवतीः पैरों में पीड़ा, वायु प्रकोप, मतिभ्रम । उपचार: पीपल की जड़ को तिहरा कर हाथ में बांधे। मंत्र: ॐ पूषनतवत्रते वयं न रिष्येम कदाचन। स्तोतारस्त इहस्मसि।। ॐ पूष्णे नमः। जपसंख्याः 5,000 बार। (कुछ विद्वजन 10,000 भी मानते हैं) । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 48 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्विनी राशियों में अश्विनी नक्षत्र की स्थिति 0.00 अंशों से 13.20 अंशों तक मानी गयी है । • अश्विनी के भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पर्यायवाची नाम हैं, तुरंग, दस् एवं हृय । यूनानी अथवा ग्रीक उसे 'कैस्टर - पोलक्स' कहते हैं, जबकि अरबी में 'अश शरातन' । चीनी इस नक्षत्र को 'लियू कहते हैं। अश्विनी नक्षत्र में तारों की संख्या में मतभेद है। यूनानी, अरबी उसमें दो तारों की स्थिति मानते हैं, जबकि भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीन तारों को मिलाकर इस नक्षत्र की रचना की गयी है। अश्विनी की आकृति अश्व अथवा घोड़े के समान कल्पित की गयी, इसीलिए इस नक्षत्र को यह नाम दिया गया। यों बाद में इनका संबंध देवगण के वैद्य द्वय अश्विनी कुमारों से भी जोड़ दिया गया। अश्विनी नक्षत्र से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, उसकी आगे चर्चा । सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र का ज्योतिषीय परिचयः अश्विनी नक्षत्र के देवता हैं-अश्विनी कुमार, जबकि स्वामी केतु माना गया है । (केवल विंशोत्तरी दशा में) गणः देव, योनिः अश्व एवं नाड़ी आदि है 1 नक्षत्र के चरणाक्षर हैं-- चू, चे, चो, ला। यह नक्षत्र प्रथम राशि मेष का प्रथम नक्षत्र है । (मेष राशि में अन्य नक्षत्र हैं- भरणी के चारों कृषिका का एक चरण) यह गंडमूल नक्षत्र कहलाता है ज्योतिष-कोमुदी : (खंड-1) दिवार 49 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्विनी नक्षत्र से जुड़ी हुई कुछ कथाएं भी हैं। एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा ने स्वयं को बहुत एकाकी पाया। अपने इसी एकाकीपन को दूर करने के लिए उन्होंने देवों की रचना की । ब्रह्मा द्वारा जिस सर्वप्रथम देव की रचना की गयी, वही अश्विनी है, जिसके दो हाथ हैं। एक अन्य कथा सूर्य को अश्विनी का पिता मानती है। सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा था। सूर्य की किरणों का ताप न सह सकने के कारण वह भाग कर आर्कटिक प्रदेश में जाकर एक मादा- अश्व के रूप में विचरने लगी। सूर्य ने भी एक अश्व का रूप धर कर संज्ञा का पीछा किया। संज्ञा उसे आर्कटिक प्रदेश में मिली । यहीं दोनों के संयोग से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ । यही अश्विनी कुमार बाद में देवताओं के वैद्य बने । यह कथा इस एक ज्योतिषीय धारणा को भी पुष्ट करती है कि सृष्टि के प्रारंभ में अपने अक्ष पर घूमती पृथ्वी पर सूर्य किरणें ध्रुवों तक पहुँचा करती। उस समय वसंत संपात अश्विनी नक्षत्र में था । उसी समय पृथ्वी पर जीवन का भी प्रारंभ हुआ । अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक/जातिका अश्विनी नक्षत्र को समूची मेष राशि का प्रतिनिधित्व करने वाला नक्षत्र माना गया है। मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। 'जातक पारिजात' में कहा गया है अश्विन्यामति बुद्धिवित विनय प्रज्ञा यशस्वी सुखी अर्थात् अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने का फल है: अति बुद्धिमान, धनी, विनयान्वित, अति प्रज्ञा वाला यशस्वी और सुखी । इसकी व्याख्या करते हुए स्व. पं. गोपेश कुमार ओझा लिखते हैं- 'अति प्रारंभ में आया है, इस कारण 'अति' सब विशेषणों के पहले अतिधनी भी जुड़ सकता है। मूल में प्रज्ञा यशस्वी शब्द आया है, जिसके दो अर्थ हो सकते हैं- 1. प्रज्ञावान तथा यशस्वी, 2. अपनी प्रज्ञा के कारण यशस्वी (और अर्थान्तर में सुखी भी) । बुद्धि और प्रज्ञा साधारणतः एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं परंतु यहाँ ग्रंथकार ने बुद्धि और प्रज्ञा दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । बुद्धि की परिभाषा है, संकल्प-विकल्पात्मकं मन विश्लयात्मकं बुद्धिः । प्रज्ञा का अर्थ होगा प्रकृष्ट- ज्ञा नीतिज्ञ में प्रज्ञा विशेष मात्रा में होती है । अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का व्यक्तित्व सुंदर, माथा चौड़ा, नासिका कुछ बड़ी तथा नेत्र बड़े एवं चमकीलें होते हैं । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार 50 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यद्यपि ऐसे जातक प्रत्यक्ष में बेहद शांत और संयत दिखायी देते हैं तथापि अपने निर्णय से कभी वे टस से मस नहीं होते। इसका कारण यह है कि वे कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं करते। वे उसके हर अच्छे-बुरे पहलू पर विचार करने के बाद ही निर्णय करते हैं। इसीलिए एक बार निर्णय करने पर वे उससे पीछे नहीं हटते। अपने निर्णयों में वे किसी से प्रभावित भी नहीं होते। फलतः उन्हें हठी भी मान लिया जाता है। ऐसे जातकों के बारे में कहा गया है कि यमराज भी उन्हें अपने निर्णय से नहीं डिगा सकते। लेकिन वे व्यवहार-कुशल भी होते हैं तथा अपना इच्छित कार्य इस खूबी से करते हैं कि न तो किसी को पता चलता है, न महसूस होता है। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक ‘यारों के यार' अर्थात् श्रेष्ठ मित्र सिद्ध होते हैं। उनकी मानसिकता समझने में समर्थ लोगों के लिए वे सर्वोत्तम मित्र ही सिद्ध होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक जिन्हें चाहते हैं, उनके लिए वे सर्वस्व होम देने के लिए भी तत्पर रहते हैं। यही नहीं, वे किसी को पीड़ित देखकर उसे सांत्वना बंधाने में भी आगे होते हैं। ऐसे जातकों के चरित्र की एक विशेषता यह होती है कि यद्यपि वे घोर से घोर संकट के समय भी अपार धैर्य का परिचय देते हैं तथापि यदि किसी कारणवश उन्हें क्रोध आ जाए तो फिर उन्हें संभालना मुश्किल होता है। इसी तरह एक ओर वे अतिशय बुद्धिमान होते हैं तो दूसरी ओर कभी-कभी 'तिल' का भी 'ताड़ बना देते हैं, अर्थात् छोटी-छोटी बातों को तूल देने लगते हैं। फलतः उनका मन भी अशांत हो उठता है। वे ईश्वर पर आस्था रखते हैं लेकिन धार्मिक पाखंड को रंचमात्र भी नहीं पसंद करते। परंपराप्रिय होते हुए भी उन्हें आधुनिकता से कोई बैर नहीं होता। वे स्वच्छताप्रिय भी होते हैं तथा अपने आसपास हर वस्तु को करीने से रखना उनकी आदत होती है। शिक्षा एवं आयः अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातकों को 'हरफन मौला' कहा जा सकता है अर्थात् सभी बातों में उनकी कुछ न कुछ पैठ होती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पर्याप्त सफलता मिलती है। वे चिकित्सा, सुरक्षा एवं इंजीनियरिंग क्षेत्रों में जा सकते हैं। साहित्य एवं संगीत के प्रति उन्हें खासा गाव होता है। उनकी आय के साधन भी पर्याप्त होते हैं पर प्रदर्शन-प्रियता पर व्यय के कारण वे अभाव भी अनुभव करते हैं। कहा गया है कि अश्विनी नक्षत्र में जातकों को तीस वर्ष की अवस्था ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 51 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक पर्याप्त संघर्ष करना पड़ता है। कभी-कभी उनके छोटे-छोटे काम भी रुक जाते हैं। ऐसे जातक अपने परिवार को बेहद प्यार करते हैं। लेकिन कहा गया है कि ऐसे जातकों को पिता से न पर्याप्त प्यार मिलता है, न कोई सहायता। हाँ, मातृपक्ष के लोग उसकी सहायता के लिए तत्पर होते हैं। उन्हें परिवार से बाहर के लोगों से भी पर्याप्त सहायता मिलती है। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी होता है। आम तौर पर सताइस से तीस वर्ष के मध्य उनके विवाह का योग बनता है। इसी तरह पुत्रियों की अपेक्षा पुत्र अधिक होने का भी योग बताया गया है। अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम : मंगल, द्वितीय : शुक्र, तृतीय : बुध और चतुर्थ : चंद्रमा। अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं में प्रायः उपरोक्त चारित्रिक विशेषताएं होती हैं। अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है। जातकों की तुलना में उनके नेत्र मीन की भांति छोटे एवं चमकीले होते हैं। अश्विनी नक्षत्र में जातिकाएं धैर्यवान, शुद्ध हृदय और मीठी वाणी की धनी होती हैं। वे परंपराप्रिय, बड़ों का आदर करने वाली तथा विनम्र भी होती हैं। ऐसी जातिकाओं में काम भावना कुछ प्रबल पायी जाती है। . ऐसी जातिकाएं यदि अच्छी शिक्षा पा जाएं तो वे एक कुशल प्रशासक भी बन सकती हैं। लेकिन वे परिवार के लिए अपनी नौकरी त्यागने में भी नहीं हिचकतीं। परिवार का कल्याण, उसका सुख ही उनकी प्राथमिकता होती है। विवाहः कहा गया है कि ऐसी जातिकाओं का विवाह तेइस वर्ष के बाद ही करना चाहिए अन्यथा दीर्घ अवधि के लिए पति से विछोह, या तलाक अथवा पति के चिरवियोग के भी फल बताये गये हैं। संतान: ऐसी जातिकाओं को पुत्रों की अपेक्षा पत्रियां अधिक होती हैं। वे अपनी संतान का पर्याप्त श्रेष्ठ रीति से पालन-पोषण करती हैं। • एक फल यह कहा गया है कि यदि अश्विनी के चतुर्थ चरण में स्थित शुक्र पर चंद्रमा की दृष्टि पड़े अर्थात् चंद्रमा तुला राशि में हो तो संतानें तो अधिक होती हैं, पर बच कम पाती हैं। स्वास्थ्यः ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्राय: ठीक ही रहता है। जो भी ज्योतिष-कोमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 52 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याधियां होती हैं-वे अनावश्यक चिंता एवं मानसिक अशांति के कारण। ऐसी स्थिति निरंतर बनी रहने पर मस्तिष्क विकार की भी आशंका प्रबल रहती है। ऐसी जातिकाओं को रसोईघर में भोजन बनाते वक्त आग से कुछ ज्यादा सावधान रहने की चेतावनी भी दी जाती है। वे शीघ्र ही दुर्घटनाग्रस्त भी हो सकती हैं। अश्विनी नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति के फल ____ अश्विनी नक्षत्र में स्थित होकर ग्रह कैसा फल देते हैं, जातक/जातिका के जीवन पर कैसा प्रभाव डालते हैं, यहाँ प्रस्तुत है, इसका विवरण। सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी: प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरण : शुक्र, तृतीय चरणः बुध एवं चतुर्थ चरण: चंद्र। अन्य नक्षत्रों के चरणों का स्वामित्व भी इस प्रकार विभिन्न ग्रहों को दिया गया है। - इसका बड़ा महत्त्व है, क्योंकि हम देखते हैं कि कभी-कभी कोई ग्रह किसी नक्षत्र विशेष के भिन्न-भिन्न चरणों में भिन्न-भिन्न फल, यहाँ तक कि विरोधाभासी फल देता है। इसका कारण चरण-विशेष के स्वामी ग्रह से उस ग्रह विशेष की मित्रता, शत्रुता या सम संबंध हो सकते हैं। आगे भी जब पाठक अन्य नक्षत्रों के चरणों में स्थित विभिन्न ग्रहों के फलों को पढ़ें तो उस चरण के स्वामी ग्रह को भी समझने की चेष्टा करें। इससे फलों का आधार बहुत कुछ समझा जा सकता है। अश्विनी नक्षत्र में सूर्य ___अश्विनी नक्षत्र मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है। मेष का स्वामी मंगल माना गया है तथा मेष को सूर्य की उच्च राशि का भी दर्जा दिया गया है। अश्विनी के चारों चरणों में सूर्य, कैसे फल देता है, इसे देखें। प्रथम चरण: अश्विनी के प्रथम चरण में जन्मे जातक हष्ट-पुष्ट, आत्म-विश्वास से भरपूर तथा तर्क-शक्ति में प्रवीण होते हैं। पारिवारिक जीवन में संतान से सुख भरपूर मिलता है। वे दीर्घायु, धनी-मानी भी होते हैं। मंगल एक तप्त ग्रह है। सूर्य भी तप्त है। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से यहाँ सूर्य की स्थिति पित्त एवं रक्त-विकार की संभावना प्रबल बनाती है। ग्रह ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 53 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत करते हैं और यदि हम इन संकेतों को समझकर सावधान रहें तो कोई कारण नहीं कि हम उनके दुष्प्रभाव को कम न कर सकें। द्वितीय चरण: इस चरण में स्थित सूर्य उतने अच्छे फल नहीं देता, जितना कि प्रथम अथवा चतुर्थ चरण में। अश्विनी के द्वितीय चरण में सूर्य की स्थिति आयु की दृष्टि से अशुभ मानी गयी है । यदि सूर्य के साथ चंद्र की युति हो जाए तो अशुभ फलों में वृद्धि होती है। हाँ, सूर्य पर मंगल की दृष्टि या उससे युति शुभ परिणाम देती है । तृतीय चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति जातक को वैभव प्रदान करती है। लेकिन अकेला धन या वैभव ही पर्याप्त सुख प्रदान नहीं करता । इस चरण में सूर्य की स्थिति के दो फल बतलाये गये हैं। एक तो जातक की बुद्धि कुटिल हो सकती है। दूसरे, उसका स्वभाव उग्र और कभी-कभी हिंसक भी हो सकता है। इन सब बातों का उसके स्वास्थ्य पर भी घातक असर पड़ता है। पित्त विकार, रक्त विकार उसे ग्रस्त कर सकते हैं। चतुर्थ चरण: इस चरण में सूर्य यदि 10 अंश से 11 अंश के बीच होता है तो फल बहुत अच्छे बताये गये हैं । जैसे जातक कुशाग्र बुद्धि, प्रसिद्ध तथा नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है। यदि वह सेना या सुरक्षा सेवाओं में हो तो उच्च पद प्राप्त करता है और यदि सामाजिक क्षेत्र में है तो वहाँ नेतृत्व की जिम्मेदारी बखूबी निभाता है। अपनी समस्त जिम्मेदारियां वह अत्यंत निष्ठा से पूरी करता है। इसका एक कारण यह भी है कि सूर्य की ऐसी स्थिति वाले जातक निर्मल हृदय, धार्मिक वृत्ति के होते हैं। जैसे-जैसे उनकी जीवन यात्रा आगे बढ़ती है, उन पर सौभाग्य की वर्षा होने लगती है । इस तरह हम देखते हैं कि अश्विनी के प्रथम चरण अर्थात् 00.00 अंश से 3.20 अंश एवं चतुर्थ चरण 10.00 अंश से 13.20 अंश, इसमें भी 10.00 एवं 11.00 अंशों में सूर्य की स्थिति शुभ फल देती है। अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल ग्रहों की शुभ-अशुभ दृष्टि भी ग्रह - विशेष के फलों को प्रभावित करती है। प्रस्तुत हैं, अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फलःचंद्र के फल की पहले चर्चा की गयी है । आयु के लिए यह अशुभ हो सकती है। मंगल की दृष्टि के कारण जातक क्रूर हृदय हो सकता है। कारण सूर्य भी तप्त ग्रह है और मंगल भी जातक के नेत्र भी लालिमा लिये हो सकते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 54 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है । जीवन भी सुख-सुविधा से पूर्ण होता है तथापि चालीस वर्ष की आयु के बाद अर्थाभाव की स्थिति बन सकती है। गुरु शुभ ग्रह है। सूर्य पर उसकी दृष्टि भी शुभ प्रभाव डालती है। जातक उदार हृदय, सत्ता से जुड़ा होता है । शुक्र की दृष्टि जातक में काम भावना को कुछ ज्यादा ही बढ़ाती है । वह काम वासना की पूर्ति के लिए जोड़-तोड़ में लगा रहता है। शनि की दृष्टि का फल अशुभ बताया गया है। सूर्य एवं शनि पिता- पुत्र होते हुए भी एक दूसरे के घोर शत्रु माने गये हैं। शनि की दृष्टि जातक को दरिद्रता की ओर ढकेलती है। अश्विनी के विभिन्न चरणों में चंद्र अश्विनी स्थित चंद्र के शुभ फल प्राप्त होते हैं। अश्विनी में चंद्र का अर्थ हैं, इसी नक्षत्र में उसका जन्म। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक / जातिकाओं की चारित्रिक विशेषताओं के संबंध में हम प्रारंभ में ही पढ़ चुके हैं । यहाँ अश्विनी के विभिन्न चरणों में चंद्र की स्थिति के फल: प्रथम चरणः यदि चंद्रमा अश्विनी के प्रथम चरण में हो तो जातक का व्यक्तित्व शानदार होता है। वह विद्वानों, विशेषज्ञों की संगति पैदा करता है। उनसे ही विचारों के आदान-प्रदान में उसे आनंद आता है। ऐसा जातक चाहे निजी संस्थान में हो अथवा सरकारी सेवा में, उच्च पद पर आसीन होने की क्षमता रखता है । तथापि उसकी कार्यशैली से अधीनस्थ कर्मचारियों में थोड़ा-बहुत असंतोष व्याप्त रहता है। कहा गया है कि लग्नस्थ अश्विनी में चंद्र की गुरु के साथ युति हो तो जातक 83 वर्ष तक तो जीवित रहता ही है। द्वितीय चरणः यहाँ स्थित चंद्रमा जातक को विलासिता की ओर ले जाता है। खान-पान का आनंद ही उसे प्रिय लगता है। ऐसा जातक व्यवहार - चतुर भी होता है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र की स्थिति हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमानी, सोत्साही और सक्रिय होता है। विज्ञान के अतिरिक्त धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में भी उसकी पर्याप्त रुचि होती है। ऐसा जातक अपने मित्रों के आडे वक्त में भी काम आता है। चतुर्थ चरण: अश्विनी के अंतिम चरण में चंद्र स्थित हो तो जातक अपने ही प्रयत्नों से उच्च शिक्षण के अलावा विज्ञान की विभिन्न शाखाओं ज्योतिष - कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 55 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में निष्णात होता है। 12.00 से 13.20 अंशों के मध्य जन्मे जातक चिकित्सा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। यदि वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहें तो वे वहाँ भी सफल होते हैं। अश्विनी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को उदार एवं परोपकारी बनाती है। उसे सत्ता पक्ष से भी अधिकार एवं अन्य बातों का लाभ मिलता है। ___मंगल की दृष्टि जातक के जीवन को परावलम्बी बना सकती है। उसे दंत एवं कर्ण पीड़ा भी हो सकती है। बुध की दृष्टि हो तो जातक का जीवन सुखी, धन-धान्य एवं यश से परिपूर्ण रहता है। . गुरु की दृष्टि हो तो जातक अत्यंत विद्वान ही नहीं, श्रेष्ठ गुरु भी सिद्ध होता है। समाज में उसकी काफी ऊँची प्रतिष्ठा होती है तथा उसके अधीनस्थ कई लोग काम करते हैं। ___शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी एवं अनेक स्त्रियों की संगति भी पाता है। .. शनि की दृष्टि जातक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। वह अनुदार भी होता है, साथ ही अच्छी संतान के सुख से वंचित भी। अश्विनी के विभिन्न चरणों में मंगल अश्विनी में मंगल की स्थिति का दूसरा अर्थ है, मंगल का स्वराशिस्थ भी होना। कारण अश्विनी मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है और मेष राशि का स्वामी मंगल माना गया है। अतः अश्विनी में स्थित मंगल सामान्यतः शुभ फल ही देता है तथापि अश्विनी के द्वितीय चरण में मंगल की स्थिति के अशुभ फल दर्शाये गये हैं। । प्रथम चरणः यदि मंगल अश्विनी के प्रथम चरण में हो तो जातक/जातिका गणित, इंजीनियरिंग एवं सैन्य सेवाओं में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उत्तम स्वास्थ्य से युक्त ऐसे लोग समाज में भी उच्च प्रतिष्ठा पाते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में तो वे प्रतिष्ठित होते ही हैं। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल की स्थिति के अशुभ फल वर्णित हैं, यथा दरिद्रतापूर्ण जीवन, निःसंतान होने की पीड़ा आदि। ऐसे लोगों में प्रतिहिंसा की भी भावना होती है। . तृतीय चरणः वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन के सुख की दृष्टि से इस ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 56 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरण में मंगल की स्थिति शुभ मानी गयी है। जातक को यायावरी वाली नौकरी या व्यवसाय फलप्रद होता है। ऐसे व्यक्तियों में कामभावना का भी अतिरेक बताया गया है। चतुर्थ चरण ः यदि जातक/जातिका का जन्म 12 से 13 अंशों के मध्य हो तो वे निस्संदेह एक सफल - कुशल इंजीनियर बन सकते हैं। उन्हें अच्छी संतान का सुख प्राप्त होता है। अश्विनी स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक विद्वान, बुद्धिमान, मातृ-पितृ भक्त तथा धन-संपदा, पारिवारिक सुख से युक्त होता है। चंद्र की दृष्टि वासना में वृद्धि करने वाली मानी गयी है। जातक परायी स्त्रियों में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगता है । बुध की दृष्टि भी काम भावना का अतिरेक करने वाली होती है । यदि अन्य ग्रहों की शुभ दृष्टि न हो तो जातक प्रदर्शन प्रिय होने के साथ-साथ वेश्यागामी भी हो सकता है। I गुरु की दृष्टि के शुभ फल होते हैं । जातक का समाज में, परिवार में मान-सम्मान होता है, वह धन के साथ-साथ सत्ता शक्ति का भी उपभोग करने वाला हो सकता है। शुक्र की दृष्टि उसकी विलासप्रियता बढ़ाती है। परस्त्रियों में आसक्ति उसके लिए संकट उत्पन्न करती है । तथापि वह जातक को समाजसेवी भी बनाती है । शनि की दृष्टि न हो तो जातक पारिवारिक सुख यहाँ तक कि मातृ-स्नेह से भी वंचित रहता है । अश्विनी के विभिन्न चरणों में बुध अश्विनी के दो चरणों में बुध के शुभ फल मिलते हैं तथा दो में अशुभ द्वितीय एवं तृतीय चरण में बुध की स्थिति लाभदायक होती है, जबकि प्रथम एवं चतुर्थ चरण में बुध हो तो जातक का जीवन दुखी ही बीतता है । प्रथम चरण ः यहाँ बुध जातक को नास्तिक बनाता है। ईश्वर पर से अनास्था उसकी छुद्र वृत्तियों को भी मुक्त कर देती है। वह सुरा- सुंदरी का शौकीन तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों से विश्वासघात भी कर सकता है। आम तौर पर समाज में वह निम्न नजरों से देखा जाता है । ज्योतिष- कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र विचार 57 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरणः द्वितीय चरण में बुध हो तो जातक विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करता है। उसे अच्छा संतान सुख भी मिल जाता है 1 लेकिन एक फल यह भी बताया गया है कि ऐसा जातक पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद संसार को त्याग संन्यासी भी बन सकता है। तृतीय चरणः तृतीय चरण में स्थित बुध जातक को ईश्वरीय कृपा से लाभान्वित करता है। वह कर्त्तव्यनिष्ठ तथा सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभाना जानता है। ऐसे जातकों को पुत्रों की संख्या अधिक बतायी गयी है। तृतीय चरण में बुध केवल स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता । चतुर्थ चरण: यहाँ बुध की स्थिति के अशुभ फल कहे गये हैं, यथा व्यवसाय में असफलता, अभावपूर्ण जीवन, चारित्रिक दोषों का आधिक्य । अश्विनी स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं । जातक सत्यनिष्ठ, परिवार एवं संबंधियों में प्रिय तथा शासन पक्ष से लाभान्वित होता है। चंद्र की दृष्टि जातक को ललित कलाओं के क्षेत्र में ले जाती है । संगीत के प्रति उसकी रुचि होती है । अपनी कला से वह धनोपार्जन भी कर सकता है। वह हर तरह से सुखी होता है । मंगल की दृष्टि भी शुभ फल देती है, यद्यपि बुध मंगल को शत्रुता की दृष्टि से देखता है तथापि मंगल की दृष्टि के कारण वह सत्तासीन लोगों का कृपाभाजन बनकर लाभ उठा सकता है। गुरु की दृष्टि के भी शुभ फल मिलते हैं । जातक को धन-सुख के अलावा परिवार का भी पूर्ण सुख मिलता है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप उसे मान-सम्मान, यश, अर्थ सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। अपने आचरण से वह सभी का प्रिय बनता है । शनि की दृष्टि के दो फल मिलते हैं। यद्यपि जातक समाजोपयोगी कार्य करता है, तथापि परिवार के सदस्यों से विवाद, कलह बना रहता है। अश्विनी स्थित गुरु के फल अश्विनी नक्षत्र में स्थित गुरु जातक के लिए अत्यंत शुभ होता है। वह नक्षत्र के किसी भी चरण में स्थित हो, शुभ फल ही देगा। गुरु एक सात्विक, शुभ ग्रह है। परंपरा से गुरु को देवता का गुरु माना गया है, विवेक प्रदान करने वाला। अश्विनी नक्षत्र में गुरु अपने कारकत्व के अनुसार शुभ फल देने वाला कहा गया है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 58 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरण: इस चरण में गुरु की स्थिति हो तो जातक के व्यक्तित्व में एक चुंबकीय आकर्षण होता है। विवेकपूर्ण वाणी का धनी ऐसा जातक अपने आसपास के लोगों को सहज ही प्रभावित करता है । अगर वह भाषण करे तो उसके विचारों को सुनने के लिए भीड़ एकत्र हो जाती है। जातक की अध्ययन में गहरी रुचि होती है । दार्शनिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में उसकी गहरी पैठ होती है। एक विद्वान के रूप में समाज में प्रतिष्ठित ऐसा जातक भौतिक उन्नति भी करता है। इसमें मित्रों एवं अन्य लोगों की उसे पर्याप्त सहायता मिलती है। पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद उसका यश बढ़ने लगता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी गुरु की स्थिति अच्छी मानी गयी है। जातक लेखन के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा सकता है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक, स्वभाव उदार एवं परोपकारी होता है । वह पूर्ण निष्ठा से हर कार्य करता है । फलतः सभी के स्नेह एवं आदर का पात्र भी बन जाता है। हाँ, धन के मामले में - उसे शायद अभावग्रस्त रहना पड़ सकता है। तृतीय चरणः यहाँ भी गुरु जातक को बौद्धिक एवं भौतिक क्षेत्र पर्याप्त उन्नति दिलाता है। जातक विद्वान एवं अधिकार संपन्न होता है । चतुर्थ चरण: यहाँ गुरु जातक को सर्वोत्तम फल देता है । अर्थात् ए ओर जहाँ उसे अपार कीर्ति मिल सकती है तो दूसरी ओर उसे धन का अभाव नहीं रहता। उसे परिवार का भी पूर्ण सुख मिलता है। उसकी संतां भी योग्य एवं आज्ञाकारी होती है । अश्विनी स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सदैव वैध कार्य करने के लिए प्रेरित की है। जातक अवैध कार्यों से डरता है। ईश्वर पर अगाध आस्था वाला सा जातक समाज में परोपकारी कार्य भी करना चाहता है । चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक धन, मान-सम्मान एवं य से युक्त होता है। मंगल की दृष्टि जातक को सत्ता पक्ष से लाभ पहुँचाती है ऐसा जातक स्वभाव से कुछ उग्र, और कभी-कभी क्रूर भी हो सकता है बुध की दृष्टि उसे सद्व्यवहार करने वाला बनाती है लेकिन उसमें औरों के निरर्थक विवादों में जान-बूझकर फंसने की भी प्रवृत्ति हो है । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों का प्रिय होता है। स्त्रिों के उपयोग की सामग्री के व्यापार से वह लाभान्वित भी हो सकता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र - विर 59 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनि की दृष्टि उसका स्वभाव कुछ क्रूर बना देती है। जातक को परिवार का भी सुख नहीं मिलता। अश्विनी नक्षत्र स्थित शुक्र के फल ___ अश्विनी नक्षत्र में स्थित शुक्र के फलस्वरूप जातक हष्ट-पुष्ट, भाग्यवान होता है तथा उसमें कला, अभिनय के क्षेत्र में आशातीत सफलता प्राप्त करने के साथ उच्च कोटि के चिकित्सक या मैकेनिकल इंजीनियर बनने की भी क्षमता होती है। प्रथम चरण: इस चरण में शुक्र हो तो जातक सदैव प्रसन्न रहने वाला तथा हष्ट-पुष्ट होता है। उसमें एक अच्छा मैकेनिकल इंजीनियर बनने की भी क्षमता होती है। कुछ कारणों से प्रथम चरण में स्थित शुक्र को अल्पायु का द्योतक भी कहा गया है तथापि अन्य शुभ ग्रहों के कारण उसके दीर्घायु के योग भी बताये गये हैं। द्वितीय चरण: जातक हस्ट-पुष्ट, मिलनसार एवं परिवार के दायित्वों ो निभाने वाला होता है। उसमें लेखन-प्रतिभा होती है। भाग्य भी उसका थ देता है। तृतीय चरणः इस चरण में शुक्र हो तो जातक में एक श्रेष्ठ चिकित्सक बने की क्षमता होती है। वह बौद्धिक प्रवृत्ति का, मिलनसार तथा सर्वप्रिय ता है। चतुर्थ चरण: इस चरण में शुक्र जातक को कला के क्षेत्र में ले जाता है वह एक अच्छा अभिनेता या संगीतज्ञ भी बन सकता है। अपनी स्थित चक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि । सूर्य की दृष्टि के कारण जातक शासन पक्ष से लाभान्वित होता है। उसा पारिवारिक जीवन, पत्नी से अनबन के कारण सुखी नहीं रहता। विशेकर यदि शुक्र अश्विनी के चतुर्थ चरण अर्थात् 10.00 से 13.20 अंश के म्ा हो तो यह स्थिति और बनती है। द्र की दृष्टि हो तो जातक उच्च पद पर होता है तथापि स्त्रियों की गलतसंगति के कारण उसे अपयश का भागी बनना पड़ सकता है। मल की दृष्टि अशुभ फल देती है यथा वैवाहिक जीवन में अनबन, परिवासे भी सहायता नहीं तथा धन का भी अभाव। बु' की दृष्टि उसमें दूसरों की वस्तु हड़पने की प्रवृत्ति पैदा करती है। गु' की दृष्टि शुभ होती है। जातक को परिवार का, संतान का पूर्ण ज्योतिष सुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 60 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख मिलता है। जीवन में उसे सारी सुख-सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं। शनि की दृष्टि के विभिन्न फल होते हैं। एक ओर वह तस्करी जैसे कार्यों में जुट सकता है तो दूसरी ओर उसमें अपने नहीं, दूसरों के धन को बांटने की प्रवृत्ति होती है। ऐसा जातक अपना धन छिपाकर रखता है। अश्विनी स्थित शनि के फल अश्विनी स्थित शनि के मिश्रित फल मिलते हैं। कुछ अच्छे. कुछ बुरे। जैसे प्रथम चरण में जातक का बचपन अभाव ग्रंस्त रहता है। लेकिन बाद में जीवन सुखी हो जाता। प्रथम चरणः यद्यपि जातक दीर्घायु होता है तथापि जीवन प्रारंभ में दुखी रहता है। मध्य आयु के बाद जीवन में सुख और स्थिरता आती है। ऐसे जातकों की इतिहास में गहरी रुचि होती है। उनमें लेखन प्रतिभा मिलती है। द्वितीय चरण: जातक वनों से संबंधित व्यावसायिक मामलों में दक्ष होता है लेकिन तुनुकमिजाजी और समय देखकर बात न करने की आदत उसे आर्थिक संकट में डाल सकती है। जातक का वर्ण श्यामल, शरीर कृशकाय होता है। तृतीय चरण: जातक यात्रा-प्रिय होता है। व्यवसाय में वह चतुर ही नहीं होता वरन् अपने अधीनस्थ लोगों की सुख-सुविधाओं और हितों का भी पर्याप्त ध्यान रखता है। चतुर्थ चरण: जातक में धार्मिक वृत्ति होती है, पारिवारिक जीवन भी प्राय: सुखी ही रहता है तथापि जुआरी वृत्ति के फलस्वरूप व्यवधान आ सकते हैं। अश्विनी स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि उसे पशु-पालन के व्यवसाय में ले जा सकती है। जातक सद्कार्यों में प्रवृत्त रहता है। यह कहा गया है कि यदि किसी जातिका की कुंडली में अश्विनी के चतुर्थ चरण स्थित शनि पर सूर्य की दृष्टि है तो वह विवाह प्रतिबंधक योग बनाती है। यदि विवाह हो भी गया तो दुर्भाग्यपूर्ण ही सिद्ध होता है। लेकिन यह फल पढ़कर एकाएक किसी निर्णय पर पहुँचना बुद्धिमानी नहीं होगी। यदि जातिका की कुंडली में अन्य ग्रहों के योग अच्छे हैं तो यह फल धूमिल भी सिद्ध हो सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 61 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रमा की दृष्टि के फल शुभ नहीं कहे गये हैं। जातक अभाव-ग्रस्त, क्रूर-मना, कुसंगति में रहने वाला कहा गया है। ___मंगल की दृष्टि जातक को घोर स्वार्थी बनाती है। साथ ही दूसरों से अपनी विरुदावलि स्वयं गाने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। बुध की दृष्टि पारिवारिक सुख में न्यूनता लाती है। जातक अवैध मार्गों से संपत्ति अर्जित करने की ओर प्रवृत्त हो सकता है। ___ गुरु की दृष्टि के फल शुभ होते हैं। जातक शासन में उच्च पद पाने की योग्यता रखता है। उसे धन-संपत्ति, अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चों का भी सुख मिलता है। . शुक्र की दृष्टि जातक में कामभावना तीव्र करती है। उसे यात्राएं करने में भी अतीव आनंद आता है। अश्विनी स्थित राह के फल अश्विनी के तृतीय चरण अर्थात् 6.40 से 10.00 अंशों के मध्य न होने पर अन्य शेष चरणों में राहु प्रायः अच्छे फल ही प्रदान करता है। । प्रथम चरण में राहु स्थित हो तो जातक हष्ट-पुष्ट, बुद्धिमान तथा पितृभक्त होता है। अपने वरिष्ठों से उसे समय-समय पर सहायता भी मिलती रहती है। द्वितीय चरण में राहु हो तो जातक विदेशों में भ्रमण का इच्छुक होता है। यों वह धार्मिक परंपराओं का पालन करने वाला भी होता है लेकिन अपनी अस्थिर मनोवृत्ति के कारण भटकाव की स्थिति में रहता है। __ तृतीय चरण में स्थित राहु घोर दरिद्रता का सूचक माना गया है। वैवाहिक जीवन भी कलहमय होता है। लेकिन अपनी दार्शनिक प्रवृत्ति के कारण वह इन सबसे असंपृक्त रहता है। चतुर्थ चरण में स्थित राहु के फलस्वरूप जातक दुबली-पतली काया वाला होते हुए भी साहसी, निर्भीक होता है। यहाँ राहु हो तो जातक को अपच और वायु प्रकोप की शिकायत हो सकती है। अश्विनी के विभिन्न चरणों में केतु अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु ही माना गया है। यहाँ स्वक्षेत्री होते हुए भी केतु मिले-जुले फल देता है। प्रथम चरणः अन्य चरणों की अपेक्षा इस चरण में केतु से शुभ फल मिलते हैं। जैसे जातक अच्छी शिक्षा पाता है। वह लोकप्रिय एवं समृद्ध भी ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 62 . Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता है। यहाँ केतु हो तो जातक मैकेनिकल या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल हो सकता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु हो तो जातक अनेक स्त्रियों से संबंधों की चेष्टा करता है। वह जन संपर्क में माहिर होता है। तृतीय चरणः यहाँ केतु हो तो जातक को अभावग्रस्त जीवन बिताना पड़ सकता है, तथापि वह कृतघ्न नहीं होता। अपनी सहायता करने वालों को सदैव याद रखता है तथा जरूरत पड़ने पर उनकी मदद की भी यथाशक्ति चेष्टा करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ भी केतु की स्थिति अशुभ फल देने वाली मानी गयी है। जातक का जीवन अभावमय होता है फलतः वह जन्मस्थल से कहीं दूर निकल जाने की फिराक में रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 63 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरणी भरणी द्वितीय नक्षत्र है और उसका अधिकार क्षेत्र 13.30 अंश से 26. 40 अंश तक है। भरणी में तीन तारे हैं और वे एक त्रिकोण की रचना करते हैं। भरणी का देवता यम को माना गया है। यम विवस्वत के पुत्र के रूप में भी वर्णित है। भरणी का स्वामी शुक्र है। भरणी राजस वृत्ति का नक्षत्र है और शरीर के भाग पर उसका अधिकार माना गया है । गणः मनुष्य, योनिः गज एवं नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं: ली, लू, ले, लो । भरणी नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद के होते हैं। उनकी आँखें चमकीली, दांत सुंदर और माथा चौड़ा होता है। स्वभाव से ऐसे व्यक्ति उदार, शुद्ध हृदय, किसी का अप्रिय, अहित न करने वाले होते हैं। तिकड़मबाजी से दूर सदैव स्पष्ट तौर-तरीकों को अपनाने में विश्वास रखते हैं । वे अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते और फलतः उनकी साफगोई कभी-कभी औरों को बुरी भी लग जाती है। पर उन्हें इसकी चिंता नहीं होती। भले उनके संबंध खराब हो जाएं और ऐसी स्थिति में वे संबंधों की चिंता नहीं करते। ऐसे जातक किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करते। अपने स्वभाव के कारण औरों से उनके स्थायी संबंध बहुत कम बन पाते हैं। अगर ऐसे जातक व्यर्थ के वाद-विवाद, तर्क से बचें तो अच्छा है क्योंकि उनकी मूल प्रवृत्ति येन-केन अपना वर्चस्व बनाये रखने की होती है । कभी-कभी वे अपनी कार्य सिद्धि के लिए अफवाहें भी फैलाने से बाज नहीं आते। विशेषकर यदि जन्म के समय भरणी की स्थिति अशुभ है तो व्यक्ति दूसरों को धोखा देने से भी परहेज नहीं करता । भरणी की ऐसी स्थिति उसे निम्न कार्य करने वाला बना देती है। भरणी का स्वामी शुक्र है। शुक्र एक ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र-विचार 64 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभ ग्रह है। अत: इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति सौंदर्य-प्रिय, भौतिकवादी होता है। कला, गायन, खेल कूद में उसकी रुचि होती है। वह चतुर, शत्रु पर अप्रत्याशित आक्रमण करने में कुशल तथा महत्त्वाकांक्षी होता है। इन नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति चित्रकार बन सकते हैं। स्त्रियों के लिए भरणी नक्षत्र शुभ माना गया है। वह उनमें (शुक्र के प्रभाव के कारण) स्त्रियोचित गुण बढ़ाता है। भरणी नक्षत्र में जन्मी लड़कियों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। वे निर्भीक, आशावादी, अपनी इच्छानुसार कार्य करने वाली होती हैं तथापि वे माता-पिता और बड़ों का आदर करने वाली भी होती हैं। वे अपनी आजीविका स्वयं कमाने में भी समर्थ होती है। वे अवसरों की प्रतीक्षा नहीं करतीं, वरन् स्वयं अवसरों की तलाश में निकल पड़ती हैं। उनका पारिवारिक जीवन सुखी होता है। वे पति की न केवल प्रिय होती हैं, वरन् अपने गुणों के कारण उस पर शासन भी करती हैं। फलतः परिवार के अन्य व्यक्तियों से उनकी अनबन हो ही जाती है। भरणी के चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरणः सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरण: शुक्र, चतुर्थ चरण: मंगल भरणी के विभिन्न चरणों में सूर्य भरणी के प्रथम दो चरणों में सूर्य की स्थिति शुभ मानी गयी है, जबकि शेष अंतिम दो में मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। प्रथम चरणः इस चरण में सूर्य जातक को विद्वान, उदार, व्यवहार-कुशल और भाग्यशाली बनाता है। ज्योतिष में उसकी रुचि होती है। वह चिकित्सा, पशु चिकित्सा अथवा विधि (कानून) के क्षेत्र में यशस्वी होता है। द्वितीय चरण: इस चरण में स्थित सूर्य जातक को सुख-सम्पन्न बनाता है। उसे लाटरी, विरासत या अन्य किसी कारण से अनायास ही धन प्राप्त हो सकता है। ऐसे जातक का पारिवारिक जीवन बहुत सफल, समृद्ध और सुखी होता है। उसे संतान से भी संतुष्टि मिलती है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति अच्छी नहीं मानी गयी है। यद्यपि जातक पर्याप्त संपत्ति अर्जित करता है तथापि उसे गवां भी देता है। चतुर्थ चरणः इस चरण में स्थित सूर्य जातक का बाल्यकाल दुखी और अभावग्रस्त बना देता है। यदि ऐसे सूर्य पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हुई तो जातक दरिद्र नहीं होता अन्यथा ऐसा सूर्य भीख तक मंगवा सकता है। 'भरणी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को उदार-परोपकारी बनाती है। ... ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 65 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि निर्दयी और क्रूर साथ ही परोपकारी भी बनाती है। शासन अथवा राजनीति में उसे प्रभावपूर्ण पद भी प्राप्त होता है। गुरु की दृष्टि जातक को संपन्न, राजनीति में प्रसिद्ध और दानी प्रवृत्ति का बनाती है। शुक्र की स्थिति उसे धनहीन और अच्छे मित्रों से हीन बनाती है। शनि की दृष्टि जातक को आलसी बना देती है। भरणी के विभिन्न चरणों में चंद्र भरणी के प्रथम तीन चरणों-प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण में चंद्र की स्थिति शुभ फल देती है। चतुर्थ चरण स्थित चंद्रमा अशुभ माना गया है। प्रथम चरणः इस चरण में चंद्रमा जातक को बहुत धनी तो बनाता है, पर ऐसा व्यक्ति केवल वर्तमान पर ध्यान देता है, भविष्य पर नहीं, फलतः शीघ्रता से किये गये नियमों से उसे हानि भी होती है। द्वितीय चरण: इस चरण में स्थित चंद्र व्यक्ति को आजीवन सुखी बनाता है। उसे विरासत में धन भी मिल सकता है। वह सुशिक्षित होता है और विद्वानों का सामीप्य भी पाता है। तृतीय चरणः इस चरण में चंद्रमा की स्थिति अशुभ मानी गयी है। ऐसे व्यक्ति को लोग 'धूर्त' कह कर पुकारते हैं-यह स्थिति उसका अपना चरित्र ही उत्पन्न करता है। चतुर्थ चरण: इस चरण में चंद्र हो तो जातक में कुटिल बुद्धि का प्राबल्य हो सकता है। उसके जल से संबंधित कार्यों में संलग्न होने का फल भी मिलता है। भरणी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि उसे औरों का सहायक तो बनाती है पर वह क्रूर भी बन जाता है। सजा भी दे सकता है। मंगल की दृष्टि से उसे विष भय, अग्नि भय और पक्षाघात का भय होता है। वह परावलंबी भी होता है। बुध की दृष्टि शुभ होती है। जातक विद्वान, प्रसिद्ध और धनी होता है। गुरु की दृष्टि भी उसे धनी और तंदुरूस्त बनाती है। उस पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों की कृपा भी बनी रहती है। शुक्र की दृष्टि के कारण उसे अच्छी पत्नी, अच्छी संतान मिलती है। उसका जीवन सुखी रहता है। शनि की दृष्टि मिथ्याभाषी, आलसी, अभावग्रस्त और क्रूर बनाती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 66 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरणी के विभिन्न चरणों में मंगल भरणी के प्रथम तीन चरणों में स्थित मंगल शुभ फल नहीं देता । दुर्घटना भय और रोग उसे बना ही रहता है। प्रथम चरणः ऐसे व्यक्ति की मध्य आयु बतायी गयी है । वह परदेश में अल्प बीमारी के कारण नश्वर शरीर त्याग सकता है। ऐसे व्यक्ति को स्वयं कोई वाहन न चलाने का परामर्श भी दिया गया है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल की स्थिति जातक को बुद्धिमान, परिश्रमी लेकिन साथ ही क्षीणकाय, दुर्बल और चर्म रोगों का शिकार बनाती है । कामासक्ति के कारण उसे गंभीर रोग हो सकते हैं। तृतीय चरण: यहाँ मंगल की स्थिति बेहद अशुभ मानी गयी है । बाल्यकाल से पचास वर्ष तक उसका जीवन अभाव ग्रस्त तथा घोर विपन्नता से बीतता है लेकिन उत्तरार्द्ध में वह सुखी-संमृद्ध होता है । चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल जातक को यौन रोगों का सफल चिकित्सक बना सकता है। कहा गया है कि भरणी के चतुर्थ चरण में स्थित मंगल जातक को देश के उच्चतम पद पर आसीन भी करवा सकता है। भरणी स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को धनी-मानी, विनम्र और बुद्धिमान बनाती है । चंद्रमा की दृष्टि स्त्रियों का शौकीन और क्रूर, हृदय हीन कर देती है । बुध की दृष्टि के कारण वह प्रदर्शन-प्रिय और परस्त्रीगामी बनता है । बुध की दृष्टि जातक को प्रदर्शन-प्रिय, परस्त्रियों में आसक्त और चौर्य • वृत्ति का भी बना सकती है। गुरु की दृष्टि उसे गुस्सैल पर संपत्तिवान बनाती है। परिवार में सब उसकी बात मानते हैं । शुक्र की दृष्टि के कारण भी वह परस्त्रीगामी बनता है । तथापि वह अपने परिवार ही नहीं, समाज के प्रति अपने दायित्वों का भी निर्वाह करता है। शनि की दृष्टि उसे दुर्बल बनाती है और परिवार से विछोह का भी कारण बनता है । भरणी के विभिन्न चरणों में बुध भरणी में बुध की स्थिति आयु की दृष्टि से शुभ नहीं मानी गयी है । तीसरे चरण में दीर्घायु का फल मिलता है । प्रथम चरणः बुध की स्थिति बालारिष्ट योग बनाती है। अर्थात् जातक के बचपन में ही काल कवलित होने का भय बना रहता है तथापि यदि यह ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार 67 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योग निष्प्रभावी हो जाए तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। बुध की यह स्थिति जातक को सफल लेखक बनाती है । द्वितीय चरणः बुध जातक को मध्य आयु प्रदान करता है । वह औरो के प्रति उदार होता है, लेकिन उसकी पिता से नहीं बनती। ऐसा व्यक्ति एक साथ कई कार्य हाथ में लेता है, पर उसे उनका लाभ कम ही मिलता है। तृतीय चरणः बुध शुभ फल प्रदान करता है। ऐसा व्यक्ति विद्वान, उदार पत्नी के मामले में बेहद सौभाग्यशाली होता है। ठेकेदार और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध जातक को सरकारी नौकर ही बनाता है। ऐसा व्यक्ति इंजीनियर भी बन सकता है। 45-50 वर्ष तक उसे जीवन का सुख मिलता है । उसे मिरगी अथवा पक्षघात होने की आशंका बनी रहती है। भरणी स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि नहीं पड़ती। चंद्र की दृष्टि उसे ललित कला निपुण स्त्री - सुख से लाभान्वित तथा धन-धान्य, वाहन भवनादि से युक्त बनाती है । मंगल की दृष्टि से वरिष्ठ अधिकारियों का कृपा पात्र बनाती है। उनके कारण उसे आर्थिक लाभ भी मिलता है । मंगल की दृष्टि स्वभाव से उसे झगड़ालू बना देती है । गुरु की दृष्टि उसके जीवन को सुखी बनाती है । पत्नी अच्छी मिलती है और इसी तरह संतान भी उसे सुख - संतोष प्रदान करती है। शनि की दृष्टि के कारण वह झगड़ालू, आलसी, अनैतिक और क्रूर स्वभाव वाला बन जाता है । भरणी के विभिन्न चरणों में गुरु भरणी स्थित गुरु प्रायः शुभ फल देता है । वह जातक को सुखी-संपन्न और सफल बनाता है। प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक को सत्य- प्रिय, ओजस्वी वक्ता, लोकप्रिय व पितृभक्त बनाता है। वह किसी कारखाने या वित्तीय संस्था - विभाग प्रमुख हो सकता है। एक से अधिक पत्नी होने का योग भी बताया गया है। द्वितीय चरणः यहाँ गुरु जातक को धार्मिक विचारों का बनाता है। उसे पुत्र-पौत्रादि का सुख भी मिलता है। वह अपराध - विशेषज्ञ भी बन सकता है। तृतीय चरण: यहाँ गुरु व्यक्ति को यात्रा - प्रिय, विलासी बनाता है। वह ज्योतिष - कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार 68 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्घटनाओं का शिकार भी होता है, पर उसकी प्राण- हानि नहीं होती । वह किसी भी प्रतिस्पर्धा से सफल हो सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु जातक को कृषि कार्यों में निपुण होने के अतिरिक्त तांत्रिक-मांत्रिक भी बनाता है। ऐसा व्यक्ति चतुर और अपना काम निकालने में चतुर होता है। भरणी स्थित गुरु पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि व्यक्ति को सत्य वक्ता समाजसेवी, भाग्यशाली और प्रसिद्ध बनाती है । चंद्र की दृष्टि प्रसिद्ध, शांति-प्रिय और परोपकारी स्वभाव देती है । मंगल की दृष्टि उसे निर्मम, अपकारी बनाती है किंतु उसके अधीन व्यक्ति कार्य करते हैं। बुध की दृष्टि का फल अशुभ है। ऐसा व्यक्ति झगड़ालू, मिथ्याभाषी और प्रदर्शन प्रिय होने के साथ-साथ स्त्रियों का विलासी होता है। शुक्र की दृष्टि उसे जीवन में हर सुख प्रदान करती है। उसे स्त्री-सुख, शैय्या सुख, वाहन, निजी मकान का सुख मिलता है । शनि की दृष्टि दुर्भाग्य सूचक मानी गयी है । वह जातक को पत्नी और संतति सुख से वंचित रखती है। ऐसा व्यक्ति क्रूर हृदय और सदैव सलाह देने वाला होता है । भरणी के विभिन्न चरणों में शुक्र भरणी में शुक्र की स्थिति के प्रायः शुभ फल मिलते हैं पर ऐसे व्यक्तियों को नेत्र रोग की अथवा नेत्रों के ऊपर चोट लगने की आशंका बलवती होती है। प्रथम चरणः यहाँ शुक्र व्यक्ति को संगीतज्ञ, ओजस्वी वक्ता और सबका प्रिय बनाता है। ऐसा व्यक्ति भोग-विलास का भी शौकीन होता है । उसे आँख के ऊपर चोट लगने का भय होता है। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र व्यक्ति को विलासी और परस्त्रीगामी बनाता है । उसे गुप्त रोग भी हो सकते हैं । यहाँ आँखों के ऊपर चोट लगने का भय होता है । I तृतीय चरणः यहाँ शुक्र के कारण बेहद सुंदर पत्नी मिलती है। ऐसा व्यक्ति कर्त्तव्यनिष्ठ भी होता है। यहाँ भी आँखों के ऊपर चोट लगने के संकेत बतलाये गये हैं । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र-विचार 69 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को प्रवासी और धार्मिक बनाता है । अक्सर वह मठ-मंदिर या गिरजाघर अथवा मस्जिद में धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने में निष्णात होता है । भरणी स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि से शासन से लाभ मिलता है। उसे अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा का भी पुरस्कार मिलता है लेकिन ऐसे व्यक्ति को पत्नी के विश्वासघात का दुःख भी उठाना पड़ सकता है। चंद्रमा की दृष्टि उसे एक ओर समाज में उच्च पद दिलाती है, लेकिन परनारियों के प्रति अपनी कामासक्ति के कारण वह आलोचना का पात्र भी बनता है। मंगल की दृष्टि उसे हर सुख से वंचित एवं अवसादग्रस्त बनाती है । बुध की दृष्टि जीवन में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न करती है । गुरु की दृष्टि का फल शुभ मिलता है। उसे जीवन में प्रत्येक सुख मिलता है । पत्नी एवं संतान के मामले में ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। शनि की दृष्टि प्रायः अशुभ फल देती है लेकिन भरणी स्थित शुक्र पर शनि की दृष्टि जातक को शांतिप्रिय और उदार तथा औरों को सहायक बनाती है । पर ऐसा व्यक्ति गलत तरीकों से धनार्जन करता है I भरणी के विभिन्न चरणों में शनि भरणी के विभिन्न चरणों में स्थित शनि के लगभग शुभ फल मिलते हैं । प्रथम चरण ः यहाँ शनि जातक को धार्मिक ग्रंथों का अध्येता बनाता है। वह बुद्धिमान, मृदुभाषी और सबके आदर का पात्र होता है । द्वितीय चरण: यहाँ शनि व्यक्ति को बेहद बुद्धिमान बनाता है। उसका जीवन सुखी रहता है। तृतीय चरण: यहाँ शनि सामान्यतः परावलंबी बनाता है और उसे दो-दो पृथक अभिभावकों का संरक्षण मिलता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि के फलस्वरूप व्यक्ति का 35 वर्ष की आयु तक का जीवन संघर्षपूर्ण होता है। ऐसा व्यक्ति पुलिस अथवा सेना में सफल होता है। भरणी स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्ति पशुपालन अथवा कृषि कार्य से अर्थ लाभ करता है । वह उदार भी होता है । ज्योतिष-कौमुदी : : (खंड- 1) नक्षत्र-विचार 70 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रमा की दृष्टि का फल अशुभ है। वह उसे क्रूर और कुसंगति करने वाला बनाती है। मंगल की दृष्टि उसे कृतघ्न, अनैतिक और पग-पग पर बाधाओं का शिकार बनाती है। बुध की दृष्टि तो और भी अशुभ प्रभाव डालती है। उसके कारण व्यक्ति मिथ्याभाषी और चोर भी बन जाता है। गुरु की दृष्टि का फल शुभ है। एक ओर वह समृद्धिपूर्ण जीवन बिताता है तो दूसरी ओर राजनीति के क्षेत्र में भी सफलता पाता है। शुक्र की दृष्टि उसे यायावर बनाती है। वह कामतृप्ति के लिए बांझ स्त्रियों के पीछे भागने से भी बाज नहीं आता। भरणी के विभिन्न चरणों राहु भरणी के विभिन्न चरणों में स्थित राहु के प्रायः शुभ फल मिलते हैं। प्रथम चरणः यहाँ राहु की स्थिति जातक को शक्तिशाली, प्रसिद्ध और धनी बनाती है परंतु उसकी मृत्यु विपन्न अवस्था में होती है। द्वितीय चरण: यहाँ राहु व्यक्ति को बेहद मान-सम्मान और यश देता है। उसे चर्मरोग का भय होता है। तृतीय चरण: यहाँ राहु काव्य रचयिता बनाता है। इसमें जातक को यश भी मिलता है। पुलिस और सेना में भी उसे सफलता मिलती है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु की स्थिति व्यक्ति को उदार बनाती है। दुग्ध व्यवसाय से उसे लाभ मिलता है। भरणी के विभिन्न चरणों में केतु भरणी के प्रथम दो चरणों में केतु की स्थिति के अच्छे फल नहीं मिलते। शेष दो में केतु की स्थिति शुभ मानी गयी है। प्रथम चरणः यहाँ केतु आयु के लिए अशुभ माना गया है। द्वितीय चरणः यहाँ केतु अच्छी आयु प्रदान करता है। पर जातक को मिर्गी अथवा मस्तिष्क के किसी रोग की आशंका बनी रहती है। तृतीय चरणः इस चरण में स्थित केतु व्यक्ति को योग विद्या में पारंगत बनाता है। वह स्पर्श चिकित्सक भी होता है। चतुर्थ चरणः इस चरण में स्थित केतु दीर्घायु कारक माना गया है। ऐसा जातक आर्किटेक्ट हो सकता है। उसे चर्मरोग या गुप्त रोग का भी भय बना रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 71 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृत्तिका 1 कृत्तिका नक्षत्र राशि फल में 26.40 से 40.00 अंशों के मध्य स्थित है कृत्तिका के पर्यायवाची नाम हैं-हुताशन, अग्नि, बहुला । अरबी में इसे 'अथ थुरेया' कहते हैं । इस नक्षत्र में छह तारों की स्थिति मानी गयी है । देवता अग्नि एवं स्वामी गुरु सूर्य है । कृत्तिका प्रथम चरण मेष राशि (स्वामी : मंगल) एवं शेष तीन चरण वृष राशि (स्वामी : शुक्र) में आते हैं। गणः राक्षस, योनिः मेष एवं नाड़ी: अंत है । चरणाक्षर हैं: अ, इ, उ, ए । कृत्तिका नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद, चौड़े कंधे तथा सुगठित मांसपेशियों वाले होते हैं। ऐसे जातक अत्यंत बुद्धिमान, अच्छे सलाहकार, आशावादी, कठिन परिश्रमी तथा एक तरह हठी भी होते हैं। वे वचन के पक्के तथा समाज की सेवा भी करना चाहते हैं । वे येन-केन-प्रकारेण अर्थ, यश नहीं प्राप्त करना चाहते, न तो अवैध मागों का अवलंबन करते हैं, न किसी की 'दया' पर आश्रित रहना चाहते हैं । उनमें अहं कुछ अधिक होता है, फलतः वे अपने किसी भी कार्य में कोई त्रुटि नहीं देख पाते। वे परिस्थितियों के अनुसार ढलना नहीं जानते । तथापि ऐसे जातक का सार्वजनिक जीवन यशस्वी होता है। लेकिन अत्यधिक ईमानदारी भरा व्यवहार उनके 'पतन' का कारण बन जाता है। ऐसे जातकों को सत्तापक्ष से लाभ मिलता है। वे चिकित्सा या इंजीनियरिंग के अलावा ट्रेजरी विभाग में भी सफल हो सकते हैं, विशेषकर सूत निर्यात, औषध या अलंकरण वस्तुओं के व्यापार में । सामान्यतः जन्मभूमि से दूर ही उनका उत्कर्ष होता है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार 72 . Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी बीतता है। पत्नी गुणवती, गृह कार्य में दक्ष तथा सुशील होती है। प्रायः उनकी पत्नी उनके परिवार की पूर्व परिचित ही होती है। प्रेम-विवाह के भी संकेत मिलते हैं। ऐसे जातकों का स्वास्थ्य भी सामान्यतः ठीक ही रहता है तथापि उन्हें दंत-पीड़ा, नेत्र-विकार, क्षय, बवासीर आदि रोग जल्दी ही पकड़ सकते हैं। कृत्तिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं मध्यम कद की बहुत रूपवती तथा साफ-सफाई पसंद होती हैं। वे अनावश्यक रूप से किसी से 'दबना' पसंद नहीं करतीं, फलतः जाने-अनजाने उनका स्वभाव कलह पैदा करने वाला बन जाता है। उनमें संगीत, कला के प्रति रुचि होती है तथा वे शिक्षिका का कार्य बखूबी कर सकती हैं। कृत्तिका के प्रथम चरण में जन्मी जातिकाएं उच्च अध्ययन में सफल होती हैं तथा प्रशासक, चिकित्सक, इंजीनियर आदि भी बन सकती हैं। . कृत्तिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन पूर्णतः सुखी नहीं रह पाता। पति से विलगाव या कभी-कभी प्रजनन क्षमता की हीनता भी इसका एक कारण हो सकती है। कृत्तिका के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं: प्रथम एवं चतुर्थ चरण-गुरु, द्वितीय एवं तृतीय चरण-शनि। कृत्तिका नक्षत्र में सूर्य के फल कृत्तिका के द्वितीय चरण में ही सूर्य की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं। प्रथम चरणः अन्य शुभ ग्रहों की युति हो तो अधिक संतानें तथापि दरिद्र जीवन। सेना या पुलिस विभाग में सेवा के अवसर। जातक की ज्योतिष शास्त्र में भी रुचि होती है। द्वितीय चरणः सुखी जीवन के संकेत। जातक दीर्घायुष्य एवं संतति सुख से पूर्ण होता है। जातक की संगीत में भी रुचि होती है। प्रौढ़ावस्था के बाद संपन्नता के अवसर। तृतीय चरणः सूर्य की स्थिति यहाँ शुभ नहीं होती। जातक को दरिद्रतापूर्ण जीवन बिताना पड़ता है। कोई रोग भी घेर सकता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी सूर्य की स्थिति अच्छे फल नहीं देती। जातक क्रूर--मना, गैर-जिम्मेदार तथा दुर्बल स्वास्थ्य वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 73 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृत्तिका स्थिति सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि मंगल की दृष्टि हो तो जातक साहसी, रणनीति-निपुण एवं धनी तथा यशस्वी होता है । बुध की दृष्टि उसे संगीत में निपुण बनाती है । जातक का व्यक्तित्व आकर्षक एवं जीवन सुखी होता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक परिवार में श्रेष्ठ तथा राजनीति में हो तो बेहद सफल हो मंत्रीपद तक पहुँच सकता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सुंदर व्यक्तित्व वाला तथा यशस्वी होता है। शनि की दृष्टि शुभ फल नहीं देती। जातक का जीवन कलह से भरा होता है । स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता । कृत्तिका नक्षत्र में चंद्र प्रथम चरण: यहाँ चंद्र हो तो जातक को स्त्रियों से कष्ट मिलता है । उसकी मंत्र शास्त्र एवं टोने-टोटकों में भी रुचि होती है । द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं । जातक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, विद्वानों की संगति करने वाला तथा शक्ति संपन्न होता है। तृतीय चरण: यहाँ चंद्र हो तो जातक लंबा, चतुर तथापि अभावों से घिरा रहता है । चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं । जातक अत्यंत विद्वान तथा विभिन्न विषदों का ज्ञाता होता है। कृत्तिका स्थिति चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक भूस्वामी तथा धनी होता है। उसे कृषि कार्य से लाभ मिलता है । मंगल की दृष्टि कामाधिक्य की सूचना देती है। फलस्वरूप उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बुध की दृष्टि से जातक बुद्धिमान, उदार एवं परोपकार में रत होता है। गुरु की दृष्टि के भी ऐसे ही शुभ फल मिलते हैं । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक का जीवन सुखी बीतता है । शनि की दृष्टि अशुभ सिद्ध होती है। यदि द्वितीय चरण स्थित चंद्र पर शनि की दृष्टि हो तो उसे माता के लिए घोर अशुभ कहा गया है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 74 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृत्तिका नक्षत्र स्थित मंगल प्रथम चरण: यहाँ मंगल जातक को तार्किक एवं प्रशासनिक क्षमता से युक्त करता है फलतः वकालत, सेना या पुलिस सेवा में उसे विशेष सफलता प्राप्त हो सकती है। मंगल एवं सूर्य की महादशाओं, अंतर्दशाओं में जातक शीर्षस्थ पद पर पहुँचने के लिए संघर्ष तेज करता है। जातक में पर-स्त्रियों के प्रति आसक्ति पायी जाती है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक उदार, बेहतर मेहमान-नवाज तथापि प्रतिहिंसा की भावना से भी युक्त होता है। तृतीय चरणः यहाँ मंगल जातक को सत्तापक्ष से अधिकाधिक लाभान्वित करवाता है। वह इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी जा सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल स्थित हो तो जातक जीवन में संपूर्ण सुखों का भोग करता है। विवाह के बाद जीवन तपस्वी होता है। बच्चे भी आज्ञाकारी और कर्तव्यनिष्ठ होते हैं। जातक औषध या विस्फोटक सामग्री के विक्रय से विशेष लाभान्वित होता है। कृत्तिका स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो पत्नी लोभी मिलती है। जातक की वन प्रांतर में रहने की प्रवृत्ति होती है। __चंद्र की दृष्टि जातक को मातृ विरोधी बना देती है। बहुपत्नीत्व के भी संकेत कहे गये हैं। ___ बुध की दृष्टि जातक को धार्मिक, मितभाषी, धनी एवं ललितकला प्रिय बनाती है। गुरु की दृष्टि भी जातक को संगीत एवं ललित कलाओं में निपुण बनाती है। जातक की परिवार में घोर आसक्ति होती है। शुक्र की दृष्टि से जातक सैन्य सेवा में उच्च पद पर कार्य करता है। शनि की दृष्टि भी शुभ फल देती है। जातक धनी, स्वस्थ एवं सबके आदर का पात्र बनता है। कृत्तिका नक्षत्र स्थित बुध के फल प्रथम चरणः इस चरण में बुध हो तो जातक शासकीय सेवा में रत रहता है। व्यवसाय में हो तो उसे सत्तापक्ष से लाभ मिलता है। जातक समाज में भी आदर पाता है। उसमें ललित कलाओं एवं अभिनय के प्रति भी रुचि होती है। वह सुरा-सुंदरी का भी शौकीन होता है। - ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 75 . Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: इस चरण में बुध हो तो जातक हष्ट-पुष्ट, धनी तथा प्रसन्नचित्त होता है । एकाधिक विवाह के योग भी मिलते हैं। चालीस वर्ष की अवस्था के बाद जातक में संन्यास के प्रति रुझान बढ़ सकता है 1 तृतीय चरण: यहाँ स्थित बुध शुभ फल देता है। जातक दृढ़ निश्चयी और जीवन में व्यावहारिक बुद्धि से काम लेता है। शनि के साथ बुध की युति जातक को वैज्ञानिक एवं बौद्धिक ज्ञान अर्जन के लिए प्रवृत्त करती है । चतुर्थ चरणः इस चरण में बुध जातक को व्यावहारिक, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं सौंपी गयी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने वाला बनाता है। जातक में नेतृत्व के भी गुण होते हैं । पुत्रों की संख्या ज्यादा होती है । कृत्तिका नक्षत्र स्थित बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता । जातक के दरिद्र एवं रोगमुक्त होने के फल कहे गये हैं । चंद्र की दृष्टि जातक को कठोर परिश्रमी, धनी एवं प्रसिद्ध बना देती है । मंगल की दृष्टि अशुभ फल देती है। जातक के सत्ता पक्ष से दंडित होने की आशंका रहती है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है । जातक बुद्धिमान एवं नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है। दृष्टि जातक में स्त्रियों के प्रति विशेष आकर्षण पैदा शुक्र की करती है । शनि की दृष्टि पारिवारिक जीवन को दुःखमय बनाती है । पत्नी एवं संतानों से कलह होती रहती है। कृत्तिकास्थित गुरु के फल प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक को ज्ञान-पिपासु बनाता है। जातक शुद्ध हृदय एवं यात्रा - प्रिय भी होता है। वह जीवन जीना जानता है। एक ओर उसकी इतिहास एवं साहित्य के अध्ययन में रुचि होती है तो दूसरी ओर सुरा - सुंदरी का सेवन भी उसे भाने लगता है । द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक को लंबे कद का, मातृभक्त तथा धार्मिक कार्यों के कारण प्रसिद्धि दिलाता है। युवतियों के प्रति वह एक विशेष कमजोरी लिए होता है। तृतीय चरण: यहाँ गुरु हो तो जातक का व्यक्तित्व भव्य होता है । वह ज्योतिषकौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार 76 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुशासन-प्रिय, परामर्श देने में कुशल तथा लोगों का स्नेह एवं आदर अर्जित करता है। __चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु हो तो जातक न्यायप्रिय होता है। पत्नी भी कामकाजी मिलती है। कृत्तिका स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को रणकौशल प्रदान करती है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक सत्यनिष्ठ एवं सौभाग्यशाली होता है। मंगल की दृष्टि हो तो जातक ललित कलाओं के क्षेत्र में सम्मान पाता है। नौकरशाही से लाभ होता है। बच्चे भी अच्छे होते हैं। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप जातक मंत्र सिद्धि कर सकता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक जीवन में तमाम सुखों का उपभोग करता है। शनि की दृष्टि भी शुभ फल देती है। पत्नी एवं बच्चों से उसे पूर्ण सुख मिलता है। जातक समाज में भी आदर पाता है। कृत्तिका नक्षत्र स्थित शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक में नारी सुलभ एवं जातिका में पुरुषोचित्त शरीर का भास कराता है। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता। । प्रथम चरण स्थित शुक्र पर सूर्य की दृष्टि शीघ्र विवाह एवं विरासत में लाभ मिलने का संकेत करती है। किसी जातिका की कुंडली में प्रथम चरण में स्थित शुक्र पर चंद्र की दृष्टि अधिक संततियों का योग दर्शाती है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र हो तो जातक नौसेना या समुद्र से संबद्ध किसी कार्य में संलग्न होता है। - तृतीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को उदार एवं कला तथा अभिनय प्रेमी बनाता है। एकाधिक पत्नियों के भी योग कहे गये हैं। . चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को संगीत या कलाओं के माध्यम से धन उपलब्ध कराता है। उसकी अभिनय में भी रुचि होती है। अनायास विरासत से लाभ के भी संकेत मिलते हैं। कृत्तिका स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक सौभाग्यशाली तथा स्त्रियों से सुख पाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 77 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि जातक में कामभावना बढ़ाती है। यों जातक शुद्ध हृदय तथा परिवार में प्रतिष्ठित होता है। . मंगल की दृष्टि का अशुभ फल होता है। जातक सुखों से वंचित रहता है। बुध की दृष्टि हो तो व्यक्तित्व आकर्षक एवं स्वभाव साहसी होता है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक को सभी सुख मिलते हैं। शनि की दृष्टि का फल ठीक नहीं होता। जातक दुर्बल स्वास्थ्य वाला तथा परिवार की प्रतिष्ठा का नाशक कहा गया है। कृत्तिका नक्षत्र स्थित शनि के फल प्रथम चरण: यहाँ शनि हो तो जातक का प्रारंभिक जीवन दुःखी लेकिन बाद की जिंदगी सुखी,होती है। जातक पिता के प्रति आदरभाव नहीं रखता। उसे विभिन्न रोग भी घेर सकते हैं-जैसे अपच से संबंधित रोग। जातक में ईर्ष्या भी कुछ अधिक होती है। द्वितीय चरण: यहाँ शनि आजीवन असंतुष्ट रखता है। पारिवारिक जीवन भी दुखी रखता है। जातक अपने से बड़ी आयु की स्त्री से विवाह करता है या यौन संबंध रखता है। तृतीय चरणः यहाँ शनि हो तो जातक को कृषि कार्य से लाभ होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ स्थित शनि पर यदि चंद्र की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों के सहयोग से सफलता एवं धन अर्जित करता है। जातिकाओं के बारे में ऐसी दृष्टि उन्हें असुंदर एवं चरित्रहीनता की सीमा तक ले जाने वाली कही गयी है। कृत्तिका नक्षत्र स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक शांतिप्रिय, व्यवहार चतुर तथापि पराश्रित होता है। चंद्र की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी एवं सत्तापक्ष एवं स्त्रियों की संगति से लाभान्वित होता है। ___ मंगल की दृष्टि जातक को सुखी तथापि वाचाल बनाती है। बुध की दृष्टि स्त्रियों में जातक की आसक्ति बढ़ाती है। वह कुसंगति का भी शिकार हो सकता है। गुरु की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक परोपकारी तथा समाज में समादृत होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 78 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्र की दृष्टि जातक को सभी सुख एवं आमोद-प्रमोद के साधन उपलब्ध कराती है। जातक सत्ता पक्ष के भी निकट होता है। कृत्तिका नक्षत्र में स्थित राह के फल प्रथम चरण: यहाँ राहु हो तो जातक बुद्धिमान, तंदुरूस्त तथापि अत्यधिक कामी होता है। विवाह के बाद भी वह अनेक स्त्रियों से संबंध रखता है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु जातक को आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाला बना देता है। तथापि जीवन संपन्नता से शून्य होता है। जातक की पर स्त्रियों में भी आसक्ति होती है। ___ तृतीय चरण: यहाँ राहु जातक को घोर आलसी फलतः दरिद्र बनाये रखता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी राह शुभ फल नहीं देता। जातक बेहद गैर-जिम्मेदार तथा पारिवारिक दायित्व का भी वहन न करने वाला होता है। कृत्तिका नक्षत्र स्थित केतु के फल . _प्रथम चरण: इस चरण में केतु हो तो जातक के नौकरी-जीवन में समस्याएं ही बनी रहती हैं। उसे निराशा का भी सामना करना पड़ता है। द्वितीय चरण: इस चरण में केतु हो तो जातक घर से दूर जीवन बिताता है। संपत्ति से शून्य ऐसे जातक की स्त्रियों में भी गहरी रुचि बनी रहती है। तृतीय चरण: इस चरण में केतु सट्टे-फाटके में हानि करवाता है। सत्ता पक्ष से दंडित होने का भी भय बना रहता है। चतुर्थ चरणः इस चरण में केतु हो तो जातक को नौकरी में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। विवाह विलंब से होता है। हुआ भी तो परेशानियां ही बढ़ती हैं। तथापि जातक सुख-सुविधापूर्ण जीवन बिताने में सफल रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 79 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहिणी राशिफल में रोहिणी नक्षत्र 40.00 अंशों से 53.20 अंशों के मध्य स्थित हैं। रोहिणी के पर्यायवाची नाम हैं-विधि, विरंचि, शंकर । अरबी में इसे अल्दे वारान कहते हैं । रोहिणी नक्षत्र के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। कहीं उसे कृष्ण के अग्रज बलराम की मां कहा गया है तो कहीं लाल रंग की गाय । उसे कश्यप ऋषि की पुत्री, चंद्रमा की पत्नी भी माना गया है। रोहिणी की आकृति स्थ की भांति आंकी गयी है । उसमें कितने तारे हैं, इस विषय मतभेद हैं। सामान्यतः रोहिणी नक्षत्र में पांच तारों की स्थिति मानी गयी है । दक्षिण भारत के ज्योतिषी रोहिणी में बियालिस तारों की उपस्थिति मानते हैं। उनके लिए रोहिणी वट वृक्ष स्वरूप का है। यह नक्षत्र वृष राशि (स्वामी शुक्र) के अंतर्गत आता है रोहिणी के देवता ब्रह्मा हैं और अधिपति ग्रह - चंद्र | गणः मनुष्य, योनिः सर्प व नाड़ीः अंत्या | चरणाक्षर हैं- ओ, वा, वी, वू रोहिणी नक्षत्र में जातक सामान्यतः छरहरे, आकर्षक नेत्र एवं चुम्बकीय व्यक्तित्व वाले होते हैं। वे भावुक हृदय होते हैं और अक्सर भावावेग में ही निर्णय करते हैं। उन्हें तुनुकमिजाज भी कहा जा सकता है और उनका हठ लोगों को परेशान कर देता है। उनमें आत्म- लुब्धता की भावना भी होती है । वे औरों पर तत्काल भरोसा कर लेते हैं और धोखा भी खाते हैं । लेकिन यह सब उनकी सत्यनिष्ठता में कोई कमी नहीं लाता । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 80 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जातक वर्तमान में ही जीते हैं, कल की चिंता से सर्वथा मुक्त । उनका जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहता है । वे हर कार्य निष्ठा से संपन्न करना चाहते हैं, पर अधैर्य उन्हें कोई भी कार्य पूरा नहीं करने देता । उनकी ऊर्जा बंट-सी जाती है। वे एक को साधने की बजाय सबको साधने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसे जातकों को यह उक्ति याद रखनी चाहिए कि T एक ही साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ! यदि वे अधैर्य त्याग कर संयमित होकर कार्य करें तो जीवन में यशस्वी भी हो सकते हैं। युवावस्था उनके लिए सतत् संघर्ष लेकर आती है। आर्थिक समस्याओं के अतिरिक्त स्वास्थ्य की गड़बड़ी भी उन्हें परेशान किये रहती है । अड़तीस वर्ष की अवस्था के बाद ही जीवन में स्थिरता आती है । ऐसे जातक माता के प्रति विशेष आसक्त होते हैं। मातृपक्ष से ही उन्हें लाभ भी होता है। पिता की ओर से उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं होता । ऐसे जातकों में यह भी देखा गया है कि जरूरत पड़ने पर वे तमाम रीति-रिवाजों और मान्यताओं को तिलांजलि भी देते हैं। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन भी विशेष सुखद नहीं बताया गया है। रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक रक्त संबंधी विकारों के शिकार हो सकते हैं- यथा रक्त का मधुमेह आदि । रोहिणी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं भी सुंदर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं। वे सद्-व्यवहार वाली होती हैं तथापि प्रदर्शन - प्रिय भी, रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातकों की तरह वे भी तुनुक - मिजाजी के कारण दुःख उठाती हैं। वे व्यवहारिक होती हैं, अतः वे थोड़े से प्रयत्न से अपनी इस आदत पर काबू पा सकती हैं। ऐसी जातिकाएं प्रत्येक कार्य को भली भांति करने में सक्षम होती हैं । फलतः उनका पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। लेकिन पूर्ण वैवाहिक एवं पारिवारिक सुख प्राप्त करने के लिए उन्हें अपने ही स्वभाव पर अंकुश लगाने की सलाह दी जाती है । ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी मंगल, द्वितीय चरण का शुक्र, तृतीय चरण का बुध एवं चतुर्थ चरण का स्वयं चंद्र होता है । रोहिणी नक्षत्र में सूर्य की स्थिति के फल प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक के बुद्धिमान, व्यवहार कुशल और ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार 81 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेश-भूषा के प्रति ज्यादा सतर्क होने की सूचना देता है। जातक को पशुपालन से लाभ होता है। द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य हो तो व्यक्तित्व आकर्षक होता है। जातक तेल संबंधी व्यवसाय से जुड़ सकता है। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य जातक को समाजसेवी एवं यशस्वी बनाता है । तथापि उसे आर्थिक अभाव बना रहता है । चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य जातक को शासकीय सेवा में ले जाता है । उसे यात्राएं भी करनी पड़ सकती हैं। रोहिणी नक्षत्र स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि. जातक को जल संबंधी व्यवसाय कार्य से जोड़ती है । मंगल की दृष्टि उसे धनी एवं यशस्वी बनाती है। जातक सेना से जुड़ सकता है। बुध की दृष्टि उसे परिवार में, समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। उसके जितने मित्र होते हैं, उतने ही शत्रु भी होते हैं। गुरु की दृष्टि हो तो जातक परिवार एवं समाज में भी प्रमुख होता है । सामाजिक मान-सम्मान, यश से युक्त जातक सत्ता पक्ष से भी लाभ पाता है । शनि की दृष्टि हो तो आर्थिक अभाव एवं खराब स्वास्थ्य की सूचना मिलती है। रोहिणी नक्षत्र में चंद्र के फल प्रथम चरणः यहाँ चंद्र हो तो जातक मिष्टभाषी, स्नेहिल व्यवहार वाला एवं धनी होता है । द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र जातक की संगीत एवं अन्य ललित कलाओं में रुचि बढ़ाता है । शिक्षा में व्यवधान, आवास-परिवर्तन के भी फल कहे गये हैं। 1 तृतीय चरणः यहाँ चंद्र हो तो जातक को सुंदर स्त्रियों का सान्निध्य मिलता है। जातक बुद्धिमान, आकर्षक व्यक्तित्व वाला तथापि भीरू भी होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र जातक को सत्यनिष्ठ बनाता है। रत्न संबंधी व्यापार- कार्य में उसे विशेष सफलता मिलती है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ॥ 82 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहिणी नक्षत्र स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि से कृषि कार्यों से लाभ होता है। वह धनी एवं गुह्य विधाओं में रुचि रखता है। मंगल की दृष्टि हो तो जातक सत्यवादी, समादृत तथापि विपरीत योनि वालों के प्रति आकर्षण का अनुभव करता ही रहता है । बुध की दृष्टि हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमान तथा जीवन में सफल रहता है गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक धार्मिक वृत्ति का उत्तरदायित्वों की पूर्ति करने वाला होता है। शुक्र की दृष्टि जातक को सभी भौतिक सुख प्रदान करती है। शनि की दृष्टि हो तो जातक को मातृ-स्नेह से वंचित रहना पड़ सकता है। पिता से भी कोई लाभ नहीं मिलता । रोहिणी नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरणः जातक मधुरभाषी एवं वाद्य संगीत में रुचि रखता है । द्वितीय चरणः जातक प्रतिरक्षा सेवाओं में जा सकता है। यदि सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो यह स्थिति दूसरी बनती है । तृतीय चरण: मंगल जातक को साहसी एवं विद्वान बनाता है। चतुर्थ चरणः जातक धनी एवं सुरा - सुंदरी का शौकीन होता है। वह अवैध मार्गों से धन कमाने में भी नहीं हिचकता । रोहिणी स्थित मंगल पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक पर्वतीय प्रदेशों में रहना पसंद करता है । वह पत्नी को सुख नहीं दे पाता । चंद्र की दृष्टि जातक को स्त्रियों का सुख प्राप्त कराती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक शास्त्रों का ज्ञाता, धनी तथापि कलहप्रिय होता है । गुरु की दृष्टि जातक को संगीत आदि कलाओं में निष्णात तथा सहृदय, परोपकारी बनाती है। शक्र की दृष्टि हो तो जातक प्रसिद्ध राजनेता बन सकता है। शनि की दृष्टि के अच्छे फल मिलते हैं । जातक विद्वान एवं ग्राम या नगर का प्रमुख का पद संभाल सकता है । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र - विचार ■ 83 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहिणी स्थित बुध के फल प्रथम चरणः जातक चतुर एवं धनी होता है। पत्नी सुशील, सुसंस्कृत होती है। द्वितीय चरण: जातक को वेदों का ज्ञाता, विद्वान तथा प्रसिद्ध बनाता है। उसके विवाहपूर्व भी यौन-संबंध हो सकते हैं। तृतीय चरण: जातक दृढ़ स्वभाव वाला, कामुक वृत्ति का होता है। चतुर्थ चरण: बुध संबंधियों से लाभ का कारक बनता है। रोहिणी स्थित बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि स्वास्थ्य के लिए अशुभ मानी गयी है। जातक अभावग्रस्त तथापि परोपकारी होता है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक परिश्रमी, धनी, सत्तापक्ष के निकट होता है। मंगल की दृष्टि से उसे सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक बुद्धिमान, धनी, नेतृत्व के गुण वाला होता है। शुक्र की. दृष्टि जातक को कामासक्त बनाती है। शनि की दृष्टि हो तो जातक को परिवार से मानसिक पीड़ा होती है। रोहिणी नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरणः यहाँ गुरु हो तो जातक सत्यनिष्ठ और दर्शनशास्त्र में गहरी दिलचस्पी रखने वाला होता है। ऐसा जातक हमेशा अच्छे लोगों की संगति करता है। उसका जीवन भी पूर्णतः सुखी रहता है, अच्छी पत्नी, सुयोग्य संतान। जातक में नेतृत्व के भी गुण होते हैं। जातक प्रशासन, संगठन में कुशल एवं यशस्वी होता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु हो तो धार्मिक प्रवृत्ति का, पितृ-भक्त, सद्गुणी, सत्यनिष्ठ होता है। दो पत्नियों का योग भी बताया गया है। ऐसे जातकों को अस्थमा पैदा करने वाले वातावरण से दूर रहना चाहिए। तृतीय चरण: यहाँ गुरु हो तो विपरीत फल मिलते हैं। जातक अपनी कामवासना की पूर्ति में ऊंच-नीच का भेद नहीं करता। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु की उपस्थिति अनेक यात्राओं का योग दर्शाती है। बत्तीस वर्ष की आयु तक जीवन संघर्षमय व आर्थिक तनावों से भरा होता है। इसके बाद किसी सहृदय की सहायता से वह जीवन में संपूर्ण सफलता प्राप्त करता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 84 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहिणी नक्षत्र स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक के प्रतिरक्षा सेनाओं में जाने के संकेत मिलते हैं। ___ चंद्र की दृष्टि जातक को सत्यनिष्ठा से भरपूर, सहृदय और परोपकारी बनाती है। ___ मंगल की दृष्टि परिवार का पूर्ण सुख प्रदान करती है। अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चे। उसे सत्ता पक्ष से भी लाभ मिलता है। बुध की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक तथा वह राजनीति में सफलता प्राप्त करता है। शुक्र की दृष्टि जातक को धनी, सौभाग्यशाली और दरिद्रों की सहायता में प्रवृत्त करती है। ___ शनि की दृष्टि हो तो जातक धनी, यशस्वी होता है। राजयोग के भी फल मिलते हैं। रोहिणी नक्षत्र में शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ शुक्र हो तो जातक धनी, सभी सुविधाओं से पूर्ण जीवन बिताता है। तथापि पैंतीस वर्ष की अवस्था तक उसे पारिवारिक कलह से त्रस्त रहना पड़ता है। समय के साथ स्थितियों में सुधार आता है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र जातक की ललित कलाओं, विशेषकर संगीत में रुचि बढ़ाता है। उसमं लेखन एवं अभिनय के गुण भी होते हैं। जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र जातक की कामवासना में घोर वृद्धि करता है। फलतः उसे बाद में तरह-तरह के शोषण का शिकार होना पड़ता है। उसे गुप्त रोग भी हो सकते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र हो तो जातक की पत्नी बेहद सुंदर तथा उसके कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। रोहिणी नक्षत्र स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि । . सूर्य की दृष्टि हो तो जातक को स्त्रियों से लाभ होता है तथापि वैवाहिक जीवन में अशांति ही भरी होती है। ___ चंद्र की दृष्टि हो तो जातक मृदुभाषी, परिवार में श्रेष्ठ तथापि कामवासना से पीड़ित रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 85 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि जातक को क्रूर हृदय बनाती है। उसका जीवन भी अभावमय बीतता है। बध की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक एवं स्वभाव शांतिप्रिय होता है। गुरु की दृष्टि हो तो जीवन सुखी, सुविधाओं से युक्त कहा गया है। शनि की दृष्टि स्वास्थ्य खराब रखती है। जीवन भी अभावमय बीतता है। रोहिणी नक्षत्र स्थित शनि के फल ___ प्रथम चरणः यहाँ शनि हो तो जातक धार्मिक प्रवृत्ति का, सुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है। तथापि उसमें जुआरीपन की प्रवृत्ति भी हो सकती है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि हो तो जातक को पशुपालन से लाभ होता है। तृतीय चरणः यहाँ शनि को शुभ फल देने वाला कहा गया है। जातक अत्यंत बुद्धिमान तथा मृदुभाषी धार्मिक विषयों में शोध-कर्ता होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि हो तो जातक सत्ता पक्ष के निकट होता है। वह स्वयं भी राजनीति में जाकर धनी एवं यशस्वी हो सकता है। पशु पालन से भी उसे लाभ होता है। रोहिणी नक्षत्र स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि दरिद्रता से भरे जीवन का संकेत करती है। चंद्र की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी, बलिष्ठ तथा सत्ता पक्ष से सम्मान पाता है। मंगल की दृष्टि जातक को सामान्य धनी तथा वाचाल बनाती है। बुध की दृष्टि जातक की काम-पिपासा में घोर वृद्धि करती है। वह पशु की तरह व्यवहार कर सकता है। गुरु की दृष्टि उसे परोपकारी, रोगियों की सेवा करने वाला बनाती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक रत्नों के व्यापार से लाभ उठा सकता है। वह सुरा-सुंदरी का भी शौकीन होता है। रोहिणी नक्षत्र स्थित राहु के फल प्रथम चरण: यहाँ राहु हो तो जातक छरहरे बदन का निर्भीक मानस वाला होता है। उसे वायु विकार होता है एवं अपच की आशंका बनी रहती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 86 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरणः यहाँ राहु अत्यंत शुभ फल देता है। जातक शक्ति संपन्न, असाधारण रूप से ख्यात तथा समाज में समादृत होता है। . तृतीय चरणः यहाँ राहु सर्वथा विपरीत फल देता है। इस चरण में राहु हो तो जातक अभावग्रस्त जीवन बिताता है। वह जल प्रदूषण से होने वाले रोगों का जल्दी शिकार हो सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु हो तो जातक में काव्य प्रतिभा होती है। भले वह आधुनिक अर्थ में 'सुशिक्षित न हो तथापि अपने काव्य के कारण प्रसिद्ध भी होता है। ऐसे जातकों को यात्राओं के समय दुर्घटनाग्रस्त हो जाने का अंदेशा बना रहता है। रोहिणी नक्षत्र स्थित केतु के फल प्रथम चरण: यहाँ केतु हो तो जीवन परावलम्बी होता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु हो तो बचपन में दृष्टि दोष की आशंका बनी रहती है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को अध्यापन के पेशे से जोड़ता है। पत्नी खर्चीले स्वभाव की होती है। चतुर्थ चरण: यहाँ केतु के अच्छे फल मिलते हैं। जातक वेदाभ्यासी, विद्वान, तार्किक एवं तंत्र-मंत्र विशारद होता है। ऐसे जातक आयुर्वेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में भी सफल होते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 87 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगशिर राशि पथ में 53.20 अंशों से 66.40 अंशों के मध्य मृगशिरा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। अरबी में उसे 'अल अकाई' कहते हैं। इसके अन्य पदाधिकारी नाम हैं- सौम्य, चंद्र, अग्रहायणी, उडुप । चंद्रमा को इस नक्षत्र का देवता तथा मंगल को इसका अधिपति ग्रह माना जाता है। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं जिन्हें हिरण अर्थात् मृग के सिर की तरह कल्पित किया गया है। इसके साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई । ब्रह्मा ने जब मृग का रूप धर कर अपनी बेटी रोहिणी का पीछा किया तो इस अपराध के कारण उनका सिर काट दिया गया। यही कटा सिर मृग शिर नक्षत्र के रूप में है । लोकमान्य तिलक के अनुसार इस नक्षत्र का नाम अग्रहायणी इसलिए पड़ा कि वैदिक युग में वसंत सपांत बिंदु इस नक्षत्र के मध्य पड़ता था, अतः इसका नाम अग्रहायणी पड़ा । इस नक्षत्र के प्रथमं दो चरण वृष राशि के अंतर्गत आते हैं और अंतिम दो चरण मिथुन राशि में । वृष का स्वामी शुक्र है, मिथुन का बुध । गणः देव, योनिः सर्प एवं नाड़ी: मध्य है । चरणाक्षर हैं- बे, बो, क, की । मृगशिर नक्षत्र में जन्मे जातक बलिष्ठ, सुंदर, लंबे कंद के होते हैं । ऐसे जातक सरल प्रवृत्ति के, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय तथा राय देने में हमेशा ईमानदारी बरतते हैं। वे सुशिक्षित तथा विभिन्न कार्यों को करने में सक्षम ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 88 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होते हैं। तथापि उनका एक दोष यह है कि वे किसी पर विश्वास नहीं करते। सदैव संशय से घिर रहते हैं। और कहा गया है-'संशयात्मा विनश्यति।' फल यह होता है कि अक्सर लोग भी ऐन वक्त पर उन्हें धोखा दे जाते हैं। संशय की प्रवृत्ति ऐसे जातकों को भीतर से भीरु भी बना देती है। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सामान्यतः सुखी बीतता है, किंतु पत्नी के सदैव रोगिणी रहने के फल भी कहे गये हैं। जातक का वैवाहिक जीवन यों तो सुखी बीतता है तथापि उसके संशयपूर्ण तथा हठी स्वभाव के कारण संबंध कुछ समय के लिए तनावपूर्ण भी हो सकते हैं। ऐसे जातकों का बचपन में रुग्ण होना बताया गया है। निरंतर कब्ज के कारण उन्हें उदर रोग भी हो सकते हैं। मृगशिर नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं छरहरी, तीखे नयन-नक्श वाली तथा अत्यंत बुद्धिमती होती हैं। उनमें सदैव सर्तकता, हाजिर जवाबी भी रहती है तथापि उनकी वाणी का व्यंग्य लोगों को तिलमिला देता है। ऐसी जातिकाओं की शिक्षा भी अच्छी होती है तथा वे मैकेनिकल या इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रानिक्स आदि क्षेत्रों में भी सफल हो सकती हैं। ऐसी जातिकाओं में समाज सेवा की भावना भी होती है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। भले विवाह पूर्व उनके प्रणय संबंध रहे हो, विवाह के बाद ये पति के प्रति एकनिष्ठ रहती हैं। ऐसी जातिकाओं को अपने मासिक धर्म में आने वाले दोषों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अन्यथा वे तरह-तरह के रोगों का शिकार भी हो सकती हैं। मृगशिर नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरण: शुक्र, चतुर्थ चरणः मंगल। मृगशिर नक्षत्र में सूर्य के फल प्रथम चरणः यहाँ सूर्य हो तो जातक भाग्यशाली, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, बुद्धिमान एवं धनी होता है। उसे मुख, नेत्र आदि के रोगों के प्रति सतर्क रहना चाहिए। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य हो तो भी जातक का व्यक्तित्व शानदार होता है। उसकी गायन-वादन में भी रुचि होती है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य हो तो जातक आर्थिक जगत में उच्च पद पाता है। वह जन-संपर्क में भी कुशल, सफल होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 89 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य अच्छे फल देता है। जातक समाजसेवी एवं प्रख्यात होता है। मृगशिर नक्षत्र स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि हो तो जातक जल संबंधी व्यवसाय में सफल होता है। मंगल की दृष्टि जातक को साहस से धनोपार्जन करने वाला बनाती है। बुध की दृष्टि से जातक आकर्षक व्यक्तित्व का, प्रसिद्ध लेखक बनता है। गुरु की दृष्टि उसे सत्ता पक्ष के निकट लाकर लाभ दिलवाती है।। शुक्र की दृष्टि हो तो पारिवारिक जीवन सुखी तथा जातक राजनीति में ऊंचे पद पर पहुँचता है। शनि की दृष्टि उसे भद्र वृत्ति का तथा अपने से अधिक आयु की स्त्रियों से काम-संबंध रखने वाला बनाती है। मृगशिर में चंद्र की स्थिति के फल ... प्रथम चरणः यहाँ चंद्र जातक को बुद्धिमान, प्रसिद्ध व राजनीति के क्षेत्र में यशस्वी होता है। पत्नी सुंदर, धनी-परिवार से, अनेक पुत्रियों की मां होती है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र हो तो जातक का जन्म अभिजात्य परिवार में होता है। वैवाहिक जीवन से पूर्ण सुख मिलता है। तृतीय चरणः यहाँ भी चंद्र शुभ फल देता है। जातक धनी होता है तथापि उसका आरंभिक जीवन संघर्षमय बीतता है। जातक को माता से पूर्ण स्नेह नहीं मिल पाता। __चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र हो जातक बलिष्ठ एवं स्वस्थ होता है। औषध, रसायन, प्रसाधन सामग्री आदि से संबंधित कार्यों में उसे विशेष सफलता मिलती है। मृगशिर स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक धनी, साहुकार एवं कृषि-क्षेत्र में लाभ कमाने वाला होता है। ___ मंगल की दृष्टि शुभ नहीं होती। जातक पत्नी को त्याग परस्त्रियों के प्रेम में पड़ सकता है। बुध की दृष्टि जातक को विद्या व्यसनी बनाती है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक को जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं। प्रसिद्धि, अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चे। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को मां से विरासत में संपत्ति मिलती है। शनि की दृष्टि धन की दृष्टि से शुभ नहीं होती। जीवन अभावमय होता है, तथापि बच्चे अच्छे, आज्ञाकारी होते हैं। मृगशिर स्थित मंगल के फल । प्रथम चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक कटुभाषी एवं अभाव से भरे जीवन वाला होता है। उसे पत्नी का भी बिछोह सहना पड़ता है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक अपने ही परिवार के लिए घातक तथा अपयश का कारण बनता है। तृतीय चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक का जीवन दरिद्र होता है। जीवन दुखी ही बीतता है। __ चतुर्थ चरण: यहाँ भी मंगल सामान्य फल देता है। वैवाहिक जीवन सुखी तथापि पत्नी रुग्ण होती है। मृगशिर स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को साहसी एवं प्रकृति-प्रेमी बनाती है तथापि स्त्रियों के प्रति उसके मन में घृणा का भाव बना रहता है। ___ चंद्र की दृष्टि हो तो जातक में वेश्यागमन की लालसा बलवती हो जाती है। मां का अनादर करने से भी वह नहीं चूकता। बुध की दृष्टि हो तो जातक अल्प धनी तथापि पुत्रवान होता है। गुरु की दृष्टि जातक को संगठित एवं गायन-वादन कला की ओर प्रवृत्त करती है। शुक्र की दृष्टि राजनीति के क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त कर सकता है। यदि वह प्रतिरक्षा सेवाओं में जाता है तो वहाँ भी उसे सफलता मिलती है। __ शनि की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक ग्राम या नगर-प्रमुख होता है। मृगशिर स्थित बुध के फल प्रथम चरण: यहाँ बुध हो तो जातक सर्वगुण सम्पन्न होता है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध हो तो जातक निम्न कार्यों में जुट कर धन कमाने की ओर प्रवृत्त होता है। तृतीय चरणः यहाँ बुध शुभ फल देता है। जातक साहसी, बुद्धिमान, प्रसन्नचित्त, साथ ही वासनाप्रिय भी होता है। उसके अनेक संबंध हो सकते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 91 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरणः यहाँ बुध हो तो जातक बेहद धार्मिक, ईश्वरभक्त होता है। वह अपने परिश्रम से जीवन में ऊंचाइयों तक पहुँचता है। मृगस्थिर स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को नौकरी-पेशा वाला बनाती है। चंद्र की दृष्टि शुद्ध हृदय, स्वस्थ व परिवार में आसक्ति वाला बनाती है। मंगल की दृष्टि मिश्रित फल देती है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमान, विवेकी, वचन-निष्ठ तथा नेतृत्व की क्षमता से युक्त होता है। शुक्र की दृष्टि जातक को सौभाग्यशाली, धनी बनाती है। शनि की दृष्टि के शुभ फल नहीं मिलते। जीवन दरिद्र, दुखी होता है। संबंधी भी कष्टों के कारण बनते हैं। मृगस्थिर स्थित गुरु के फल प्रथम चरणः यहाँ गुरु हो तो जातक अस्थिर मति होने के बावजूद पठन-पाठन, लेखन का शौकीन तथा प्रसिद्ध होता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक को सत्ता पक्ष के निकट बनाये रखता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु के शुभ फल नहीं मिलते। जातक कृपण अर्थात् कंजूस एवं परिवार सुख से हीन होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु शुभ फल देता है। जातक धनी-समाज तथा सत्ता पक्ष से सम्मानित होता है। ऐसे जातक दूसरों के मन की बात भी जान लेते हैं। मृगशिर स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी एवं सत्ता पक्ष के निकट होता है। चंद्र की दृष्टि भी जातक को धनी बनाती है तथापि उसमें राज प्रवृत्ति अधिक होती है। ___मंगल की दृष्टि हो तो जातक विद्वान, साहसी एवं धनी होता है, तथापि पारिवारिक सुख की कमी होती है। बुध की दृष्टि भी जातक को विद्वान एवं सद्गुण संपन्न बनाती है। . शुक्र की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। स्त्री सुख भी पर्याप्त मिलता है। शनि की दृष्टि से जातक विद्वता के कारण सर्वत्र प्रशंसित होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 92 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगशिर स्थित शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ शुक्र हो तो जातक ललित कलाओं, विशेषकर संगीत में निष्णात एवं समाज से सम्मानित भी होता है । उसमें अभिनय की भी क्षमता होती है। जातक में काम- - प्रवृत्ति की अधिकता के भी फल मिलते हैं। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र हो तो जातक स्वस्थ, परोपकारी तथा धनी होता है। उसे अनेक स्त्रियों का सुख भी मिलता है । तृतीय चरण: यहाँ शुक्र हो तो जातक ललित कलाओं में निपुण होता है । विज्ञान एवं शास्त्रों के अध्ययन में भी उसकी रुचि होती है । चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक की लेखन या काव्य प्रतिभा में चार चांद लगाता है। मृगशिर स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक धनी, भूमि एवं भवनों का स्वामी तथा सुंदर स्त्री का पति होता है । चंद्र की दृष्टि संकेत देती है कि जातक की मां की समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा होती है, जिसका उसे भी लाभ मिलता है । मंगल की दृष्टि वैवाहिक जीवन अशांत बनाती है। स्त्रियों की संगति में उसके धन का अपव्यय होता है। बुध की दृष्टि जातक को सौभाग्यशाली, प्रसन्नचित्त बनाये रखती है । गुरु की दृष्टि हो तो पत्नी एवं बच्चों का पूर्ण सुख मिलता है । शनि की दृष्टि से जीवन दुखी रहता है। पत्नी से भी कष्ट ही मिलता है । मृगशिर नक्षत्र में शनि के फल मृगशिर नक्षत्र में शनि के विशेष शुभ फल नहीं मिलते। प्रथम चरणः यहाँ शनि हो तो जातक छरहरा, अभावग्रस्त तथा निम्न कोटि की स्त्रियों से यौन-संबंधों के लिए आतुर रहता है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि जातक को कुसंगति का शिकार बनाता है। आय से व्यय अधिक होता है। दीर्घजीवी ऐसा जातक सदैव कामातुर बना रहता है। तृतीय चरण: यहाँ शनि हो तो जातक प्रतिरक्षा सेवाओं में जा सकता है । उसे मस्तिष्क विकार की भी आशंका बतायी गयी है । चतुर्थ चरणः यहाँ शनि हो तो जातक धार्मिक वृत्ति का जन्म स्थल से दूर जीवन बिताने वाला होता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार 93 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगशिर स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक वेद अर्थात् धर्मग्रंथों का अभ्यासी एवं विद्वान होता है। पर उसे पराधीन जीवन बिताना पड़ता है। चंद्र की दृष्टि जातक को राजनीति में सक्रिय कर ऊंची स्थिति में पहुँचा सकती है। वह किसी संगठन या विभाग का प्रमुख बन सकता है। उसमें नेतृत्व की एवं संगठन की क्षमता होती है। मंगल की दृष्टि सुखी परिवार एवं जातक के प्रतिरक्षा सेनाओं में जाने के संकेत करती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक अवैध कार्यों के कारण निंदित हो सकता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक परोपकारी एवं सबके सुख-दुःख में हाथ बटाने वाला होता है । शुक्र की दृष्टि प्रथम चरण स्थित शनि पर हो तो जातक अपार संपत्ति का स्वामी बनता है। वह सत्ता पक्ष के निकट रहकर लाभ उठाता है । सुरा - सुंदरी का उसे विशेष शौक होता है। मृगशिर स्थित राहु के फल प्रथम एवं चतुर्थ चरण स्थित राहु विशेष शुभ फल देता है । प्रथम चरण में राहु हो तो जातक वैभव संपन्न एवं समाज में समादृत होता है । चतुर्थ चरण में राहु हो तो जातक विद्वान एवं सत्ता पक्ष से सम्मानित होता है। अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चों के कारण पारिवारिक जीवन भी सुखी रहता है। इन फलों के विपरीत यदि राहु द्वितीय चरण में हो तो जातक तुनुकमिजाज, कुटिल बुद्धिवाला, वैभव संपन्न होता है । तृतीय चरण में स्थित राहु जातक को ईर्ष्यालु, लोभी एवं असंतुष्ट प्रकृति का बनाता है। मृगशिर नक्षत्र स्थित केतु के फल मृगशिर नक्षत्र के तीन चरणों में केतु शुभ फल नहीं देता । प्रथम चरण में केतु हो तो जीवन चिंताओं से युक्त । तृतीय चरण में हो तो जातक ईर्ष्यालु प्रकृति का तथा चतुर्थ चरण में हो तो जातक कलह प्रिय, पाप कर्मों में रत रहता है। केवल द्वितीय चरण में केतु शुभ फल देता है यद्यपि जातक विकलांग हो सकता है तथापि वह अपना सारा जीवन मानसिक रूप से बाधित लोगों की उन्नति के लिए लगा देता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र-विचार ॥ 94 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्द्रा राशि पथ में आर्द्रा नक्षत्र की स्थिति 66.40 अंशों में 80.00 अंशों के मध्य मानी गयी है। पर्यायवाची अन्य नाम हैं-अरबी में इसे अल हनाह कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र आर्द्रा नक्षत्र में केवल एक तारे की उपस्थिति को मानता है, जबकि अरबी उसे दो तारों को मिलाकर बना मानते हैं। इसकी आकृति मणि जैसी मानी गयी है। आर्द्रा का देवता रूद्र को माना गया है, जबकि स्वामी ग्रह है-राह। नाडीः आद्या, योनिः श्वान, गण: मनुष्य । चरणाक्षर हैं-कू, घ, ङ, छ। इस नक्षत्र के चारों चरण मिथुन राशि (स्वामीः बुध) के अंतर्गत होते हैं। आर्द्रा नक्षत्र में जन्मे जातक कर्तव्यनिष्ठ, कठिन परिश्रमी तथा सौंपे गये कार्यों को जिम्मेदारी से निभाने वाले होते हैं। उनमें विविध विषयों का ज्ञान पाने की भी ललक होती है। विनोदी वृत्ति के ऐसे जातक सबसे सज्जनता पूर्ण व्यवहार करते हैं। ऐसे जातक प्रायः अपने जन्म-स्थल से दूर ही जीवन बिताते हैं। चूंकि वे हर विषय में कुछ न कुछ जानकारी रखते हैं, अतः वे शोधकार से लेकर व्यवसाय तक सभी में सफल हो सकते हैं। यद्यपि जीवन में उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तथापि वे कभी उनका औरों से जिक्र नहीं करते। __ ऐसे जातकों का शीघ्र विवाह दुखदायी हो सकता है, जबकि विलम्ब से विवाह पूर्ण पारिवारिक सुख का संकेत करता है। आर्द्रा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर नेत्र, जरा ऊंची नाक वाली होती हैं। वे बुद्धिमती, शांतिप्रिय तथा दूसरों की सहायता में भी तत्पर रहती हैं। तथापि अनाप-शनाप खर्च की तथा छिद्रान्वेषी प्रकृति कलह पैदा करने वाली होती हैं। ऐसी जातिकाओं का विवाह प्रायः विलम्ब से होता है, तथापि उन्हें पति या पति के परिवार में पूर्ण सुख नहीं मिलता। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 95 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्द्रा के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरणः गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरण: शनि, चतुर्थ चरण: गुरु। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति __ आर्द्रा के विभिन्न चरणों में स्थित सूर्य प्रायः शुभ फल देता है। वह ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता भी बनाता है। प्रथम चरण: यहाँ सूर्य के फलस्वरूप जातक विद्वान और धनी होता है। गणित में वह दक्ष होता है। वह ज्योतिष शास्त्र का भी ज्ञाता होता है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य जातक को मधुरभाषी, विद्वान और परिवार में प्रिय बनाता है। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य व्यक्ति को विविध विषयों का ज्ञाता और ज्योतिष-शास्त्र में दक्ष बनाता है। वित्तीय विषयों की भी उसे अच्छी जानकारी होती है। । चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य हो तो व्यक्ति सज्जन, शास्त्रज्ञ, ज्योतिष शास्त्र में निपुण होता है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। चालीस वर्ष के बाद उसे जीवन में सफलता मिलती है। आर्द्रा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि ___ चंद्र की दृष्टि हो तो जातक आजीविका की तलाश में जन्मभूमि से दूर जाता है। संबंधी उसे पीड़ित करते हैं। मंगल की दृष्टि उसे आलसी बना देती है। शत्र भी उसे दुखी करते हैं। बुध की दृष्टि भी अच्छा फल नहीं देती। हाँ, उसे संतान के कारण सुख मिलता है, पर यहाँ भी संतान की समृद्धि उसे संबंधियों के ईर्ष्या-द्वेष का पात्र बनाती है। गुरु की दृष्टि उसे तंत्र-मंत्र में प्रवीण बनाती है, पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह विदेश में वासकर धनोपार्जन करता है। . शनि की दृष्टि उसे चतुर बनाती है लेकिन स्त्रियों के हाथों उसे अपमानित भी होना पड़ता है। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में चंद्र की स्थिति __ आर्द्रा के तृतीय चरण को छोड़ शेष अन्य चरणों में चंद्र सामान्य फल देता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 96 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरणः यहाँ चंद्र व्यक्ति का हृदय तो पवित्र और शुद्ध रखता है तथापि चिड़चिड़ा बना देता है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र मेकेनिकल विषयों में रुचि पैदा करता है। ऐसे व्यक्ति को अस्थमा और कफ संबंधी रोगों से विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र हो तो व्यक्ति विद्वान, प्रभावशाली वक्ता और प्रसन्नचित्त होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र फिजूलखर्ची वाला बना देता है। ईश्वर के प्रति जातक के मन में आस्था होती है। वह सही माध्यमों से धन कमाता है तथापि मत-वैभिन्य के कारण वह पारिवारिक जीवन में सदैव दुखी रहता है। आर्द्रा में स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दष्टि सूर्य की दृष्टि व्यक्ति को परा-भौतिक विषयों का ज्ञाता बनाती है। पर वह धनी नहीं होता। मंगल की दृष्टि उसे विद्वान बनाती है। बुध की दृष्टि से उसे सत्ता पक्ष से लाभ होता है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान और उदार शिक्षक बनाती है। शुक्र की दृष्टि उसे जीवन में सारे सुख उपलब्ध कराती है। शनि की दृष्टि अशुभ होती है। ऐसा व्यक्ति अभावग्रस्त रहता है। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में बुध की स्थिति आर्द्रा के विभिन्न चरणों में स्थित बुध कुछ शुभ फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ बुध प्रत्येक क्षेत्र में सफल होने की क्षमता देता है। ज्योतिष शास्त्र में भी जातक की रुचि होती है। वह एकाधिक स्त्रियों से यौन-संबंध रखता है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध ज्योतिष-प्रवीण बनाता है। वह धनी होने के साथ-साथ मृदुभाषी भी होता है। तृतीय चरण: यहाँ बुध होने से जातक अतिशय बुद्धिमान होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध जीवन के सभी सुख उपलब्ध कराता है। आर्द्रा स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि सरकारी नौकरी में पद दिलवाती है। उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों या स्वामी की कृपा का लाभ मिलता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 97 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह कुशल प्रशासक बनता है। मंगल की दृष्टि का फल सामान्य होता है। गुरु की दृष्टि उसे बुद्धिमान और धनी बनाती है। शुक्र की दृष्टि पारिवारिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। पत्नी से सदैव ही विवाद बना रहता है। रसायन शास्त्र में जातक की रुचि होती है। शनि की दृष्टि का फल शुभ होता है। व्यक्ति उदार होता है और जीवन में उसे अनायास, अपेक्षित सहायता मिलती रहती है। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में गुरु की स्थिति आर्द्रा के विभिन्न चरणों में गुरु की स्थिति शुभ फल देती है। व्यक्ति समाज का नेता या मंत्री तक बन सकता है। प्रथम चरणः यहाँ गुरु कलात्मक अभिरुचियां पैदा करता है। व्यक्ति कला संबंधी विषयों का ज्ञाता और शिक्षक होता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु उच्च पद पर आसीन करवाता है। वह विभाग-प्रमुख या मंत्री तक बन सकता है। तृतीय चरण: यहाँ गुरु विशेष फल नहीं देता। चतुर्थ चरण: यहाँ गुरु लाखों में एक बनाता है। आर्द्रा स्थित गुरु या विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि धन-धान्य और अच्छी पत्नी, अच्छी संतान का सुख देती है। चंद्र की दृष्टि उसे समाज में प्रमुख पद दिलाती है। मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप उसे वायु सेना में अवसर मिलता है। वह मोटर गाड़ियों संबंधी कार्य में जुट सकता है। बुध की दृष्टि गणितज्ञ और ज्योतिष बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक धनी तो बनता है, पर अपने धन का उपयोग नहीं कर पाता। शनि की दृष्टि का फल अच्छा होता है। जातक धनी-मानी होता है। पत्नी अच्छी होती है। संतान भी अच्छी होती है। व्यक्ति लाखों में एक माना जाता है। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में शुक्र की स्थिति आर्द्रा के विभिन्न चरणों में शुक्र प्रायः शुभ फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ शुक्र वैज्ञानिक विषयों का ज्ञाता बनाता है। स्त्रियों ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 98 . " Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कुंडली में आर्द्रा के प्रथम चरण में शुक्र की स्थिति बेहद अशुभ फल देता है। वह अपना स्त्रीत्व तक बेच सकती है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र व्यक्ति को विद्वान, और दीर्घजीवी बनाता है। रसायन शास्त्र में उसकी विशेष रुचि होती है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र विद्वान और धनी बनाता है। जातक आस्तिक और धर्मशील होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र की स्थिति बहुत अच्छी मानी गयी है। व्यक्ति अभिनय पटु होता है। संगीत में भी उसकी रुचि होती है। आर्द्रा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि चिकित्सक बना सकती है। द्विभार्या योग के भी संकेत मिलते हैं। चंद्र की दृष्टि शरमीले स्वभाव का बनाती है। वह स्वयं की भावनाएं भली-भांति व्यक्त नहीं कर पाता। मंगल की दृष्टि हर तरह से शुभ होती है। बुध की दृष्टि भी शुभ फल देती है। गुरु की दृष्टि विद्वान बनाती है। सभी प्रकार का सुख देती है। शनि की दृष्टि कामी तथा यौन-रोगों का शिकार बनाती है। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में शनि की स्थिति आर्द्रा स्थित शनि न केवल अशुभ फल देता है वरन तरह-तरह से पीड़ित भी करता है। प्रथम चरणः यहाँ शनि ऋण-ग्रस्त, दुखी और लज्जाहीन बना देता है। व्यक्ति तरह-तरह के बुरे कार्यों में लिप्त रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ शनि ईर्ष्यालु बनाता है। ऐसे व्यक्ति की पराया धन हड़पने में ज्यादा रुचि होती है। तृतीय चरणः यहाँ शनि कुसंगति का शिकार बनाता है। दुर्दिन कभी उसका साथ नहीं छोड़ते। वह अपराधी भी बन सकता है। पत्नी के साथ भी उसके मधुर संबंध नही रहते। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि व्यक्ति को पत्नी पर निर्भर बनाता है। वह मद्यप्रिय भी होता है। मुकदमेबाजी में उसे कारावास तक हो सकता है। अ..। स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को पितृ-विरोधी बनाती है। उसे पिता से कोई लाभ नहीं मिलता। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 99 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि के कारण उसे विधवा बहन का बोझ उठाना पड़ सकता है। मंगल की दृष्टि भाई-बहनों के लिए शुभ नहीं होती । बुध की दृष्टि का शुभ फल मिलता है। व्यक्ति विद्वान होता है । पर पारिवारिक जीवन के लिए यह स्थिति अशुभ है । गुरु की दृष्टि शासन से लाभ दिलाती है । शुक्र की दृष्टि उसे स्वर्णकार बना सकती है । द्विभार्या योग के भी संकेत हैं। आर्द्रा के विभिन्न चरणों में राहु की स्थिति ' प्रथम चरणः यहाँ राहु अत्यधिक स्वाभिमानी तथा कामुक बनाता है। वह जुए का शौकीन होता है अतः जो कुछ कमाता है, जुए में गवां देता है । द्वितीय चरण: यहाँ राहु अनैतिक कार्यों में प्रवृत्त कराता है। वह वाचाल भी होता है । बचपन में दुर्घटना में आहत होने की भी आशंका बनी रहती है। तृतीय चरणः यहाँ राहु शुभ फल देता है। व्यक्ति समाज का प्रमुख भी बन सकता है । पर वह पर- स्त्रीगामी भी होता है । चतुर्थ चरणः यहाँ राहु द्विभार्या योग होने की आशंका बढ़ाता है लेकिन व्यक्ति मान सम्मान, धन- - दौलत भी पाता है । आर्द्रा के विभिन्न चरणों में केतु की स्थिति आर्द्रा स्थित केतु झगडालु स्वभाव वाला बना देता है। प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक को कृतघ्न, क्रूर और घूर्त प्रवृत्ति का बनाता है। उसकी पत्नी सदैव बीमार रहती है। द्वितीय चरणः यहाँ केतु झगडालू प्रवृत्ति का बना देता है। परिवार वाले उसे त्याग देते हैं । तृतीय चरणः यहाँ केतु कृषि कार्यों में लगाता है । पर भूमि गंवा बैठने का भी योग है। चतुर्थ चरणः यहाँ केतु शुभ फल नहीं देता । व्यक्ति पैतृक संपत्ति भी गंवा बैठता है । वह विषय- बाधा का भी शिकार हो सकता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 100 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनर्वसु पुनर्वसु नक्षत्र राशि पथ में 80.00 अंशों से 93.20 अंशों के मध्य स्थित माना गया है। अन्य पर्यायवाची नाम हैं- आदित्य, सुरजननी । अरबी में इसे अध-धीरा कहते हैं, अर्थात् 'सिंह का पंजा' । इसमें चार तारे हैं। पुनर्वसु का देवता अदिति एवं स्वामी ग्रह गुरु को माना गया है। गणः देव, योनिः मार्जार तथा नाड़ी: आदि कही गयी है। चरणाक्षर हैं-के, को, ह, ही । इस नक्षत्र के तीन चरण मिथुन (स्वामी चंद्र) राशि में आते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक सुंदर, ईश्वर पर अगाध आस्था रखने वालें तथा परंपरा-प्रिय होते हैं । अवैध या अनैतिक कार्यों का वे जमकर प्रतिरोध करते हैं। सादगी भरा जीवन बिताने के आकांक्षी ऐसे जातक परोपकारी, दूसरों की सहायता करने वाले तथापि कुछ गर्म-मिजाज होते हैं। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण वे जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं । अध्यापन का क्षेत्र हो, अथवा अभिनय का लेखन का हो या चिकित्सा का, वे सर्वत्र यशस्वी होते हैं । ऐसे जातक मातृ-पितृ भक्त, गुरुजन का आदर करने वाले भी होते हैं । उनका वैवाहिक जीवन प्रायः सफल नहीं रहता। संबंध-विच्छेद एवं पुनर्विवाह के भी फल कहे गये हैं । पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं शांतिप्रिय तथापि तार्किक प्रकृति की होती हैं, फलतः दूसरों से प्रायः उनकी बनती नहीं । तथापि ऐसी जातिकाएं परोपकारी, सबका सम्मान करने वाली तथा सुखी होती हैं। उन्हें पति का पूर्ण सुख मिलता है। बच्चे भी अच्छे होते हैं । सामान्यतः ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं- प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरणः चंद्र । पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति पुनर्वसु के चतुर्थ चरण को छोड़कर अन्य सभी चरणों में सूर्य के शुभ फल प्राप्त होते हैं । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 101 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति जातक को सुशिक्षित, धनी और ज्योतिषी बनाती है। द्वितीय चरण: यहाँ भी सूर्य शुभ फल देता है। जातक गणितज्ञ और कुशल प्रशासक भी होता है। शिक्षा एवं राजनीति के क्षेत्र में भी वह सफल होता है। उसमें अंतर्ज्ञान की शक्ति भी होती है। तृतीय चरणः यहाँ भी सूर्य की स्थिति शुभ फलदायक है। यदि सूर्य के साथ गुरु की भी युति हो तो जातक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ मंत्री पद भी सुशोभित कर सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति शुभ फल नहीं देती। जीवन अभावग्रस्त बीतता है। यदि लग्न में भी यही चरण हो तो व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित होता है। पुनर्वसु स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि । __ चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्ति संबंधियों से दुखी होता है। उसे जन्मभूमि से दूर, अभावग्रस्त जीवन बिताना पड़ता है। मंगल की दृष्टि व्यक्ति को आलसी और शत्रुओं से पीड़ित भी रखती है। बुध की दृष्टि भी सुखदायक नहीं है। हाँ, जातक को संतान और सत्ता पक्ष से लाभ होता है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक की गुह्य विद्याओं में सक्रिय रुचि होती है। पत्नी और संतान से उसके संबंध तनावपूर्ण रहते हैं। . शुक्र की दृष्टि उसे विदेशों का प्रवासी बनाती है। वहाँ वह पर्याप्त धनोपार्जन करता है। शनि की दृष्टि के फलस्वरूप वह फिजूलखर्ची लेकिन कर्तव्यनिष्ठ होता है। काम-वासना संतुष्टि के लिए वह निम्न श्रेणी की स्त्रियों से संपर्क रख सकता है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में चंद्र की स्थिति पुनर्वस के विभिन्न चरणों में स्थित चंद्र व्यक्ति को कामातुर एवं कामकला में प्रवीण बनाता है। प्रथम चरणः यहाँ चंद्र व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव वाला बनाता है। वह कार्य-कुशल भी होता है और अपने इस गुण के कारण समादृत होता है। द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र हो तो व्यक्ति स्त्रियों में विशेष रुचि रखता है। वह कामकला प्रवीण भी होता है और विवाह भी तीन-चार करता है। अपने गुणों के कारण यद्यपि वह वैज्ञानिक, राजदूत आदि भी बन सकता है, पर ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 102 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसे जुआ खेलने का भी शौक होता है। तृतीय चरणः यहाँ भी चंद्र स्त्रियों का शौकीन बनाता है। वह चतुर, संगीत-प्रिय होने के साथ-साथ जुआरी प्रवृत्ति का भी होता है।। चतुर्थ चरण: यहाँ भी चंद्र काम-कला प्रवीण बनाता है। गुरु के साथ युति उसे धनी और कुटुंब का प्रमुख बनाती है, जबकि मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप वह बेहद स्वार्थी बन जाता है, इतना कि जरूरत पड़ने पर पत्नी को भी बेच सकता है। पुनर्वसु स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल देती है, व्यक्ति विद्वान, सुशील लेकिन अभावों से भी घिरा होता है। ___मंगल की दृष्टि उसे उदार, बुद्धिमान, धनी व विविध विषयों का ज्ञाता बनाती है। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप उसे शासन से लाभ मिलता है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान, प्रसिद्ध और परोपकारी बनाती है। शुक्र की दृष्टि के कारण उसे जीवन के सभी सुख मिलते हैं। शनि की दृष्टि उसे अभावग्रस्त रखती है तथा पत्नी-सुख और धन से हीन रखती है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में बुध की स्थिति पुनर्वसु के विभिन्न चरणों मे बुध शुभ फल देता है। प्रथम चरण: यहाँ बुध व्यक्ति को गणितज्ञ और बहीखाता लिखने में निपुण बनाता है। वह अपने क्षेत्र में उच्च पद तक पहुँचता है। वह धनी और प्रसिद्ध भी होता है। कला ही नहीं, विज्ञान की अनेक विद्याओं का भी उसे अच्छा ज्ञान होता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी बुध सफल एकाउंटेंट बनाता है। वह बिना किसी पूर्वाग्रह के सबके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाता है। वह बिना किसी भेदभाव के सबसे समान व्यवहार करता है। वह सर्वत्र आदर भी पाता है। तृतीय चरण: यहाँ बुध परोपकारी व निःस्वार्थ जनसेवी बनाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध धन-दौलत से संपन्न, शासकों का प्रिय और प्रसिद्ध बनाता है। पुनर्वसु स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि उच्चपद दिलाती है। वह सत्य-वक्ता और सरकार से लाभान्वित भी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 103 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रमा की दृष्टि उसे वाचाल पर उग्र-स्वभाव वाला बनाती है। __ मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप वह कला-निपुण और ईमानदार होता है। उसका व्यक्तित्व भी लोगों को आकर्षित करता है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान और धनी बनाती है। उसे शासन से लाभ भी मिलता है। ___ शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह शत्रु-हंता होता है। विवाद सुलझाने में वह कुशल होता है। शनि की दृष्टि उसे सुशील स्वभाव का, सबका आदर करने वाला बनाती है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में गरु की स्थिति पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में गुरु सामान्यः शुभ फल ही देता है। लेकिन पारिवारिक जीवन में पत्नी के कारण तनाव बना रहता है। प्रथम चरणः यहाँ गुरु समस्त भौतिक सुख प्रदान करता है। यही नहीं, व्यक्ति मान-सम्मान और आदर भी पाता है। लेकिन पारिवारिक जीवन की दृष्टि से यह स्थिति अच्छी नहीं होती। पत्नी संदेह करती रहती है और फलस्वरूप तनाव बना रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु प्रसिद्ध, परोपकारी बनाता है और व्यक्ति शासन अथवा राजनीति के क्षेत्र में उच्चपद प्राप्त करता है। यहाँ भी पत्नी की संकीर्ण मनोवृत्ति उसे व्यथित रखती है। तृतीय चरण: यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है। व्यक्ति शासन, सार्वजनिक क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। यदि इस चरण में गुरु के साथ सूर्य की युति हो तो व्यक्ति उच्च राजनेता या मंत्री बनता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु अत्यंत प्रसिद्ध बनाता है लेकिन जातक को न तो सुख नसीब होता है और न धन-दौलत। मित्र और संबंधी उसे दुखी करते हैं। पराये लोग उसे देव तुल्य मान कर सम्मान करते हैं। विभिन्न ग्रहों की दृष्टि पुनर्वसु स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल इस प्रकार हैं। सूर्यः शुभ फल, अच्छी पत्नी, योग्य संतति तथा संबंधियों को आदर, मान-सम्मान। चंद्रः अच्छे व्यवहार के कारण लोकप्रिय, यशस्वी, ग्रामों एवं नगरों में प्रशासन-भार की भी संभावना। मंगलः प्रतिरक्षा सेनाओं में जाने की संभावना। अनेक अवरोधों के बाद जीवन में सफलता। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 104 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुधः पारिवारिक जीवन सुखमय । ज्योतिष शास्त्र में भी रुचि । शुक्रः अशुभ फल । स्त्रियों से पीड़ा कष्ट । यदि शुक्र के साथ बुध की भी दृष्टि हो तो शुभ फल । संपत्ति की प्राप्ति । शनिः शासन पक्ष से बेहद लाभ । राजनीति के क्षेत्र में सफलता । पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में शुक्र की स्थिति द्वितीय चरण को छोड़कर पुनर्वसु के शेष चरणों में शुक्र अच्छे फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक को अपने समाज में लोकप्रिय बनाता है । उसे हर तरह की विलास - सामग्री उपलब्ध रहती है । द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र आलसी बनाता है। उसकी जीवन के कार्य कलापों में कोई रुचि नहीं होती। वक्त आने पर देखा जाएगा उसका स्वभाव होता है । तृतीय चरण: यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। व्यक्ति विद्वान और धनी होता है। शासकीय सेवा में नौकरी करता है, पर उसे बार-बार काम बदलना पड़ता है। वह इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल हो सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र वैवाहिक जीवन सुखी और संपन्न रखता है। उसकी संतान अच्छी होती है। पुनर्वसु स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि अशुभ फल देती है । व्यक्ति कुसंगति में पड़ जाता है । चंद्र की दृष्टि उसे उसे आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है । वह सत्तापक्ष का कृपा पात्र और अधिकार संपन्न होता है । मंगल की दृष्टि से जातक प्राचीन शास्त्रों में निपुण / बुद्धिमान होता है । बुध की दृष्टि से वह रणनीति - निपुण, बुद्धिमान और धनी होता है। गुरु की दृष्टि उसे धनी और सद्गुण संपन्न बनाती है । समाज उसका आदर करता है । शुक्र की दृष्टि उसे स्वर्णकार आभूषणों के व्यापार में प्रवृत्त करती है। शनि की दृष्टि के कारण जीवन दुखी हो जाता है। तरह-तरह के अपमान झेलने पड़ते हैं । पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में शनि की स्थिति पुनर्वसु के द्वितीय एवं तृतीय चरण में शनि शुभ फल देता है, जबकि प्रथम एवं चतुर्थ चरण में शुभ फल नहीं मिलते। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार 105 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरण: यहाँ शनि अच्छा नहीं माना गया है । व्यक्ति सटोरिया होता है और उसमें सब कुछ उड़ा देता है। वह कर्जदार भी हो जाता है । कभी-कभी आपराधिक मामलों में भी यह फंस जाता है। द्वितीय चरण: यहाँ शनि अच्छे फल देता है । व्यक्ति साहूकारी का धंधा करता है । लौह-इस्पात से संबंधित उद्योगों से उसे लाभ होता है। तृतीय चरणः यहाँ शनि परिश्रमी और सक्रिय बनाता है। वह केमिकल या मैकेनिकल इंजीनियर बन सकता है। उसे उच्च पद भी मिलता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि व्यक्ति को गुस्सैल बनाता है। उसकी यह प्रवृत्ति नाना प्रकार की समस्याओं को जन्म देती है। उसका बचपन दुखी बीतता है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में राहु की स्थिति पुनर्वसु में राहु की स्थिति सामान्यतः शुभ फल देती है। प्रथम चरण: यहाँ राहु सही निर्णय करने की क्षमता देता है । लेखन, प्रकाशन और शिक्षण से उसे लाभ मिलता है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु व्यक्ति को विज्ञान के क्षेत्र में उसके किसी शोध के कारण प्रसिद्ध बनाता है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक और दृष्टिकोण उदार होता है। तृतीय चरणः यहाँ राहु व्यक्ति को बुद्धिमान और अच्छी स्मरण शक्ति वाला बनाता है। लोभ से दूर वह संतोषी प्रवृत्ति का होता है। सरकारी नौकरी में वह एकाउंट विभाग में प्रमुख भी बन सकता है। . चतुर्थ चरणः यहाँ राहु साहित्यकार - पत्रकार अथवा प्रकाशक बना देता है । राहु-बुध की युति ज्योतिष - प्रवीण बनाती है । वह गणितज्ञ होता है । साथ ही स्त्रियों का शौकीन भी । पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में केतु की स्थिति प्रथम चरणः यहाँ केतु भाई-बहनों के लिए घातक होता है। द्वितीय चरणः यहाँ केतु से ज्ञात होता है कि व्यक्ति का जन्म समृद्ध परिवार में हुआ है। उसका पिता समाज का सम्माननीय सदस्य है । पर जातक ऐसे देव तुल्य पिता के लिए दुःख ही दुःख पैदा करता है। तृतीय चरणः यहाँ केतु हो तो तीन पत्नियों की संभावना बनती है । ऐसा व्यक्ति सदैव कर्ज में डूबा रहता है । चतुर्थ चरण: यहाँ केतु घोर परिश्रम के बावजूद दरिद्र रखता है। तथापि संतान से उसे सुख मिलता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 106 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्य राशि पथ में पुष्य नक्षत्र की स्थिति 93.2 अंशों से 106.40 अंशों से मध्य मानी गयी है । पुष्य के अन्य पर्यायवाची नाम हैं- तिस्य, अमरेज्या । अरबी में उसे अन- तराह कहते हैं। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं । पुष्य का देवता गुरु एवं स्वामी ग्रह शनि कहा गया है। गणः देव, योनिः मेष एवं नाड़ी: मध्य है । चरणाक्षर हैं - हू, हे, हो, डा। पुष्य के चारों चरण कर्क राशि (स्वामी : चंद्र) में आते हैं । पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः अस्थिर मति के होते हैं। हर बात में संदेह उनकी प्रकृति होती है। प्रशंसा उन्हें फुला देती है, जबकि आलोचना असहय । वे तत्काल अवसाद में घिर जाते हैं । फलतः मीठा बोल कर उनसे अच्छा कार्य करवाया जा सकता है। उनमें जन्मजात प्रतिभा एवं बुद्धिमता भी होती है तथा वे अवैध, अनैतिक एवं कानून - विरोधी कार्यों का जमकर विरोध करते हैं । उन्हें कोई भी कार्य सौंप कर निश्श्चंत हुआ जा सकता है, क्योंकि वे सौंपे गये कार्य को निहायत ईमानदारी एवं संपूर्ण कुशलता से करने का प्रयत्न करते हैं । पुष्य नक्षत्र में जन्में जातक थियेटर, कला एवं वाणिज्य व्यवसाय के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन प्रायः समस्याग्रस्त रहता है तथा परिस्थितियों वश उन्हें अपनी पत्नी एवं बच्चों से दूर जीवन बिताना पड़ ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 107 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता है तथापि इससे परिवार के प्रति उनकी आसक्ति में कोई कमी नहीं आती। ___पुष्य नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं शांति प्रिय, सौजन्य से भरी तथा समर्पण की भावना से युक्त होती हैं-फलतः अक्सर वे सबके दबाव और दुर्व्यवहार का भी शिकार बनी रहती हैं। ऐसी जातिकाएं ईश्वर-भक्त तथा सबकी सहायता करने वाली होती हैं। __ऐसी जातिकाएं अपने मन की बात मुश्किल से व्यक्त करती हैं, ज्यादातर वे अपने मन को अभिव्यक्त ही नहीं करतीं। वैवाहिक जीवन में भी वे पति तक से अपने मन की बात नहीं कहती, फलतः हमेशा गलत समझी जाती हैं। सिवाय आत्म-पीड़ा के उन्हें कुछ नहीं मिलता। ऐसी जातिकाएं श्वास संबंधी रोग का शिकार हो सकती हैं। पुष्य के विभिन्न चरणों के स्वामी-प्रथम चरणः सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरणः शुक्र तथा चतुर्थ चरणः मंगल। पुष्य के विभिन्न चरणों में सूर्य पुष्य के विभिन्न चरणों में सूर्य के मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। । प्रथम चरणः यहाँ सूर्य पिता के लिए लाभकारी सिद्ध होता है। जातक का व्यक्तित्व सुंदर और आकर्षक होता है। यहां स्थित सूर्य पित्त और कफ संबंधी व्याधियां बढ़ाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि लग्न मघा नक्षत्र में हो एवं सूर्य पुष्य नक्षत्र में हो तो जातक का जन्म यद्यपि सामान्य और अभावग्रस्त परिवार में होता है, तथापि जातक के जन्म के बाद उसके पिता की स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार होता जाता है और फलतः जातक का जीवन सुखी बीतता है। ऐसे जातकों में नशे के प्रति सहज आकर्षण होता है। द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य चित्त की अस्थिरता बढ़ाता है। फलतः वह कोई काम एकाग्रचित्त से नहीं कर पाता। तथापि ऐसा व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार होता है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उसे सफलता मिलती है, विशेषकर अंतरिक्ष संबंधी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य शुभ फल देता है। जातक राजसी वृति का होता है। अपने व्यवहार और कार्यों से उसे सफलता और प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है। सामान्यतः ऐसे जातक लंबे कद के होते हैं तथापि उनकी नेत्रदृष्टि विकार युक्त होती है। ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 108 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है तथापि जातक पत्नी के मामले में सौभाग्य शाली नहीं होता। पत्नी उसकी प्रगति के मार्ग में बाधा बन जाया करती है। पुष्य स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि औद्योगिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है। व्यक्ति या तो स्वयं सफल-प्रसिद्ध उद्योगपति होता है, अथवा फिर वह शासकीय क्षेत्र के अथवा निजी क्षेत्र के किसी उद्योग में उच्च पद पर होता है। ___मंगल की दृष्टि जातक को धनी-मानी बनाती है। तथापि वह रोग ग्रस्त भी होता है। संबंधी भी उसके मार्ग में बाधक बनते हैं। बुध की दृष्टि उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायक होती है। व्यक्ति शासकीय सेवा में होता है। ___ गुरु की दृष्टि उसे राजनीति अथवा प्रतिरक्षा विभाग की ओर प्रेरित . करती है। - शुक्र की दृष्टि व्यक्ति को परोपकारी बनाती है। धातु उद्योग में उसे विशेष सफलता दिलाती है। __ शनि की दृष्टि रोग-ग्रस्त बनाती है। जीवन-साथी की आयु पर अशुभ प्रभाव डालती है। जातक बेहद चतुर होता है, पर घोर स्वार्थी भी। पुष्य के विभिन्न नक्षत्रों में चंद्र की स्थिति पुष्य के प्रथम तीन चरणों में स्थित चंद्र प्रायः शुभ फल देता है। चतुर्थ चरण में स्थित चंद्र का फल ठीक नहीं है। प्रथम चरणः यहाँ जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। किंतु स्वास्थ्य में कफ-वायु का विकार उसे परेशान रखता है। ऐसा व्यक्ति स्त्रियों के प्रति कोमल भावनाएं रखता है व जल्दी ही उनके प्रभाव में आ जाता है। द्वितीय चरण: यहाँ जन्मा व्यक्ति धनी होता है। जमीन-जायदाद मकान के सुख से युक्त। उसके अनेक अच्छे और सच्चे मित्र होते हैं। ऐसा व्यक्ति 'यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमते तत्र देवता की उक्ति के अनुसार आचरण करता है अर्थात् स्त्रियों के प्रति सदैव आदर भाव रखता है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को विदेश प्रवास का शौकीन बनाता है। वहाँ अपने परिश्रम के कारण वह मान-सम्मान और धन भी अर्जित करता है। प्रकृति से उसे अच्छा प्यार होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र जातक को कुमार्गी बनाता है। वह स्वार्थ लोलुप, ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 109 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरों की संपत्ति हड़पने वाला बन जाता है। उसकी ये प्रवृतियां उसे स्वजन से भी दूर कर देती हैं। पुष्य स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि दृष्टि व्यक्ति को साहसी बनाती है । वह सरकारी सेवा में होता है, अधिकार, सुरक्षा अथवा विधि-विभाग में । मंगल की दृष्टि उसे अपने काम में होशियार बनाती है। मां के लिए यह दृष्टि अशुभ मानी गयी है । बुध की दृष्टि उसे मान-सम्मान, प्रसिद्धि प्रदान करती है, विशेषकर राजनीति के क्षेत्र में । उसे परिवार का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। गुरु की दृष्टि उसे शिक्षा के क्षेत्र में ऊंचाईयों तक ले जाती है। वह विद्वान भी होता है । शुक्र की दृष्टि उसे परोपकारी, धनी-मानी बनाती है पर व्यक्ति में काम - भावना भी प्रबल होती है शनि की दृष्टि का फल अच्छा नहीं होता । जातक अभावग्रस्त और रोगी रहता है, विशेषकर तपेदिक से । पुष्य के विभिन्न चरणों में बुध की स्थिति पुष्य के विभिन्न चरणों में स्थित बुध प्रायः शुभ फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ बुध जातक को संपन्न बनाता है। जमीन-जायदाद आदि का वह स्वामी होता है । यह भी कहा गया है कि यदि लग्न में स्वाति अथ्वा मघा नक्षत्र हो तो जातक बहुत धनी होता है । द्वितीय चरणः यहाँ बुध जातक को विश्वास पात्र बनाता है फलतः उसे ऐसा पद मिलता है, जहाँ अत्यधिक विश्वास पात्र व्यक्ति की नियुक्ति की आवश्यकता होती है। यदि इस चरण में बुध के साथ शनि भी हो तो जातक की इंजीनियरिंग में रुचि होती है । तृतीय चरण: यहाँ बुध व्यक्ति को ललित - कला प्रिय बनाता है, विशेषकर संगीत, नृत्य में उसकी विशेष अभिरुचि होती है। ऐसा व्यक्ति व्यवहार चतुर भी होता है । अपनी सूझ-बूझ से वह महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का सामीप्य पाता है। विदेश - प्रवास के अवसर भी उसे मिलते हैं । चतुर्थ चरण: यहाँ बुध जातक को बुद्धिमान बनाता है। ललित कलाओं में उसकी रुचि होती है। अपनी बुद्धिमता के कारण वह राज-नेताओं का विश्वास अर्जित कर सकता है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 110 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्य स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को दंत चिकित्सक बना सकती है। चंद्र की दृष्टि शुभ फल नहीं देती। आय से व्यय अधिक होता है, फलतः अभाव की स्थिति बनी रहती है। ___ मंगल की दृष्टि शिक्षा के मार्ग में बाधक बनती है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान और विज्ञान एवं अन्य विषयों में पारंगत बनाती हैं वह सत्तासीन लोगों का विश्वास पात्र भी बनाती है। शुक्र की दृष्टि शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति दिलाती है। भौतिकी में उसकी विशेष रुचि होती है। उसका व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है। शनि की दृष्टि उसे गुण-हीन और विवाद-प्रिय बनाती है। पुष्य के विभिन्न चरणों में गुरु की स्थिति पुष्य के विभिन्न चरणों में स्थित गुरु शुभ फल प्रदान करता है। प्रथम चरण: यहाँ गुरु जातक को विद्वान, शास्त्र पारंगत और धनी बनाता है। जीवन में उसे सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं। द्वितीय चरणः यहाँ भी गुरु जातक को सौभाग्यशाली बनाता है। उसे जीवन में परिवार का, संपत्ति का, मित्रों का सभी का सुख मिलता है। अपनी बुद्धिमत्ता से वह ऊंचा पद भी प्राप्त करता है। तृतीय चरण: यहाँ गुरु व्यक्ति को विश्वास पात्र बनाता है। वह बुद्धिमान भी होता है तथा ऊंचे पद पर भी कार्य करता है। ऐसा व्यक्ति इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी सफल होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु इंजीनियरिंग की शिक्षा उपलब्ध करता है। जातक का इंजीनियरिंग कौशल उसे मान-सम्मान दिलाता है। पुष्य स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि गुरु पर सूर्य की दृष्टि जातक को उद्भट विद्वान बनाती है। वह विभाग प्रमुख भी होता है। ___ चंद्र की दृष्टि भी उसे अतिशय धनी बनाती है। उसे अच्छी पत्नी मिलती है। बच्चों का भी पूरा सुख मिलता है। मंगल की दृष्टि भी जातक को धनी बनाती है। इस दृष्टि के फलस्वरूप जातक का विवाह अपेक्षाकृत जल्दी होता है। बुध की दृष्टि राजनीति के क्षेत्र में सफल बनाती है। जातक परिवार के प्रति सारे दायित्व बखूबी निभाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 111 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र की दृष्टि उसे अनायास धन दिलाती है। साथ ही वह कामी भी बहुत होता है। शनि की दृष्टि जातक को समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है। वह अपने समाज का नेतृत्व भी करता है। पुष्य के विभिन्न चरणों में शुक्र की स्थिति पुष्य के तृतीय चरण को छोड़कर शेष सभी चरणों में स्थित शुक्र शुभ फल प्रदान करता है । प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक को व्यापारिक बुद्धि देता है और वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार तक से संबद्ध हो सकता है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र जातक को बुद्धिमान और उसके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है। स्त्रियां उसके प्रति चुंबकीय आकर्षण अनुभव करती हैं। फलतः जातक कामी बन जाता है । तृतीय चरणः यहाँ शुक्र के कारण व्यक्ति दबा-दबा सा रहता है । खुलकर अपनी बात नहीं कह पाता । प्रेम में भी उसे निराशा मिलती है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र के कारण जातक दार्शनिक स्वभाव का बन जाता है । विज्ञान में भी उसकी रुचि होती है। ऐसे व्यक्ति का पारिवारिक जीवन सुखी नही होता। एक तो विवाह में विलंब होता हैं, दूसरे उसकी पत्नी को भी कोई न कोई रोग घेरे रहता है। पुष्य स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक उद्योगपति हो सकता है। उसे पत्नी भी अच्छी मिलती है। सुंदर और संपन्न । उसकी संपत्ति का भी जातक को लाभ मिलता है। चंद्र की दृष्टि के कारण जातक का व्यक्तित्व आकर्षक बनता है। मंगल की दृष्टि उसे ललित कलाओं के माध्यम से धनी बनाती है । बुध की दृष्टि उसे विद्वान बनाती है। उसकी पत्नी भी विदुषी होती है गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप उसे जीवन के सारे सुख प्राप्त होते हैं । शनि की दृष्टि जातक को अभावग्रस्त बनाती है। तरह-तरह के रोग भी उसे घेरे रहेते हैं । पुष्य के विभिन्न चरणों में शनि की स्थिति पुष्य के तृतीय चरण को छोड़कर शेष सभी चरणों में शनि की स्थिति शुभ फल देती है । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार - 112 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरणः यहाँ शनि व्यक्ति को घोर स्वार्थी बनाता है। उसकी परिवार में किसी से नहीं बनती। हाँ, ऐसा व्यक्ति परिश्रमी अवश्य होता है और स्व प्रयत्नों से ही जीवन में आगे बढ़ता है । द्वितीय चरण: यहाँ शनि व्यक्ति को उदार और करुणामय बनाता है तथापि उसे तरह-तरह के रोग घेरे रहते हैं । तृतीय चरणः यहाँ शनि जातक को शासकीय अथवा व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। शासकीय सेवा में हो तो जातक उच्च पद पर आसीन होता है I चतुर्थ चरण ः यहाँ शनि हो तो ऐसे व्यक्ति को बचपन में माता-पिता का सुख नसीब नहीं होता। उसका लालन-पालन अन्य संबंधी करते हैं । उन्हीं के कारण उसे विरासत में संपत्ति भी मिलती है । पुष्य स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक के बचपन को कष्टकारक बना देती है । उसे पिता का सुख नही मिलता । चंद्र की दृष्टि उसे विशेष शिक्षा नहीं दिलाती । माता के लिए भी यह दृष्टि अशुभ है। मंगल की दृष्टि संपन्न और स्वस्थ बनाती है। उसे जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं । बुध की दृष्टि उसे समाजसेवी, परोपकारी बनाती है । गुरु की दृष्टि उसे परिवार का पूरा सुख प्रदान करती है। सुशील पत्नी और समझदार संतान । वह धनी भी होता है । शुक्र की दृष्टि उसे सामान्यतः सुखी रखती है। अपने व्यवहार के कारण वह सभी को प्रिय होता है। पुष्य के विभिन्न चरणों में राहु की स्थिति पुष्य स्थित राहु शुभ फल प्रदान करता है। व्यक्ति कला- प्रिय, धनी और प्रसिद्ध भी होता है। प्रथम चरणः यहाॅ राहु काव्य प्रेमी बनाता है। जातक स्वयं भी कवि होता है। ऐसे व्यक्ति का बचपन कष्टमय बीतता है। प्रेम में भी निराशा मिलती है फलतः जातक के मन में स्त्रियों के प्रति उपेक्षा और कुछ अंशों तक घृणा उत्पन्न हो जाती है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि जमीन-जायदाद का मालिक बनाता है । जातक को दुग्ध-व्यवसाय से लाभ मिल सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 113 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरण: यहाँ राहु जातक को लेखन-प्रकाशन के कार्य में प्रवृत्त करता है। वह शोध, अनुसंधान में भी रुचि लेता है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु जातक को वैभव संपन्न और प्रसिद्ध बनाता है। लेकिन उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। पुष्य के विभिन्न चरणों में केतु की स्थिति पुष्य में केतु की स्थिति शुभ फल नहीं देती। । प्रथम चरण: यहाँ केतु कष्टकारक होता है। जातक बचपन में घर से भाग जाता है और अभावमय जीवन बिताता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु बुरी संगति का शिकार बनाता है। जातक के मित्र अच्छे नहीं होते और कुसंगति के कारण वह पैतृक संपत्ति तक गवां बैठता है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को आजीवन ऋणग्रस्त रखता है। वह यायावर की तरह भटकता है। कभी-कभी कोई असाध्य रोग भी उसे घेर लेता है। चतुर्थ चरणः यहाँ भी केतु अच्छे फल नहीं देता। जातक जो भी कमाता है, बुरी स्त्रियों की संगति में उसे गवां देता है। प्रौढ़ावस्था में ही उसका जीवन सुखी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 114 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्लेषा आश्लेषा की राशिपथ में स्थिति 106.40 अंश से 120.00 अंशों के मध्य मानी गयी है । आश्लेषा के अन्य पर्यावाची नाम हैं-अहि, भुजंग, सार्पी । अरबी में आर्द्रा को अल-तर्फ कहा जाता है । आश्लेषा का स्वरूप चक्र की भांति माना गया है । सर्प को देवता तथा बुध को इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह माना गया है। इस नक्षत्र में पांच तारों की स्थिति मानी गयी है। यह नक्षत्र कर्क राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी चंद्र है । गणः राक्षस, योनिः बिल्ला (मार्जर) तथा नाड़ी: अन्त्या कही जाती है । नक्षत्र के चरणाक्षर है: डी, डू, डे, डो । वाल्मीकी रामायण के अनुसार दशरथ पुत्र लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था । आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक जातिकाओं के लिए कहा गया है कि उनकी दृष्टि भेदक होती है। उनकी दृष्टि मात्र में एक शक्ति होती है जो सामने वाले को प्रभावित किये बिना नहीं छोड़ती। आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक भाग्यशाली, हष्ट-पुष्ट होते हैं तथापि वे रुग्ण व्यक्तित्व का आभास दिलाते हैं। वे वाचाल भी होते हैं, तथापि उनकी वाणी में लोगों को मुग्ध करने की शक्ति होती है। उनमें निहित बुद्धिमानी एवं नेतृत्व की क्षमता उन्हें शीर्षस्थ पर पहुँचने की प्रेरणा देती है । इस नक्षत्र में जातक किसी भी बात पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 115 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करते। उन्हें अपनी स्वतंत्रता में किसी का भी कोई हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता। अतः आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों से निभाव का एकमात्र उपाय है कि उनकी बात न काटी जाए। आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों में एक विशेषता यह भी होती है कि आँख मूंदकर उनका अनुसरण करने वाले लोगों के हित के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यद्यपि वे न किसी से विश्वासघात करते हैं, और न किसी को धोखा देना पसंद करते हैं, तथापि अक्सर वे समाज में अवैध कार्यों में लिप्त लोगों के जानेअनजाने खैर-ख्वाह बने रहते हैं। उनमें एक दोष यह होता है कि वे कृतज्ञता व्यक्त करना नहीं जानते। उनका उग्र स्वभाव लोगों को उनका विरोधी बना देता है और अवसर मिलते ही ऐसे लोग उन्हें धोखा देने से नहीं चूकते। __ आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों की शैक्षिक रुचि के विषय अक्सर कला एवं वाणिज्य व्यवसाय के होते हैं। ऐसे जातकों की पत्नियां अक्सर उन्हें समझ नहीं पाती। दूसरे उसमें स्वार्थपरता की भावना भी अधिक होती है। ऐसे जातकों को नशे से बचने की सलाह दी गयी है। ___आश्लेषा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं विशेष सुंदर नहीं होती। वे नैतिकता के उच्च आदर्शों से प्रेरित होती हैं तथा अपने इस गुण के कारण समादृत भी होती हैं। उनमें आत्म संयम एवं लज्जा की भावना भी प्रचुर मात्रा में होती है। वे कार्यदक्ष होती हैं। घरेलू कामकाज में भी और अवसर मिलने पर प्रशासनिक कार्यों में भी। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति __ आश्लेषा के विभिन्न चरणों में सूर्य सामान्य फल देता है। लग्न में विभिन्न नक्षत्रों की स्थिति फलों में गुणात्मक परिवर्तन कर देती है। इसी तरह शुभ ग्रहों की दृष्टि से भी फलों में परिवर्तन आ जाता है। ___ आश्लेषा के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरणः शनि एवं चतुर्थ चरणः गुरु। - प्रथम चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। यदि लग्न में अनुराधा नक्षत्र हो तो जातक यायावर बन जाता है। यह स्थिति वैराग्य की भावना को भी जन्म देती है। परिवार से विरक्त साधु संन्यासी बना देती है। तीर्थाटन के लिए प्रेरित करती है। उदार एवं परोपकारी बनाती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 116 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ भी सूर्य विशेष शुभ फल नहीं देता। यदि लग्न में ज्येष्ठा नक्षत्र हो तो जातक की पत्नी उसकी उन्नति में बाधक बनती है। पिता के लिए भी यह स्थिति शुभ नहीं कही गयी है। तृतीय चरण: यहाँ भी सूर्य सामान्य फल देता है। चतुर्थ चरणः यहाँ भी सूर्य शुभ फल नहीं देता। जातक को संतान से कोई सुख नहीं मिलता। आश्लेषा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि हमेशा नौकरी करवाती है। संबंधी सहायक होने की बजाय बाधक बनते हैं। मंगल की दृष्टि भी संबंधियों से विवाद बढ़ाती है। बुध की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक विद्वान और प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री होता है। गुरु की दृष्टि का भी फल शुभ होता है। जातक को शासन से लाभ होता है। परिवार में उसकी प्रतिष्ठा बनी रहती है। __ शुक्र की दृष्टि स्त्रियों से लाभ करवाती है, किंतु जीवन दुखी भी रहता है। शनि की दृष्टि स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालती है। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में चंद्र की स्थिति आश्लेषा के प्रथम चरण को छोड़कर शेष तीनों चरणों में चंद्र के शुभ फल नहीं मिलते। प्रथम चरण: यहाँ चंद्र जातक को उदार, विद्वान और संपन्न बनाता है। वह समाज में आदर भी पाता है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र शुभ फल नहीं देता, विशेषकर स्वास्थ्य-दृष्टि से। तृतीय चरण: यहाँ चंद्रमा दुर्घटनाओं के योग बनाता है। ये दुर्घटनाएं घर तक में भी हो सकती है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र व्यक्ति को अनैतिक और स्वार्थी बनाता है। व्यक्ति धन-लिप्सा में लीन रहता है और धन कमाने के लिए गलत माध्यमों का भी आश्रय लेता है। आश्लेषा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि भवन निर्माण कार्यों में दक्षता देती है। मंगल की दृष्टि उसे क्रूर स्वभाव वाला बनाती है। परिवार वाले ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 117 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी उससे दुखी होते हैं। उसके कार्य-कलापों से उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। बुध की दृष्टि का फलं शुभ होता है। जातक धनी और प्रसिद्ध होता है और उसे परिवार का भी पूर्ण सुख प्राप्त होता है। गुरु की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक उदार, सुखी और अपने सद् व्यवहार के कारण लोकप्रिय होता है । शुक्र की दृष्टि जातक को संपूर्ण सुख देती है लेकिन साथ ही काम - पिपासा की पूर्ति के लिए अधिक शक्ति देती है। फलतः तरह-तरह के यौन रोगों का कष्ट उसे झेलना पड़ता है। शनि की दृष्टि उसे दरिद्र और मातृ-विरोधी बनाती है । आश्लेषा के विभिन्न चरणों में बुध आश्लेषा के विभिन्न चरणों में स्थित बुध प्रायः सामान्य फल देता है । प्रथम चरणः यहाँ बुध व्यक्ति को योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने का गुण देता है । वह बुद्धिमान और चतुर होता है 1 द्वितीय चरण: यहाँ बुध व्यापार कार्य में रुचि देता है। जातक की लेखन में भी रुचि होती है। तृतीय चरण: यहाँ बुध जातक को भ्रमणशील बनाता है। साथ ही नशे के प्रति उसमें विशेष कमजोरी होती है। उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं रहता । पत्नी से सदैव अनबन बनी रहती है । चतुर्थ चरणः यहाँ बुध शिक्षा का कारक बन जाता है। जातक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विशेष तरक्की करता है। आश्लेषा स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि पत्नी के कारण पारिवारिक जीवन नरकीय बना देती है । चंद्र की दृष्टि वस्त्र - व्यापार में अभिरुचि देती है । मंगल की दृष्टि उसे विद्वान, शास्त्रों का अध्येता बनाती है । लेकिन स्वभाव में क्रूरता भी लाती है । गुरु की दृष्टि बुद्धिमान, धनी और विवेकवान बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह आकर्षक व्यक्तित्व वाला बनता है । संगीत-नृत्य में उसकी विशेष रुचि होती है । शुक्र की दृष्टि उसे वाचाल भी बना देती है । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 118 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनि की दृष्टि का फल शुभ फल नहीं होता। अपने व्यवहार के कारण जातक सर्वत्र तिरस्कृत होता है। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में गरु . आश्लेषा नक्षत्र में गुरु की स्थिति शुभ फल देती हैं। जातक विद्वान, धनी और प्रसिद्ध होता है। उसका पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक को धनी बनाता है। पत्नी भी अच्छी मिलती है। संतान भी उसे सुख पहुँचाती है। द्वितीय चरणः यहाँ गुरु जातक को विद्वान, उदार और सत्यवादी बनाता है, फलतः वह सर्वत्र आदर पाता है। उसकी संतान भी अच्छी, दीर्घ-जीवी होती है। तृतीय चरणः यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है। विशेषकर उसकी पत्नी धनी परिवार से होती है और इसका लाभ जातक को मिलता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु बहुत अच्छे फल देता है। जातक जमीन-जायदाद का स्वामी और सुखी रहता है। शासकीय सेवा में हो तो उच्च पद पर पहुँचता है। आश्लेषा स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि उच्च पद प्रदान करती है। जातक राजनीतिक क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करता है और इसी कारण उसे शासन में भी महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त होता है। चंद्र की दृष्टि का फल अच्छा नहीं होता। जातक परिवार के विनाश का कारण बनता है। __ मंगल की दृष्टि उसे हर दृष्टि से सुखी रखती है। धन की दृष्टि से भी और परिवार की दृष्टि से भी। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप जातक राजनीति के क्षेत्र में अत्यंत सफल होकर उच्च पद पाता है। उसे विरासत में संपत्ति भी प्राप्त होती है। शुक्र की दृष्टि उसे स्त्रियों में लोकप्रिय बनाती है। उनसे उन्हें लाभ भी प्राप्त होता है। शनि की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक सुरक्षा संगठनों यथा सेना अथवा पुलिस में उच्चतम पद प्राप्त कर सकता है। उसके पास न केवल धन वरन् अधिकार भी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 119 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्लेषा के विभिन्न चरणों में शुक्र आश्लेषा के चतुर्थ चरण में शुभ फल देने के अलावा विभिन्न चरणों में शुक्र मिले-जुले फल देता है, पर वैवाहिक जीवन की दृष्टि यहाँ शुक्र की स्थिति शुभ नहीं मानी जा सकती। प्रथम चरण: यहाँ शुक्र विशेष फल नहीं देता है। इस चरण में चंद्र के साथ शुक्र की युति संबंध-विच्छेद की नौबत ला देती है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र अपने अन्य फलों के साथ-साथ व्यक्ति को काम-पिपासु बनाता है। काम वासना का आधिक्य पारिवारिक जीवन में विग्रह उत्पन्न करता है। दो पत्नियों का भी योग बनाता है। ऐसे जातक के जीवन का अंतिम चरण दुखदायी होता है। वह अपने कमों के फलस्वरूप अकेला रह जाता है। तृतीय चरण: यहाँ भी शुक्र अच्छे फल नहीं देता। प्रथम चरण की भांति इस चरण में भी चंद्र-शुक्र युति अच्छे फल नहीं देती। वह मानसिकता को बिल्कुल अनैतिक बना देती है। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। जातक राजनीति के क्षेत्र में विशेष सफल होता है। लेकिन कामाधिक्य उसे परस्त्रीगामी बना देता है। फलतः उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता। आश्लेषा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ नहीं होती। जातक को स्त्रियों की कोप-दृष्टि का शिकार होना पड़ता है। चंद्र की दृष्टि माता के लिए अशुभ होती है। ____ मंगल की दृष्टि उसे बुद्धिमान, कला-प्रिय ही नहीं वरन् कलाओं में विख्यात भी बनाती है। बुध की दृष्टि उसे विवेकपूर्ण बनाती है और परिवार के लोगों के व्यवहार से दुखी रहने के बावजूद वह अपने पारिवारिक दायित्वों को निष्ठा से पूरा करता है। ____ गुरु की दृष्टि उसे धनी और बेहद चतुर बनाती है। उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी रहता है। ___ शनि की दृष्टि का फल अच्छा नहीं होता। व्यक्ति अभावग्रस्त रहता है। चरित्र हीनता के कारण वह हेय दृष्टि से भी देखा जाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 120 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्लेषा के विभिन्न चरणों में शनि आश्लेषा के द्वितीय चरण को छोड़कर विभिन्न चरणों में शनि शुभ फल नहीं देता । जातक प्रायः माता-पिता के सुख से वंचित रहता है । प्रथम चरणः यहाँ शनि माता के सुख से वंचित रहता है । या तो मां होती नहीं और होती भी है तो जातक उसके द्वारा लालन-पालन के सुख से वंचित रहता है । द्वितीय चरणः यहाँ शनि शुभ फल देता है। जातक सुशिक्षित और चतुर • होता है। विज्ञान संबंधी विषयों में उसकी रुचि होती है। वह विदेश - यात्राएं भी करता है । तृतीय चरण: यहाँ शनि पिता के सुख से वंचित रखता है। जातक हमेशा संदेहशील बनता रहता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि जातक को पितृ-विरोधी बनाता है। उसका पिता मद्य-प्रिय हो सकता है। फलतः माता-पिता के बीच संबंध ठीक नहीं होते । पिता के प्रति वैर भाव के कारण जातक पारिवारिक संपत्ति भी नष्ट कर सकता है। आश्लेषा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि पारिवारिक जीवन दुखी रखती है। जातक को पत्नी से पूर्ण सुख नहीं मिलता । चंद्र की दृष्टि भी शुभ फल नहीं देती। जातक परिवार वालों के लिए दुःख का कारण बन जाता है। मंगल की दृष्टि शासन से लाभ दिलवाती है । बुध की दृष्टि के फलस्वरूप जातक घमंडी और कटु वचन कहने वाला बन जाता है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी और पत्नी तथा संतान सुख पाता है । शुक्र की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। व्यापार में वह सफल होता है। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरणः यहाँ राहु जातक को दीर्घजीवी बनाता है । द्वितीय चरण: यहाँ राहु विशेष शुभ फल नहीं देता । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 121 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ राहु चिकित्सा के क्षेत्र में सफल बनाता है। जातक अत्यंत भावुक होता है और इसी कारण उसे परेशानी भी उठानी पड़ती है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु जीवन में अवरोधक बनता है। यहाँ तक कि परिवार वाले ही बाधाएं उत्पन्न करने लगते हैं। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरणः यहाँ केतु चिकित्सा क्षेत्र की ओर प्रवृत्त करता है। स्त्रियों की कुंडली में में स्थित राहु सफल. डॉक्टर बनाता है। ... द्वितीय चरणः यहाँ केतु जातक को साहसी और निर्भीक बनता है। उसकी धर्म-कर्म में भी रुचि होती है। पर पिता के व्यवहार फलस्वरूप उसे कष्ट भोगना पड़ता है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को वैज्ञानिक दृष्टि वाला बनाता है। विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में वह सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ केतु जातक को व्यापार में सफल बनाता है। मित्रों के मामले में वह बेहद सौभाग्यशाली होता है। उसकी उन्नति में भी वे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 122 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मघा मघा नक्षत्र राशिफल में 120.00 अंश से 133.20 अंश के मध्य स्थित है। पर्यायवाची नाम है पितृजनक। अरबी में मघा को 'अल-जवाह' (अर्थात् सिंह का मस्तक) कहते हैं। यह नक्षत्र सिंह राशि का प्रथम नक्षत्र है। मघा का देवता पितर एवं स्वामी केतु को माना गया है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। ___इस नक्षत्र में पांच तारे माने गये हैं जो एक मकान-जैसी आकृति दर्शाते हैं। गणः राक्षस, योनिः मूषक एवं नाड़ी: अंत मानी गयी है। चरणाक्षर हैं: मा, मी, मू, मे। मघा नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद, रोमावलि युक्त शरीर तथा निर्दोष भाव-भंगिमा वाले होते हैं। उनकी गरदन अपनी प्रमुखता के कारण ध्यान आकर्षित करती है। ऐसे जातक ईश्वर-भीरु, बड़ों का आदर करने वाले, मृदुभाषी तथा वैज्ञानिक विषयों में पैठ रखने वाले होते हैं। विभिन्न कलाओं में भी उनकी रुचि होती है। अपने शांत स्वभाव, शांतिप्रिय जीवन की ललक और विद्वत्ता के कारण वे विद्वजन द्वारा भी सम्मानित होते हैं। वे हर कार्य सुविचारित ढंग से योजना बनाकर करते हैं। यद्यपि वे गर्ममिजाज के भी होते हैं तथा सच्चाई के खिलाफ कोई बात, कोई कार्य बर्दाश्त नहीं करते, तथापि वे अपने व्यवहार से भरसक किसी को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते। और यदि कभी उन्हें लगता है कि उनके कारण किसी का जी दुखा है तो वे तत्काल क्षमायाचना भी कर लेते हैं। ऐसे जातक निजी स्वार्थ से कोसों दूर, समाज के लिए हरदम कुछ न कुछ उपयोगी, हितकर ज्योतिष-कौमुदी (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 123 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य करना चाहते हैं। प्रतिदान में वे और कुछ नहीं मात्र मानसिक परितोष-संतोष चाहते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे लोग आजकल के व्यवसाय में अपनी ईमानदारी के कारण ही असफल रहेंगे। लेकिन चाहे वे व्यवसाय में हो, चाहे नौकरी में अपने मृदु, ईमानदार व्यवहार के कारण वातावरण में संतुलन बनाए रखते हैं। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन भी प्रायः सुखी ही रहता है। ___ मघा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं का व्यक्तित्व सुंदर और आकर्षक होता है। जातकों की भांति वे भी ईश्वर-निष्ठ होती हैं और निस्वार्थ भाव से सबकी सहायता करती हैं। वे गृह कार्य में, आफिस के काम काज में भी दक्ष होती हैं। इतने सद्गुणों के बावजूद गुस्सा जैसे उनकी नाक पर सवार रहता है। यही कारण है कि उनका पारिवारिक, वैवाहिक जीवन अशांत रहता है। उन्हें पति एवं परिवार वालों के बीच दीवारें खड़ा करने वाला भी मान लिया जाता है। मघा के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरण: बुध एवं चतुर्थ चरणः चंद्र। मघा के विभिन्न चरणों में सर्य प्रथम चरणः यहाँ सूर्य अभावग्रस्त रखता है। आजीविका के लिए जातक को नौकरी करनी पड़ती है। द्वितीय चरण: यहाँ भी सूर्य प्रथम चरण जैसे ही फल देता है, यथा अभावग्रस्त जीवन, दरिद्रता, जातक दुर्बलता के कारण थकान जल्दी अनुभव करता है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य का विशेष फल नहीं होता। जातक मध्यम आयु का होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ भी सूर्य अभावग्रस्त रखता है, पर जीवन भर नहीं। लगभग चालीस वर्ष की अवस्था तक। इसके बाद जीवन अपेक्षाकृत सुखी हो जाता है। मघा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि शुभ होती है। इतनी कि मघा के विभिन्न चरणों में अभावग्रस्त रहने वाला जातक चंद्र दृष्टि के फलस्वरूप प्रसिद्ध और शक्ति संपन्न हो जाता है। व्यक्ति खर्चीला भी बहुत होता है। मंगल की दृष्टि भी उसे खर्चीला बनाती है। इस दृष्टि के फलस्वरूप जातक स्वयं को स्त्री जाति की सेवा में लगा देता है। जातक परिश्रमशील लेकिन कटु वचन बोलने वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 124 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि उसे खर्चीला बनाती है। ऐसे व्यक्ति को सरकार के, समाज के परिवार के नियमों की अवहेलना करने में मजा भी आता है। संभवतः समाज के रुढ़िवादी सिद्धांत उसे जंचते नहीं। वह लेखक भी होता है और अपनी बात सफलतापूर्वक रखता है। ___ गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप उसकी शिल्प शास्त्र में रुचि होती है। वह एक सफल वास्तु-शिल्पी होता है लेकिन धार्मिक स्थलों, समाजोपयोगी भवनों, उद्यानों को बनाने में उसकी विशेष रुचि होती है। . शुक्र की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक का व्यवहार उसे सबकी नजरों में हेय बना देता है। शनि की दृष्टि जीवन में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न करती है। मघा के विभिन्न चरणों में चंद्र मघा के विभिन्न चरणों में चंद्र प्रायः अच्छे फल ही देता है। विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फलस्वरूप फलों में अंतर आ जाता है। प्रथम चरण: यहाँ चंद्र व्यक्ति को समाजसेवी बनाता है। अपनी मृदु वाणी और सद व्यवहार के फलस्वरूप वह सर्वत्र आदर पाता है। वह अल्प संतति होता है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र व्यक्ति को युवावस्था तक अभावग्रस्त रखता है। व्यक्ति के मन में स्त्रियों के प्रति विद्वेष का भाव होता है। तीस वर्ष के उपरांत उसके जीवन में संपन्नता आती है। तृतीय चरण: यहाँ चंद्र के कारण प्रांरभिक जीवन संघर्षमय होता है। पत्नी भी रुष्ट रहती है। पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में भी परिवर्तन आता है। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र अल्पायु का कारक बताया गया है। तथापि कहा गया है कि यदि जातक तैंतीस वर्ष की आयु पार कर जाता है तो अत्यधिक अधिकार-संपन्न और समाज में समादृत होता है। मघा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि अत्यधिक शुभ फल देती है। जातक धनी, प्रसिद्ध और अधिकार-संपन्न होता है। __ मंगल की दृष्टि समाजसेवी बनाती है। जातक राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। बुध की दृष्टि उसे सुरा-सुंदरी का शौकीन बनाती है। गुरु की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक अत्यधिक प्रसिद्ध और सत्तासीन लोगों का विश्वासपात्र होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 125 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र की दृष्टि उसे विद्वान बनाती है। साथ ही उसमें स्त्रियोचित गुण भी प्रबल होते हैं। वह स्त्रियों के बची रहना ज्यादा पंसद करता है। शनि की दृष्टि का वैवाहिक जीवन पर घातक प्रभाव पड़ता है। संबंध-विच्छेद की नौबत आ जाती है। कृषि-संबंधी विषयों में जातक प्रवीण होता है। मघा के विभिन्न चरणों में मंगल प्रथम चरणः यहाँ मंगल जातक को शासकीय सेवा में ले जाता है। पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल को वैवाहिक संबंधों में मंगल दोष का निराकरण करने वाला माना गया है। यदि उसकी गुरु के साथ भी युति हो तो जातक बचपन से ही बुद्धिमान होता है। तृतीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक जीवन भर बिना कोई शिकवा-शिकायत किये अपनी जिम्मेदारियां निभाता है। ऐसे जातक शायद 'ना' कहना जानते ही नहीं। .. चतुर्थ चरणः यहाँ भी मंगल प्रायः उपरोक्त फल देता है। मघा स्थित मंगल पर अन्य ग्रहों की दृष्टि - सूर्य की दृष्टि जातक को समाज के लिए सद्कार्य करने वाला, शत्रुहंता और प्रकृति-प्रेमी बनाती है। चंद्र की दृष्टि हो तो तो जातक मातृभक्त होता है। बुध की दृष्टि उसे कलाओं एवं शास्त्रों में निपुण बनाती है। गुरु की दृष्टि जातक को प्रभावशाली, संपन्न लोगों के संपर्क में रखती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को अपने रूप का अभिमान होता है। अत्यधिक कामविकार उसे रोगग्रस्त कर देता है। शनि की दृष्टि हो तो जातक अपने परिवार से दूर ही रहता है। मघा के विभिन्न चरणों में बुध प्रथम चरणः यहाँ बुध सामान्य फल देता है। सूर्य-गुरु के साथ बुध की युति से उसे अनेक लाभ मिलते हैं। जैसे उसे बिना बारी के पदोन्नति मिल जाती है। - द्वितीय चरण: यहाँ बुध शुभ फल देता है, विशेषकर पारिवारिक जीवन में। यहां स्थित बुध जातक को मानसिक रूप से अस्थिर भी रखता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 126 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ बुध के सामान्य फल मिलते हैं। जातक औषध बनाने में निपुण होता है । · चतुर्थ चरणः यहाँ बुध सामान्य फल देता है। जातक का जीवन साधारण बीतता है । मघा स्थित बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को ईष्यालु, विघ्नसंतोषी और क्रूर बनाती है । चंद्र की दृष्टि उसे कलाओं की ओर प्रवृत्त करती है। मंगल की दृष्टि उसे काम पिपासु बनाती है। उसे चोट लगने का भी भय होता है, विशेषकर किसी हथियार से ! गुरु की दृष्टि उसे स्पष्ट वक्ता, विवेकशील और सबका प्रिय बनाती है । शुक्र की दृष्टि के कारण उसे शासन से लाभ मिलता है । शनि की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक अपने कार्य-व्यवहार से सर्वत्र उपेक्षा और अनादर पाता है। मघा के विभिन्न चरणों में गुरु प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक अत्यधिक संपन्न बनाता है। उसे पत्नी का, संतान का पूर्ण सुख मिलता है। नौकरी में हो तो व्यक्ति उच्च पद तक पहुँचता है। द्वितीय चरणः यहाँ गुरु जातक को विद्वान और विविध विषयों में पारंगत बनाता है। तृतीय चरण ः यहाँ गुरु शुभ फल देता है। जातक का जन्म संपन्न परिवार में होता है। वह निर्भीक, विद्वान और धनी होता है । चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु जातक को नेतृत्व के गुण प्रदान करता है । वह समाजसेवी भी होता है। मघा स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सद्गुणी, प्रसिद्ध और अत्यधिक संपन्न बनाती है । चंद्र की दृष्टि के कारण उसे पत्नी-पक्ष से धन प्राप्ति होती है । मंगल की दृष्टि उसे समाजसेवा में प्रवृत करती है। बुध की दृष्टि उसे उद्भट विद्वान और शास्त्रों में पारंगत बनाती है । शुक्र की दृष्टि के कारण उसे शासन से सम्मान मिलता है। स्त्रियां उसे विशेष पसंद करती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार ■ 127 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनि की दृष्टि उसे ओजस्वी वक्ता बनाती है, पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। मघा के विभिन्न चरणों में शुक्र ___ मघा के प्रायः सभी चरणों में शुक्र अच्छे परिणाम देता है। प्रथम चरण: यहाँ शुक्र सामान्य फल देता है। शुक्र के साथ मंगल की युति के अच्छे परिणाम नहीं होते। यह योग, काम-पिपासा बढ़ाता है। दूसरी ओर जातक के जीवन साथी का चारित्रिक दोष उसके लिए दुखदायी बन जाता है। संबंध-विच्छेद की भी नौबत आ जाती है। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र धनी मानी और सुखी बनाता है। तृतीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को विद्वान एवं शास्त्र-पारंगत बनाता है। गणित में वह विशेष दक्षता प्राप्त करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी शुक्र की स्थिति जातक को बुद्धिमान और यशस्वी बनाती है। जातक को सत्ता पक्ष से लाभ प्राप्त होता है। मघा स्थित शक्र पर विभिन्न ग्रहों की दष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को ईर्ष्यालु बनाती है। नारियों के माध्यम से जातक लाभ प्राप्त करता है। चंद्र की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक कुसंगति, विशेषकर चरित्रहीन स्त्रियों की संगति में पैतृक धन का नाश कर देता है। ___ मंगल की दृष्टि उसे संपन्न और प्रसिद्ध बनाती है लेकिन वह परस्त्रीगामी भी होता है। बुध की दृष्टि उसे धनी तो बनाती है, पर साथ ही वह कृपण भी होता है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप उसे लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। ___ शनि की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक किसी शासक के समतुल्य जीवन बिताता है। मघा के विभिन्न चरणों में शनि . मघा के विभिन्न चरणों में शनि सामान्य फल देता है। वैवाहिक जीवन के लिए यह स्थिति शुभ नहीं होती। प्रथम चरणः यहाँ शनि संतान का पूर्ण सुख देता है। शासकीय सेवा में जातक का जीवन बीतता है। वैवाहिक जीवन की दृष्टि से शनि की यह स्थिति अशुभ है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 128 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरणः यहाँ शनि की स्थिति द्वि-भार्या योग बनाती है। एक वैध और दूसरी अवैध। जातक को सदैव समस्याएं घेरी रहती हैं। तृतीय चरण: वैवाहिक जीवन की दृष्टि से शनि की यहाँ भी स्थिति अशुभ है। पत्नी से उसकी सदैव अनबन रहा करती है।। चतुर्थ चरंणः यहाँ शनि जातक को परिश्रमी और ईमानदार बनाता है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है। मघा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को दरिद्र, व्यसनी और मद्ययी बनाती है। वह मिथ्याभाषी भी होता है। चंद्र की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी और भाग्यशाली होता है। उसे सुंदर स्त्रियों के संसर्ग का आनंद मिलता है। . मंगल की दृष्टि उसे यायावर बनाती है और परिवार से विलग रखती है। बुध की दृष्टि जातक को आलसी बनाती है। गुरु की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक अपने समाज का नेतृत्व करता है। उसे पत्नी और संतान का पूर्ण सुख मिलता है। शक्र की दृष्टि उसे विरासत में संपत्ति उपलब्ध कराती है। मघा के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरणः यहाँ राह शुभ फल देता है। जीवन सुखी व संपन्न होता है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु जातक को गैर कानूनी माध्यमों से अर्थ प्राप्ति की प्रेरणा देता है। तृतीय चरण: यहाँ राहु तरह-तरह की व्याधियां पैदा कर सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु जातक को धनी, शिक्षाविद् और पारिवारिक दृष्टि से सुखी बनाता है। मघा के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक को जुआरी बना देता है। जातक काफी हानि उठाने के बाद भी यह आदत नहीं छोड़ता। द्वितीय चरणः यहाँ भी केतु अशुभ होता है। जातक सुखहीन जीवन बिताता है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को अकारण परेशान करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ केतु सामान्य फल देता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 129 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वा फाल्गुनी पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र राशिपथ में 133.20 अंश एवं 146.40 अंशों के मध्य स्थित है तथा मघा की तरह यह नक्षत्र भी सिंह राशि (स्वामी : सूर्य) के अंतर्गत आता है | पर्यायवाची नाम है- फाल्गुनी अरबी में इसे 'अल जुबराह' ( सिंह की अयाल ) कहते हैं । इस नक्षत्र में दो तारे हैं। आकृति मचान के समान लगती है । प्रथम चरण का स्वामी - सूर्य, द्वितीय चरण का स्वामी-बुध, तृतीय चरण का स्वामी - शुक्र एवं चतुर्थ चरण का स्वामी - मंगल है | I अदिति के एक पुत्र भग को नक्षत्र - देवता तथा शुक्र को नक्षत्र स्वामी माना गया है। गणः मनुष्य, योनिः मूषक तथा नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं - मो, टा, टी, टू। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातक हष्ट-पुष्ट तथा आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। उन्हें विरासत में जैसे एक अंतर्ज्ञान शक्ति मिली होती है। यात्रा - प्रिय, परोपकारी वृत्ति के ऐसे जातक स्वतंत्रता -प्रिय तथा किसी न किसी क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं । उनमें ईमानदारी से कार्य करने की, अवैध कार्यों से सदैव दूर रहने की प्रवृत्ति होती है । वे 'जी हुजूरी' से दूर रहते हैं तथा स्वतंत्र रहने की कोशिश करते हैं। इसके कारण उन्हें एकाधिक बार नौकरी बदलनी पड़ सकती है। यह इसलिए भी कि वे तरक्की, जीवन में आगे बढ़ने के लिए सदैव अच्छे और सच्चे मार्ग का अवलंबन करना चाहते हैं। चालीस वर्ष की अवस्था के बाद उनका जीवन सुखी होता है । ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन सुखी होता है । पत्नी भी अच्छी मिलती है। बच्चे भी अच्छे होते हैं । पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 130 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनम्र, कलाविद, धार्मिक तथा परोपकारी वृत्ति की होती हैं। लेकिन प्रदर्शनप्रियता का आधिक्य एक दोष बन जाता है। वे अच्छी शिक्षा भी अर्जित कर सकती हैं, विशेषकर वैज्ञानिक विषयों में। उनका पारिवारिक जीवन भी सुखी रहता है। अच्छा पति, अच्छे बच्चे। वे एक कर्तव्य पारायण गृहिणी सिद्ध होती है, परिवार के लिए सब कुछ होम देने को तत्पर। उनमें अपनी सहायता करने वालों के प्रति सदैव कृतज्ञता का भाव होता है। ऐसी जातिकाओं के लिए एक सलाह दी गयी है कि वे स्वयं को सबसे चतुर, बुद्धिमान तथा औरों को मूर्ख न समझें। अन्यथा इस तरह की प्रवृत्ति होने पर समूचा पारिवारिक तथा निजी जीवन भी कलहमय कर सकती है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में सूर्य पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति स्वास्थ्य की दृष्टि से अशुभ मानी गयी है। प्रथम चरण: यहाँ सूर्य जातक को नौकरी-पेशे से जोड़ता है। चिकित्सा क्षेत्र में भी उसे सफलता मिलती है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य पत्नी एवं संतान के लिए अशुभ माना गया है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य प्रथम चरण जैसे फल देता है। यथा सरकारी नौकरी या चिकित्सा क्षेत्र में नौकरी ही उसकी नियति होती है। जातक हृदय रोग का भी शिकार हो सकता है। बचपन एवं युवावस्था संघर्षमय बीतती है और पैंतीस वर्ष के बाद ही जीवन में स्थिरता आती है। चतुर्थ चरणः यहाँ भी सूर्य चिकित्सा क्षेत्र में नौकरी के योग बनाता है। केतु के साथ सूर्य की युति जातक को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल बनाती है। पूर्वा फाल्गुनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को धन हीन, यायावर और दुखी बनाती है। जातक अपने शत्रुओं से ही नहीं, संबंधियों से भी भयभीत रहता है। मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप शिर-शूल की शिकायत रहती है, फलत: जातक आलसी हो जाता है। वह शत्रु से भी पीड़ित रहता है। बुध की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है। संतानें उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि करती हैं। गुरु की दृष्टि स्वतंत्र विचारों वाला बनाती है। मंत्र-तंत्र में जातक की ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 131 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष रुचि होती है। पारिवारिक जीवन के लिए सूर्य पर गुरु की दृष्टि अशुभ मानी गयी है। ___ शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को विदेश में प्रवास के अवसर मिलते हैं। शनि की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक अवैध कार्यों से धन कमाता है। वह अपव्ययी भी होता है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में चंद्र पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में चंद्र सामान्य फल देता है। - प्रथम चरण: यहाँ चंद्र के कारण जातक रसायन अथवा चिकित्सा संबंधी वस्तुओं के व्यापार में प्रवृत्त होता है। पर उसे पर्याप्त आय नहीं होती। वह अभावग्रस्त जीवन बिताता है। पर स्वभाव से साहसी होने के कारण वह सारे कष्ट सहन कर लेता है। इसमें परिवार वाले यथा पत्नी और संतानों से उसे पूरा सहयोग मिलता है। यद्यपि जातक स्त्रियों के प्रति द्वेष भावना रखता है तथापि मां को वह ईश्वर-तुल्य मानता है। . द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र स्वभाव को उग्र बनाता है। जातक तुनुक मिजाज-सा हो जाता है तथापि प्रौढ़ावस्था में वह शांत-गंभीर और साहसी बन जाता है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक के मन में समाज सेवा की भावना भरता है। वह अपने परोपकारी कार्यों से प्रसिद्ध भी होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक अपनी सार्वजनिक सेवाओं के कारण प्रसिद्धि पाता है। उसे धन नहीं, यश एवं संतोष मिलता है। पूर्वा फाल्गुनी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को परोपकारी और कार्य-कुशल बनाती है। मंगल की दृष्टि उसे बुद्धिमान, धनी और चतुर बनाती है। . बुध की दृष्टि के फलस्वरूप उसे अपने गुणों के कारण सत्तासीन लोगों के निकट रहने का अवसर मिलता है। जातक साहसी, उच्च नैतिक आदर्शों में आस्था रखने वाला और परोपकारी होता है। गुरु की दृष्टि उसे विभिन्न शास्त्रों का अध्येता बनाती है। शुक्र की दृष्टि से जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं तथापि पूर्वा फाल्गुनी के प्रथम और द्वितीय चरण में स्थित चंद्र पर शुक्र की दृष्टि विपत्ति-कारक कही गयी है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 132 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनि की दृष्टि के कारण जीवन अभावग्रस्त बीतता है। जातक धन से, पारिवारक सुख से वंचित रहता है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में बुध पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में बुध प्रायः शुभ फल देता है। प्रथम चरण: यहाँ बुध जातक के सौभाग्य में वृद्धि करता है। वह धनी और प्रसिद्ध होता है, तथापि उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं रहता। द्वितीय चरणः यहाँ बुध तर्क शक्ति में वृद्धि करता है फलतः जातक वकालत में विशेष सफल रहता है। स्त्रियों के प्रति वह विशेष आकर्षण अनुभव करता है। तृतीय चरणः यहाँ बुध की स्थिति अशुभ फल देती है। जातक को पत्नी और संतान से कोई सुख नहीं मिलता। अपनी बुद्धिहीनता के कारण वह गलत फहमियों का भी शिकार हो जाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध धन से सुखी रखता है लेकिन अपने व्यवहार के कारण दुःख तो उठाता ही है, वैवाहिक जीवन के आनंद से भी वंचित हो जाता है। परोपकारी वृत्ति से शून्य जातक अनैतिक कार्यों को भी बुरा नहीं समझता। पूर्वा फाल्गुनी स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि __पूर्वा फाल्गुनी स्थित बुध पर सूर्य की दृष्टि सत्य-वक्ता, ललितकला प्रिय बनाती है एवं सत्तासीन लोगों से लाभ के अवसर जुटाती है। चंद्र की दृष्टि जातक को बहसबाज और बातूनी बनाती है। मंगल की दृष्टि उसके स्वभाव में धूर्तता का पुट भरती है। गुरु की दृष्टि से जातक को सारे सुख मिलते हैं। शुक्र की दृष्टि उसे प्रसिद्ध और शत्रुहंता बनाती है। सत्तासीन लोगों की कृपा-दृष्टि उस पर बनी रहती है। शनि की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक के सारे कार्य अनायास बनते चले जाते हैं। यहाँ शनि की दृष्टि जातक को स्वच्छता-प्रिय और वेशभूषा के प्रति सतर्क बनाती है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में गुरु पूर्वा फाल्गुनी में गुरु की स्थिति शुभ होती है। प्रथम चरण: यहाँ गुरु शुभ फल देता है। जातक बलवान, साहसी ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 133 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और विज्ञान के विषयों का विद्वान होता है। वह सच्चा मित्र सिद्ध होता है। द्वितीय चरणः यहाँ गुरु जातक को सर्वप्रिय - मधुरभाषी बनाता है। बुध - गुरु की युति उसे विधि-क्षेत्र में सफल बनाती है। मंगल गुरु की युति उसे सफल - सक्षम प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठित करती है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु सर्वोत्तम फल देता है। जातक विद्वान, प्रसिद्ध और जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता है। वह सहज ही शीर्ष पद पर पहुँच जाता है । चतुर्थ चरणः यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है। जातक कीर्तियुक्त धनी होता है । अध्यात्म के प्रति भी उसकी रुचि होती है । पूर्वा फाल्गुनी स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को परोपकारी बनाती है । उसमें नेतृत्व की भी क्षमता होती है। चंद्र की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। जातक सौभाग्यशाली, पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करने वाला और सुखी होता है। मंगल की दृष्टि उसे भूमि के क्रय-विक्रय या भवन-निर्माण के व्यवसाय में प्रवृत्त करती है । वह हर क्षेत्र में सफल होता है 1 बुध की दृष्टि से जातक की ज्योतिष शास्त्र में सक्रिय रुचि होती है। वह मृदुभाषी और दूसरों को प्रभावित, आकर्षित करने वाला भी होता है। शुक्र की दृष्टि भी उसे भवन निर्माण के व्यवसाय में प्रवृत्त करती है । शनि की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक धनी और अपने समाज का नेता होता है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शुक्र पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शुक्र शुभ फल देता है, विशेषकर वैवाहिक जीवन में । प्रथम चरण: यहाँ शुक्र जातक को उदार, परोपकारी और धनी बनाता है। सभी इससे संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं । द्वितीय चरणः यहाँ भी शुक्र शुभ फल देता है । तृतीय चरण: यहाँ शुक्र जातक का वैवाहिक - पारिवारिक जीवन सुखी रखता है । पत्नी सुदंर, सुशील होती है। जातक को स्त्रियों के माध्यम से लाभ मिलता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 134 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरणः यहाँ भी शुक्र वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाता है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। पूर्वा फाल्गुनी स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को विद्वान बनाती है। जातक शासकीय सेना में होता है । चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप इसका जीवन सुखी, समृद्धिशाली और व्यक्तित्व आकर्षक होता है। मंगल की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। स्त्रियों की कुसंगति में जातक पैतृक संपत्ति का नाश कर देता है । बुध की दृष्टि उसे हर दृष्टि से सुखी रखती है। जातक धनी होता है । उसे संतान सुख भी मिलता है। गुरु की दृष्टि जातक को हर दृष्टि से सौभाग्यशाली बनाती है । शनि की दृष्टि का शुभ फल नहीं होता। जीवन अभावग्रस्त और कष्टमय बीतता है । पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शनि पूर्वा फाल्गुनी के प्रथम चरण को छोड़कर विभिन्न चरणों में शनि प्रायः शुभ फल देता है। प्रथम चरण ः यहाँ शनि बचपन को बेहद कष्टकारक बना देता है। जातक को मस्तिष्क - विकार की भी आशंका बनी रहती है । द्वितीय चरण: यहाँ शनि शुभ फल देता है। जातक संवदेनशील लेखक होता है । वह उदार और उत्साही भी होता है। उसका पारिवारिक जीवन शुभ से बीतता है। प्रौढ़ावस्था में समाज की उसे मान्यता प्राप्त होती है । तृतीय चरण: यहाँ शनि जातक को अत्यंत परोपकारी बनाता है । जातक सत्यनिष्ठ कार्य कुशल और दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर होता है । चतुर्थ चरणः जातक घोर परिश्रमी होता है, पर उसे अपने परिश्रम का फल तत्काल नहीं मिलता। उसे विलंब से सफलता मिलती है। पूर्वा फाल्गुनी स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल नहीं देती। जातक स्वभाव से उग्र और निम्न कोटि के कार्यों में प्रवृत्त होता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 135 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि उसे शासकीय अथवा राजनीति के क्षेत्र में सफल बनाती है । उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है । मंगल की दृष्टि अतिशय बुद्धिमान और वैज्ञानिक बनाती है । बुध की दृष्टि उसे धनवान बनाती है । गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक सद्गुणी और परोपकारी होता है । राजनीति में भी उसे सफलता मिलती है । शुक्र की दृष्टि जातक को धार्मिक स्वभाव वाला बनाती है । पूर्वाफाल्गुनी के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरणः जातक उदार, सद्गुणी और व्यवसाय में सफल रहता है। वह सफल प्रशासक भी होता है । द्वितीय चरणः जातक परिश्रमी होता है और अपने बाहुबल से सफलता और सम्मान अर्जित करता है । तृतीय चरणः जातक यायावर होता है। विदेशों में प्रवास से उसे धन लाभ होता है । चतुर्थ चरणः जातक बुद्धिमान, कार्यकुशल और जीवन में सफल रहता है। शासन से उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है। पूर्वा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरण ः यहाँ केतु सर्वोत्तम फल देता है। जातक को अर्थ-लाभ, यश - लाभ और जीवन में सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं । उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी बीतता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी केतु सौभाग्य कारक होता है। जातक को अर्थलाभ, यश - लाभ और हर तरह के शुभ का लाभ मिलता है । तृतीय चरणः यहाँ केतु व्यक्ति को अत्यधिक धार्मिक वृत्ति का बनाता है । ईश्वर पर उसकी अगाध आस्था होती है। वह स्पष्ट वक्ता भी होता है । चतुर्थ चरण: यहाँ केतु जातक को परिश्रमी बनाता है। वह जीवन में उत्तरोत्तर प्रगति करता है। ज्योतिषकौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 136 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरा फाल्गुनी __उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र राशिपथ में 146.40 से 160.00 अंशों तक स्थित है। पर्यायवाची नाम हैं-अर्यमा, उत्तर भ्नाम । अरबी में इसे 'अल सरफाह' कहते हैं। यह नक्षत्र सिंह एवं कन्या राशि में बंटा हुआ है। प्रथम चरण सिंह राशि (स्वामी : सूर्य) में तथा बाद के तीन चरण कन्या राशि में, जिसका स्वामी बुद्ध है, आते हैं। इस नक्षत्र में दो तारे हैं, जो एक शैया का भास देते हैं। ___ नक्षत्र देवता अर्यमा तथा नक्षत्र का स्वामी ग्रह सूर्य है। नक्षत्र का गणः मनुष्य, योनिः गौ और नाडीः आदि है। चरणाक्षर हैं: टे, टो, पा, पी। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातक लंबे, स्थूलकाय एवं कुछ लंबी नाक वाले होते हैं। स्वभाव से वे धार्मिक, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, समाजसेवी तथा सौंपे गये कार्य पूर्ण उत्तरदायित्व से करने वाले होते हैं, फलतः जीवन सुखी और संतुष्ट बीतता है। उनकी स्वतंत्रप्रिय प्रवृत्ति कभी-कभी उन्हें अधीर, हठी एवं गुस्सैल भी बना देती है, तथापि दिल के वे.साफ होते हैं। वे किसी को धोखा देना नहीं जानते, न चाहते। वे जनसंपर्क के कार्यों से लाभान्वित हो सकते हैं। उनमें एक यही कमी होती है कि वे औरों का काम तो बड़ी निष्ठा से निभाते हैं, लेकिन अपने कार्यों के मामले में लापरवाही ही होते हैं। यों वे कठिन परिश्रम से नहीं घबराते, फलतः जीवन में तरक्की भी करते हैं। अध्यापन, लेखन, वैज्ञानिक शोध आदि के क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा खूब चमकती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 137 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जातकों का बत्तीस वर्ष की आयु तक का जीवन घोर संघर्षमय कहा गया है। अड़तीस वर्ष की अवस्था के बाद उनकी तेजी से तरक्की होती है। उनका पारिवारिक जीवन न्यूनाधिक रूप से सुखी ही होता है क्योंकि वे संतोषप्रिय होते हैं। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं मध्यम कद की, कोमल शरीर तथा कुछ लंबी नाक वाली होती हैं। वे शांतिप्रिय, सिद्धांतप्रिय तथा मृदुभाषी भी होती हैं। गणित एवं विज्ञान में उनकी विशेष रुचि होती है तथा अध्यापन एवं प्रशासन के क्षेत्र में वे सफलता प्राप्त कर सकती हैं। माडलिंग या अभिनय के क्षेत्र में भी वे सफल हो सकती हैं। गृह कार्य में भी वे दक्ष होती हैं। ऐसी जातिकाओं को प्रदर्शन-प्रियता से बचने की सलाह दी गयी है। ___ ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक-पारिवारिक जीवन पूर्णतः सुखी रहता है, पति एवं बच्चों से उन्हें हमेशा सुख-संतोष ही मिलता है। उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों के स्वामी ग्रह इस प्रकार हैं: प्रथम एवं चतुर्थ चरण का स्वामी गुरु एवं द्वितीय तथा तृतीय चरण का स्वामी शनि। उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में सूर्य उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में सूर्य सामान्यतः शुभ फल देता है। इस नक्षत्र में सूर्य कलात्मक अभिरुचियां बढ़ाता है। प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक को उत्साही, वाचाल और महत्त्वाकांक्षी बनाता है। स्वभाव की उग्रता के कारण वह अलोकप्रिय भी हो जाता है। द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य दार्शनिक स्वभाव में वृद्धि करता है। जातक में लेखन प्रतिभा होती है। तृतीय चरण: यहाँ भी सूर्य कलात्मक अभिरुचियों में वृद्धि करता है। जातक को साहित्य से, चित्रकला से प्रेम होता है। उसमें संवेदनशीलता कुछ अधिक होती है और वह एक सफल कवि या चित्रकार भी बन सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य सामान्यतः शुभ फल देता है। जातक की ललित कलाओं में रुचि होती है। उत्तरा फाल्गुनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि उत्तरा फाल्गुनी स्थित सूर्य पर चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को संबंधियों से कष्ट मिलता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 138 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि भी शत्रुओं में वृद्धि करती है । बुध की दृष्टि के फलस्वरूप संबंधियों की ईर्ष्या का पात्र बनता है । गुरु की दृष्टि उसमें तंत्र-मंत्र के प्रति सक्रिय रुचि बढ़ाती है । शुक्र की दृष्टि विदेशों में प्रवास की संभावनाएं प्रबल करती है शनि की दृष्टि के फलस्वरूप उसे पग-पग पर अपमानित होना पड़ता है, विशेषकर स्त्रियों से । 1 उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में चंद्र उत्तरा फाल्गुनी में चंद्रमा एक ओर कलात्मक अभिरुचियां बढ़ाता है तो दूसरी अधिक कन्याओं का योग भी बनाता है। प्रथम चरणः यहाँ चंद्र व्यक्ति को साहसी बनाता है। वह मातृभक्त होता है। वह कमाता भी खूब है, पर उसी तरह गंवाता भी खूब है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को धर्म के प्रति निष्ठावान बनाता है । स्वभाव से वह उदार, दयावान भी होता है। तंत्र-मंत्र में भी उसकी रुचि होती है एवं वह एक जगह स्थिर नहीं रहता । परिवर्तन की लालसा उसे यायावर बना देती है। अधिक कन्याओं का भी योग बताया गया है । तृतीय चरण: यहाँ भी चंद्र अधिक कन्याओं का योग बनाता है। जातक व्यवहार चतुर और शास्त्रों का ज्ञाता होता है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावपूर्ण होता है । चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र जातक को सुख-समृद्धि प्रदान करता है । जातक सद्गुणी, लोभहीन और संतोषी प्रवृत्ति का होता है । उत्तरा फाल्गुनी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि पराभौतिकी के क्षेत्र में जातक की रुचि बढ़ाती है । मंगल की दृष्टि भी उसे विद्वान बनाती है । बुध की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को शासन से भी लाभ मिलता है । गुरु की दृष्टि के कारण जातक विद्या दान को परम धर्म समझता है। वह विद्वान होता है। अपने ज्ञान को औरों को बांटने में उसे आत्मिक सुख मिलता है । शुक्र की दृष्टि उसे जीवन सुख-समृद्धि प्रदान करती है । शनि की दृष्टि के फलस्वरूप वह अभावग्रस्त रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 139 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में बुध उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में बुध की स्थिति जातक को वाणिज्य-व्यवसाय एवं वित्तीय विषयों में विशेषज्ञ बनाती है। प्रथम चरण: यहाँ बुध जातक को वित्तीय लेखा-जोखा रखने में । कुशलता प्रदान करती है। उसकी ज्योतिष शास्त्र एवं खगोल शास्त्र में भी रुचि होती है। द्वितीय चरणः यहाँ भी बुध जातक को लेखापाल अथवा वित्तीय-विशेषज्ञ बनाता है। धार्मिक विषयों में भी उसकी रुचि होती है। जातक लेखन में भी प्रवृत्त होता है। - तृतीय चरणः यहाँ बुध जातक को विद्वान, उदार व सद्गुणी बनाता है। . चतुर्थ चरण: यहाँ भी बुध जातक को वित्तीय विषयों का विशेषज्ञ बनाता है। धार्मिक विषयों में, ज्योतिष शास्त्र में उसकी रुचि होती है। प्रौढ़ावस्था में वह अपना स्वतंत्र कार्य शुरू करता है। उत्तरा फाल्गुनी स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को शासन से लाभ दिलवाती है। चंद्र की दृष्टि उसे योग्य प्रशासक बनाती है। मंगल की दृष्टि का सामान्य फल मिलता है। गुरु की दृष्टि जातक को विद्वान, वित्तीय विषयों का विशेषज्ञ और धनी बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप पारिवारिक जीवन अशांत रहता है। शनि की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक अपने सद्व्यवहार के कारण लोकप्रिय होता है। सर्वत्र आदर पाता है। उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में गुरु उत्तरा फाल्गुनी के चतुर्थ चरण में गुरु विशेष फल देता है। प्रथम चरण: यहाँ गुरु जातक को सटोरिया बना देता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक को लेखन के क्षेत्र में सफल बनाता है। साहित्य में उसकी विशेष रुचि होती है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु सामान्य फल देता है। चतुर्थ चरण: यहाँ गुरु शुभ फल देता है। राजनीति के क्षेत्र में जातक प्रतिष्ठित पद प्राप्त करता है। वह यशस्वी और प्रसिद्ध भी होता है। उसके अच्छी संतान होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 140 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरा फाल्गुनी स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को धनी, समादृत और पारिवारिक दृष्टि से सुखी रखती है। चंद्र की दृष्टि योग्य प्रशासक बनाती है। उसमें नेतृत्व के गुण होते हैं। मंगल की दृष्टि उसे वाहन संबंधी रोजगारों में प्रवृत्त करती है। बुध की दृष्टि उसे सफल ज्योतिषी और गणितज्ञ बनाती है। शुक्र की दृष्टि उसे धनी बनाती है। शनि की दृष्टि का अत्यंत शुभ फल होता है। जातक धनी और पारिवारिक दृष्टि से भी बेहद सुखी रहता है। उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शुक्र उत्तरा फाल्गुनी में शुक्र सामान्य एवं मिश्रित फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ शुक्र व्यक्ति को घीर-गंभीर और उदार बनाता है। स्त्रियों से उसे आर्थिक लाभ होता है। उसकी पत्नी सुंदर, सुशील और सुशिक्षित होती है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र जातक को अभावग्रस्त रखता है। पत्नी के स्वभाव के कारण उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र सामान्य फल देता है। उत्तरा भाद्रपद में मंगल की स्थिति पत्नी के जीवन की दृष्टि से अशुभ कही गयी है। जातक के अवैध संबंध होने के भी योग बताये गये हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र अप्रत्याशित फल देता है। बेहद शुभ भी और बेहद अशुभ भी। उत्तरा फाल्गुनी स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को चिकित्सक बनाती है। दो पत्नियों के भी संकेत बताये गये हैं। चंद्र की दृष्टि उसे संकोची बनाती है। वह स्त्रियों में लोकप्रिय होता है। मंगल की दृष्टि उसे सौभाग्यशाली बनाती है। बुध की दृष्टि से जातक का व्यक्तित्व आकर्षक एवं स्वभाव का शांत होता है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप वह विद्वान होता है। शनि की दृष्टि उसे चरित्र की दृष्टि से कमजोर बनाती है। कामातिरेक के कारण जातक तरह-तरह की व्याधियों का शिकार हो सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 141 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शनि उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में शनि के विशेष शुभ फल नहीं मिलते। प्रथम चरण: यहाँ शनि सामान्य फल देता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी शनि से सामान्य फल मिलते हैं। तृतीय चरण: यहाँ शनि जातक को गुह्य विद्याओं की ओर प्रेरित करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि कष्ट कारक होता है। उत्तरा फाल्गुनी स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को पिता से कोई लाभ नहीं मिलता। पिता से उसकी अनबन बनी रहती है। - चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप उसे विधवा बहन का बोझ उठाना पडता है। मंगल की दृष्टि भाई-बहनों के लिए अशुभ मानी गयी है। बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। गुरु की दृष्टि उसे शासन से लाभ दिलवाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप दो पत्नियों का योग बनता है। उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में राहु उत्तरा फाल्गुनी के द्वितीय चरण में ही राहु कुछ शुभ फल देता है, अन्यथा उसका प्रभाव ही होता है। प्रथम चरणः यहाँ राहु जातक को दुर्गुणी बनाता है। वह अभावग्रस्त, निष्ठाहीन होता है। चोरी की मनोवृत्ति के फलस्वरूप वह हेय दृष्टि से देखा जाता है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु होने से जातक अतिशय महत्त्वाकांक्षी होता है। वह कार्य दक्ष भी होता है। पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। तृतीय चरण: यहाँ राहु जातक को विलासी बनाता है। कामाधिक्य के कारण उसे गुप्त रोग होते हैं। उसके धन का नाश भी होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु जातक को दरिद्र बनाता है। व्यक्ति ईमानदारी भी खो बैठता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 142 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरा फाल्गुनी के विभिन्न चरणों में केतु राहु की तुलना में केतु उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में कुछ शुभ फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक को धनी बनाता है। उसका पारिवारिक जीवन भी सुखी रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु जातक में प्रतिहिंसा की भावना भरता है। जातक को पत्नी पक्ष से आर्थिक लाभ होता है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को गुह्य विद्याओं का प्रेमी और ज्योतिषी बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ केतु वाहन से दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ाता है। जातक शासकीय सेवा में होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 143 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हस्त हस्त राशिपथ में 160.00 से 173.20 अंशों के मध्य स्थित नक्षत्र है। भानु, अर्क एवं असण' अन्य पर्यायवाची नाम हैं। अरबी में इसे 'अल अवा' कहते है। हस्त नक्षत्र में पांच तारों की स्थिति मानी गयी है, जो हथेली की भांति दिखायी देते हैं। हस्त नामकरण के पीछे शायद यही कारण है। हस्त का देवता सूर्य एवं स्वामी ग्रह चंद्र माना गया है। गण: देव, योनिः महिष एवं नाडीः आदि है। इस नक्षत्र के चारों चरण कन्या राशि में आते हैं, जिसका स्वामी बुध है। . चरणाक्षर हैं-पू, ष, ण, ठ। हस्त नक्षत्र में जन्मे जातक लंबे एवं हष्ट-पुष्ट शरीर वाले होते हैं। ऐसे जातक शांतप्रिय, जरूरतमंदों की सहायता के लिए सदैव तत्पर, आडम्बर से शून्य होते हैं। वे सदैव मुस्कराते रहते हैं तथा अपने व्यक्तित्व और कृत्तित्व से लोगों में सम्मान और आदर के पात्र बनते हैं। ऐसे जातक अनुशासनप्रिय तथा जीवन में आने-वाले हर उतार-चढ़ाव का विवेक से सामना करते हैं। उनके जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। चूंकि ऐसे जातक किसी की पराधीनता पसंद नहीं करते, अतः अक्सर वे उद्योग एवं व्यवसाय में उच्च पद पर अपनी मेहनत के बल पर पहुँच ही जाते हैं। हस्त नक्षत्र में जातक अच्छे सलाहकार भी सिद्ध होते हैं। विवादों का निपटारा करने में उन्हें एक तरह की दक्षता प्राप्त होती है। हस्त नक्षत्र में जातक छोटे-मोटे विवादों के बावजूद वैवाहिक जीवन ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 144 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख से बिताते हैं। उन्हें पत्नी भी अच्छी मिलती है, सुगृहिणी, गृहकार्य में दक्ष। हस्त नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर, कोमल शरीर तथा आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं। नारी सुलभ लज्जा से युक्त ऐसी जातिकाएं बड़ों का आदर करने तथापि अपनी अभिव्यक्ति को येन-केन-प्रकरण प्रकट कर देने वाली होती हैं। कभी-कभी अभिव्यक्ति की उनकी यह स्वतंत्रता संबंधियों को शत्रु तक बना देती है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखद माना गया है, तथापि उन्हें मूल नक्षत्र में जन्मे जातक से विवाह न करने का परामर्श दिया गया है। ऐसी जातिकाओं को प्रथम संतान पुत्र होती है। हस्त नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी ग्रह इस प्रकार हैं-प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरण: शुक्र, तृतीय चरणः बुध एवं चतुर्थ चरण: चंद्रमा। हस्त के विभिन्न चरणों में सूर्य हस्त के विभिन्न चरणों में सूर्य सामान्य फल देता है। यदि सूर्य के साथ, शुक्र की भी युति हो तो विवाह में विलंब होता है। पैंतीस वर्ष की अवस्था में ही यह कार्य संपन्न हो पाता है। प्रथम चरण: यहाँ सूर्य जातक को निर्माण कार्यों से संबंधित व्यवसाय में प्रवृत्त करता है, यथा इंजीनियर, ठेकेदार आदि। इस चरण में यदि सूर्य के साथ शुक्र भी हो तो विवाह में विलंब होता है, विशेषकर स्त्रियों के मामले में। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। जीवन साधारण बीतता है। यदि सूर्य के साथ शुक्र हो तो जातक की पत्नी उसके लिए मानसिक संताप का कारण बन जाती है। तृतीय चरण: यहाँ भी सूर्य शुक्र की युति विवाह में विलंब कारक है, विशेषकर स्त्रियों के मामले में। इस चरण में सूर्य अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ाता है। जातक विद्वान होता है और ज्ञानदान में उसे संतोष मिलता है। चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य साहित्य के प्रति रूझान जागृत करता है। व्यक्ति में लेखन प्रतिभा होती है। वह अनुवादक और दुभाषिये का कार्य भी भली-भांति कर सकता है। हस्त स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को जन्म-स्थल से दूर रखती है। संबंधी भी सहायक नहीं होते। उनसे कष्ट ही मिलता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 145 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि उसे आलसी बनाती है। बुध की दृष्टि उसकी संतान को शासन से लाभ प्राप्त करवाती है। गुरु की दृष्टि उसे गुह्य विद्याओं की ओर प्रवृत्त करती है। पत्नी और संतान से संबंधों की दृष्टि से यह स्थिति अशुभ है। शुक्र की दृष्टि विदेशों का प्रवासी बनाती है। शनि की दृष्टि कामवासना बढ़ाती है। हस्त के विभिन्न चरणों में चंद्र हस्त के विभिन्न चरणों में चंद्र सामान्य फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ चंद्र सामान्य फल देता है। इस चरण में जन्म पिता के लिए अशुभ माना गया है। द्वितीय चरणः इसमें जन्म मामा के लिए अशुभ होता है। जातक को मादक पदार्थ ग्रहण करने में विशेष रुचि होती है। यह उसे रोगी बनाती है। तृतीय चरण: यहाँ जन्म स्वयं जातक के लिए घातक बताया गया है। जातक व्यवसाय भी कर सकता है। इंजीनियरिंग में भी उसकी रुचि होती है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र जातक को सहृदय, संवदेनशील बनाता है। वह लेखक भी हो सकता है। प्रकाशन व्यवसाय में भी रुचि होती है। इस चरण में जन्म माता के लिए अशुभ माना गया है। हस्त स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को विद्वान बनाती है, पर वह अर्थाभाव से ग्रस्त भी रहता है। ___ मंगल की दृष्टि उसे विविध विषयों का विद्वान और धनी बनाती है। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप उसे सदैव अपने उच्चाधिकारियों की कृपा का लाभ मिलता रहता है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप वह एक प्रतिभाशाली एवं प्रसिद्ध विद्वान बनता है। शुक्र की दृष्टि उसे चिकित्सा-व्यवसाय में प्रवृत्त करती है। शनि की दृष्टि उसे धन से, पारिवारिक सुख से वंचित रखती है। हस्त के विभिन्न चरणों में बुध हस्त के विभिन्न चरणों में बुध सामान्य फल देता है तथापि यदि अन्य ग्रह भी अनुकूल हो, तो जातक राजा अथवा राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के तुल्य ज्योतिष-कोमुनी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार 16 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता है, उदाहरण के लिए यदि प्रथम चरण में यह नक्षत्र लग्न में हो और उसमें बुध स्थित हो, साथ ही रेवती नक्षत्र में गुरु, सूर्य और मंगल हो, पुष्य में शनि हो तथा पूर्वाषाढ़ा में शुक्र हो तो जातक राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के तुल्य होता है। प्रथम चरणः यहाँ बुध मध्यम श्रेणी की संपन्नता प्रदान करता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी बुध सामान्य फल देता है। . तृतीय चरणः यहाँ बुध जातक को वित्तीय विषयों में निष्णात बनाता है। यदि सूर्य के साथ बुध हो अर्थात् बुद्धादित्य योग बनता हो तो जातक अच्छा ज्योतिषी बनता है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध नौकरी पेशे में प्रवृत्त करता है। अपनी खान-पान की आदतों के फलस्वरूप जातक उदर रोगों का शिकार हो जाता है। हस्त स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल देती है। व्यक्ति, सत्यवादी, उच्च पदासीन और सत्ता पक्ष से लाभान्वित होता है। चंद्र की दृष्टि उसे मृदुभाषी लेकिन स्वभाव से उग्र भी बनाती है। जातक सरकारी नौकरी को प्राथमिकता देता है। मंगल की दृष्टि उसे कला-प्रिय बनाती है। वह विविध कलाओं में निष्णात भी होता है। गुरु की दृष्टि उसे साहसी और सर्वगुण संपन्न बनाती है। शुक्र की दृष्टि से जातक सहजता से शत्रुओं को पराजित करता है। __ शनि की दृष्टि उसे कठिन परिश्रमी बनाती है। ऐसे जातक को अपने परिश्रम का तत्काल फल भी मिलता है। हस्त के विभिन्न चरणों में गरु हस्त के विभिन्न चरणों में गुरु के मध्यम फल मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ गुरु सामान्य फल देता है तथापि यदि लग्न में रेवती नक्षत्र हो तो जातक वित्तीय विषयों का विशेषज्ञ बनाता है और शासन में उच्च पद प्राप्त करता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक को नौ सेना अथवा जहाज रानी से जोड़ता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु जातक को वास्तुकार अथवा इंजीनियर . ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार 3 147 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनाता है। उसे अच्छी पत्नी मिलती है। स्वास्थ्य और धन की दृष्टि से भी जीवन उत्तम बीतता है। चतुर्थ चरण ः यहाँ गुरु जातक को प्रकाशन व्यवसाय से जोड़ता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह स्थिति शुभ नही है। जातक को उदर रोगों से पीड़ा बनी रहती है । हस्त स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी और पत्नी, बच्चे एवं संबंधियों का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। चंद्र की दृष्टि उसे व्यवहार कुशल, सफल प्रशासक बनाती है । मंगल की दृष्टि उसे सेना में सेवा के लिए प्रवृत्त करती है। बुध की दृष्टि ज्योतिर्विद बनाती है। पारिवारिक जीवन सुखी रहता है । शुक्र की दृष्टि का शुभ फल नहीं होता । जातक को स्त्रियों से अपमानित होना पड़ता है। शनि की दृष्टि उसे शासन का कृपा भाजन बनाती है। जातक राजनीतिक दायित्व सफलतापूर्वक संपादित करता है। हस्त के विभिन्न चरणों में शुक्र हस्त के विभिन्न चरणों में शुक्र व्यक्ति को मिष्ठान प्रिय, विलासी और रोगी बनाता है । पारिवारिक जीवन के लिए भी यह स्थिति शुभ नहीं है। प्रथम चरण ः यहाँ शुक्र जातक को मिष्ठान प्रिय बनाता है फलत: अच्छे स्वास्थ्य के बावजूद शर्करा रोग का शिकार हो जाता है। जातक का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं बीतता । द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र एकाधिक स्त्रियों से संबंध कराता है, फलतः उसका पारिवारिक जीवन नर्क तुल्य बन जाता है। तृतीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को मिष्ठान भोजी बनाता है। जातक या तो सूती मिल में सेवारत होता है या फिर कपड़े का व्यवसाय करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को अत्याधिक विलासी बनाता है फलतः वह यौन रोगों का भी शिकार होता है। वह मद्य प्रेमी भी होता I हस्त स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सुरक्षा विभाग में उच्च पद दिलाती है। चंद्र की दृष्टि उसे सुरुचिपूर्ण स्वभाव देती है । ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 148 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि उसे हर दृष्टि से सौभाग्यशाली बनाती है। बुध की दृष्टि उसे विद्वान और धनी बनाती है। गुरु की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। शनि की दृष्टि का फल ठीक नहीं होता। जातक का अपमानित जीवन कष्टमय होता है। हस्त के विभिन्न चरणों में शनि की स्थिति हस्त के विभिन्न चरणों में शनि सामान्य फल देता है। जातक उदर रोगों से भी ग्रस्त रहता है। प्रथम चरणः यहाँ शनि सामान्य फल देता है। जातक कब्ज का शिकार हो जाता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी शनि के विशेष फल प्राप्त नहीं होते। . तृतीय चरण: यहाँ शनि जातक को लेखन-प्रकाशन के व्यवसाय में प्रवृत्त करता है। चमड़े से बनी वस्तुओं के व्यापार में उसे सफलता मिलती है। जातक उदर व्याधि से पीड़ित रहता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि जातक को इतना स्वार्थी, चतुर और व्यवहार कुशल बनाता है कि लोग उसे 'धूर्त' कहने लगते हैं। वह अवैध कार्य करने में कोई हिचक नहीं अनुभव करता। इस चरण में शनि उदर रोगों से पीड़ित रखता है। हस्त स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दष्टि सूर्य की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्ति कुसंगति का शिकार होता है। चंद्र की दृष्टि का फल शुभ होता है। आकर्षक व्यक्तित्व से युक्त जातक प्रसिद्ध, धनी और अधिकार-संपन्न होता है। मंगल की दृष्टि उसे शास्त्रज्ञ और विद्वान बनाती है। बुध की दृष्टि उसे धनी, विद्वान और सामरिक नीति में निपुण बनाती है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप धनी, प्रसिद्ध और परोपकारी होता है। शुक्र की दृष्टि उसे आभूषणों से संबंधित व्यवसाय में सफल बनाती है। हस्त के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरणः यहाँ राहु जातक को तकनीकी क्षेत्र में सफल बनाता है। पर उसे परिश्रम का फल विलंब से मिलता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 149 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . द्वितीय चरणः यहाँ राहु की स्थिति जातक को नौकरी में प्रवृत्त करती हैं। वह यातायात अथवा राजस्व विभाग में नौकरी करता है। तृतीय चरणः यहाँ राहु सामान्य फल देता है। स्त्रियों की कुंडली में में स्थित राहु कामावेग में वृद्धि करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु व्यक्ति को दुर्गुणों से युक्त करता है। हस्त के विभिन्न चरणों में केत । प्रथम चरण: यहाँ केतु विशेष लाभ नहीं देता। जातक का जीवन सामान्य बीतता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी केतु शुभ फल नहीं देता। जातक की स्मरण-शक्ति क्षीण होती है। __ तृतीय चरणः यहाँ केतु शुभ फल देता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है और उत्तरोत्तर उन्नति करता जाता है। . चतुर्थ चरण: यहाँ भी केतु शुभ फल देता है। गुरु के साथ केतु की युति जातक को प्रकाशन व्यवसाय में प्रवृत्त करती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 150 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रा चित्रा नक्षत्र राशिपथ में 173.20 से 186.40 अंशों के बीच स्थित है । त्वष्टा एवं सरवर्द्धक इसके पर्यायवाची नाम हैं । अरबी में चित्रा को 'अज सिमक' कहा जाता है । इस नक्षत्र के प्रथम दो चरण कन्या राशि (स्वामी : बुध) एवं शेष दो चरण तुला राशि (स्वामी : शुक्र) में आते हैं। चित्रा में एक ही तारे की स्थिति मानी गयी है और उसे मोती के समान माना गया है। चित्रा का नक्षत्र देवता त्वष्टा एवं स्वामी ग्रह मंगल है। गणः राक्षस, योनिः व्याघ्र एवं नाड़ी: मध्य है । चरणाक्षर हैं- पे, पो, रा, री चित्रा नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः छरहरे होते हैं । वे बेहद बुद्धिमान, शांतिप्रिय तथा अंतर्ज्ञान शक्ति से संपन्न होते हैं। अक्सर उन्हें स्वप्न में भावी का ज्ञान हो जाता है। यद्यपि ऐसे जातक स्वार्थी नहीं होते तथापि वे अपनी जिद के भी पक्के होते हैं । फलतः जीवन में उन्हें पग-पग पर विरोध का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह विरोध और बाधा उनकी प्रगति का ही कारक बनता है। ऐसे जातकों में समाज के वंचित वर्गों के प्रति सच्ची सहानुभूति होती है तथा उनके उत्थान के लिए वे चेष्टारत भी रहते हैं । 1 ऐसे जातकों का बत्तीस वर्ष तक की अवस्था का जीवन संघर्षमय रहता है। तैंतीसवें वर्ष से उनके जीवन में जैसे स्वर्णकाल का पदार्पण होता है। चित्रा नक्षत्र में जन्मे जातकों को पिता से विशेष स्नेह एवं संरक्षण तथा उसकी स्थिति का लाभ भी मिलता है । तथापि ऐसे जातकों के वैवाहिक जीवन में अनबन जैसे स्थायी पारिवारिक सदस्य बनकर रहने लगती है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 151 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर, स्वतंत्रताप्रिय तथा कभी-कभी गैर-जिम्मेदार व्यवहार करने वाली होती हैं। उनकी विज्ञान में रुचि होती है और उसी में शिक्षा प्राप्त करती हैं। ऐसी जातिकाओं के विवाह के समय कुंडली-मिलान आवश्यक कहा गया है अन्यथा वैवाहिक जीवन के दुखी अथवा जीवन साथी से विलगाव की आशंका बनी रहती है। चित्रा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरण: शुक्र एवं चतुर्थ चरणः मंगल। चित्रा के विभिन्न चरणों में सूर्य प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक को धनी बनाता है। उसकी मशीनों में दिलचस्पी होती है और वह एक सफल मैकेनिक बन सकता है। ऐसा जातक अपनी पत्नी की कोई बात टालता नहीं। द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य व्यक्ति को औषधियों, रसायन अथवा मादक द्रव्यों के व्यवसाय में प्रवृत्त करता है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य जातक की धार्मिक विषयों में अभिरुचि बढ़ाता है। वह विद्वान भी होता है। ____ चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य प्रथम चरण की भांति मशीनों के प्रति दिलचस्पी बढ़ाता है। जातक एक सफल-कुशल मैकेनिक बन सकता है। चित्रा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को जल संबंधी व्यवसाय में लाभ देती है। उस पर अनेक स्त्रियों के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व भी होता है। मंगल की दृष्टि उसे साहसी और वैभव-संपन्न बनाती है। बुध की दृष्टि से उसे लेखन प्रतिभा प्राप्त होती है। गुरु की दृष्टि से उसे सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप राजनीतिक क्षेत्र में उच्च पद-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। शनि की दृष्टि मनोवृत्ति संकीर्ण बनाती है। कामाधिक्य के फलस्वरूप व्यक्ति अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियों से भी संबंध जोड़ लेता है। चित्रा के विभिन्न चरणों में चंद्र प्रथम चरण: यहाँ चंद्र मृदुभाषी बनाता है। ललित कलाओं में जातक की विशेष अभिरुचि होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 152 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र जातक को उदार, परोपकारी और सत्यवादी बनाता है। विदेश में प्रवास करने की अवसर मिलते हैं। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ और मृदुभाषी बनाता है। जातक प्रसिद्ध होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी चंद्र उदार, परोपकारी और माता-पिता एवं गुरुजन के प्रति आदर रखने वाला बनाता है। चित्रा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को धनी, साहूकार बनाती है। कृषि में भी उसे लाभ होता है। ___मंगल की दृष्टि वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ होती है। परस्त्री के कारण जातक अपनी पत्नी को भी त्याग देता है। बुध की दृष्टि उसे विद्वान बनाती है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप उसे पारिवारिक ही नहीं, अन्य सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। शुक्र की दृष्टि भी जीवन सुखी रखती है। मात-पक्ष से लाभ होता है। शनि की दृष्टि अभावग्रस्त रखती है। माता के लिए यह दृष्टि अशुभ मानी गयी है। चित्रा के विभिन्न चरणों में बध चित्रा नक्षत्र में बुध शुभ फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ बुध जातक की हर विपत्ति से रक्षा करता है। वह अपने सद्गुणों के कारण सबके आदर का पात्र भी होता है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध जातक को धार्मिक, सद्गुणी, उदार और विद्वान बनाता है। वैवाहिक जीवन भी सुखी होता है। तृतीय चरणः यहाँ बुध जातक को धनी बनाता है। जातक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विशेष दक्षता प्राप्त करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ बुध की स्थिति शुभ नहीं मानी गयी है। जातक को संबंधियों से सदैव परेशानी रहती है। चित्रा स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि प्रायः नहीं पड़ती। कारण सूर्य के निकट ही बुध होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 153 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करता है। मंगल की दृष्टि के विषय में भी सूर्य की स्थिति समझनी चाहिए । गुरु की दृष्टि उसमें नेतृत्व के गुण भरती है । शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को हर तरह की सुख-सुविधा प्राप्त होती है। शनि की दृष्टि जीवन में बाधाएं पैदा करती है। चित्रा के विभिन्न चरणों में गुरु प्रथम चरण: यहाँ गुरु रोग कारक माना गया है तथापि जातक दीर्घजीवी होता है । द्वितीय चरणः यहाँ गुरु व्यक्ति को मित्रों के लिए सर्वस्व जुटा देने वाला बनाता है, फलतः उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु शुभ फल देता है । जातक धनी, स्वस्थ और परिवार से सुखी - संपन्न रहता है। चतुर्थ चरण ः यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है । यदि लग्न में गुरु इसी चरण में हो तो जातक दीर्घजीवी, धनी और विद्वान होता है । चित्रा स्थित गुरु पर ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक धनी, सुख-सुविधा संपन्न और सत्ता पक्ष के निकट होता है। चंद्र की दृष्टि का मिश्रित फल होता है। एक ओर जातक समृद्धियुक्त होता है तो दूसरी ओर कामाधिक्य के कारण वह बदनाम भी हो जाता है। मंगल की दृष्टि जातक को विद्वान और साहसी बनाती है । बुध की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक धनी, विद्वान और सद्गुणों से युक्त होता है । शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्तित्व आकर्षक बन जाता है । शनि की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक विविध विषयों का विद्वान होता है पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता । चित्रा के विभिन्न चरणों में शुक्र प्रथम चरण: यहाँ शुक्र मिश्रित फल देता है। जातक सुशिक्षित होता है, तथापि उसका व्यवहार निम्न श्रेणी का होता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 154 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को पत्नी और संतान का पूर्ण सुख प्रदान करता है। . . तृतीय चरण: यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। जातक में नेतृत्व और प्रशासन की क्षमता होती है। सत्ता पक्ष से उसे लाभ मिलता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र जातक को साहसी और परिश्रमी बनाता है। वह अपने बल-बूते पर जीवन में सब कुछ अर्जित करता है। चित्रा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि का शुभ फल मिलता है। जातक वैभव-संपन्न होता है। पत्नी भी सुंदर मिलती है। चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को अपनी मां की पद-प्रतिष्ठा का लाभ मिलता है। ___ मंगल की दृष्टि का वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ___ बुध की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक सौभाग्यशाली, सुखी होता है। गुरु की दृष्टि पारिवारिक जीवन सुखी-संपन्न रखती है। पत्नी और बच्चे से पूर्ण संतोष मिलता है। शनि की दृष्टि का शुभ फल नहीं मिलता। जातक अभावग्रसत रहता है। उसका पारिवारिक जीवन भी अशांत रहता है। चित्रा के विभिन्न चरणों में शनि । प्रथम चरणः यहाँ शनि शुभ फल नहीं देता। जातक धनहीन होता है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि जातक को अभावग्रस्त रखता है। तृतीय चरण: यहाँ शनि सामान्य फल देता है तथापि यदि लग्न में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र हो एवं चंद्र अश्विनी नक्षत्र में स्थित हो तो जातक अत्यंत वैभवशाली ही नहीं, अधिकार-संपन्न भी हो जाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि अत्यंत शुभ फल देता है। जातक धनी ही नहीं प्रसिद्ध भी होता है। चित्रा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक विद्वान होता है। एक यही दोष होता है कि उसे परावलंबन का जीवन बिताना पड़ता है। ___ चंद्र की दृष्टि उसे राजनीति के क्षेत्र में उच्च प्रतिष्ठा प्रदान करती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 155 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप वह प्रतिरक्षा सेवाओं से जुड़ता है । बुध की दृष्टि के कारण वह अवैध कार्यों में लिप्त होता है । गुरु की दृष्टि उसे परोपकारी और सबके सुख दुःख में सहभागी होने की प्रवृत्ति देती है । शुक्र की दृष्टि उसे विलासी बनाती है। सुरा - सुंदरी का वह शौकीन होता है। साथ ही उसे सत्ता पक्ष से भी लाभ मिलता है । चित्रा के विभिन्न चरणों में राहु चित्रा के द्वितीय चरण को छोड़ शेष सभी चरणों में राहु मिश्रित फल देता है । प्रथम चरणः यहाँ राहु शुभ फल नहीं देता । स्वभाव को क्रूर बना देता है । 1 द्वितीय चरण: यहाँ राहु धन की दृष्टि से सुखी, संपन्न रखता है जातक साहसी भी होता है । कामाधिक्य के कारण वह परस्त्रीरत रहता है, फलः पारिवारिक जीवन नर्क बन जाता है। तृतीय चरण: यहाँ राहु पारिवारिक जीवन सुखी रखता है। जातक को पत्नी और संतान से सुख-संतोष मिलता है । चतुर्थ चरणः यहाँ राहु की स्थिति पारिवारिक जीवन के लिए अशुभ है । व्यक्ति अनेक स्त्रियों से संबंध रखता है। चित्रा के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरण ः यहाँ केतु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। द्वितीय चरणः यहाँ केतु मध्यम फल देता है । तृतीय चरण: यहाँ भी केतु की स्थिति शुभ नहीं होती । जातक निराशापूर्ण जीवन व्यतीत करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ केतु शुभ फल देता है। जातक धनी और गुणी होता है । पैंतीस वर्ष के पूर्व विवाह होने से संबंध-विच्छेद का योग बताया गया है। पैंतीस वर्ष के उपरांत विवाह शुभ होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 156 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाति स्वाति नक्षत्र राशि पथ में 186.40 से 200.00 अंशों के मध्य स्थित है। पर्यायवाची नाम हैं-मरुत, वात, समीरण, वायु । अरबी में इसे 'अल गफर' कहते हैं। चित्रा की तरह स्वाति नक्षत्र में भी केवल एक तारे की स्थिति मानी गयी है। यह नक्षत्र तुला राशि (स्वामी : शुक्र) के अंतर्गत आता है। देवता पवन एवं नक्षत्र स्वामी राहु है। गण: देव, योनिः महिष एवं नाड़ी: अंत्य है। चरणाक्षर हैं-रु, रे, रो, ता। स्वाति नक्षत्र में जन्मे जातक मांसल देह एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं, विशेषकर स्त्रियों के आकर्षण के पात्र । स्वाति नक्षत्र में जन्मे जातक शांतिप्रिय, स्वतंत्र विचारों के और जिद्दी होते हैं। वे अपने कार्य की आलोचना बिलकुल पसंद नहीं करते। यों वे शंततिप्रिय होते हैं, तथापि एक बार क्रुद्ध हो जाने पर उन्हें संभालना कठिन हो जाता है। अतः उन्हें विवेक से काम करने की आदत डालनी चाहिए। वे अपनी स्वाधीनता पर बिना आंच आये सबकी सहायता के लिए तत्पर होते हैं। वे जरूरतमंदों के सच्चे दोस्त सिद्ध होते हैं लेकिन उनके मन में यदि किसी के प्रति नफरत घर कर जाए तो वह स्थायी हो जाती है। - स्वाति नक्षत्र में जन्मे जातकों का बाल्यकाल समस्याओं से लबालब रहता है। यद्यपि ऐसे जातक बुद्धिमान, कठोर परिश्रमी होते हैं तथापि उन्हें आर्थिक अभाव एक तरह से जकड़े रहता है। तीस से साठ वर्ष का उनका जीवन काल स्वर्णिम कहा जा सकता है। स्वाति नक्षत्र में जातकों का वैवाहिक जीवन बहुत मधुर नहीं रहता ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 157 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथापि दुनिया की नजरों के सामने वे एक आदर्श दंपत्ति के रूप में नजर आते हैं। स्वाति नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सत्यनिष्ठ, स्नेहिल, गुणवती, सहृदय तथा उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली होती हैं। धार्मिक वृत्ति की ऐसी जातिकाएं अपने विरोधियों का भी हृदय जीत लेती हैं। ऐसी जातिकाओं को पारिवारिक सुख शांति के लिए अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध भी कार्य करना पड़ता है। स्वाति नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम चरणः गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरणः शनि एवं चतुर्थ चरणः गुरु। स्वाति के विभिन्न चरणों में सूर्य प्रथम चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि ही उसे धनवान, विद्वान और सुखी बनाती है। द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य जातक को आभूषणों के व्यवसाय में प्रवृत्त करता है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। शनि की दृष्टि नेत्र रोग उत्पन्न करती है। चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य जातक को साहसी बनाता है। स्वाति स्थित सर्य पर विभिन्न ग्रहों की दष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को जल से संबंधित उद्योगों यथा जहाजरानी आदि की ओर प्रवृत्त करती है। ऐसा जातक स्त्रियों के प्रति उदार, उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता है। मंगल की दृष्टि उसे धनी बनाती है। वह प्रसिद्ध भी होता है। जातक युद्ध कौशल में निपुण होता है। बुध की दृष्टि उसे ललित कलाओं में निष्णात बनाती है। गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप वह सफल-कुशल और नेतृत्व के गुण . वाला होता है। __ शुक्र की दृष्टि से उसका व्यक्तित्व आकर्षक बनता है। शनि की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक धनहीन और रुग्ण होता है। पत्नी से उसकी नहीं बनती। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 158 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाति के विभिन्न चरणों में चंद्र प्रथम चरण: यहाँ चंद्र जातक को विद्वान और धार्मिक बनाता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक को सुशील और कृतज्ञ बनाता है। वह स्वयं को मिली सहायता कभी भूलता नहीं। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को व्यापारिक बुद्धि देता है। वह उदार, परोपकारी भी होता है और अपने इन गुणों के कारण वह लोकप्रिय भी होता है। - चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र जातक को ललित कलाओं में निष्णात बनाता है। उसे अच्छी आय भी होती है। वह महत्त्वाकांक्षी और शत्रुहंता होता है। स्वाति स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को गुह्य विद्याओं का प्रेमी बनाती है। सूर्य की अशुभ दृष्टि उसके पुरुषत्व पर प्रभाव डालती है। __ मंगल की दृष्टि उसे सत्यवादी बनाती है। पुरुषत्व के लिए यह दृष्टि अशुभ कही गयी है। बुध की दृष्टि उसे उद्भट विद्वान और जीवन में सदैव सफल बनाती है। गुरु की दृष्टि उसे धार्मिक, उदार और सफल बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक व्यापार में प्रवृत्त होता है। शनि की दृष्टि विशेष शुभ फल नहीं देती। स्वाति नक्षत्र में मंगल के फल स्वाति नक्षत्र में मंगल शुभ फल नहीं देता। । प्रथम चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक कामाधिक्य के कारण किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता है। उसमें ईमानदारी का अभाव भी बाधाएं ही उत्पन्न करता है। द्वितीय चरणः यहाँ मंगल विशेष फल नहीं देता। ऐसा फल कहा गया है कि यदि लग्न में रोहिणी नक्षत्र हो तथा इस चरण में मंगल के साथ शनि हो तो जातक को कैंसर रोग होने की आशंका रहती है। तृतीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक साहसी, अस्थिर मति, यायावरी तबीयत का होने के साथ-साथ क्रूर हृदय भी होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल हो तो भी जातक में ईमानदारी का अभाव होता है तथा उसके कारण उसे दंड भी भुगतना पड़ता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 154 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाति के विभिन्न चरणों में बुध प्रथम चरण: यहाँ बुध जातक को विद्वान बनाता है। सामान्यः उसका जीवन सुखी लेकिन रोगी के रूप में बीतता है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध जातक को उदार परोपकारी बनाता है। उसे पूर्ण पारिवारिक सुख मिलता है। तृतीय चरण: यहाँ बुध सामान्य फल देता है। चतुर्थ चरण: यहाँ बुध जातक को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल बनाता है। स्वाति स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ नहीं मानी गयी है। जातक रोगग्रस्त और धनहीन होता है। ___ चंद्र की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक कठिन परिश्रमी और धनी होता है। __ मंगल की दृष्टि भी शुभ होती है। जातक को सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान और धनी बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह स्त्रियों के प्रति आकर्षित होता रहता है। - शनि की दृष्टि का फल शुभ नही होता। जातक अभावग्रस्त, उपेक्षापूर्ण जीवन बिताता है। स्वाति के विभिन्न चरणों में गुरु __ प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक को धनी, लोकप्रिय और स्वस्थ बनाता है। उसे पूर्ण संतान सुख मिलता है। द्वितीय चरणः यहाँ. गुरु शुभ फल देता है। जातक को जीवन में हर तरह का सुख मिलता है। तृतीय चरण: यहाँ गुरु जातक को सौभाग्यशाली बनाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु सामान्यतः शुभ फल देता है। शुक्र के साथ गुरु की युति जातक को चिकित्सक बनाती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 160 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाति स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक सत्ता पक्ष का कृपा पात्र होता है। चंद्र की दृष्टि उसे वैभव संपन्न बनाती है। वह काम-पीड़ित भी रहता है। मंगल की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक विद्वान, साहसी और भाग्यवान होता है। बुध की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। जातक हर दृष्टि से सौभाग्यशाली होता है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप उसे सुंदर स्त्रियों का संसर्ग मिलता है। जातक स्वयं भी आकर्षक व्यक्तित्व का होता है। शनि की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। जातक विविध विषयों का विद्वान होता है। उसे सर्वत्र प्रशंसा मिलती है। पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। स्वाति के विभिन्न चरणों में शुक्र प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक को कठिन परिश्रमी बनाता है। जातक अपने बाहुबल से ही धन, संपत्ति अर्जित करता है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र जातक को स्त्री-प्रेमी बनाता है। वह उन पर दिल खोलकर खर्च करता है, फलतः उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र सामान्य फल देता है। जातक का जीवन साधारण बीतता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को प्रतिरक्षा विभाग से संबंद्ध करता है। वह कीर्ति भी अर्जित करता है। स्वाति स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक को पत्नी सुंदर मिलती है। चंद्र की दृष्टि भी शुभ फल देती है। जातक की मां प्रभावशाली होती है, जिसका लाभ उसे भी मिलता है। मंगल की दृष्टि वैवाहिक जीवन दुखद बनाती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 161 For. Private & Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि का शुभ फल होता है। गुरु की दृष्टि के कारण वह धनी होता है। उसे पत्नी और संतान का पूर्ण सुख मिलता है। शनि की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक का जीवन दुखी बीतता है, विशेषकर पत्नी और उसके संबंधियों के कारण। स्वाति के विभिन्न चरणों में शनि प्रथम चरणः यहाँ शनि शुभ फल देता है। जातक प्रसिद्ध और धनी होता है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि विशेष फल नहीं देता। जातक को जीवन में अथक परिश्रम करना पड़ता है। तृतीय चरणः यहाँ शनि शुभ फल नहीं देता है। जातक का जीवन अभावग्रस्त बीतता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि प्रथम चरण की भांति फल देता है। जातक में नेतृत्व की क्षमता भी होती है। शुक्र के साथ शनि की युति जातक को मंत्री-तुल्य बना सकती है। स्वाति स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ नहीं होती। जातक को अभावग्रस्त जीवन बिताना पड़ता है। चंद्र की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक धनी और सत्ता पक्ष से सम्मानित होता है। बुध की दृष्टि उसे अतिशय कामुक बनाती है। उसमें वह भला-बुरा कुछ नहीं सोचता। __गुरु की दृष्टि उसे सेवाभावी बनाती है। वह सदैव दूसरों की सहायता में तत्पर रहता है। शुक्र की दृष्टि मिश्रित फल देती है। एक ओर तो जातक रत्नों या आभूषणों के व्यवसाय में जुड़ता है, दूसरी ओर वह मद्य प्रेमी और कामुक भी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 162 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाति के विभिन्न चरणों में राह प्रथम चरणः यहाँ राहु जातक को क्रूर और नैतिकता-हीन बनाता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी राह जीवन को अभावग्रस्त रखता है। तृतीय चरण: यहाँ राहु जातक को रोगग्रस्त रखता है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु अपेक्षाकृत शुभ होता है। जातक उदार होता है। स्वाति के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरण: यहाँ केतु जातक को ललितकला प्रेमी और दीर्घजीवी बनाता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु शुभ फल नहीं देता। जातक स्त्री-लोलुप होता है। तृतीय चरणः यहाँ भी केतु शुभ फल नहीं देता। जातक निम्न प्रवृत्ति के लोगों के बीच समय बिताता है। . चतुर्थ चरणः यहाँ केतु शुभ फल देता है। जातक का पारिवारिक जीवन सुखी रहता है। यों तो वह अधिकार संपन्न भी होता है तथापि धन के मामले में उसे मात्र उदर पूर्ति के लिए पर्याप्त आय ही होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 163 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशाखा विशाखा नक्षत्र राशिपथ में 200.00 से 213.20 अंशों के मध्य स्थित है। पर्यायवाची नाम है-इंद्राग्नि । अरबी में इसे 'अजजुबनान' कहते हैं। यह नक्षत्र वृश्चिक राशि (स्वामी : मंगल) के अंतर्गत आता है। इसमें चार तारों की स्थिति मानी गयी है, जो एक तोरण की भांति दिखायी देते हैं। नक्षत्र स्वामी इंद्राग्नि तथा स्वामी ग्रह गुरु है। गण: राक्षस, योनिः व्याघ्र एवं नाड़ी: अंत्य है। चरणाक्षर हैं: ती, तू, ते, तो।। विशाखा नक्षत्र में जन्मे जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक एवं आभायुक्त होता है। वे बेहद बुद्धिमान, ऊर्जा-संपन्न, सत्यनिष्ठ एवं ईश्वरभक्त होते हैं तथापि उन्हें रुढ़िवादिता या पुरानी परंपराओं से कोई मोह नहीं होता। जीवन में किसी का अहित नहीं चाहते, और यह भी चाहते हैं कि लोग दूसरों का अहित न करें। गांधीजी की तरह वे भी सत्य को ईश्वर तथा अहिंसा को ‘परम धर्म' मानते हैं। उनकी ओजस्वी वाणी श्रोताओं को प्रभावित किये बिना नहीं रहती अतः यदि ऐसे जातक राजनीति में जाएं तो वे समाज का काफी भला कर सकते हैं। वैसे वे व्यवसाय में भी सफल हो सकते हैं तथा जिम्मेदारी के किसी पद का भी बखूबी निर्वाह कर सकते हैं। ऐसे जातकों को माता का पर्याप्त स्नेह और सुख नहीं मिल पाता। कारण हो सकते हैं या तो मां का निधन या अन्य कारणों से मां का विलगाव। ऐसे जातक अपनी पत्नी तथा बच्चों से बेहद प्यार करते हैं तथापि ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 164 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरापान की अधिकता तथा परस्त्रीगमन की लालसा उनके जीवन में विष घोल देती है। विशाखा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं अत्यंत सुंदर, मृदुभाषी तथा गृहकार्य में दक्ष होती हैं। धार्मिक प्रवृत्ति की ऐसी जातिकाएं व्रत, उपवासादि पर भी विशेष ध्यान देती हैं। उनमें साहित्यिक रुचि भी होती है तथा काव्य सृजन की प्रतिभा भी। ऐसी जातिकाएं पति को परमेश्वर ही मानती हैं तथा पति के माता-पिता का भी यथोचित आदर करती हैं। विशाखा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरण: शुक्र, तृतीय चरण: बुध एवं चतुर्थ चरण: चन्द्र। . विशाखा के विभिन्न चरणों में सर्य प्रथम चरण: यहाँ सूर्य विवाह में विलंब करवाता है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य शुभ फल नहीं देता। जातक स्वभाव से क्रूर होता है। उसके झगड़ालू स्वभाव से सभी त्रस्त रहते हैं। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य ललित कलाओं के प्रति रुचि जगाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य जातक को दूसरों का विवाद सुलझा देने की क्षमता देता है। विशाखा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि ___ चंद्र की दृष्टि जल संबंधी उद्योगों से संबद्ध करती है। मंगल की दृष्टि उसे साहस और रण-कौशल प्रदान करती है। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप उसमें ललित कलाओं के प्रति गहरी रुचि होती है। गुरु की दृष्टि उसे राजनीतिज्ञों के निकट लाती है। शुक्र की दृष्टि उसे सफल राजनेता बनाती है। पारिवारिक जीवन भी सुखी बीतता है। शनि की दृष्टि अशुभ होती है। जातक गलत कार्यों में लिप्त रहता है। विशाखा के विभिन्न चरणों में चंद्र प्रथम चरण: यहाँ चंद्र जातक को धार्मिक बनाता है। पशु-व्यवसाय में उसे लाभ होता है। द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र कामवासना में वृद्धि करता है। जातक स्त्रियों से संबंध बना कर उनका आर्थिक शोषण करता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 165 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को धार्मिक आस्थावान, स्वाभिमानी और शत्रुहंता बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र युवावस्था तक जातक का जीवन संघर्षमय बनाता है। इसके पश्चात् जातक बाहुबल से धन, यश, कीर्ति अर्जित करता है । जातक विदेश में भी बस सकता है। # विशाखा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि कृषि कर्म में प्रेरित करती है । वह साहूकारी भी कर सकता है। मंगल की दृष्टि स्त्रियों में प्रिय बनाती है। बुध की दृष्टि उसे विद्वान और गणितज्ञ बना देती है। गुरु की दृष्टि पत्नी के लिए अशुभ होती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जीवन में सभी सुख मिलते हैं । वैवाहिक जीवन भी सुखी होता है । शनि की दृष्टि स्त्रियों से विरक्त ही नहीं बनाती, उनके प्रति घृणा का भाव भी भरती है । विशाखा के विभिन्न चरणों में मंगल प्रथम चरणः यहाँ मंगल विशेष शुभ फल नहीं देता। आय से व्यय अधिक होता है, अतः सदैव अभाव की स्थिति रहती है । द्वितीय चरणः यहाँ भी मंगल शुभ फल नहीं देता । सूर्य-मंगल की युति जातक को मिथ्याभाषी, पाप कर्मरत बना देती है। चंद्र के साथ मंगल का योग रक्त विकार उत्पन्न करता है। तृतीय चरणः जातक के व्यक्तित्व का लाभ दूसरे लोग उठाते हैं और एवज में मिलती है उपेक्षा । शिक्षा में भी व्यवधान आते हैं। चतुर्थ चरण: यहाँ भी मंगल शिक्षा में व्यवधान उपस्थित करता है । विशाखा स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि वैवाहिक जीवन दुखी रखती है। जातक पत्नी से प्यार नहीं करता । चंद्र की दृष्टि उसे मातृभक्त बनाती है। बुध की दृष्टि शुभ होती है। जातक की संतान बुद्धिमान होती है। गुरु की दृष्टि से जातक परिवार के दायित्वों को भली भांति निभाता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 166 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र की दृष्टि जातक को प्रसिद्ध बनाती है। शनि की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक सर्वगुण संपन्न लेकिन बेहद मितव्ययी होता है। विशाखा के विभिन्न चरणों में बुध प्रथम चरण: यहाँ बुध विवाह में विलंब कराता है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध कामवासना बढ़ाता है। जातक इस सुख के लिए उचित-अनुचित नहीं देखता। तृतीय चरण: यहाँ बुध जातक को अवैध कार्यों की ओर प्रेरित करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी बुध चारित्रिक दोष बढ़ाता है। जातक मिथ्या भाषी और बुरी स्त्रियों की संगति में जीवन बिताता है। विशाखा स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि वैवाहिक जीवन सुखी रखती है। चंद्र की दृष्टि उसे परिश्रमी और सत्ता पक्ष का कृपा पात्र बनाती है। मंगल की दृष्टि से भी उसे शासन से लाभ मिलता है। गुरु की दृष्टि उसे बुद्धिमान और धनवान बनाती है शुक्र की दृष्टि के कारण उसे जीवन के सभी सुख उपलब्ध होते हैं। शनि की दृष्टि विपत्तिकारक सिद्ध होती है। विशाखा के विभिन्न चरणों में गुरु प्रथम चरणः यहाँ गुरु शास्त्रज्ञ बनाता है। जातक को मुकदमों में भी उलझा रहना पड़ता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु धार्मिक और उदार बनाता है। तृतीय चरणः यहाँ भी गुरु जातक को धार्मिक एवं कर्म-कांडी बनाता है। उसकी आजीविका भी उसी से चलती है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु शुभ फल देता है। जातक का जीवन सामान्यतः सुखी रहता है। इस चरण में गुरु महत्त्वाकांक्षी बनाता है। विशाखा स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक धनी और हर तरह से सुखी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 167 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। जातक संपन्नता के मध्य जीवन बिताता है। मंगल की दृष्टि साहस प्रदान करती है। बुध की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप उसे सुंदर स्त्रियों का संसर्ग मिलता है। शनि की दृष्टि का शुभ फल होता है। जातक बुद्धिमान, विविध विषयों का ज्ञाता होता है। उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। विशाखा के विभिन्न चरणों में शुक्र प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक को विद्वान बनाता है। दो पत्नियों का भी योग बताया गया है। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र शिक्षाविद् बनाता है। जातक उच्च पद पर आसीन होता है। तृतीय चरण: यहाँ शुक्र विवाह में विलंब उत्पन्न करता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को साहित्यकार और यायावरी प्रवृत्ति का बनाता है। वह यशस्वी लेखक भी होता है। विशाखा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि विशाखा स्थित शुक्र पर सूर्य की दृष्टि संपन्न बनाती है। जातक की पत्नी सुंदर होती है। चंद्र की दृष्टि उसे मृदुभाषी बनाती है। काम वासना भी बढ़ाती है। मंगल की दृष्टि स्वभाव में क्रूर बना देती है। बुध की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्तित्व आकर्षक होता है। गुरु की दृष्टि हर प्रकार का सुख उपलब्ध कराती है। शनि की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक का स्वभाव क्रूर होता है। विशाखा के विभिन्न चरणों में शनि प्रथम चरणः यहाँ शनि मिश्रित फल देता है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि जीवन सुखी नहीं रखता। पग-पग पर बाधाएं मार्ग रोकती हैं। तृतीय चरणः यहाँ शनि शुभ फल देता है। अपने सद्गुणों के कारण वह प्रभावशाली लोगों की कृपा का पात्र बनता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि सामान्य फल देता है। . ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 168 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशाखा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि शुभ फल नहीं देती। जातक अभावपूर्ण जीवन जीता है। चंद्र की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक राजनीति के क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करता है। ____ मंगल की दृष्टि का फल ठीक नहीं होता। जातक कार्यों के प्रति दायित्वहीन होता है। बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक विद्वान और धनी होता है। गुरु की दृष्टि का भी शुभ फल होता है। जातक सुखी जीवन बिताता है। शुक्र की दृष्टि सामान्य फल देती है। विशाखा के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरण: यहाँ राहु मिश्रित फल देता है। जातक उदार होता है। राहु उसे अनैतिकता की ओर धकेलता है। द्वितीय चरण: यहाँ राहु जातक को झगड़ालू प्रवृत्ति का बना देता है। यहाँ राहु पत्नी के लिए भी अशुभ माना गया है। तृतीय चरण: यहाँ राहु शुभ फल देता है। जातक धनी और यशस्वी होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु रोगकारक सिद्ध होता है। विशाखा के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक में आत्म-विश्वास को न्यून करता है। वह बेहद जल्दी घबरा जाता है। . द्वितीय चरणः यहाँ केतु जातक को अस्थिर बुद्धि बनाता है। अनैतिक कार्यों में उसकी रुचि रहती है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को तुनुक-मिजाज बना देता है। वह अपने अभिभावकों का ही विरोधी बन जाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक स्वभाव से घमण्डी होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 169 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुराधा अनुराधा की राशिपथ में 213.20 अंश से 226.40 अंश तक स्थिति मानी गयी है। अनुराधा का अन्य नाम मैत्रम् भी है। अरब मंजिल में उसे अल-उकलील अर्थात् ताज नाम दिया गया है। अनुराधा का एक अर्थ सफलता भी बताया गया है। अनुराधा की एक व्याख्या इस तरह भी की गयी है-अनु अर्थात् लघु एवं राधा अर्थात् पूजा-उपासना। एक ऐसी लघु वस्तु या पदार्थ जिसको पूजा में उपयोग किया जाता है। अनु का एक अर्थ अनुसरण भी है। राधा को विशाखा का पर्याय माना गया है। अनुराधा नक्षत्र विशाखा नक्षत्र के बाद आता है। इसीलिए विशाखा का अनुसरण करने वाला नक्षत्र-अनुराधा । वैदिक साहित्य में इस नक्षत्र को प्रजापति का चरण कहा गया है। अनुराधा नक्षत्र की रचना तीन तारों को मिलाकर की गयी है। अनुराधा का देवता मित्र माना गया है, बारह आदित्यों में से एक। गणः देव, योनिः मृग एवं नाड़ी: मध्य है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है। अनुराधा के प्रथम चरण के स्वामी सूर्य द्वितीया चरण के बुध, तृतीय चरण के शुक्र व चतुर्थ पद के स्वामी मंगल है। चरणाक्षर हैं: न, नी, नू, ने। अनुराधा नक्षत्र में जन्मे जातक 'जातक पारिजात' के अनुसार अनुराधा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अत्यंत मिठास भरी वाणी से युक्त, सुखी, पूज्य, यशस्वी तथा उच्च पदस्थ होता है। श्लोक है मैत्र सुप्रियवाक् धनी सुखरत् पूज्ये यशस्वी विभुः। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 170 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यतः अनुराधा नक्षत्र में जन्मे जातकों का मुख सुंदर, नेत्र आभावान एवं व्यक्तित्व आकर्षक होता है। ऐसे जातक ईश्वर पर अगाध आस्था रखने वाले होते हैं। यही आस्था उन्हें घोर से घोर विपत्तियों में भी निराशावादी नहीं बनने देती। ऐसे जातक के जीवन में बाधाएं भी बहुत आती हैं। उनसे वह अशांत-चित्त भी रहता है लेकिन निरंतर असफलताएं भी उसे अपने लक्ष्य से नहीं डिगा पातीं। वह कठोर परिश्रमी होता है। यह सब संभवतः शनि के प्रभाव के कारण होता है। अनुराधा नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि को ही माना गया है। अनुराधा नक्षत्र में जातक नवयुवावस्था में ही कर्म क्षेत्र में उतर जाते हैं। अर्थात् 17 से 18 वर्ष की अवस्था में वे आजीविका कमाने लगते हैं। इसमें उन्हें कई अवरोधों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन चालीस वर्ष के बाद उनका जीवन सुखपूर्वक बीतने लगता है। ऐसे जातक व्यवसाय के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। यदि अनुराधा नक्षत्र में चंद्रमा के साथ मंगल की युति हो तो जातक चिकित्सक भी बन सकते हैं अन्यथा औषध-व्यवसाय से संबंधित होते हैं। पारिवारिक जीवन में भी दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता। पिता के साथ-साथ माता से भी उन्हें पर्याप्त स्नेह नहीं मिल पाता। हाँ, उसका वैवाहिक जीवन सुयोग्य एवं दक्ष पत्नी के कारण सुखी रहता है। ऐसे जातक अपनी संतानों को उन सब कष्टों एवं बाधाओं से बचाना चाहते हैं; जिन्हें उन्होंने अपने जीवन में भुगता है। वह हर कीमत पर अपने बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देते हैं ताकि वे सुयोग्य बन सकें और ऐसे जातकों की संतानें भी उन्हें निराश नहीं करतीं। पिता के मार्गदर्शन के फलस्वरूप वे जीवन में तरक्की करते हैं; पिता की हैसियत से भी आगे निकल जाते हैं। सामान्यतः ऐसे जातकों का स्वास्थ्य ठीक ही रहता है। तथापि उन्हें अस्थमा, दंत पीड़ा, कफ, जुकाम, कब्ज आदि की शिकायत शीघ्र हो सकती है, अतः इन स्थितियों से बचना चाहिए, जिनसे उपरोक्त विकारों के पैदा होने की आशंका प्रबल हो। ___ अनुराधा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के चेहरे और व्यवहार में एक निर्दोष भाव झलकता है। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है। ऐसी जातिकाएं विनम्र, बड़ों के प्रति आदर मान से युक्त, शुद्ध हृदय, अपने व्यवहार से सबको प्रसन्न करने वाली तथा हठी स्वभाव से युक्त होती हैं। उनके मन में निस्वार्थ भावना होती है। वे अपने किसी भी कार्य या सेवा ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 171 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का प्रतिदान नहीं चाहतीं फलतः वे सबकी प्रिय पात्र भी बन जाती हैं। अपने इस गुण के कारण वे राजनीति या सामाजिक क्षेत्र में भी सफल हो सकती हैं। ऐसी जातिकाओं की नृत्य-संगीत एवं ललित कलाओं में भी रुचि होती है । यदि वे इन विषयों में अध्ययन करें तो वे उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं। अपनी कला में पारंगत होने के कारण वे पर्याप्त ख्याति प्राप्त करने में सफल हो सकती हैं। ऐसे सद्गुणों से युक्त जातिकाओं का वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन सुखी तो होगा ही। वे पति के प्रति पूर्ण निष्ठा, बच्चों के लालन-पालन पर पर्याप्त ध्यान देने वाली अर्थात् आदर्श मां होती हैं। सास-ससुर के प्रति भी उनके मन में अपार आदर होता है। जहाँ तक स्वास्थ्य का संबंध है, आम तौर पर ऐसी जातिकाएं स्वस्थ ही रहती हैं तथापि अपने मासिक धर्म में किसी गड़बड़ी के प्रति उन्हें सचेत रहना चाहिए । अनुराधा नक्षत्र में सूर्य की स्थिति के फल अनुराधा के प्रथम एवं अंतिम चरण में सूर्य की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं जबकि द्वितीय एवं तृतीय चरण में मिश्रित फल । यथा : प्रथम चरणः जातक साहसी, शत्रुहंता और अपने जन्म स्थल से दूर बसने वाला होता है । उसमें स्त्रियों के प्रति विशेष आसक्ति होती है। 1 द्वितीय चरणः जातक धनी एवं विद्वान होता है । तथापि उसकी मति बेहद अस्थिर होती है और वह कोई भी निर्णय शीघ्र नहीं ले पाता । तृतीय चरणः ऐसा जातक अपनी हैसियत से अधिक का प्रदर्शन करता है । फलतः उसमें एक दंभ भी आ जाता है तथा वह अपने से निम्न हैसियत वालों को हेय दृष्टि से देखता है । चतुर्थ चरणः ऐसा जातक अपने सारे कार्यों का निष्ठा से संपादन करता है । उसमें निर्णय करने की भी बुद्धि होती है । उसमें विभिन्न कलाओं में निष्णात होने की लालसा भी रहती है। वह सुंदर स्त्रियों की संगति भी पंसद करता है। अनुराधा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि हो तो जातक जल से संबंधित कार्यों से धनोपार्जन करता है। उसे अनेक स्त्रियों के भरण-पोषण का भी भार उठाना पड़ता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 172 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि जातक को साहसी शूरवीर बनाती है | बुध की दृष्टि हो तो जातक की ललित कलाओं में रुचि होती है । वह ललित कलाओं में अपनी दक्षता के कारण यश एवं अर्थ भी प्राप्त करता है। गुरु की दृष्टि जातक को राजनीति के क्षेत्र के लोगों के निकट ले जा सकती है तथा वह उनसे पर्याप्त लाभ भी उठा सकता है । 1 शुक्र की दृष्टि हो तो वैवाहिक जीवन सफल और सुखी रहता है जातक राजनीति के क्षेत्र में भी अपना स्थान बना सकता है। शनि की दृष्टि जातक में धूर्तता को जन्म देती है। तथाकथित पाप कर्मों से उसे कोई परहेज नहीं होता । फलतः कभी न कभी शासकीय दंड मिलने की भी संभावना बनी रहती है । अनुराधा नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के फल अनुराधा नक्षत्र के प्रथम चरण में स्थित चंद्र के ही अच्छे फल मिलते हैं। शेष चरणों में चंद्र की स्थिति कोई शुभ फल नहीं देती । यथा : प्रथम चरणः जातक प्रसिद्ध, मान-सम्मान से युक्त तथा अधिकार संपन्न होता है। वाणी में माधुर्य उसका विशेष गुण बताया गया है । तथापि ऐसा जातक कोई भी कार्य बड़ी धीमी गति से आहिस्ता-आहिस्ता करता है। द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र की स्थिति कोई विशेष फल नहीं देती । हाँ, यह कहा गया है कि यदि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में शुक्र स्थित हो तो व्यक्ति उच्च सरकारी पद पर आसीन होता है । तृतीय चरणः यहाँ चंद्र सामान्य फल देता है । चतुर्थ चरण ः विवाह की दृष्टि से चंद्र की यह स्थिति अशुभ बतायी गयी है । एक तरह से यह विवाह प्रतिबंधक योग की स्थिति बनाता है। यदि अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण विवाह हो भी गया तो जातक उसे निभा नहीं पाता। ऐसा जातक हठी, रुग्ण और भटकाव में ही विश्राम पाता है । अनुराधा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि का एक फल यह बताया गया है कि जातक कहीं गोद लिया जा सकता है। फलतः उसके जन्मदाता माता- -पिता के अलावा पालनकर्ता माता-पिता भी होते हैं । मंगल की दृष्टि हो तो जातक सत्तासीन लोगों की कृपा का पात्र बनता है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 173 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि जातक को कुटिल प्रवृत्ति का बना सकती है। सभी उसे हेय दृष्टि से देखते हैं । गुरु की दृष्टि भी कोई लाभ नहीं पहुँचाती । जातक रुग्ण जीवन बिताता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को अभावग्रस्त जीवन बिताना पड़ सकता है। शनि की दृष्टि के शुभ फल कहे गये हैं । जातक राजनीति के क्षेत्र में बेहद सफलता प्राप्त करता है । उसका मान-सम्मान, पद मंत्रियों जैसा होता है । यदि अन्य ग्रहों के योग अच्छे हों तो जातक स्वयं भी मंत्री बन सकता है। अनुराधा स्थित मंगल के फल अनुराधा नक्षत्र में मंगल की स्थिति केवल चतुर्थ चरण में ही लाभदायक सिद्ध होती है। शेष चरणों में सामान्य फल मिलते हैं। प्रथम चरण: इस चरण में मंगल विशेष शुभ फल नहीं देता । यदि लग्नस्थ अश्विनी में चंद्र के साथ मंगल हो तो जातिका का क्रूर हृदय तथा अवैध कार्यों में संलिप्त होना बताया गया है। यदि किसी पुरुष की कुंडली में ऐसा योग हो तो कहा जाता है कि उससे जातक हठी, मलिन, क्रूर हृदय एवं विघ्न - संतोषी प्रवृत्ति का होगा । द्वितीय चरण: यहाँ भी मंगल के कोई उल्लेखनीय फल नहीं मिलते। तृतीय चरण: यहाँ मंगल जातक में कामातिरेक की प्रवृत्ति पैदा करता है। अपने आमोद-प्रमोद के लिए ही वह धनी मित्रों की संगति करता है । चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल जातक को कृषि संपत्ति का स्वामी बनाता है। इससे उसे पर्याप्त आर्थिक आय भी होती है। अनुराधा स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को जन्म स्थल से दूर ले जाती है। पत्नी से भी उसकी अनबन रहती है। चंद्र की दृष्टि जातक को पित्तृ विरोधी बनाती है । वह मां को अधिक चाहता है। बुध की दृष्टि हो तो जातक की संतानें सुयोग्य, सुशिक्षित होती है I गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक न केवल अपने परिवार के प्रति ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 174 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घोर आसक्त रहता है, वह अपने संबंधियों की जिम्मेदारी निभाने में आगे रहता है। शुक्र की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक यशस्वी और शासन में उच्च पद पर पहुँचने की योग्यता रखता है। शनि की दृष्टि हो तो जातक सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद कृपण वृत्ति का होता है। अनुराधा स्थित बुध के फल ___ अनुराधा स्थित बुध के प्रायः शुभ फल दर्शाये गये हैं। जातक विनोदी वृत्ति का, धनी और उदार भी होता है। प्रथम चरणः यहाँ बुध की स्थिति जातक के जीवन को बाधाओं से भर देती है तथापि वह अपनी विनोदी वृत्ति एवं कर्मठता के फलस्वरूप उन्हें पार कर जाता है। जातक संपत्तिशाली भी होता है लेकिन उसके उदारतापूर्ण और लापरवाह स्वभाव के कारण उसकी संपत्ति आसानी से हड़प ली जाती है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध जातक को मध्यम संपत्ति प्रदान करता है। उसका जीवन भी सुखी होता है। वैवाहिक जीवन में सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। नहीं तो सारा जीवन कलहमय बीतता है। तृतीय चरणः यहाँ बुध सामान्य फल देता है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक हष्ट-पुष्ट तथा सद्गुण संपन्न होता है। उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी रहता है। अनुराधा स्थित बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक किसी औद्योगिक उद्यम का प्रमुख हो सकता है। उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी रहता है। चंद्र की दृष्टि उसे कठोर परिश्रमी एवं धनी बनाती है। ऐसे लोग सत्ता पक्ष के विश्वासपात्र भी होते हैं। मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप जातक/जातिका के इंजीनियरिंग क्षेत्र में सफल होने की संभावना बढ़ती है। उन्हें सत्ता पक्ष से भी लाभ होता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक बुद्धिमान, धनी और यशस्वी होता है। शुक्र की दृष्टि से जातक जीवन के हर क्षेत्र में सुखी और संपन्न होता है। शनि की दृष्टि हो तो जातक को जीवन में निरंतर अवरोधों का सामना करना पड़ता है। जीवन भी विपन्नावस्था में बीतता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 175 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुराधा नक्षत्र में गुरु के फल अनुराधा नक्षत्र में गुरु की स्थिति सामान्यतः शुभ फल ही देती है । जातक सुखी, साहसी अधिकार संपन्न होता है । प्रथम चरण: यहाँ गुरु के सामान्य फल मिलते हैं। यदि लग्नस्थ अनुराधा नक्षत्र के उस चरण में सूर्य भी हो तो यह जातक की आयु की दृष्टि से अशुभ योग माना गया है। द्वितीय चरणः जातक संपन्न होता है। सेना अथवा पुलिस सेवा में जाने पर वह उच्च पद प्राप्त कर सकता है । तृतीय चरण: यहाँ गुरु के द्वितीय चरण जैसे फल मिलते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु जातक को साहसी बनाता है । अनुराधा स्थिति गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि से जातक धनी, स्वस्थ एवं सुखी जीवन वाला होता है । चंद्र की दृष्टि उसे जन्म से ही वैभव संपन्न बनाती है । मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप जातक विद्वान एवं साहसी होता है । बुध की दृष्टि हो तो जातक संपन्न और सद्गुणों से युक्त होता है । शुक्र की दृष्टि जातक को धीर-गंभीर, आकर्षक व्यक्तित्व वाला बनाती है । उसे सुंदर स्त्रियों का साथ मिलता है । शनि की दृष्टि हो तो जातक अनेक विषयों का ज्ञाता तथा विद्वान होता है। वैवाहिक जीवन के लिए शनि की दृष्टि अशुभ सिद्ध होती है। जातक सुखी नहीं रह पाता । अनुराधा स्थित शुक्र के फल अनुराधा नक्षत्र में शुक्र की स्थिति जातक में काम भावना बढ़ाने वाली मानी गयी है। आर्थिक दृष्टि से भी यह कोई शुभ स्थिति नहीं है । प्रथम चरणः यहाँ शुक्र की स्थिति के कारण जातक पर सदैव ही काम ज्वर चढ़ा रहता है। ऐसी स्थिति में वह ऊंच-नीच का भी ख्याल नहीं करता । विवाह उसके लिए मात्र सैक्स-क्रीड़ा ही होती है 1 द्वितीय चरण: यहाँ भी उपरोक्त स्थिति ही बनती है। जातक कामातिरेक के कारण गुप्त रोगों का भी शिकार हो सकता है। तृतीय चरण: यहाँ शुक्र के कारण जातक का जीवन मध्यम गति से चलता है। जातिकाओं के लिए गर्भाशय के रोगों से ग्रस्त होने की आशंका भी बतलायी जाती हैं। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 176 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरणः ऐसे जातक अनिंद्रा के शिकार हो सकते हैं। उनकी रासायनिक विज्ञान में भी रुचि होती है। अनुराधा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो पत्नी सुंदर मिलती है। जातक भूमिपति एवं भवनपति होता है। चंद्र की दृष्टि जहाँ जातक को परिवार में श्रेष्ठ बनाती है वही उसमें तीव्र कामभावना का संचार भी करती है। ___मंगल की दृष्टि उसे क्रूरमना और अवैध कार्यों में लिप्त बनाती है। बुध की दृष्टि जातक का पारिवारिक जीवन सुखी रहता है। संतान भी सुशिक्षित होती है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक का जीवन सुखी रहता है। अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चों के सुख के अलावा वाहन एवं गृह सुख आदि भी प्राप्त होता है। शनि की दृष्टि के अशुभ परिणाम होते है। जातक में ईमानदारी न्यून होती है। अनुराधा नक्षत्र में शनि के फल अनुराधा नक्षत्र में शनि की स्थिति को जातक के स्वभाव को क्रूर बनाने वाला कहा गया है। इस नक्षत्र में शनि की स्थिति अशुभ ही प्रतीत होती है। . प्रथम चरण: जातक में साहसिक वृत्ति होती है। लेकिन इसके कारण दूसरे परेशानी में पड़ सकते हैं। इस चरण में शनि के कारण जातक का क्रूर हृदय होना बताया गया है जो हत्या तक कर सकता है। चोरी जैसे कामों से भी उसे कोई परहेज नहीं होता। द्वितीय चरण: जातक अपनी मूर्खता के कारण बिना बात लोगों से कलह कर सकता है। उसमें दूसरों की संपत्ति को भी हड़पने की प्रवृत्ति होती है। तृतीय चरण: जातक का क्रूर हृदय होना कहा गया है। उसका प्रारंभिक जीवन कठिनाई-पूर्ण होता है। 52 वर्ष की अवस्था के बाद जीवन में सुख-समृद्धि का प्रवेश होता है। चतुर्थ चरणः आय से अधिक व्यय की स्थिति निरंतर बनी रहने के कारण जातक का जीवन दुखी रहता है। जातक को शस्त्र एवं अग्नि से भी भय रहता है। वह काम भावना से भी शून्य रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 177 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुराधा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक का जीवन अभावपूर्ण रहता है। उसके अपने पिता से अच्छे संबंध नहीं रहते। ' चंद्र की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। वह किसी औद्योगिक उपक्रम का प्रमुख भी बन सकता है। मंगल की दृष्टि जातक को कलह प्रिय बना देती है। बुध की दृष्टि हो तो जातक अनेक विषयों का ज्ञाता होता है अर्थात् शिक्षा एवं ज्ञान लाभ की दृष्टि से शनि पर कुछ की दृष्टि शुभ होती है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता है। शुक्र की दृष्टि के सामान्य फल मिलते हैं। अनुराधा नक्षत्र के विभिन्न चरणों में राह - प्रथम चरणः यहाँ राहु के कारण जातक को अपनी शिक्षा व हैसियत से निम्न कार्य करना पड़ता है। परिवार में भी समस्याएं उत्पन्न होती रहती है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु जातक में स्वार्थ की भावना बढ़ाता है। तृतीय चरणः यहाँ राहु कुछ अच्छे फल देता है। जातक का जीवन सुखपूर्वक गुजर जाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ राहु कोई विशेष फल नहीं देता। अनुराधा नक्षत्र के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक को धार्मिक वृत्ति का बनाता है। द्वितीय चरणः यहाँ जातक मुकद्दमे बाजी में फंसा रहता है। शत्रु उसके लिए कोई न कोई परेशानी पैदा ही करते रहते हैं। वह स्वयं भी सच्चरित्र नहीं होता। निम्न कोटि की स्त्रियों के संबंध रखने में उसे आनंद मिलता है। तृतीय चरणः यहाँ केतु हो तो जातक तीस वर्ष की अवस्था के बाद जीवन में सुख चैन पाता है। यदि केतु के साथ शनि हो तो जातक में इंजीनियर बन सकने की प्रतिभा होती है। चतुर्थ चरणः यहाँ केतु हो तो जातक को विदेश में प्रवास करना पड़ सकता है। पैतृक संपत्ति के भी बिक जाने का फल कहा गया है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 178 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठा ज्येष्ठा नक्षत्र राशि पथ में 226.40 से 240.00 अंश के मध्य स्थित है। इसमें एक सीध में स्थित तीन तारे हैं और आकृति कुंडल की भांति है। अरब मंजिल में इसे 'अल कल्व' कहा गया है। ज्येष्ठा का सामान्य अर्थ 'बड़े से होता है। इसका आधार यह कहा गया है कि एक समय बसंत संपात बिंदु इस नक्षत्र में होने के कारण यह नक्षत्र सबसे ज्येष्ठ या बड़ा माना गया। लेकिन कुछ ज्योतिष शास्त्री इस अर्थ को नहीं मानते। ज्येष्ठा के अन्य पर्यायवाची नाम हैं-कुलिश तारा, इरतमाव, सुर स्वामी वासवः । सुर स्वामी अर्थात् देवताओं का राजा इंद्र। इंद्र को ही इस नक्षत्र का देवता माना गया है। ग्रहों में बुध को इसका अधिपति माना गया है। ज्येष्ठा के संबंध में अन्य विवरण इस प्रकार है : गणः राक्षस, योनिः मृग और नाड़ी: आदि। चरणाक्षर हैं-नो, य, यी, यू। यह नक्षत्र वृश्चिक राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी मंगल है। नक्षत्र के स्वामी बुध के साथ मंगल के तो सम संबंध हैं तथापि बुध उसे शत्रु दृष्टि से देखता है। . __ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक के बारे में जातक पारिजात' में कहा गया है ज्येष्ठायामतिकोवान परवधूसक्तो विमु धार्मिक: यदि जन्म के समय चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो मनुष्य अत्यंत क्रोध करने वाला, परस्त्री में आसक्ति रखने वाला, ऐश्वर्यशाली तथा धार्मिक होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 179 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक हष्ट-पुष्ट, ऊर्जा संपन्न तथा आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। निर्मल हृदय, धीर-गंभीर स्वभाव उनकी विशेषता होती है । ऐसे व्यक्ति अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार ही कार्य करना पसंद करते हैं । चूंकि वे दूसरों की सलाह मानतें नहीं, अतः उन्हें हठी कहा जाने लगता है। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव कभी-कभी उग्र भी हो जाता है । वे सिद्धांत - प्रिय भी होते हैं और उसी के अनुसार तमाम विरोधों या परामर्शो के बावजूद वही निर्णय करते हैं, जो उन्हें अपने सिद्धांत के अनुसार ठीक लगता है । फलतः उन्हें दंभी भी समझ लिया जाता है। जबकि वास्तव में वे ऐसे होते नहीं । हाँ, उनमें प्रतिशोध की भावना कुछ अधिक होती है, तब वे आगा-पीछा नहीं देखते। ऐसे जातकों को जीवन में बहुत शीघ आजीविका के क्षेत्र में उतर जाना पड़ता है। इसके लिए वे कहीं दूर-दराज के क्षेत्रों में भी जाने से नही हिचकते । वे अपना कार्य निष्ठा से करते हैं, फलतः उनकी तरक्की भी होती है । लेकिन अठारह वर्ष से छब्बीस वर्ष तक उनके जीवन में पर्याप्त संघर्ष रहता है जो प्रौढ़ावस्था तक चलता ही रहता है । ऐसे जातकों की युवावस्था भले ही कठिन संघर्ष में बीतती हो तथापि वह संघर्ष उन्हें भावी जीवन के लिए बहुत कुछ सिखा जाता है । ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन उनके अपने स्वभाव के कारण कुछ दुखी ही रहता है । वे अपने आगे किसी को कुछ समझते नहीं, फलतः परिवार वाले भी कुछ अलग-थलग रहने लगते हैं। I ऐसे जातकों की पत्नी उनके लिए एक अंकुश का काम करती है । ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातकों को मादक पदार्थों से बचने की चेतावनी भी दी गयी है, क्योंकि फिर वे अपनी इस प्रवृत्ति को सीमा में नहीं रख पाते । अत्यधिक मादक पदार्थों का सेवन उनके स्वास्थ्य पर तो बुरा असर डालता ही है, साथ ही उनका वैवाहिक जीवन भी दुष्प्रभावित करता है। इस स्थिति में पत्नी का अंकुश उनके लिए हितकर ही होता है । सामान्यतः उनका वैवाहिक जीवन सुखी ही बीतता है तथापि अन्य कारणों से समय-समय पर अलग-अलग भी रहना पड़ सकता है। ऐसे जातकों को बार-बार बुखार, अतिसार एवं अस्थमा की शिकायतें हो सकती हैं; अतः उन्हें स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने की भी सलाह दी गयी है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 180 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सामान्यतः हष्ट पुष्ट, लंबी बाहों एवं धुंधराले केश वाली होती हैं । ऐसी जातिकाएं बुद्धिमान, विचारवान और कुशल संगठक होती हैं । उनमें गहरी अनुभूति होती है, फलतः वे गहनता से स्नेह भी करती हैं। अपनी छवि बनाये रखने के लिए वे सदैव सतर्क रहती हैं। वे अच्छी खासी शिक्षा पा सकती हैं। लेकिन वे अपनी शिक्षा का उपयोग अपने घर को चलाने में ज्यादा करती हैं। यह विडम्बना ही है कि उन्हें अपने ससुराल पक्ष के लोगों से त्रास ही अधिक मिलता है । वे उसे नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह की कहानियां भी गढ़ सकते हैं । ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओ को यह सलाह दी गयी है कि वे अपने संबंधियों एवं पड़ोसियों से वार्तालाप करते समय अत्यंत सावधानी बरतें। ऐसे लोग द्वेषवश उनके जीवन में विष भी घोल सकते हैं । पारिवारिक कलह के कारण वे अपने बच्चों पर भी ध्यान नहीं दे पातीं, जिसका बच्चों के मन पर विपरीत असर भी पड़ता है । ऐसी जातिकाओं को अपनी गर्भाशय संबंधी छोटी से छोटी तकलीफ की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । ज्येष्ठा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं: प्रथम चरण: गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरणः शनि, चतुर्थ चरणः गुरु । ज्येष्ठा नक्षत्र में सूर्य के फल ज्येष्ठा नक्षत्र में सूर्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती । और यदि इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पाप ग्रहों से प्रभावित है तो वह पिता के लिए अशुभ बन जाता है। प्रथम चरण: यहाँ सूर्य स्थित हो तो जातक को विष बाधा या अग्नि अथवा शस्त्र से आहत होने की आशंका बनी रहती है । द्वितीय चरणः जातक अधीर स्वभाव का होता है। वह दूसरों के प्रति सहानुभूति से शून्य भी होता है । तृतीय चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। यदि जातक का जन्म दिन में हुआ हो और सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो इसे जातक के पिता के लिए घातक माना गया है। चतुर्थ चरण ः यहाँ भी सूर्य यदि अन्य पाप ग्रहों के साथ हो तो पिता के लिए घातक होता है । ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 181 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि मंगल की दृष्टि जातक को क्रूर हृदय बनाती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व सुंदर होता है। जीवन सुखी होता है। चालीस वर्ष की आयु के बाद अर्थाभाव की स्थिति आ सकती है। गुरु की दृष्टि जातक को परोपकारी वृत्ति का बनाती है । वह राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त कर सकता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक शासन में उच्च पद पाता है। शनि की दृष्टि हो तो भी जातक शासन में उच्च पद पाता है। लेकिन पिता के प्रति उसके मन में आदर भाव नहीं रहता । ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित चंद्र के फल ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म के समय चंद्र हो तो इसी नक्षत्र को जातक का नक्षत्र माना जाता है। देवज्ञ वैद्यनाथ ने अपने 'जातक परिजात' में इस नक्षत्र में जन्मे जातकों की जो विशेषताएं बतलायी हैं, उनका उल्लेख हमने प्रारंभ में किया है। अब यहाँ ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित चंद्र के फल विस्तार से: प्रथम चरण: इस चरण में जन्म हो तो जातक के जन्म के एक वर्ष की अवधि तक स्वास्थ्य चिंताजनक रहता है । द्वितीय चरण: इस चरण में जन्म हो तो जातक क्रोधी स्वभाव का और काम भावना से सदा पीड़ित रहता है। तृतीय चरण: इस चरण में चंद्र के कारण जातक की अपनी अभिभावकों से नहीं बनती। यदि चंद्र के साथ शनि की युति हो तो जातक विज्ञान एवं शास्त्रों में पारंगत होता है। चतुर्थ चरण: इस चरण में चंद्र हो तो जातक में विज्ञान के प्रति रुझान होता है। जातक चिकित्सा के क्षेत्र में जा सकता है । ज्येष्ठा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सत्ता के निकट रखती है। यों वह क्रूर हृदय होता है तथापि सहायता की याचना करने वालों को वह निराश नहीं करता । मंगल की दृष्टि पराधीन जीवन बिताने की आशंका दर्शाती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक सभी सुविधाओं से युक्त और यशस्वी होता है । गुरु की दृष्टि भी शुभ फल देती है। जातक विद्वान होता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 182 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र की दृष्टि जातक को धनी एवं स्त्रियों में प्रिय बनाती है । शनि की दृष्टि के अशुभ फल कहे गये है। जातक रूग्ण एवं अनुदार होता है । ज्येष्ठा के विभिन्न चरणों में मंगल प्रथम चरणः विष बाधा, शस्त्र से चोट आदि का भय बना रहता है। जातक को अग्नि के पास सावधानी रखनी चाहिए । द्वितीय चरणः कृषि के प्रति रुझान जातक को उससे जुड़े व्यवसायों में ले जाती है। सत्ता पक्ष से अनायास लाभ मिलने की भी संभावना भी होती है तृतीय चरणः जातक अभावग्रस्त नहीं रहता। यदि इसी चरण में मंगल के साथ बुध, शुक्र एवं शनि हो तो जातक के 'कुबेर' होने की भविष्यवाणी की गयी है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल पत्नी के स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है। विशेषकर यदि मंगल के साथ राहु हो और उसके तीसरे स्थान पर शनि हो । पत्नी के जीवन के लिए इस स्थिति को बेहद अशुभ कहा गया है। ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को विद्वान बनाती है। चंद्र की दृष्टि उसमें परायी स्त्रियों के प्रति आसक्ति बढ़ाती है। जातक की मनोवृत्ति भी क्रूर होती है । बुध की दृष्टि भी जातक को परायी स्त्रियों के पीछे भागने वाला बनाती है। जातक प्रदर्शन-प्रिय एवं दूसरे के धन पर नजर रखने वाला भी होता है । गुरु की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं । जातक धनी और अपने परिवार में श्रेष्ठ होता है तथापि उसका उग्र स्वभाव लोगों को परेशान किये रहता है। शुक्र की दृष्टि उसे खान-पान का शौकीन एवं कामासक्त बनाती है । शनि की दृष्टि हो तो जातक अपने ही परिवार का विरोधी बन जाता है । उसे मां का भी स्नेह नहीं मिलता । ज्येष्ठा नक्षत्र में बुध के फल यद्यपि ज्येष्ठा नक्षत्र का अधिपति स्वयं बुध को माना गया है तथापि इस नक्षत्र में उसके विशेष फल नहीं मिलते। हाँ, यदि ऐसे बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि हो तो बुध शुभ प्रभाव कर सकता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 183 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरणः यहाँ बुध जातक को संगीत एवं ललित कलाओं में दक्ष बनाता है। अपनी कला से उसे अर्थ एवं यश दोनों की प्राप्ति होती है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध के सामान्य फल मिलते हैं । यदि उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वह लाभदायक होता है। सूर्य के साथ युति जातक को मृदुभाषी बनाती है, जबकि यदि मंगल साथ हो तो जातक अपनी पत्नी के व्यवहार से दुखी रहता है। शुक्र के साथ युति हो तो पत्नी अच्छी मिलती है। जातक को स्वर्ण से संबंधित व्यवसाय या कार्यों में लाभ हो सकता है। तृतीय चरण: यहाँ बुध के कारण जातक का स्वभाव क्रूर होता हे । चतुर्थ चरणः यहाँ बुध नेत्र विकार की आशंका बलवती करता है । ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सत्यवादी, सर्वप्रिय बनाती है । उसे सत्ता पक्ष से भी लाभ होता है । I चंद्र की दृष्टि जातक को ललित कलाओं के क्षेत्र में ले जाती है मंगल की दृष्टि हो तो जातक राजनीति के क्षेत्र में सफल होता है। वह दूसरों से लाभ उठाने की कलाओं में माहिर होता है । गुरु की दृष्टि उसे परिवार का पूर्ण सुख प्रदान करती है। जातक धनी होता है । उसकी संतानें भी अच्छी होती हैं। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी एवं यशस्वी होता है। अपने आचरण के कारण वह सर्वप्रिय बन जाता है । शनि की दृष्टि जातक को तार्किक बनाती है। समाज सेवा एवं परोपकार में उसकी गहरी रुचि होती है। ज्येष्ठा नक्षत्र में गुरु के फल ज्येष्ठा नक्षत्र में गुरु की अन्य ग्रहों से युति हो, तभी अच्छे फल मिलते हैं । प्रथम चरण: यहाँ गुरु के सामान्य फल मिलते हैं। द्वितीय चरणः यहाँ गुरु के कारण जातक विद्वान एवं शास्त्रों में पारंगत होता है। यदि गुरु के साथ मंगल भी हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु के कारण जातक चिंता मुक्त होता है। यदि इस चरण में गुरु की सूर्य, चंद्र, मंगल से युति हो तो जातक धनी, कलाविद् तथा स्त्रियों में प्रिय होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 184 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल-शनि से गुरु की युति जातक को मलिन हृदय वाला, अनुदार बनाती है। तथापि उसे सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि उसे ईश्वर भक्त, ईमानदार बनाती है। चंद्र की दृष्टि के कारण उसे यश एवं अर्थ की प्राप्ति होती है। __ मंगल की दृष्टि के कारण उसे सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है। जातक औरों का मान-मर्दन करने वाला होता हे। बुध की दृष्टि हो तो जातक आचार-विचार शून्य, दूसरों के विवादों में अकारण रुचि लेने वाला होता है। शुक्र की दृष्टि के कारण वह महिलाओं से संबंधित कार्य-व्यापार में जुटता है। शनि की दृष्टि अशुभ मानी गयी है, जातक परिवार के सुख से वंचित एवं अभावग्रस्त रहता है। ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित शुक्र के फल ज्येष्ठा नक्षत्र में शुक्र हो तो जातक कामप्रिय होता है। प्रथम चरणः यहाँ मंगल के साथ शुक्र की युति जातक को गणितज्ञ, समाज में समादृत बनाती है। जातक की ज्योतिष शास्त्र में अच्छी पैंठ होती है। लेकिन यह युति जुआरी वृत्ति भी पैदा करती है। द्वितीय चरण: जातक कामातिरेक का शिकार होता है। रासायनिक उत्पादनों अथवा स्त्रियों के प्रसाधनादि से संबंधित कार्यों में वह सफल होता है। तृतीय चरणः जातक में इंजीनियर एवं जातिका में चिकित्सक बनने की क्षमता होती है। चतुर्थ चरणः जीवन के उत्तरार्द्ध में जातक सुखी-संपन्न होता है। पूर्वार्द्ध में तो वह स्वयं अपनी संपत्ति का नाश करता है। उसका पारिवारिक जीवन भी सुखी नहीं होता। ज्येष्ठा स्थित शुक्र पर ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक सत्ता पक्ष से लाभ प्राप्त करता है। चंद्र की दृष्टि से उसे समाज में सम्मान और उच्चपद प्राप्त होता है। चंद्र की दृष्टि कामभावना भी बढ़ाती है। मंगल की दृष्टि अशुभ फल देती है। जातक अभावग्रस्त रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 185 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि हो तो जातक के जीवन में अनेक बाधाओं के संकेत मिलते हैं। गुरु की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक सुखी, समृद्ध होता है। उसे अच्छी पत्नी एवं अच्छे बच्चों का भी पूर्ण सुख मिलता है। शनि की दृष्टि हो तो जातक उदारमना, शांतिप्रिय एवं समाज में समादृत होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में शनि के फल __ ज्येष्ठा नक्षत्र में शनि की स्थिति के अशुभ फल ही मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ शनि के कारण जातक कलहप्रिय, गर्म मिजाज तथा मुकदमेंबाजी में फंसा रहता है।। द्वितीय चरण: यहाँ शनि के कारण जातक अपनी कुटिल बुद्धि से काफी लाभ प्राप्त करता है। - तृतीय चरण: यहाँ शनि की स्थिति बहु पत्नीत्व का योग बनाती है, फिर भी जातक सुख से वंचित रहता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शनि के शुभ फल मिलते हैं। जातक सक्रिय, धनी लेकिन सुखहीन होता है। वह अवैध कार्यों में भी लिप्त रहता है। . ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित शनि पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक पशु पालक, सत्कर्म करने वाला होता है। चंद्र की दृष्टि जातक में धूर्त बुद्धि भरती है। वह कुटिल और क्रूर होता है। मंगल की दृष्टि के कारण जातक उदार, दूसरों का सहायक लेकिन वाचाल होता है। बुध की दृष्टि परिवार सुख को क्षीण करती है। जातक अवैध कार्यों से धन कमाता है। गुरु की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक धनी एवं सरकार में उच्च पद प्राप्त करता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। उसे यात्राओं में आनंद मिलता है। उसमें काम भावना भी कुछ अधिक होती है। ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित राहु के फल प्रथम चरण: यहाँ स्थित राहु दो पत्नियों का योग दर्शाता है। यदि लग्न भी इसी चरण में हो तो इसे अवश्यंभावी माना गया है। यदि राहु ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 186 . Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो इसे जातक के जीवन के लिए अनिष्टकर माना गया है। द्वितीय चरणः यहाँ राहु जातक में कुटिल बुद्धि एवं धूर्तता का संचार करता है। तृतीय चरण: यहाँ राहु शुभ फल देता है । जातक अपने विचारों को प्रभावपूर्ण तरीके से व्यक्त करता है तथापि जीवन कुछ कठिन स्थितियों में ही बीतता है । चतुर्थ चरणः यहाँ जातक रुग्ण एवं परिवार द्वारा तिरस्कृत भी होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र स्थित केतु के फल राहु की तुलना में ज्येष्ठा नक्षत्र में केतु अच्छे फल देता है प्रथम चरण ः यहाँ केतु जातक को प्रशासकीय सेवाओं में ले जाता है। यदि साथ में मंगल भी हो तो जातक शीर्ष पद तक पहुँच सकता है। विदेश यात्राओं के भी योग बनते हैं I द्वितीय चरणः यहाँ भी ऐसे ही फल मिलते हैं । तृतीय चरण: यहाँ केतु के कारण जातक धनी एवं खेल-कूद तथा मनोरंजन संबंधी कार्यों से लाभ प्राप्त करता है। चतुर्थ चरण ः यहाँ भी केतु अच्छे फल देता है। जातक का आजीवन सुखी रहता है । व्यवसाय में भी उसे अच्छी सफलता मिलती है । ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 187 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल __ मूल नक्षत्र राशिपथ में 240.00 253.20 अंशों के मध्य स्थित है एवं धनुराशि (स्वामी : गुरु) के अंतर्गत आता है। पर्यायवाची नाम है-असुर, भुतऋक। अरबी में इसे 'अंश सौलाह' कहते हैं। इस नक्षत्र में ग्यारह तारे हैं तथा आकृति सिंह की पूंछ की भांति है। नक्षत्र देवता राक्षस तथा स्वामी ग्रह केतु है। गण: राक्षस, योनिः श्वान तथा नाड़ीः आदि है। चरणाक्षर हैंये यो भ भी। नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि (स्वामी : गुरु के अतंर्गत आते हैं। मूल नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी-प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरण: चंद्र। मूल नक्षत्र में जन्मे जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। शरीर हष्ट-पुष्ट, चमकीले नेत्र, मधुर स्वभाव। सामान्यतः इस नक्षत्र में जातक शांतिप्रिय, सिद्धांतवादी एवं विपरीत परिस्थितियों में भी पराजय न मानने वाले होते हैं। एक बार दृढ़ संकल्प कर लें तो वे उसे प्राप्त कर ही छोड़ते हैं। ईश्वर पर उनकी अगाध आस्था होती है, इतनी कि वे सब कुछ "प्रभु के भरोसे वाली उक्ति चरितार्थ करने लगते हैं। उन्हें न तो कल की चिंता होती है, न अपने वर्तमान की फ्रिक। वे दूसरों को अच्छी सलाह देते हैं, पर अपने मामले में लापरवाह ही होते हैं। जहाँ तक आजीविका या कार्य का संबंध है, उनमें ईमानदारी होती है, साथ ही एक तरह की अस्थिर मति भी होती है। वे अनेक मामलों में कुशल भी होते हैं तथापि निरंतर परिवर्तनशील जीवन बिताने की चाह उन्हें कहीं टिकने नहीं देती। यों वे लेखन, कला, सामाजिक क्षेत्र में सफल सिद्ध होते ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 188 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं। दूसरे, दोस्तों के साथ उनका ‘दरियादिली' का व्यवहार कभी-कभी उन्हें आर्थिक संकट में भी डाल देता है। आय से अधिक व्यय उनके स्वभाव की विशेषता होती है। अतः ऐसे जातकों को इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की सलाह भी दी जाती है। ऐसे जातकों की प्रतिभा एवं भाग्य अक्सर जन्म-स्थल से दूर विदेश-भूमि पर ही चमकता है। यदि ऐसे जातक विदेश जाने का सफल उपक्रम करें तो उन्हें आशातीत लाभ होता है। ऐसे जातक अपना जीवन स्वयं गढ़ते हैं। परिवार से समर्थन और सहारा तो मिलता है, पर विशेष नहीं। ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। पत्नी अच्छी मिलती है। ऐसे जातकों को अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान रखना चाहिए साथ ही मादक पदार्थों से बिल्कुल बचना चाहिए। क्योंकि यदि एक बार उन्हें किसी नशे की लत लग गयी तो वे फिर बिल्कुल 'अति' कर देते हैं। मूल नक्षत्र में जातिकाएं भी शुद्ध हृदय, उदार होती हैं, तथापि घोर हठी स्वभाव उनका एक दुर्गुण ही होता है। उसके कारण उन्हें अकारण ही विवादों और तरह-तरह की समस्याओं में उलझना पड़ता है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन बहुत सुखी नहीं होता। किसी न किसी कारण पति से अलगाव की स्थिति पैदा होने की आशंका बनी ही रहती है। विवाह में विलंब के संकेत मिलते हैं। ऐसी जातिकाएं वातरोग की जल्दी शिकार हो सकती है। मूल नक्षत्र में सूर्य के फल मूल नक्षत्र के विभिन्न चरणों में सूर्य मिले-जुले फल देता है। अन्य शुभ ग्रहों से युति या उनकी दृष्टि ही कुछ शुभ फल प्रदान कर सकती है। प्रथम चरणः यहाँ यदि सूर्य के साथ बुध हो तो जातक को विद्वान एवं परोपकारी पिता का पुत्र होने का गौरव मिलता है। द्वितीय चरणः जातक का जीवन सामान्य बीतता है। शुक्र के साथ युति जातक को वस्त्र-व्यवसाय के क्षेत्र में सफल बना सकती है। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य जातक को कल्पनाशील और विनोदी वृत्ति का बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यहाँ शुक्र एवं मंगल से युति उसके चिकित्सा क्षेत्र में जाने की संभावना प्रबल करती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 189 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल नक्षत्र स्थित सूर्य पर अन्य ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि हो तो जातक मृदुभाषी होता है । पुत्र सुंदर होते हैं । मंगल की दृष्टि उसे सेना या पुलिस सेवा में सफल बनाती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक को धातुओं के व्यवसाय से लाभ होता है । गुरु की दृष्टि उसे मंत्री तुल्य पद दिला सकती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी किंतु कामुक भी अधिक होता है । शनि की दृष्टि उसे कुसंगति का शिकार बनाती है । मूल नक्षत्र में चंद्र के फल मूल नक्षत्र में चंद्र के फल मिले-जुले होते हैं। यदि मूल नक्षत्र स्थित चंद्र पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो फल शुभ मिलने लगते हैं। प्रथम चरण: यहाँ चंद्र के फल सामान्य ही मिलते हैं । द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र पारिवारिक सुख के लिए हानिप्रद माना गया है । जातक में निष्ठा या ईमानदारी का भी अभाव होता है । तृतीय चरण: यहाँ चंद्र पर मंगल या सूर्य अथवा शनि की दृष्टि हो तो जातक विधि - सेवा के क्षेत्र में सफल होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र जातक के लिए बालारिष्ठ योग बनाता है। जन्म से चार वर्ष तक समय कुछ संकटपूर्ण माना गया है। मूल नक्षत्र स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक यशस्वी और राजसी ठाठ-बाट वाला होता है। मंगल की दृष्टि उसे सुरक्षा सेनाओं में सफल बनाती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक अच्छा ज्योतिषी बन सकता है। जीवन सुखी, सेवकों से युक्त होता है। गुरु की दृष्टि के श्रेष्ठ फल मिलते हैं । जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाला और उच्च पद पर आसीन होता है। यदि वह उद्यमी है तो अनेक उद्योगों का स्वामी होता है। शुक्र की दृष्टि जातक को धनी, धार्मिक वृत्ति का बनाती है। संतान सुख भी मिलता है । शनि की दृष्टि हो तो जातक विद्वान, धार्मिक विषयों का ज्ञाता तथापि कुछ क्रूर मनोवृत्ति का होता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 190 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल नक्षत्र स्थित मंगल के फल मूल नक्षत्र में मंगल हो तो जातक को शरीर में घाव लगने की आशंका बनी रहती है। जातक काफी उम्र तक परिपक्व नहीं हो पाता। वाणी भी कुछ क्रूर ही होती है। । प्रथम चरण: यहाँ मंगल जातक को शत्रुहंता बनाता है। द्वितीय चरणः यहाँ मंगल हो तो उपरोक्त बातें स्पष्ट नजर आती हैं। जीवन में चालीस वर्ष के बाद ही तरक्की होती है। तृतीय चरणः यहाँ जातक को कठिन संघर्ष के बाद ही कुछ सुख मिलता है। शरीर में घाव लगने की भी आशंका बनी रहती है। जातक तेज-तर्रार स्वभाव का होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक के सुरक्षा सेनाओं में जाने के योग होते हैं। जातक चिड़चिड़े स्वभाव का कलह-प्रिय होता है। जीवन-संघर्ष पूर्ण तथा निराशा से भी भरा होता है। अतः जातक का गुह्य विद्याओं के प्रति भी रुझान हो जाता है। मूल स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि . सूर्य की दृष्टि बहुत शुभ फल देती है। जातक सौभाग्यशाली एवं समाज में समादृत होता है। तथापि उसके व्यवहार में रुक्षता होती है। __चंद्र की दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है। लेकिन उस पर कुछ फौजदारी के आरोप भी लग सकते हैं। बुध की दृष्टि उसे कलाविद् बनाती है। कुछ कलाओं में वह विशेष दक्षता प्राप्त कर सकता है। गुरु की दृष्टि धनी एवं सुख-सुविधा पूर्ण जीवन का संकेत करती है तथापि जातक का वैवाहिक जीवन विषमय हो सकता है। शुक्र की दृष्टि जातक को उदार बनाती है। लेकिन उसमें काम वासना भी उग्र होती है। शनि की दृष्टि हो तो जातक यायावरी प्रवृत्ति का होता है। शरीर में किसी विकलांगता की भी आशंका बनी रहती है। मूल नक्षत्र में बुध की स्थिति के फल मूल नक्षत्र में बुध प्रायः शुभ फल ही देता है। जीवन सुखी एवं मान-सम्मान से युक्त होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 191 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम चरणः जातक सत्ता पक्ष के उच्च पदासीन लोगों की निकटता से लाभान्वित होता है । द्वितीय चरणः जीवन सुखी रहता है। जातक शासकीय सेवा में रत रहता है यदि बुध के साथ राहु भी हो तो जातक की इंजीनियरिंग क्षेत्र में जाने की संभावना बनती है। वह स्वयं भी कोई उद्योग शुरू कर सकता है। तृतीय चरणः जातक स्वतंत्र व्यावसायिक जीवन बिताना पसंद करता है । यदि बुध के साथ गुरु हो तो जातक वेदों का ज्ञाता भी हो सकता है। उसके चार्टड एकाउंटेंट बनने का योग होते हैं । जातक के शीर्ष स्थान पर पहुँचने की भी संभावना होती है। चतुर्थ चरणः जातक का जीवन सुखी होता है । मूल नक्षत्र स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को शांत चित्त बनाती है । चंद्रमा की दृष्टि हो तो जातक में प्रख्यात लेखक बनने की क्षमता होती है । मिलनसार वृत्ति का ऐसा जातक किसी का विश्वास नहीं तोड़ता । मंगल की दृष्टि भी जातक को लेखकीय प्रतिभा होने का संकेत करती है। गुरु की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। बुद्धिमान, आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता है। उसमें राजनीति के क्षेत्र में बहुत ऊंचे जाने की क्षमता होती है । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक मृदुभाषी एवं अध्यापन के क्षेत्र में सफल होता है। शनि की दृष्टि को अशुभ बताया गया है। जातक का जीवन दुख से भरा होता है । यह सब शायद इसलिए कि जातक क्रूर एवं कुटिल व्यक्ति के रूप में बदनाम हो जाता है । मूल नक्षत्र में गुरु की स्थिति के फल मूल नक्षत्र में गुरु की स्थिति शुभ फल प्रदान करती है । जातक सद्गुणी, धनी, दीर्घायुष्य और धार्मिक वृत्ति का होता है । प्रथम चरणः यहाँ जातक ईमानदारी से भरा सात्विक जीवन व्यतीत करता है । शिक्षा के क्षेत्र में वह विशेष सफल रहता है । द्वितीय चरणः जातक धनी एवं अधिकार संपन्न होता है । तृतीय चरणः जातक सुखी, संपन्न वैवाहिक जीवन व्यतीत करता है। यदि गुरु के साथ बुध की युति हो तो जातक विभिन्न विषयों का विद्वान होता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 192 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरण: यहाँ भी उपरोक्त फल मिलते हैं। जातक के किसी धार्मिक या विज्ञान संबंधी संस्थान के प्रमुख बनने के योग मिलते हैं। मूल नक्षत्र में स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि अशुभ फल देती है। जातक सौभाग्यशाली, धनी एवं अच्छे पारिवारिक सुख वाला होता है। ___ चंद्र की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक बेहद धनी एवं परम सौभाग्यशाली होता है। .. मंगल की दृष्टि जातक को कलहप्रिय बना देती है। बुध की दृष्टि के फल शुभ कहे गये है। जातक मंत्री तुल्य स्थिति में होता है। शुक्र की दृष्टि एक सुखी, समृद्ध दीर्घायु वाले जीवन का संकेत करती है। शनि की दृष्टि अशुभ फल देती है। जातक को तिरस्कृत जीवन बिताना पड़ सकता है। मूल नक्षत्र स्थित शक्र के फल मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में ही शुक्र अशुभ फल देता है। शेष चरणों में प्रायः शुभ मिलते हैं। प्रथम चरण: जातक का जीवन सुखी होता है। यदि शुक्र के साथ सूर्य एवं गुरु भी हो तो जातक बुद्धिमान, निर्भीक एवं मंत्री तुल्य पद पा सकता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी शुक्र जातक को सुखी-समृद्ध बनाता है। वह महिलाओं या अनाथ बच्चों के कल्याण से जुड़ी संस्थाओं का भी कर्ता-धर्ता बनता है। तृतीय चरण: यहाँ शुक्र अभावग्रस्त जीवन की सूचना देता है। चतुर्थ चरणः यदि शुक्र शनि एवं सूर्य के साथ हो तो जातक यद्यपि धार्मिक विषयों का विद्वान होता है तथापि जीवन समृद्ध नहीं रह पाता। हाँ, जातक को अपने परिवार से पूरा सुख, सहयोग और समर्थन मिलता है। कूल नक्षत्र स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि मूल नक्षत्र स्थित शुक्र पर सभी ग्रहों की दृष्टि उत्तम फल देती है। सूर्य की दृष्टि जातक को धनी एवं विद्वान बनाती है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक नृप तुल्य सुख पाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 193 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल की दृष्टि भी ऐसे ही फल देती है । जातक उद्योग-व्यापार में सफलता प्राप्त करता है। बुध की दृष्टि भी शुभ फल देती है। जातक धनी, चल-अचल संपत्ति से युक्त होता है। गुरु की दृष्टि विशाल परिवार एवं एकाधिक विवाह की सूचना देती है। शनि की दृष्टि भी शुभ फल देती है। जातक परम सौभाग्ययुक्त, सुखी एवं समृद्ध होता है । मूल नक्षत्र स्थित शनि के फल मूल नक्षत्र में शनि की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं । जातक सुखी, यशस्वी, उदार एवं प्रमुख पदों पर जिम्मेदारी निबाहता है। प्रथम चरणः यहाँ शनि जातक को उदार वृत्ति का बनाता है। उसे परिवार में पत्नी से, बच्चों से पूर्ण सुख एवं प्रतिष्ठा मिलती है । द्वितीय चरणः जातक विभिन्न विषयों का प्रसिद्ध विद्वान होता हे। तृतीय चरण: यहाँ शनि जातक को प्रायः प्रतिरक्षा सेवाओं में ले जाता है । यदि ऐसे शनि पर मंगल की दृष्टि हो और जातक सेना में हो तो परिवार एवं देश का गौरव बढ़ाता है । चतुर्थ चरणः जातक ग्राम, नगर या किसी शैक्षणिक संस्थान में उच्च पद की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाता है। मूल नक्षत्र स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को समृद्धि से पूर्ण यशस्वी बनाती है । चंद्र की दृष्टि हो तो पारिवारिक जीवन सुखी बीतता है तथापि माता के लिए यह स्थिति हानिप्रद कही गयी है । मंगल की दृष्टि के अशुभ फल होते हैं। जातक की कुटिल वृत्ति उसे नफरत का शिकार बना देती हैं। बुध की दृष्टि जातक को मंत्री तुल्य प्रसिद्ध बनाती है । गुरु की दृष्टि शोध एवं शिक्षा के क्षेत्र में जातक की रुचि बढ़ाती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक अनेक जिम्मेदारियां उठाता है । यह भी कहा गया है कि माता के अलावा कोई अन्य स्त्री भी उसके लालन-पालन में योग देती है I ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र - विचार ■ 194 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल नक्षत्र में राहु की स्थिति के फल ___मूल नक्षत्र में केवल तीसरे चरण में ही राह के शुभ फल कहे गये हैं। शेष चरणों में अशुभ फल ही मिलते हैं। प्रथम चरण: जातक संतान के कारण मानसिक विकार से ग्रस्त हो सकता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी अच्छे फल नहीं मिलते। जीवन दुखी ही रहता है। तृतीय चरणः जातक वेदों का ज्ञाता एवं भू संपत्ति का स्वामी होता है। चतुर्थ चरण: जातक निर्लज्ज प्रकृति का होता है। यों उसमें प्रशासन की क्षमता भी होती है। मूल नक्षत्र में केतु की स्थिति के फल मूल नक्षत्र में स्थित केतु भी कोई शुभ फल प्रदान नहीं करता। . प्रथम चरणः अनुराधा नक्षत्र के लग्न में होने पर जातक को सुख- . सुविधापूर्ण जीवन के योग बताये गये हैं। लेकिन बाद में उसे अपनी संपत्ति गंवानी भी पड़ सकती है। यह स्थिति जीवन के इक्तीसवें वर्ष में बनती है तथापि तीन-चार वर्षों बाद जातक पुनः उसे प्राप्त कर लेता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी केतु उपरोक्त फल देता है। मंगल के साथ केतु की युति जातक को मंत्री या मंत्री तुल्य पद दिला सकती है। तृतीय चरण: यहाँ भी उपरोक्त फल मिलते हैं। चतुर्थ चरण: जातक तरक्की तो करता है पर उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 195 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाषाढ़ा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र राशि पथ में 253.20 अंश से 266.40 अंश तक स्थित है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के पर्यायवाची नाम हैं पय, सलिलम्, जलम्, तोयम्। अरब मंजिल में उसे 'अल नाईम' कहा जाता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में चार तारे हैं, जो हाथी दांत की तरह दिखायी देते हैं। देवता जल एवं स्वामी ग्रह शुक्र है। प्रथम चरण का स्वामीः सूर्य, द्वितीय चरण काः बुध, तृतीय चरण काः शनि एवं चतुर्थ चरण का स्वामी गुरु है। गणः मनुष्य, योनिः वानर, एवं नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं: भू, धा, फ, ढ। यह नक्षत्र धनु राशि के 13.20 अंशों से 27.40 अंश तक स्थित है। धनु का स्वामी गुरु है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिमान, तार्किक, अपनी बात पर अड़े रहने वाले, ईश्वर भक्त, विनम्र, पाखंड रहित तथा सहृदय एवं सहायक प्रवृत्ति के होते हैं। उनमें लेखन प्रतिभा भी होती है, विशेषकर कविताएं लिखने में उन्हें आनंद आता है। इन जातकों में एक ही कमी होती है कि जहाँ वे बहत जल्दी ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं, वहाँ निर्णय करने में सदैव सोच-विचार, तर्क-कुतर्क किया करते हैं। लेकिन उनमें यह भी एक गुण होता है कि एक बार निर्णय करने के बाद वे उससे पीछे नहीं हटते, भले ही उन्हें मालूम भी पड़ जाए कि उनका निर्णय सही नहीं है। ऐसे जातक अच्छी शिक्षा पाते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी प्रतिभा खास तौर पर चमकती है। उनमें गुह्य विद्याओं के अध्ययन के प्रति भी पर्याप्य रुचि होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 196 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवसाय के क्षेत्र में भी वे सफल हो सकते हैं, बशर्ते उनके अधीनस्थ कर्मचारी ईमानदार एवं विश्वास योग्य हों। ऐसे जातकों का विवाह प्रायः विलम्ब से होता है तथापि उनका वैवाहिक जीवन न्यूनाधिक रूप से सुखी ही रहता है। इसका एक कारण यह है कि तमाम विवादों के बावजूद वे पत्नी को बेहद प्यार करते हैं। ऐसे जातकों की संतानें भी अच्छी होती हैं। ऐसे जातकों को अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए, विशेषकर श्वास सम्बन्धी किसी भी शिकायत को हल्के से नहीं लेना चाहिए। . पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर होती हैं। लंबी नाक, भव्य चेहरा, आँखों में एक चुम्बकीय आकर्षण, यह उनके व्यक्तित्व की विशेषता होती है। ऐसी जातिकाएं बुद्धिमती, ऊर्जा युक्त, सक्रिय और उत्साह से पूर्ण होती हैं। वे विपरीत परिस्थितियों में झुकना नहीं जानती तथा वे काफी सोच-विचार व सभी अच्छे-बुरे पहलुओं का आकलन करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचती हैं। झूठ से उन्हें चिढ़ होती है, क्योंकि वे स्वयं सत्य पर विश्वास करती हैं। वे अपनी बात भी निःसंकोच भाव से व्यक्त कर देती हैं। गृह कार्य में चतुर ऐसी जातिकाएं पति की प्रसन्नता का पूरा ध्यान रखती हैं। उनका पारिवारिक जीवन सुखी ही बीतता है। ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है, तथापि उन्हें गर्भाशय संबंधी किसी शिकायत की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम चरणः सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरणः शुक्र एवं चतुर्थ चरणः मंगल। पूर्वाषाढा नक्षत्र में सूर्य के फल पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सूर्य स्थित हो तो सामान्यतः शुभ फल ही मिलते हैं। प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक के जीवन को सुख-सुविधाओं से पूर्ण बनाता है। जातक जीवन में भौतिकता एवं आध्यात्मिकता का समन्वय स्थापित करता है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य के कारण जातक धनी एवं सबके आदर का पात्र होता है। लेकिन उसका हठी स्वभाव कभी-कभी परेशानी पैदा कर सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 197 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरण: यहाँ सूर्य जातक को साहसी बनाता है। पैंतीस से चौवालिस वर्ष की अवस्था सर्वोत्तम होती है। चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य के कारण जातक में व्यावसायिक बुद्धि होती है। पूर्वाषाढ़ा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि जातक को मधुरभाषी बनाती है । पुत्र भी सुंदर होता है। मंगल की दृष्टि प्रतिरक्षा सेनाओं या पुलिस सेवा में यशस्वी बनाती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक शास्त्रज्ञ, मंत्रज्ञ, धातुओं के व्यापार से लाभ कमाने वाला होता है । गुरु की दृष्टि जातंक की पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि करती है। वह मंत्री - तुल्य सम्मान पाता है । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक वैभव-संपन्न व विलासिता -प्रिय होता है । शनि की दृष्टि हो तो जातक को पशु-पालन से लाभ होता है। वह कुसंगति का भी शिकार हो सकता है। पूर्वाषाढा नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के फल पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में चंद्रमा की स्थिति न केवल जातक वरन् उसके माता-पिता, मामा आदि के लिए भी अशुभ मानी गयी है। प्रथम चरणः यहाँ चंद्र माता के लिए अशुभ होता है। स्वयं तेरहवें वर्ष में जातक के स्वयं के स्वास्थ्य को खतरा रहता है । द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र के कारण जातक की नौ माह की अवस्था में पिता को खतरा बताया गया है। यों वयस्क होने पर जातक बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ और परोपकारी वृत्ति का होता है । तृतीय चरण: यहाँ चंद्र को मामा के लिए अशुभ कहा गया है। स्वयं जातक शांत प्रकृति का, स्वाभिमानी और सद्व्यवहार से युक्त होता है। चालीस वर्ष की अवस्था के बाद अर्थाभाव की स्थिति बन सकती है। चतुर्थ चरण ः यहाँ जातक के स्वयं के लिए खतरा होता है। किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसे दीर्घायुष्य होने में भी कोई संदेह नहीं । पूर्वाषाढ़ा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को यशस्वी एवं ऐशो आराम से युक्त बनाती है । मंगल की दृष्टि हो तो जातक के सुरक्षा या पुलिस सेवा में जाने की संभावना प्रबल होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 198 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुध की दृष्टि जातक को ज्योतिष शास्त्र में प्रवृत्त करती है। उसका जीवन भी सुखी होता है । गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक उच्च पद पा सकता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी और धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । शनि की दृष्टि भी शुभ प्रभाव डालती है । यद्यपि जातक कुछ क्रूर मना तथापि धार्मिक एवं विभिन्न शास्त्रों में पारंगत होता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में मंगल की स्थिति के फल पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में मंगल चतुर्थ चरण में ही शुभ फल देता है। शेष चरणों में फल सामान्यतः सामान्य ही मिलते है । प्रथम चरणः यहाँ मंगल जातक को साहसी बनाता है। यदि मंगल के साथ गुरु हो तो जातक सुयोग्य प्रशासक बनता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक चिंतित मनःस्थिति वाला होता है। यहाँ शनि के साथ मंगल की युति विपत्तिकारक होती है । 1 तृतीय चरण: यहाँ जातक उदार एवं दृढ़-चरित्र होता है । उसमें सामान्य स्थिति से उबरकर ऊंचे उठने की क्षमता होती है । इस चरण में स्थित मंगल पर गुरु की दृष्टि जातक को दीर्घायु बनाती है । चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल जातक को साहसी बनाता है। वह राजनीति में हो तो ऊंचे पद पर पहुँच सकता है। उसके शत्रु कुछ अधिक होते हैं तथा बावन वर्ष की आयु में शस्त्र से अपघात की आशंका दर्शायी गयी है। पूर्वाषाढ़ा स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक समाज में सम्मान पाता है । चंद्र की दृष्टि उसके विद्वान होने की सूचना देती है । . बुध की दृष्टि हो तो जातक विभिन्न कलाओं में विख्यात होता है। गुरु की दृष्टि संपन्न होने की संभावना दर्शाती है। हाँ, जातक का पारिवारिक जीवन कुछ कलहमय रहता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक में कामुक वृत्ति की अधिकता होती है। स्त्रियों की सहायता करते वक्त वह उनसे प्रतिदान में कुछ चाहता भी है 1 शनि की दृष्टि भटकाव को बढ़ाती है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में बुध के फल प्रथम चरणः जातक के विदेश में बसने की इच्छा बलवती होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 199 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो यह योग और प्रबल होता है। वह विदेशों में पर्याप्त धन भी अर्जित करता है। यदि चंद्र की ऐसे बुध पर दृष्टि हो तो जातक स्वदेश नहीं लौटता। विदेश में ही बस जाता है। द्वितीय चरणः जातक सरकार में उच्च पद पर सलाहकार की हैसियता से कार्य करता है। उसकी कानून में अच्छी पैठ होती है। तृतीय चरणः यहाँ बुध जातक में परस्त्रीगमन की लालसा तीव्र करता है। इस कार्य में वह अपनी संपत्ति भी लुटा सकता है। चतुर्थ चरण: यदि बुध की गुरु के साथ युति हो तो जातक एक सरकारी अधिकारी के रूप में विश्व की व्यावसयिक यात्राएं करता है। उसके जीवन का पैतालिसवां एवं बावनवां वर्ष कष्टकारक बताया गया है। पूर्वाषाढा स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक शांत प्रकृति का होता है। चंद्र की दृष्टि उसकी लेखन प्रतिभा को निखारती है। मंगल की दृष्टि भी जातक को प्रख्यात लेखक बना सकती है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक के विद्वान, उदार एवं उच्च राजनीतिक पद पर होने की सूचना मिलती है। शुक्र की दृष्टि जातक को अध्यापन क्षेत्र में सफल बनाती है। शनि की दृष्टि के अशुभ फल मिलते हैं। उसका जीवन दुखी रहता है। पूर्वाषाढा नक्षत्र में गुरु के फल पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में गुरु उसके तृतीय एवं चतुर्थ चरण में अच्छे फल दर्शाता है। शेष दो चरणों में फल सामान्य ही होते हैं। प्रथम चरण: जातक के भाई अधिक होते हैं। द्वितीय चरण: गुरु पर यदि अन्य ग्रहों की शुभ दृष्टि हो तो जातक तीर्थाटन प्रिय होता है। यदि चंद्र की गुरु पर दृष्टि हो तो किसी पवित्र नदी में जल समाधि के संकेत किये गये हैं। तृतीय चरण: जातक को पूर्ण पारिवारिक सुख मिलता है। अच्छी पत्नी और अच्छे बच्चे। पच्चीस से पैंतालिस वर्ष की अवस्था जीवन का स्वर्णिम काल होता है। __ चतुर्थ चरण: जातक अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, साथ ही वैज्ञानिक शोध कार्यों में भी रुचि रखने वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 200 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाषाढ़ा स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि दरिद्रता भरे जीवन का संकेत करती है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक सौभाग्यशाली एवं पारिवारिक सुख से युक्त होता है। मंगल की दृष्टि जातक को बहुत संतोषी बनाती है । बुध की दृष्टि के शुभ फल होते हैं। जातक मंत्री तुल्य जीवन बिताता है शुक्र की दृष्टि भी जातक के लिए सौभाग्यप्रद सिद्ध होती है । शनि की दृष्टि हो तो जातक में चोरी की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है, जिसके कारण तिरस्कृत जीवन बिताना पड़ सकता है। पूर्वाषाढ़ा स्थित शुक्र के फल पूर्वाषाढ़ा के चतुर्थ चरण में ही शुक्र शुभ फल देता है । अन्य चरणों में विभिन्न ग्रहों की दृष्टि उसके फलों को प्रभावित करती है । प्रथम चरणः यहाँ जातक के शीघ्र विवाह के योग बनते हैं । द्वितीय चरण: यहाँ भी यही योग कहा गया है। यदि शुक्र के साथ गुरु हो तो वैवाहिक जीवन सुखी और स्थायी होता है । तृतीय चरण: यहाँ शुक्र अच्छी शिक्षा के संकेत देता है। ऐसे शुक्र पर चंद्र की दृष्टि चिकित्सक बनने की संभावना दर्शाती है। चतुर्थ चरणः यहाँ शुक्र जातक को उदार एवं स्पष्ट वक्ता बनाता है। जातक धनी एवं परोपकारी भी होता है । दार्शनिकता का पुट उसके जीवन को संयमित रखता है । पूर्वाषाढ़ा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक धनी और विद्वान होता है। चंद्र की दृष्टि उसे राजसी वैभव वाला बनाती है। मंगल की दृष्टि उसे सफल व्यापारी और धन- संपन्न करती है । बुध की दृष्टि हो तो जातक चल-अचल संपत्ति का स्वामी बनता है । गुरु की दृष्टि एकाधिक विवाह की सूचना देती है । शनि की दृष्टि के भी शुभ फल मिलते हैं । जातक सौभाग्यशाली एवं धनी होता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र स्थित शनि के फल प्रथम चरणः जातक में प्रशासक बनने की योग्यता होती है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 201 * Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यदि शनि के साथ गुरु भी हो तो जातक शासन में उच्च पद पर होता है। जातक में धार्मिक प्रवृत्ति भी प्रचुर होती है । द्वितीय चरणः यहाँ जातक अक्सर विश्वासघात का शिकार होता है। तृतीय चरणः शनि यदि बुध के साथ हो तो जीवन सुखमय बीतता है। मंगल की दृष्टि से उसे जोड़ों का रोग हो सकता है। चतुर्थ चरणः शनि पैंतालिस वर्ष की अवस्था के बाद ही जीवन में स्थिरता लाता है। उससे पूर्व का समय संघर्ष एवं बाधाओं से जूझने में बीतता है । पूर्वाषाढा नक्षत्र स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक यशस्वी, धनी और सौभाग्यशाली होता है । चंद्र की दृष्टि माता के लिए अशुभ होती है। यों जातक का अपना पारिवारिक जीवन सुखी होता है। मंगल की दृष्टि जातक में कुटिल वृत्ति का संचार करती है, जिसके कारण उसे परेशानी भी उठानी पड़ सकती है। बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक मंत्री-तुल्य प्रतिष्ठा पाता है। गुरु की दृष्टि उसे अध्ययन एवं शोध के क्षेत्र में ले जाती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक अनेक जिम्मेदारियां निभाता है। माता के अलावा किसी अन्य स्त्री से भी मातृ - स्नेह प्राप्त होता है। पूर्वाषाढा नक्षत्र में राहु के फल पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में चतुर्थ चरण में ही राहु के शुभ फल मिलते हैं। यदि चतुर्थ चरण में राहु हो तो जातक प्रभावशाली, परोपकारी, कलाप्रिय होता. है । वह लोगों के विश्वास की रक्षा करता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में केतु के फल पूर्वाषाढ़ा के चतुर्थ चरण में केतु हो तो जातक राजनीति से जुड़े लोगों के संपर्क में आकर अधिकार संपन्न बनता है। लेकिन धन का अभाव उसे बना ही रहता है। इस कारण भी कि जातक लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई भी उड़ा डालता है। ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 202 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराषाढ़ा राशि पथ के 266.40-270.00 अंशों के मध्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। एक अन्य नाम विश्वम भी है। अरबी में इसे अल बलदाह कहते हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चार तारे हैं तथा उसकी स्थिति एक मचान अथवा शैया की तरह अर्थात चौकोर है। नक्षत्र का देवता विश्व देव कहा गया है। सूर्य को उसका अधिपत्य दिया गया है। प्रथम चरण का स्वामी: गुरु, द्वितीय चरण का स्वामी: शनि, तृतीय चरण का स्वामी: शनि तथा चतुर्थ चरण का स्वामीः गुरु है। गण: मनुष्य, योनिः नेवला तथा नाड़ीः अंत मानी गयी है। चरणाक्षर हैं: भे, भो, ज, जी। इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मकर राशि एवं अंतिम चरण कुंभ राशि में होता है। दोनों राशियों का स्वामी शनि है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातकों का शरीर सुगठित, नाक लंबी, आँखें चमकीली होती हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक तथा स्वभाव विनम्र होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातक शुद्ध हृदय, प्रदर्शन-प्रियता से दूर, उच्च पद पर होने के बावजूद दंभ रहित तथा परोपकारी वृत्ति के होते हैं। वे सभी का आदर करना जानते हैं, विशेषकर नारी जाति के प्रति उनमें एक हार्दिक सम्मान की भावना होती है। अपने कार्य-व्यवहार में सदैव ईमानदारी बरतने वाले ये जातक पारदर्शी होते हैं। अपने कार्य के प्रति, सहयोगियों के प्रति उनमें एक निष्ठा का भाव होता है। वे कभी किसी को धोखा नहीं देते। स्वयं भी धोखा पंसद नहीं करते तथा धोखेबाजों से दूर रहते हैं। उनमें एक दृढ़ता भी होती है, जो उन्हें अनीति के सामने झुकने नहीं देती। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 203 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे हर दबाव का यथाशक्ति प्रतिरोध करते हैं। उनका हर निर्णय सुविचारित तथा विश्वास पात्रों के परामर्शों पर आधारित होता है। उनमें इतनी अधिक विनम्रता होती है कि वे सदैव कटु वचन कहने से परहेज करते हैं। यदि किसी की राय उन्हें जंचती भी नहीं तो वे प्रत्यक्ष में उससे असहमति व्यक्त नहीं करते। यदि उन्हें कभी अपनी गलती का अहसास हो जाए तो उसे स्वीकार करने में भी नहीं हिचकते। नरसी मेहता के शब्दों में कहा जाए तो वे वैष्णव जन की भांति होते हैं, जो दूसरों की पीर को जानते हैं, समझते हैं। लेकिन ऐसे जातक अंततः होते तो मनुष्य ही हैं। औरों द्वारा प्रशंसित होने की चाह उनके मन के किसी कोने में दबी रहती है। ऐसे जातकों को विवादपूर्ण कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है ताकि बाद में असफलता का सामना नहीं करना पड़े। ऐसे जातकों का बचपन अच्छा बीतता है लेकिन बाद में परिवार में अनेक झंझटों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों का अट्ठाइस से इक्तीस वर्ष का जीवन महत्त्वपूर्ण होता है। ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन सुखी रहता है। पत्नी स्नेहिल व्यवहार से युक्त होती है तथापि उसका स्वास्थ्य पति के लिए चिंता का कारण बना रहता है। ऐसे जातकों को उदर रोगों से सावधान रहना चाहिए। नेत्र विकार भी उन्हें परेशान कर सकता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओ में न्यूनाधिक रूप से उपरोक्त गुण होते हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। लेकिन जातकों के विपरीत वे हठी अधिक होती हैं। वे बिना सोचे-समझे कोई भी बात कह देती है। फलतः अनावश्यक विवादों में उलझ जाती हैं। अपने इस स्वभावगत दोष से उन्हें बचना चाहिए। ऐसी जातिकाएं सुशिक्षित होती हैं तथा अध्यापन अथवा बैंकिग सर्विस में सफलता पाती हैं। . वैवाहिक जीवन वैसे तो सुखी रहता है तथापि पति से अलगाव उन्हें दुखी किये रहता है। ऐसी जातिकाओं को वायु विकार की शिकायत हो सकती है। उसी तरह उन्हें अपने गर्भाशय से संबंधित किसी भी शिकायत की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 204 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी-प्रथम चरणः गुरु, द्वितीय चरण: शनि, तृतीय चरण: शनि, चतुर्थ चरणः गुरु उत्तराषाढा नक्षत्र में सूर्य के फल __ प्रथम चरण: यहाँ सूर्य के कारण जातक जल्दी क्रोधित हो जाने वाला होता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक शांतिप्रिय, एकांत प्रिय, निष्पक्ष एवं उद्यमी वृत्ति का होता है। तृतीय चरण: जातक चतुर होता है। __चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य जातक के लिए दीर्घायु कारक बनता है। वह अधिकार-संपन्न भी होता है। उत्तराषाढा नक्षत्र में स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि वही फल होते हैं, जो मूल नक्षत्र में होते हैं। केवल सूर्य ही नहीं, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ग्रहों के संबंध में यही बात लागू होती है। पुनरावृत्ति दोष से बचने के लिए यहाँ सूर्य एवं अन्य ग्रहों पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल नहीं दिये जा रहे हैं। पाठक इन्हें जानने के लिए मूल नक्षत्र एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों से संबंधित अध्यायों में यह वर्णन पढ़ सकते हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चंद्र के फल . प्रथम चरण: यहाँ जातक की संगीत में रुचि होती है। पैतृक संपत्ति भी पर्याप्त होती है। जातक में परस्त्रीगमन की लालसा बनी रहती है। द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र के शुभ फल मिलते हैं। जातक विद्वान एवं धनी होता है। लेकिन उसमें कुछ पाखंड प्रियता भी होती है। यद्यपि जातक कृपण मनोवृत्ति का होता है तथापि स्वयं को उदार एवं दानी दर्शाता है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र हो तो जातक को शीतल प्रदेश या शीतल ऋतु परेशान कर सकती है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र कोई विशेष फल नहीं देता। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरणः शिक्षा में व्यवधान आते रहते हैं। जातक के लिए पिता का व्यवसाय ही उपयुक्त रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल जातक को पशु पालन के क्षेत्र में ले जाता ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 205 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है, यदि इस चरण में गुरु के साथ युति हो तो पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। । तृतीय चरण: यहाँ मंगल शुभ फल देता है। जातक राजसी जीवन बिताता है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक प्रतिरक्षा सेना या राजनीति में सफलता प्राप्त कर सकता है। उत्तराषाढा नक्षत्र में बुध के फल प्रथम चरणः यहाँ बुध जातक को विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा दिलवाता है। उसमें वैज्ञानिक प्रतिभा भी होती है। ___ द्वितीय चरणः यहाँ जातक समाज में समादृत होता है। उसमें कुछ कुटिलता भी होती है फलतः उसके शत्रुओं की संख्या भी अच्छी खासी होती है। तृतीय चरणः यहाँ बुध द्वितीय चरण की भांति ही फल देता है। चंद्र की दृष्टि हो तो जातक के विदेश जाने के योग बनते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरण: यहाँ गुरु जातक को अच्छी शिक्षा प्रदान करता है। शनि के साथ युति हो तो बेहद ऊंची शिक्षा पाता है। ___ द्वितीय चरणः यहाँ जातक का जीवन पर्याप्त सुखी नहीं रहता। उसे जोड़ों के दर्द की भी शिकायत हो सकती है। तृतीय चरण: यहाँ जातक का व्यक्तित्व सुंदर, आकर्षक लेकिन मन भटकाव से भरा रहता है। यह भटकाव उसकी कविताओं में व्यक्त होता है। जातक को पैतृक संपत्ति भी प्राप्त होती है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक के उच्च सरकारी पद पर पहुँचने की संभावना रहती है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुक्र के फल प्रथम चरण: यहाँ शुक्र की स्थिति स्वास्थ्य के लिए अशुभ है। उसे मधुमेह, नेत्र विकार, ट्यूमर आदि की शिकायत हो सकती है। द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र जातक को विलासी बनाता है। उसके विवाह में विलंब के भी योग हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 206 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। जातक साहसी, न्यायप्रिय और सहृदय होता है। लेकिन कामातिरेक उसे गुप्त रोगों का भी शिकार बना सकता है। चतुर्थ चरण ः यहाँ शुक्र विवाह के लिए विलंब कारक योग बनाता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शनि के फल प्रथम चरणः जातक उदार और परोपकारी होता है। द्वितीय चरणः पत्नी रुग्ण रहती है। जातक भी अपने कार्यों में बार-बार परिवर्तन करता है । तृतीय चरण: यहाँ शनि सत्ता पक्ष से लाभ करवाता है। जातक किसी संस्थान का प्रमुख हो सकता है। चतुर्थ चरणः शनि अशुभ फल देता है। जातक का जीवन कष्टमय बीतता है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में राहु के फल उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में राहु की स्थिति विशेष अशुभ फल देती है । प्रथम चरणः यहाँ जातक दंभी, सिद्धांत हीन, कुटिल प्रवृत्ति का होता है । द्वितीय चरण: यहाँ जातक रुढ़िविरोधी, एकांतप्रिय और खर्चीले स्वभाव का होता है । तृतीय चरणः जातक के अनैतिक कार्यों में लिप्त होने के फल कहे गये हैं । उसे अपने परिवार से भी कोई सुख नहीं मिल पाता है । चतुर्थ चरण ः यहाँ जातक परिवार ही नहीं, समाज के लिए भी समस्याएं पैदा करने वाला होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में केतु के फल उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में केतु कुछ शुभ फल देता है । जातक बुद्धिमान होता है लेकिन उसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । प्रथम चरणः यहाँ केतु जातक का उत्थान - पतन करवाता रहता है । द्वितीय चरणः जातक बुद्धिमान एवं धार्मिक होता है तृतीय चरणः जातक वकील बनता है । जीवन के उत्तरार्द्ध में वह राजनीति में भी सफल हो सकता है । चतुर्थ चरणः जातक बेहद विद्वान तथा सरकार या किसी उद्योग में उच्च पद पर होता है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 207 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिजित अभिजित नक्षत्र राशि पथ में 276.40 अंशों से 280.54.13 अंशों के मध्य स्थित माना गया है। अभिजित के देवता ब्रह्मा हैं। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं जो एक त्रिकोण की रचना करते हैं। अभिजित नक्षत्र के संबंध में एक पौराणिक कथा भी मिलती है। महर्षि व्यास के अनुसार एक बार अभिजित नक्षत्र आकाश में बहुत नीचे की ओर सरक कर लुप्त प्रायः हो गया। अब आकाश में केवल 27 नक्षत्र ही रहे। इंद्र ने स्कंद से इस समस्या का निवारण करने के लिए कहा क्योंकि गणना के .लिए 27 नक्षत्रों का होना आवश्यक था। स्कंद ने किस नक्षत्र को मिलाकर यह समस्या सुलझायी, इसकी कोई चर्चा नहीं है। विशोतरी दशा पद्धति में अभिजित का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता अर्थात् उत्तर भारत में प्रायः अभिजित की उपेक्षा ही है। दक्षिण में अष्टोत्तरी महादशा पद्धति का प्रचलन है। उसमें अभिजित को मान्यता है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद के उदार, सौजन्यशील व्यवहार वाले तथा किसी न किसी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले होते हैं। वे ईश्वर भक्त तथा गुह्य विद्याओं में भी रुचि रखते हैं। अध्ययन में उनकी विशेष रुचि होती है तथा अपने व्यक्तित्व-कृतित्व से समाज में आदर भी पाते हैं। उनका विवाह लगभग तेईस वर्ष में हो जाता है। संतान भी अधिक ही होती हैं। इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं व्यवहार कुशल एवं किसी भी स्थिति से निपटने की सामर्थ्य रखती हैं। अपने परिश्रम से वे पर्याप्त धन अर्जित करती ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 208 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं। यद्यपि ऐसी जातिकाएं कई कारणों से पुरुषों से घृणा करती हैं तथापि विवाह के बाद उनका पारिवारिक जीवन सुखी ही बीतता है। अभिजित नक्षत्र में स्थित सूर्य दीर्घायुष्य प्रदान करता है जबकि चंद्रमा जातक के मन को ही विशेष प्रभावित करता है। मंगल भी जातक के मन को ही प्रभावित करता है। मंगल जातक को प्रतिरक्षा सेनाओं के प्रति आकर्षित करता है। बुध के मिश्रित फल मिलते हैं। गुरु जातक को किसी शासकीय उच्च पर पर आसीन करवाता है। शुक्र के कारण प्रेम विवाह की स्थिति बनती है। शनि के फल अशुभ होते हैं। राहु भी विपत्ति कारक सिद्ध होता है। जातक दूसरों को भी परेशानी में डालता रहता है। लेकिन राहु की तुलना में केतु के फल गुरु के फल जैसे होते हैं। जातक उच्च शासकीय पद पर हो सकता है। स्वयं के व्यवसाय में हो तो उसमें भी सफल होता है। । प्रतिदिन सामान्यतः 1.36-12.24 तक अर्थात् मध्याह्न काल 12 बजे से 1 घंटे पहले और 1 घंटे बाद तक इस नक्षत्र को माना जाता है। . मुहुर्त शास्त्र में अभिजित का महत्व सबसे ज्यादा है। अभिजित मुहुर्त में तिथि, वार, नक्षत्र योग कारण अर्थात् पंचांग के पांचों अंग शुभ न हो तो भी यात्रा में उत्तम फल देने वाला होता है केवल दक्षिण दिशा को .छोड़कर। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 209 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवण राशि पथ में श्रवण नक्षत्र 280.00 अंशों से 293.20 अंशों के मध्य स्थित माना गया है। इसके पर्यायवाची नाम हैं-श्रोणा, विष्णु, हरि एवं श्रुति। अरबी में उसे सद बुला या अल बुला कहते हैं।। श्रवण नक्षत्र में तीन तारे हैं जो वामन की भांति प्रतीत होते हैं। विष्णु को इस नक्षत्र का देवता माना गया है, जबकि ग्रहों में चंद्र को इस नक्षत्र का आधिपत्य दिया गया है। गणः देव, योनिः वानर और, नाड़ीः अंत है। चरणाक्षर हैं: खि, खू, खे, खो। यह नक्षत्र मकर राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी शनि है। श्रवण नक्षत्र में जन्मे जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। वे मधुर भाषी, स्वच्छता प्रिय, सिद्धांतवादी तथा दयालु स्वभाव के होते हैं। ऐसे जातक सत्यनिष्ठ, ईश्वर भक्त, गुरु भक्त तथा औरों के मन की थाह लेने वाले होते हैं। उनमें एक साथ कई काम करने की क्षमता होती है। वे अच्छे प्रशासक भी सिद्ध होते हैं। उनमें प्रतिहिंसा की भावना नगण्य ही होती है। सामान्यतः ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी ही बीतता है। पत्नी सद्गृहिणी एवं आज्ञाकारिणी होती है। संतान भी सुयोग्य ही होती है। श्रवण नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं छरहरी होती हैं। प्रदर्शन प्रियता एवं वाचालता कभी-कभी उनका दुर्गुण बन जाती है। ऐसी जातिकाओं की नृत्य-संगीत एवं अन्य ललित कलाओं में भी पर्याप्त रुचि होती है। जहाँ तक वैवाहिक जीवन का संबंध है, वे सुखी ही रहती हैं। चूंकि वे ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 210 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर कार्य सुचारू रूप से करना चाहती हैं, पति के साथ-उनकी नोक झोंक चलती ही रहती है। ऐसी जातिकाएं चर्म रोग, तपेदिक आदि की आसानी से शिकार हो सकती है, अतः सावधानी अपेक्षित है। श्रवण नक्षत्र के चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरणः मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरणः चंद्र। श्रवण नक्षत्र के विभिन्न चरणों में सूर्य श्रवण नक्षत्र में सूर्य कोई विशेष अच्छे फल नहीं देता। विशेषकर यदि सूर्य पर चंद्र या बुध की दृष्टि हो। जैसे प्रथम चरण: सूर्य एवं चंद्र की युति पर शनि की दृष्टि हो तो वह माता-पिता, दोनों के लिए घातक मानी गयी है। द्वितीय चरण एवं तृतीय चरण में भी कोई उल्लेखनीय फल नहीं मिलते। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक कामुक वृत्ति का, वेश्यागामी तक हो सकता है। उसके अनेक शत्रु भी होते हैं। श्रवण नक्षत्र स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि सुखहीन जीवन का संकेत करती है। जातक महिलाओं के माध्यम से धन अर्जित करता है। मंगल की दृष्टि हो तो जातक वकालत के पेशे में सफल हो सकता है। बुध की दृष्टि हो तो दूसरों के लिए परेशानी पैदा करने वाला होता है। उसका व्यवहार वृहन्नालाओं की भांति देखा गया है। गुरु की दृष्टि जातक को उदार, परोपकारी बनाती है। वह बुद्धिमान भी होता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। स्त्रियों से भी उसे आर्थिक लाभ होता है। शनि की दृष्टि जातक को शत्रुहंता बनाती है तथापि वह दंभी भी होता है। श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ चंद्र मान-सम्मान में वृद्धि करता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 211 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र की स्थिति जातक को सदगुणी बनाती है। तृतीय चरणः यहाँ जातक विद्वान होता है। वह बड़ो का आदर करना जानता है। पुत्र भी अनेक होते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र जातक को धार्मिक वृत्ति का बनाता है। समाज में एक सदाचारी, श्रद्धालु व्यक्ति के रूप में उसकी प्रतिष्ठा होती है। श्रवण नक्षत्र स्थित चंद्र पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को राजा के समान मान-सम्मान प्रदान करने वाली होती है। मंगल की दृष्टि विद्वत्ता बढ़ाती है। .. बुध की दृष्टि हो तो जातक के धन में इजाफा होता है। गुरु की दृष्टि उसे सुयोग्य, प्रतिष्ठित, यशस्वी शासक बनाती है। शुक्र की दृष्टि अशुभ फल देती है। जीवन अभावमय बीतता है। शनि की दृष्टि हो तो जातक जन्मजात भूपति होता है। श्रवण नक्षत्र में मंगल की स्थिति के फल श्रवण नक्षत्र के चतुर्थ चरण में मंगल हो तो जातक के चिकित्सा क्षेत्र में जाने की संभावना प्रबल रहती है। शेष चरणों में विशेष फल नहीं मिलते। ग्रहों की दृष्टि भी अच्छे-बुरे फल देती है। श्रवण नक्षत्र में मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि । सूर्य की दृष्टि हो तो जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है। पर्याप्त धन, अच्छी पत्नी, संतान के कारण जातक का जीवन अच्छा बीतता है। . चंद्र की दृष्टि जातक को धनी तो बनाती है तथापि मातृ-सुख से वंचित रहने की संभावना भी दर्शाती है। बुध की दृष्टि जातक को मृदुभाषी, पर मिथ्याचरण करने वाला बनाती है। गुरु की दृष्टि जातक को सद्गुणी बनाती है। वह सत्ता पक्ष से भी लाभान्वित होता है। शुक्र की दृष्टि के कारण जातक को विलासितापूर्ण जीवन बिताने के प्रचुर अवसर मिलते हैं। शनि की दृष्टि के कारण जातक बुद्धिमान, यशस्वी होता है तथापि स्त्रियों को वह हेय दृष्टि से देखता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 212 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवण नक्षत्र में बुध की स्थिति के फल श्रवण नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण में बुध हो तो जातक व्यावसायिक बुद्धि का होता है। तृतीय चरण में बुध जातक को अर्थशास्त्र में निष्णात बनाता है। जातक निस्वार्थ लेकिन बैचेन मनःस्थिति वाला होता है। चतुर्थ चरण में बुध जातक को होटल व्यवसाय में सफल बनाता है। श्रवण नक्षत्र में स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक, चालाक, बलिष्ठ होने के कारण दंभी होता है। मल्ल विद्या का वह ज्ञाता होता है। चंद्र की दृष्टि से वह जलीय वस्तुओं के उत्पादन से लाभान्वित होता है। मंगल की दृष्टि हो तो जातक धनोपार्जन के लिए छोटा से छोटा काम भी करने से नहीं हिचकता।। गुरु की दृष्टि जातक को ग्राम, नगर या किसी शासकीय विभाग में . प्रमुख पद पर आसीन करवा सकती है। शुक्र की दृष्टि संतान की दृष्टि से ठीक नहीं है। जातक भी कुसंगति का शिकार हो सकता है। शनि की दृष्टि जातक को क्रूरकर्मी एवं सुखों से वंचित रखती है। श्रवण नक्षत्र में स्थित गरु के फल श्रवण नक्षत्र में गुरु के फल अच्छे नहीं कहे गये हैं। प्रथम चरणः यहाँ बुध हो और यदि लग्न में मूल नक्षत्र हो तो जातक पैतृक संपत्ति का नाश करने वाला कहा गया है। द्वितीय चरण: यहाँ बुध शुक्र के साथ हो तथा लग्न में पुनर्वसु नक्षत्र हो तो आजीवन अविवाहित रने के योग कहे गये हैं। तृतीय चरणः यहाँ गुरु बालरिष्ट योग बनाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु हो तो जातक उदार वृत्ति का तो होता है, पर उसका व्यवहार चिड़चिड़ा रहता है। . श्रवण नक्षत्र में स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता है। चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक में नेतृत्व की क्षमता पैदा होती है। वह अपने समुदाय, ग्राम, नगर का प्रमुख बन सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 213 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • मंगल की दृष्टि उसे सत्ता पक्ष का कृपापात्र बनाती है, जिससे उसे अर्थ-लाभ भी होता है । बुध की दृष्टि जातक को धार्मिक, शांति-प्रिय बनाती है। वह स्त्रियों में भी प्रिय होता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सद्गुणों से युक्त विद्वान तथा सत्ता पक्ष से लाभ पाता है । शनि की दृष्टि बहुत शुभ फल देती है। जातक की सभी आकांक्षाएं पूरी होती है । शुक्र के फल श्रवण नक्षत्र में शुक्र के फल अच्छे मिलते हैं। प्रथम चरणः जातक हमेशा युवा एवं तरोताजा नजर आता है । उसमें परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने की क्षमता होती है। वह जीवन में ऊंचे पद तक पहुंचने की क्षमता रखता है । द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को सौम्य स्वभाव वाला ईश्वर भक्त बनाता है। I श्रवण नक्षत्र स्थित तृतीय चरण ः यहाँ शनि एवं सूर्य से युति जातक के लिए बालारिष्ट योग का संकेत देती है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक अतिशय महत्त्वाकांक्षी, दंभी एवं सिद्धांतहीन हो सकता है। श्रवण नक्षत्र स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को साहसी और धनी बनाती है । चंद्र की दृष्टि हो तो जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप जातक कठोर परिश्रमी तो होता है पर उसके जीवन में निरंतर बाधाएं भी आती रहती हैं। बुध की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक शास्त्रों का ज्ञाता एवं यशस्वी होता है । गुरु की दृष्टि जातक को धनी बनाने के साथ-साथ उसमें संगीत एवं अन्य ललित कलाओं के प्रति रुचि भी पैदा करती है । शनि की दृष्टि सौभाग्य सूचक होती है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है । श्रवण नक्षत्र स्थित शनि के फल प्रथम चरणः यहाँ शनि के कारण जातक कृश शरीर वाला व स्वार्थी ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र-विचार 214 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ति का होता है। वह सदैव असंतुष्ट भी रहता है। ससुराल पक्ष से लाभ होने की संभावना बनी रहती है। द्वितीय चरण: यहाँ शनि सुखी जीवन का द्योतक होता है तथापि जातक की पत्नी रुग्ण ही रहती है। जातक में प्रतिहिंसा की भावना भी होती हे। तृतीय चरणः यहाँ शनि के कारण जातक बुद्धिमान, विद्वान लेकिन घोर अविश्वास प्रकृति का होता है। फलतः लोग भी उसका विश्वास नहीं करते। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि हो तो जातक मितभाषी और उच्च पद पर आसीन होने की क्षमता देता है। श्रवण नक्षत्र स्थित शनि पर अन्य ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि दरिद्र जीवन की सूचना देती है। पत्नी के भी सुंदर होने के संकेत मिलते हैं। ___ चंद्र की दृष्टि हो तो जातक सच्चरित्र लेकिन मातृ-स्नेह से वंचित रहता है। मंगल की दृष्टि विदेश में वास करने का संकेत देती है। बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी एवं शासन में उच्च पद पर होता है। गुरु की दृष्टि के भी शुभ फल मिलते हैं। जातक हष्ट पुष्ट, प्रतिरक्षा सेवाओं में, उच्च पद पर मंत्री तुल्य होता है। शुक्र की दृष्टि के सामान्य फल मिलते हैं। श्रवण नक्षत्र में राहु के फल प्रथम चरण: जातक के लिए शुभ नहीं होता। द्वितीय चरण: जातक शांतिप्रिय होता है लेकिन पत्नी के स्वभाव के कारण दुखी रहता है। तृतीय चरण: जातक विद्वान लेकिन प्रतिहिंसा की भावना से भरा होता है। चतुर्थ चरण: जातक विनोदी वृत्ति का होता है। श्रवण नक्षत्र में केतु के फल प्रथम चरणः जातक धनी होता है। द्वितीय चरणः जातक मानसिक अवसाद का शिकार रहता है। तृतीय चरण: जातक पत्नी के कारण दुखी रहता है। चतुर्थ चरणः पत्नी एवं बच्चों से जातक दुःख ही पाता है। ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 215 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनिष्ठा धनिष्ठा नक्षत्र राशि पथ में 293.20 अंशों से 306.40 अंशों के मध्य स्थित है। धनिष्ठा के पर्यायवाची नाम हैं अविहा एवं वसु । अरबी में उसे साद अस सुद कहा जाता है। घनष्ठा का अर्थ है, अत्यंत प्रसिद्ध । धनिष्ठा धन की विपुलता का सूचक है। एक अर्थ यह भी है कि वह स्थल जहाँ धन रखा जाए। धनिष्ठा के देवता वसु हैं, जिसकी संख्या आठ हैं। ये हैं धरा, ध्रुव, सोम, अहा, अनिल, अनलोर, प्रत्यूष एवं प्रवष । धनिष्ठा का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। कुछ लोगों के अनुसार धनिष्ठा आठ तारों को मिलाकर बनाया गया है तो कुछ लोग तारों की संख्या केवल चार मानते हैं। धनिष्ठा की आकृति मृदंग की तरह अनुमानित की गयी है। गणः राक्षस, योनिः सिंह एवं नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं-ग, गी, गू, गे। धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक अत्यंत बुद्धिमान, विविध विषयों के ज्ञाता, 'मनसा, वाचा, कर्मणा' किसी को ठेस न पहुँचाने वाले, धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। वे जीवन में अपने बाहुबल से आगे बढ़ते हैं। सामान्यतः ऐसे जातक यथाशक्य किसी के विपरीत मत देने में हिचकते हैं। यह इसीलिए कि उससे किसी को ठेस न पहुंचे। इस नक्षत्र में जन्मे जातकों की इतिहास के अलावा विज्ञान में भी रुचि होती है तथा वे इन क्षेत्रों में इतिहासज्ञ या वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 216 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी होता है। पत्नी वस्तुतः लक्ष्मी ही सिद्ध होती है तथापि ससुराल पक्ष से जातक को कोई लाभ नहीं मिलता। ऐसे जातक प्रायः अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहते हैं। और उनका यही स्वभाव उन्हें रुग्ण भी कर सकता है। उन्हें खांसी, कफ एवं रक्ताल्पता. की शिकायत हो सकती है। श्रवण नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर, सदैव तरुणी नजर आने वाली होती हैं। उनके व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है। वे स्वभाव से दयालु, परोपकारी तथा महत्त्वाकांक्षी होती हैं। उन्हें अपने खर्चीले स्वभाव पर अंकुश लगाने की सलाह दी जाती है। ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य सामान्यतः ठीक ही रहता है पर उन्हें अपनी रक्ताल्पता को हलके नहीं लेना चाहिए। धनिष्ठा नक्षत्र के चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरण: बुध, तृतीय चरणः शुक्र, चतुर्थ चरणः मंगल। धनिष्ठा नक्षत्र के विभिन्न चरणों में सूर्य प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक को कार्य कुशल तथापि दंभी और स्वार्थी बना सकता है। विधवाओं और तलाकशुदा स्त्रियों में उसकी विशेष रुचि होती है। द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य जातक को कृपण मनोवृत्ति का बनाता है। इस चरण में चंद्र, मंगल एवं शनि से सूर्य की युति जातक के लिए बचपन में घातक कही गयी है। तृतीय चरण: यहाँ सूर्य जातक को बुद्धिमान एवं दीर्घाय बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक की ललित कलाओं में रुचि होती है। सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि फल वैसे ही होते हैं, जैसेकि श्रवण नक्षत्र स्थित सूर्य पर । यही बात अन्य ग्रहों के बारे में भी है। पुनरावृत्ति दोष से बचने के लिए वे यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। पाठक सूर्य एवं अन्य ग्रहों पर दूसरे ग्रहों की दृष्टि के फल श्रवण नक्षत्र वाले अध्याय में पढ़ सकते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में चंद्र के फल प्रथम चरण: यहाँ चंद्र रोगग्रस्त एवं दुर्घटनापूर्ण बचपन की सूचना देता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक धनी एवं समझदार होता है। युवावस्था में रोगग्रस्त होने की आशंका प्रबल रहती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 217 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ जातक साहसी, उदार और सत्य वक्ता होता है। उसे 'भोजन भट्ट' कहा जा सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र दो पत्नियों का योग दर्शाता है। धनिष्ठा नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरण: यहाँ मंगल शुभ फल देता है। जातक धनी, सुखी और यशस्वी होता है। द्वितीय चरणः यहाँ जातक की मंत्र शास्त्र में रुचि होती है। वह शत्रुहंता कहा जा सकता है। तृतीय चरण: यहाँ मंगल के कारण जातक संपत्तिशाली लेकिन चतुर और धूर्त भी होता है। जातक मेकेनिकल या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी जा सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल के कारण जातक किसी लौह-उत्पादन संबंधी उद्योग में कार्यरत रहता है। धनिष्ठा नक्षत्र में बुध के फल प्रथम चरण: यहाँ बुध के कारण जातक की संगीत एवं कला में रुचि होती है। प्रायः उसे अधीनस्थ जीवन ही बिताना पड़ता है। द्वितीय चरणः यहाँ बुध के अच्छे फल मिलते हैं। जातक सत्ता संपन्न होता है लेकिन वैवाहिक जीवन में दुःख की भरमार रहती है। तृतीय चरण: यहाँ भी बुध उपरोक्त फल देता है। चतुर्थ चरण: यहाँ बुध के कारण वैवाहिक जीवन में कभी न कभी अलगाव की स्थिति के फल मिलते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरणः यहाँ गुरु अभावपूर्ण जीवन की सूचना देता है। द्वितीय चरणः यहाँ जातक अध्यापन के क्षेत्र में सफल होता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु के कारण जातक को जन्म-स्थल से दूर जीवन बिताना पड़ता है। ___चतुर्थ चरण: यहाँ गुरु अच्छे फल देता है। जातक सुखी, धनी और जीवन के सारे आनंदों का भोग करता है। धनिष्ठा नक्षत्र में शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ पत्नी के रोगग्रस्त रहने का फल कहा गया है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 218 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र की गुरु के साथ युति हो तो अच्छे फल मिलते हैं । जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । तृतीय चरणः यहाँ जातक पर्याप्त धनी तथा सुखी जीवन बिताता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र उदार तो होता है तथापि कुमारियों के प्रति घोर आसक्त भी । धनिष्ठा में शनि के फल प्रथम चरणः यहाँ शनि की बुध के साथ युति हो तो जातक अपार वैभव का स्वामी होता है। द्वितीय चरणः यहाँ शनि के कारण जातक यद्यपि कठोर और क्रूर नजर आता है तथापि उसका स्वभाव अच्छा होता है। दरअसल वह मूलतः एक भला व्यक्ति ही होता है । तृतीय चरण: यहाँ शनि के कारण जातक का व्यक्तित्व आकर्षक लगता है। विज्ञान में उसकी विशेष रुचि होती है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक का जीवन सुखपूर्वक बीतता है । धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित राहु के फल प्रथम चरण: यहाँ राहु यद्यपि धनी एवं उच्च शिक्षा प्राप्त होने के योग दर्शाता है, तथापि जातक का रूक्ष एवं कठोर स्वभाव उसे अलग-थलग कर देता है । द्वितीय चरण: यहाँ भी यही फल मिलते हैं। तृतीय चरण: यहाँ हठी और दूसरों के लिए परेशानी ही बनाता है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु-चंद्र की युति माता के लिए घातक बताई गयी है । धनिष्ठा नक्षत्र स्थित केतु के फल प्रथम चरण: यहाँ जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है तथापि संपत्ति विषयक विवाद के कारण वह भाई-बहनों से मुकदमेबाजी में उलझ सकता है। द्वितीय चरण: यहाँ केतु निरंतर दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका दर्शाता है। तृतीय चरण: यहाँ जातक को चोरों के कारण नुक्सान हो सकता है I चतुर्थ चरणः यहाँ केतु कुछ शुभ फल देता है । जातक शासकीय सेवा में होता है। वह पर्याप्त धन भी कमाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 219 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतभिषा राशि पथ में 306.40 से 320.00 अंशों के मध्य शतभिषा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है । शतभिषा के पर्यायवाची नाम हैं, प्रचोता, शत तारका, वरुण, यम । अरबी में इसे साद अल-मलिक कहते हैं । जैसा कि नाम सूचना देता है, इस नक्षत्र में सर्वाधिक, सौ तारे हैं। इसका आकार वृत्त के समान अर्थात् गोल है । वरुण को देवता एवं राहु को इस नक्षत्र का अधिपति माना गया है । गणः राक्षस, योनिः अश्व एवं नाड़ीः आदि मानी गयी है । चरणाक्षर हैं - गो, सा, सी, सू । शतभिषा नक्षत्र में जन्मे जातक व्यक्तित्व से अभिजात वर्गीय प्रतीत होते हैं। कोमल शरीर, आकर्षक आँखें, चौड़ा माथा तथा उदर किंचित बाहर होता है। ऐसे जातकों में विलक्षण स्मरण शक्ति होती है। ऐसे जातक सत्यनिष्ठ, सत्य के लिए बलिदान देने से भी पीछे न हटने वाले तथा निस्वार्थ - वृत्ति के होते हैं। वे अत्यंत कोमल हृदय भी होते हैं। वे अपने निर्णय पर अडिग रहना जानते हैं । उनमें धार्मिकता का भी पुट होता है। ऐसे जातक अक्सर क्रोधित नहीं होते लेकिन क्रोधित होते हैं तो उन्हें रोक पाना कठिन होता है। लेकिन कोमल हृदय एवं बुद्धिमान होने के कारण उनका गुस्सा शीघ्र ही काफूर भी हो जाता है । ऐसे जातक प्रदर्शन-प्रिय नहीं होते। संकोच के कारण वे अपनी प्रतिभा का पता नहीं लगने देते। लेकिन बातचीत के दौरान सामने वाला उनकी प्रतिभा का कायल हो जाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 220 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे जातकों में सहित्यिक प्रतिभा भी होती है तथा बहुत जल्दी उनकी यह प्रतिभा प्रकाश में आ जाती है। वे ऊंची से ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के योग्य होते हैं। __ अपनी सहृदयता के कारण वे लोकप्रिय भी हो जाते हैं। मनोविज्ञान एवं स्पर्श-चिकित्सा के क्षेत्र में वे दक्षता प्राप्त कर सकते हैं। उनमें ज्योतिष शास्त्र के प्रति भी रुचि होती है तथा वे एक अच्छे सुलझे हुए विद्वान ज्योतिषी भी बन सकते हैं। उनमें चिकित्सा क्षेत्र में नाम कमाने की भी क्षमता होती है। विडम्बना ही है कि ऐसे जातकों को अपने प्रियजन से ही काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अपनी उदारता के कारण वे बिना मांगे सबकी सहायता के लिए सन्नद्ध रहते हैं तथापि स्वयं उन्हें मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है, विशेषकर भाइयों से। ऐसे जातकों को माता-पिता का भी पूरा स्नेह मिलता है। माता से पूर्ण स्नेह प्राप्त होता है जबकि पिता से पूर्ण संरक्षण। ऐसे जातक प्रत्यक्ष में स्वस्थ नजर आते हैं लेकिन वे शरीर में कोई चोट बर्दाश्त नहीं कर पाते। उन्हें श्वास, मूत्र संबंधी रोग या मधुमेह की शिकायत हो सकती है। कामातिरेक उन्हें गुप्त रोग भी लगा सकता है। ऐसे जातकों को शीत ऋतु से बचना चाहिए। . इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर होती हैं। ऐसी जातिकाओं की मूल प्रकृति तो शांत रहने की है तथापि उनका क्रोध भी प्रचंड स्वरूप धारण कर सकता है, फलतः लोग उन्हें ठीक से समझ नहीं पाते। ऐसी जातिकाओं की स्मरण शक्ति भी अत्यंत तीव्र होती है। वे उदारता की प्रतिमूर्ति कही जा सकती हैं, सबकी सहायता के लिए तत्पर। एक विशेषता यह है कि वे 'नेकी कर कुएं में डाल' वाली उक्ति पर विश्वास करती हैं। अपनी उदारता सहायता के बदले कुछ नहीं चाहतीं। ऐसी जातिकाओं में विज्ञान में गहरी रुचि होती है तथा वे एक सफल कुशल चिकित्सक बन सकती हैं। ऐसी जातिकाएं पति को पूर्ण निष्ठा से प्यार करती हैं तथापि वैवाहिक जीवन विशेष सुखी नहीं रहता। पति से लंबे अलगाव के योग आते ही रहते हैं। __ ऐसी जातिकाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए। उन्हें छाती एवं मूत्र-मार्ग संबंधी रोग हो सकते हैं। शतभिषा के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: राहु, द्वितीय एवं तृतीय चरणः शनि, चतुर्थ चरणः गुरु। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 221 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतभिषा नक्षत्र में सूर्य की स्थिति शतभिषा के चतुर्थ चरण में सूर्य हो तो जातक में कुटिल वृत्ति पैदा हो सकती है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी एवं उच्च पदस्थ होता है। धनिष्ठा की तरह शतभिषा स्थित सभी ग्रहों पर अन्य ग्रहों की दृष्टि श्रवण नक्षत्र में स्थित ग्रहों पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल देती है। शतभिषा स्थित चंद्र के फल शतभिषा में चंद्र की स्थिति के वही फल होते हैं जो जातक-जातिकाओं की चारित्रिक विशेषताओं में वर्णित किये गये हैं। प्रथम चरणः यहाँ चिकित्सक बनने की संभावना होती है। जातक हठी एवं गोपनीय प्रवृत्ति का होता है। द्वितीय चरण: यहाँ शतभिषा ज्योतिष शास्त्र में पारंगत होने की संभावना दर्शाता है। जातक में जुआरीपन की प्रवृत्ति भी हो सकती है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को निर्मीक व्यक्तित्व प्रदान करता है। जातक शासकीय सेवा हो या व्यवसाय दोनों में सफल रहता है। इस चरण में जातक सुराप्रेमी हो सकता है, जो 'अति के कारण हानिप्रद ही सिद्ध होता है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र सामान्य फल देता है। शतभिषा नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरण: यहाँ मंगल जातक को कुसंगति प्रिय बना सकता है, फलतः जीवन दुखी ही रहता है। तथापि जातक अपना पारिवारिक दायित्व यथा शक्ति निभाता है। द्वितीय चरणः यहाँ सामान्य फल मिलते हैं। तृतीय चरणः यहाँ बचपन में रोगग्रस्त होने का फल कहा गया है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल जातक को व्यवसाय में सफल बनाता है। बड़े भाई से भी उसे पर्याप्त सहयोग मिलता है। शतभिषा नक्षत्र में बुध के फल . प्रथम चरणः यहाँ बुध व्यवसाय में सफलता दर्शाता है। . द्वितीय चरणः यहाँ जातक को बड़े भाई से सहायता मिलती है। यदि मंगल के साथ बुध हो तो पचीसवें वर्ष में विवाह का योग बनता है। तृतीय चरणः यहाँ बुध की यदि मंगल के साथ युति हो तो इकतीस वर्ष ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 222 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की अवस्था तक जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता । चतुर्थ चरण: यहाँ बुध जातक को पर्याप्त धन-दौलत देता है। शतभिषा नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरण ः यहाँ जातक एवं उसकी मां को काफी कष्ट उठाना पड़ता है । जातक शासकीय सेवा में रत रहता है। आयु का इकतीसवां वर्ष दुर्घटनापूर्ण हो सकता है। द्वितीय चरण: यहाँ वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता । . तृतीय चरणः यहाँ पाप ग्रहों की दृष्टि बालारिष्ट योग बनाती है । चतुर्थ चरण: यहाँ भी उपरोक्त फल मिलते हैं।. शतभिषा नक्षत्र में शुक्र के फल शतभिषा नक्षत्र में शुक्र के शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, व्यवहार कुशल एवं सामान्यतः शासकीय सेवा में रत रहता है। प्रथम चरणः यहाँ शुक्र जातक किशोरावस्था में ही काम के प्रति आसक्त कर सकता है। जातक का जीवन सुखी बीतता है। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र जातक को रसायन शास्त्र का विशेषज्ञ बनने की क्षमता देता है । तृतीय चरण: यहाँ जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। जातक में व्यवहार कुशलता एवं जीवन में शीर्षस्थ पद पर पहुँचने की क्षमता होती है। वह कामभावना से पीड़ित रहता है । चतुर्थ चरण ः यहाँ कभी-कभी शिक्षा में व्यवधान आता है तथापि शुक्र की बुध के साथ युति हो तो वह निम्न पद से ऊंचे पद पर पहुँच सकता है। शतभिषा नक्षत्र में शनि के फल शतभिषा नक्षत्र में शनि भी प्रायः अच्छे फल देता है। प्रथम चरणः यहाँ सुखी वैवाहिक - पारिवारिक जीवन की सूचना मिलती है। जातक ईमानदार, परिश्रमी तथा वैज्ञानिक अनुसंधानों में रुचि रखने वाला होता है। द्वितीय चरण: यहाँ फल शुभ नहीं मिलते। जातक कामासक्त, परस्त्रीगमन की लालसा रखने वाला तथा उग्र स्वभाव एवं रूक्ष वाणी का होता है। तृतीय चरण: यहाँ जातक में उच्च कोटि की प्रतिभा होती है । वह ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 223 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कठिन से कठिन कार्यों को भी पूर्ण करता है। ऐसे जातक सेना एवं पुलिस सेवा में विशेष सफल होते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि जातक को वैभव संपन्न तथा विदेश में आवास करने वाला बनाता है । पारिवारिक जीवन सुखी होता है। पचपन वर्ष की अवधि में पत्नी मानसिक रुग्णता का शिकार हो सकती है। शतभिषा नक्षत्र में राहु के फल शतभिषा नक्षत्र में राहु अकेले हो तो विशेष शुभ फल नहीं मिलते। अन्य ग्रहों से युति होने पर उनकी प्रकृति के अनुसार राहु फल देता है । उनकी दृष्टि भी अच्छे-बुरे फल देती है 1 प्रथम चरणः यहाँ राहु पर शनि बुध की दृष्टि तपेदिक का रोगी बना देती है। द्वितीय चरण: यहाँ राहु पर गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक उच्च पद पर पहुँच सकता है। तृतीय चरणः यहाँ शनि के साथ युति हो तो जातक में नौकरी, चोरी आदि कुकर्मों में प्रवृत्ति पैदा होती है । तथापि वह उदार भी होता है । चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र के साथ युति माता-पिता के लिए अशुभ मानी गयी है । शतभिषा नक्षत्र में केतु के फल शतभिषा नक्षत्र में केतु अच्छे फल नहीं देता है। अधिकांश चरण में वह जातक के दरिद्र, अभावग्रस्त और दुखी जीवन की ही सूचना देता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 224 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाभाद्रपद पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र राशि पथ में 320.00 अंशों से 333.20 अंशों के मध्य स्थित है । पूर्वाभाद्रपद के पर्यायवाची नाम हैं- अजैक पाद, अजपाल । अरबी में उसे अल फर्ग- अल मुकदीम कहते हैं । 1 पूर्वाभाद्रपद का एक अर्थ है पूर्वाभद्र अर्थात् सुंदर, पाद अर्थात् चरण । इस दृष्टि से सही उच्चारण पूर्वाभद्र पद होना चाहिए । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में दो तारे हैं। स्वामी है अजैक पाद, जिसे रुद्र अर्थात् शिव का एक रूप माना गया है। गुरु को इस नक्षत्र का अधिपत्य दिया गया है। इस नक्षत्र की आकृति किसी मंच की भांति है तथा गणः मनुष्य, योनिः सिंह एवं नाड़ी: आदि है। चरणाक्षर हैं- से, सो, दा, दी । + यह नक्षत्र मीन राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी गुरु है । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जातक सामान्यतः मध्यम कद के शांतिप्रिय, बुद्धिमान, सिद्धांतवादी, सादगी पसंद तथा निष्पक्ष व्यवहार वाले होते हैं । ऐसे जातक ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले, धार्मिक कर्मकाण्ड करने वाले तथापि धर्म के मामले में रुढ़िवादी नहीं होते। वे सहृदय होते हैं, सबकी सहायता के लिए तत्पर । भौतिक संपत्ति से अधिक उनके पास सद्भावना एवं यश की पूंजी होती है। ऐसे जातक व्यवसाय में भी सफल होते हैं तथा यदि शासकीय सेवा में हो तो उसमें भी उनकी अनायास पदोन्नति होती ही रहती है। वे प्रतिभा के ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 225 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनी होते हैं अतः किसी भी क्षेत्र में चमक सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र एवं खगोल विषय के प्रति भी उनका झुकाव होता है। सामान्यतः ऐसे जातक को माता का पूर्ण स्नेह प्राप्त नहीं हो पाता । इसका एक कारण माता से ज्यादातर समय अलगाव भी हो सकता है । जातक के पिता का ललित - कला या लेखन में क्षेत्र में पर्याप्त यशस्वी होना भी बताया गया है और पिता की इस प्रसिद्धि का जातक को भी लाभ मिलता है। वैवाहिक जीवन सामान्यतः सुखी ही बीतता है । इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के विषय में भी लगभग उपरोक्त सभी बातें घटित होती हैं। वह भी सत्यनिष्ठ, ईमानदार, विनम्र तथा वाकई जरूरत मंदों की भरपूर सहायता करने वाली होती हैं। ऐसी जातिकाओं की विज्ञान या तकनीकी विषयों में ज्यादा रुचि होती है। वे एक सफल शिक्षिका, सांख्कीय विशेषज्ञा या शोधकर्त्री बन सकती है। उनकी ज्योतिष शास्त्र में भी अच्छी पैंठ हो सकती है । ऐसी जातिकाओं का पारिवारिक जीवन सुखी होता है, वे पति को, अपने बच्चे को पूर्ण प्यार देती हैं। ऐसी जातिकाओं को निम्न रक्तचाप के लक्षणों को सहजता से न लेकर चिकित्सा पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। पूर्वाभाद्रपद के प्रथम चरण का मंगल, द्वितीय का शुक्र, तृतीय का बुध तथा चतुर्थ का स्वामी चंद्र माना गया है । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में सूर्य के फल प्रथम चरण ः यहाँ सूर्य जातक के बच्चों से अलगाव की सूचना देता है । शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक धनी एवं सुखी पारिवारिक जीवन वाला होता है, अन्यथा अभावग्रस्त जीवन के फल कहे गये हैं । द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य हो तो जातक को ससुराल पक्ष से लाभ मिलता है । वह जल से संबंधित व्यापार में ज्यादा सफल होता है । तृतीय चरणः यहाँ यदि शनि, मंगल और चंद्र के साथ युति हो तो उसे जातक के लिए बचपन के तीन वर्ष घातक बताये गये हैं । चतुर्थ चरण: यहाँ जातक की मनःस्थिति सदैव बेचैन रहती है। वह अतिशय भावुक भी होता है। ऐसे जातक अतींद्रिय शक्ति से भी संपन्न माने गये हैं । पूर्वाभाद्रपद स्थित सूर्य एवं अन्य ग्रहों पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 226 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फल सामान्यतः वैसे ही बताये गये हैं, जैसे श्रवण नक्षत्र स्थित ग्रहों पर अन्य ग्रहों की दृष्टि के फल। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में चंद्र . पूर्वाभाद्रपद में चंद्र की स्थिति हो तो जातक धनी, स्त्री के वश में रहने वाला, कृपण तथा अस्थिर मति का होता है। प्रथम चरण: यहाँ उपरोक्त फल ही मिलते हैं। द्वितीय चरणः यहाँ जातक छरहरा, निर्भीक तथा हठी स्वभाव का होता है। वह किसी की भी बात नहीं सुनता। तैंतीस वर्ष की अवस्था में उसे किसी दुर्घटना का शिकार होने की आशंका भी दर्शायी गयी है। तृतीय चरणः यहाँ जातक भीतर-बाहर कुटिल प्रवृत्ति का ही होता है। दो पत्नियों के भी योग बताये गये हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र के शुभ फल मिलते हैं। जातक धनी, स्वाभिमानी तथा बड़ों का आदर करने वाला होता है। बचपन में उसे जल दुर्घटना की आशंका दर्शयी गयी है। ऐसे जातक को युवावस्था में नौकरी के कारण घर छोड़ना पड़ सकता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में मंगल के फल इस नक्षत्र में चतुर्थ चरण में ही मंगल शुभ फल देता है। वह भी तब जब उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो। __ प्रथम चरण: यहाँ जीवन दुखी होता है। जातक चिड़चिड़े स्वभाव वाला पाखण्ड पूर्ण जीवन बिताता है। द्वितीय चरण: यहाँ विशेष फल नहीं मिलते। तृतीय चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक मेटल या मेकेनेकिल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर धन कमा सकता है। चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल शुभ फल देता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में बुध __पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में बुध विधि के अलवा लेखन, प्रकाशन के क्षेत्र में सफलता की स्थिति दर्शाता है। प्रथम चरण: यहाँ बुध की गुरु के साथ युति हो तो जातक कानूनी विषयों में दक्ष होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 227 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ लेखन के क्षेत्र में सफलता के योग बनते हैं। तृतीय चरणः यहाँ बुध हो तो जातक गणित, इंजीनियरिंग या ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में सफल होता है। पत्नी भी बुद्धिमती मिलती है। चतुर्थ चरणः यहाँ बुध अवैध एवं अनैतिक मागों में धनोपार्जन की प्रवृत्ति की सूचना देता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गुरु के फल पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गुरु हो तो फल प्रायः शुभ ही मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ जातक दर्शन के क्षेत्र में निष्णात होता है। वह एक सफल शिक्षक के अलावा कुशल शल्य चिकित्सक भी बन सकता है। द्वितीय चरणः यहाँ जातक कानून के क्षेत्र से संबद्ध होता है। तृतीय चरण: यहाँ जातक आरंभ से नौकरी करने के साथ अपना व्यवसाय आरम्भ करता है। पारिवारिक जीवन भी अच्छा बीतता है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक वैज्ञानिक बन सकता है। वह एक कुशल प्रशासक भी सिद्ध होता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुक्र के फल पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुक्र के भी अच्छे फल मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ जातक बुद्धिमान, शोध प्रिय तथा माता-पिता का भक्त होता है। .. - द्वितीय चरणः यहाँ जातक संगीत या चित्रकला के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र जातक को समाजसेवा के क्षेत्र में ले जाता है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक चिकित्सा क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शनि के फल पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शनि के भी शुभ फल कहे गये हैं। प्रथम चरणः यहाँ जातक नौकरी में यशस्वी होता है। धन की भी कमी नहीं रहती। द्वितीय चरणः यहाँ शनि जातक को व्यावहारिक बुद्धि का बनाता है। इससे उसे सफलता भी मिलती है। तृतीय चरणः यहाँ जातक व्यवहार-कुशल होने के साथ सुरा-सुंदरी का भी शौकीन होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 228 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरण: यहाँ शनि जातक के उच्च पदस्थ होने की संभावना दर्शाता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक इंजीनियर या आर्किटेक्ट बन सकता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में राहु के फल प्रथम चरण: यहाँ राहु के सामान्य फल मिलते हैं। द्वितीय चरणः यहाँ जातक धनी, यशस्वी एवं सुखी परिवार वाला होता है। तृतीय चरण: यहाँ जातक का युवावस्था तक का जीवन संघर्ष पूर्ण रहता है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु शुभ फल देता है। जातक के धनी-मानी, शासक एवं अनेक उद्योगों के स्वामी होने का फल कहा गया है। पूर्वाभादपद्र नक्षत्र में केतु के फल पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम दो चरणों में केतु के अच्छे फल कहे गये हैं। प्रथम चरण: यहाँ यदि केतु के साथ मंगल हो तो जातक ग्राम या नगर-प्रमुख हो सकता है। द्वितीय चरणः यहाँ केतु के होने से धनी होने का फल कहा गया है तथापि पत्नी से जातक दुखी ही रहता है। तृतीय चरणः यहाँ जातक मानसिक अवसाद का शिकार हो सकता है। चतुर्थ चरण: यहाँ केतु जातक को सट्टे-फाटके की ओर प्रवृत्त करता है। ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 229 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराभाद्रपद उत्तराभाद्रपद नक्षत्र राशि पथ में 333.20 अंशों से 346.40 अंशों तक स्थित है। इसका एक अन्य नाम अहिर्बुध्न्य । अरबी में उसे अल फर्ग अल मुखीर कहते हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की तीन तारों को मिलाकर रचना की गयी है। देवता अहिर्बुध्य है। अर्थ दो कहे गये हैं। कुछ इसका अर्थ सूर्य देवता से लगाते हैं तो कुछ कहते हैं, इसका अर्थ है तल में रहने वाला सर्प या द्वीप का सर्प। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का आधिपत्य शनि को दिया गया है। गणः मनुष्य, योनिः गौ, और नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं: टू, थ, झ, ञ। इस नक्षत्र में जन्मे जातक आकर्षक एवं चुंबकीय व्यक्तित्व वाले होते हैं। चेहरे पर सदैव स्मित हास्य, एक अबोधपन दर्शाता है। वे बुद्धिमान, ज्ञानवान एवं समझदार भी होते हैं। ऐसे जातक सभी से सम व्यवहार करने वाले होते हैं, अर्थात् वे ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं रखते। निर्दोष हृदय के ऐसे जातक दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते। ऐसे जातकों में एक ही दोष होता है कि गुस्सा उनकी नाक पर चढ़ा रहता है। लेकिन वह क्षणिक होता है। मन से वे एकदम स्वच्छ एवं निर्मल होते हैं। जिनसे स्नेह करते हैं, उनके लिए वे प्राण तक देने को तत्पर रहते हैं, पर यदि उन्हें कोई चोट पहुँचाये तो वे खूखार शेर की तरह हो जाते हैं। उनकी वाणी में माधुर्य होता है। वे शत्रुहंता भी कहे जा सकते हैं। वे ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार . 230 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊंचे पद पर भी पहुँच सकते हैं। उनकी शिक्षा भी अच्छी होती है। उन्हें अनेक विषयों का ज्ञान भी होता है। ऐसे जातकों की काम-प्रवृत्ति उन्हें सदा दूसरे ‘सेक्स' के लोगों के साथ बिताने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे जातक अठारह-उन्नीस वर्ष की अवस्था में ही आजीविका कमाने में लग जाते हैं। ऐसे जातक अपने पिता के भक्त तो होते ही हैं, साथ ही उनकी सख्ती से कुछ खिन्न भी। उन्हें अपने पिता से कोई विशेष लाभ नहीं होता। सामान्यत: बचपन उपेक्षित ही बीतता है। ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन सुखी बीतता है। पत्नी एवं बच्चों से उसे पूर्ण सुख मिलता है। यद्यपि ऐसे जातक अपने स्वास्थ्य के प्रति किंचित लापरवाह रहते हैं तथापि उनका स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। __इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं भी उपरोक्त गुणों एवं चारित्रिक विशेषताओं से संपन्न होती है। व्यक्तित्व आकर्षक, मध्यम कद तथा विशाल, सुंदर नेत्र। ऐसी जातिकाएं किसी भी परिवार के लिए साक्षात 'लक्ष्मी' ही कही गयी हैं। व्यवहार-कुशलता, विनम्रता, परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाना उनकी एक विशेषता है। ऐसी जातिकाएं वकालत के क्षेत्र में पर्याप्त सफलता पा सकती हैं। उनमें वे कुशल नर्स या चिकित्सक बनने के भी क्षमता होती है। ऐसी जातिकाओं को पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक से विवाह न करने की चेतावनी मिलती है। उसे पति से बिछुड़ना पड़ सकता है। ऐसी जातिकाओं को अपच, कब्ज, हर्निया एवं तपेदिक की बीमारी हो सकती है, अतः उन्हें इन रोगों को जन्म देने वाले वातावरण से बनना चाहिए। उत्तराभाद्रपद के प्रथम चरण का स्वामी सूर्य, द्वितीय का बुध, तृतीय का शुक्र तथा चतुर्थ का मंगल माना गया है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में सूर्य की स्थिति के फल प्रथम चरण: यहाँ सूर्य जातक को समाज में प्रतिष्ठित स्थान दिलाता है। जातक का पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक कृषि विषयक कार्यों से पर्याप्त धन कमा सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 231 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ बुध के साथ सूर्य की युति हो तो जातक का स्वभाव उग्र हो सकता है। चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य के अच्छे फल कहे गये हैं। जातक का स्वभाव उग्र हो सकता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित किसी भी ग्रह पर अन्य ग्रहों की दृष्टि के फल प्रायः वहीं हैं, जो मूल नक्षत्र में स्थित ग्रह-विशेष पर अन्य ग्रहों की दृष्टि के होते हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में चंद्र के फल प्रथम चरणः यहाँ जातक संपन्न जीवन बिताता है। । द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र पर पाप ग्रहों की दृष्टि बचपन में जातक के जीवन के लिए अशुभ मानी गयी है। तथापि इस चरण में जातक में चोरी की प्रवृत्ति भी बतायी गयी है। तृतीय चरण: यहाँ जातक उदार, सद् व्यवहार से युक्त तथा विद्वान होता है। जातक को पिता से विशेष लाभ नहीं मिलता। वह अपने प्रयत्नों से जीवन में उन्नति करता है। ____ चतुर्थ चरण: यहाँ जातक का पारिवारिक जीवन सुखी होता है। पत्नी अच्छी मिलती है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरणः यहाँ मंगल जातक के लिए विदेश-गमन की स्थिति दर्शाता है। उसे विश्वासघात का भी शिकार होना पड़ सकता है, जिससे उसे पर्याप्त आर्थिक क्षति उठानी पड़ सकती है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक में स्वार्थ की भावना बढ़ जाती है। तृतीय चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक प्रथम चरण की भांति विदेश गमन करता है। स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक स्वस्थ एवं सतर्क होता है। बुध के साथ मंगल की युति उसे इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ले जा सकती है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में बुध के फल प्रथम चरणः यहाँ जातक की कल्पना शक्ति प्रखर होती है। उसका अभिव्यक्ति पर भी अधिकार होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 232 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरणः यहाँ जातक को वाणिज्य या विधि के क्षेत्र में सफलता मिलती है। उसमें साहित्यक रुचि भी होती है। तृतीय चरण: यहाँ बुध की स्थिति जातक के विद्वान होने की सूचना देती है। ऐसे जातक इंजीनियरिंग, आडिटिंग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं। वे कोई स्वतंत्र व्यवसाय भी कर सकते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक शासकीय सेवा में रत होता है। उसका जीवन धन एवं अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चों के कारण सुखी बीतता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरणः यहाँ जातक शासकीय सेवा में जाता है। द्वितीय चरणः यहाँ भी धन आदि दृष्टि से सुखी जीवन के फल मिलते हैं। तृतीय चरणः यहाँ जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक में चिकित्सक बनने की क्षमता दर्शाता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ शुक्र की चंद्र के साथ युति जातक को ईष्यालु प्रकृति का बनाती है। द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र के शुभ फल मिलते हैं। जातक का जीवन सफलताओं से भरा, सुखी होता है। पत्नी भी सुशील, व्यवहार कुशल मिलती है। ततीय चरण: यहाँ भी शक्र अच्छी धन-दौलत और सुखी जीवन की सूचना देता है। जातक ठेकेदारी में सफलता पा सकता है। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र की स्थिति को परम सौभाग्यकारक माना गया है। जातक के पास प्रचुर संपत्ति ही नहीं, उसमें सुख भी मिलता है। अन्य ग्रहों की शुभ दृष्टि हो तो जातक अनेक उद्योगों का स्वामी भी होता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में शनि के फल प्रथम चरणः यहाँ गुरु के साथ शनि की युति एक उच्च प्रशासक पद के योग्य बनाती है। द्वितीय चरण: यहाँ पत्नी के जीवन की दृष्टि से शुभ फल नहीं मिलते। तृतीय चरणः यहाँ शनि-चंद्र की युति हो तो जातक विज्ञान के क्षेत्र में निष्णात होता है। बुध के साथ युति जातक को लिपिक या इंजीनियर भी बना सकती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 233 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ चरण: यहाँ शनि अशुभ फल देता है। जातक को काफी परेशनियां उठानी पड़ सकती हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में राहु के फल उत्तराभाद्रपद के प्रथम चरण को छोड़ शेष अन्य चरणों में जातक के धनी, विद्वान होने की सूचना मिलती है। तृतीय चरण: यहाँ राहु विधवाओं की संगति की ओर प्रवृत्त करता है। चतुर्थ चरण में उसका जिद्दी स्वभाव उसके लिए हानिकारक होता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में केतु के फल उत्तराभाद्रपद में केतु की स्थिति जातक के विदेश-गमन, पारिवारिककलह से दुखी होने की सूचना देती है। प्रथम चरणः जातक के घर से भाग जाने की आशंका होती है। द्वितीय चरण: जातक को धन की क्षति उठानी पड़ती है। तृतीय चरणः जातक को कृषि कार्यों से लाभ होता है। चतुर्थ चरण: जातक विदेश में प्रवास करता है। शिक्षा में भी व्यवधान आता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 234 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवती राशि पथ में यह नक्षत्र 346.40 अंशों से 360.00 अंशों के मध्य स्थित है। पूषा एवं पौष्णम इसके अन्य नाम है। अरबी में से बत्तन अल हत कहते है-अर्थात् मछली का पेट। इस नक्षत्र में बत्तीस तारे माने गये हैं जिनकी आकृति मृदंग की भांति मानी जाती है। पूषा को नक्षत्र का देवता तथा बुध को अधिपति माना गया है। गणः देव, योनिः गज एवं नाड़ीः अंत है। यह नक्षत्र मीन राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी गुरु है। चरणाक्षर हैं--दे, दो, चा, ची। रेवती नक्षत्र में जन्मे जातकों का शरीर सुगठित होता है। निर्मल हृदय वाले ऐसे जातक मधुर भाषी, व्यवहार-कुशल एवं स्वतंत्र प्रकृति के होते हैं। वे अनावश्यक रूप से दूसरों के कामों में उलझते नहीं, न स्वयं चाहते कि कोई उनके कार्यों में हस्तक्षेप करें। कभी-कभी ऐसे जातकों का स्वभाव उग्र हो जाता है। यह स्थिति तब बनती है जब कोई उन्हें उनके सिद्धांतों से डिगाने की कोशिश करता है। चे अतिशय सिद्धांतप्रिय होते हैं। रेवती नक्षत्र में जन्मे जातकों को अत्यंत धर्मशील कहा गया है। रुढिप्रिय ऐसे जातक कभी-कभी घोर अंधविश्वासी भी बन जाते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 235 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाभाविक है कि ऐसे जातकों में प्राचीन संस्कृतियों एवं इतिहास के अध्ययन की गहरी रुचि हो। खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र में भी उनकी पैठ होती है। रुढ़िवादी होने के बावजूद वे वैज्ञानिक समाधानों, शोधों में प्रवृत्त रहते हैं। उनमें काव्य प्रतिभा भी होती है। ऐसा कहा गया है कि रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः विदेश में ही बसने के आकांक्षी होते हैं और बसते भी हैं। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी बीतता है। पत्नी सुशील, सुगृहिणी होती है, लेकिन ऐसे जातकों को पिता या परिवार से सहायता न मिलने के फल कहे गये हैं। रेवती नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं बेहद सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं। लेकिन उनमें हठ कुछ ज्यादा ही होता है। वे भी ईश्वर भक्त तथा परंपरागत रीति-रिवाजों का पूर्ण पालन करने वाली होती हैं। कला, साहित्य या गणित विषयों में उनकी विशेष रुचि होती है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखी होता है तथापि यह भी कहा गया है कि ऐसी जातिकाओं को आर्द्रा नक्षत्र में जन्मे जातक से विवाह नहीं करना चाहिए। ऐसा विवाह स्थायी नहीं रह पाता। रेवती के प्रथम चरण का स्वामी गुरु, द्वितीय एवं तृतीय का शनि तथा चतुर्थ का गुरु माना गया है। रेवती में सूर्य के फल प्रथम चरणः यहाँ सूर्य शुभ फल देता है। जातक जन्मजात प्रतिभा से युक्त, धनी, सुंदर, विद्वान तथा लोकप्रिय होता है। वह साहसी तथा कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। द्वितीय चरणः यहाँ शुभ फल नहीं मिलते। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति विशेष फलदायी नहीं होती। चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य के शुभ फल मिलते हैं। यदि सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक उच्च पद पर आसीन होता है। रेवती नक्षत्र में चंद्र के फल प्रथम चरणः यहाँ जातक विद्वान, समृद्धिशाली, व्यवहार-चतुर एवं सुखी परिवार वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 236 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण: यहाँ जातक में चोरी करने की प्रवृत्ति छिपी रहती है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र को बालारिष्ट योग उत्पन्न करने वाला कहा गया है तथापि जातक संघर्षों में अंततः विजयी ही होता है। चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र की स्थिति स्वास्थ्य के लिए अशुभ मानी गयी है। यह स्थिति माता-पिता के लिए ठीक नहीं समझी जाती। रेवती नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरण: जातक स्वस्थ, सक्रिय, सतर्क, भूपति एवं कुशल संगठक होता है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। तृतीय चरणः यहाँ गुरु के साथ मंगल की युति जातक को किसी संगठन का प्रमुख बनाती है। जातक की सारी इच्छाएं भी पूरी होती है। चतुर्थ चरणः यहाँ मंगल जातक को यश एवं अर्थ दोनों की प्राप्ति कराता है। लेकिन वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता। रेवती नक्षत्र में बुध के फल प्रथम चरणः यहाँ बुध जातक को बहुभाषाविद् एवं विनोदी प्रकृति का बनाता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक में दार्शनिकता का पुट ज्यादा होता है। गुरु की दृष्टि हो तो जातक का चिंतन स्पष्ट, उचित ही होता है। तृतीय चरणः यहाँ जातक विधि के क्षेत्र में सफल होता है। . . चतुर्थ चरणः यहाँ बुध की मंगल से युति हो तो जातक सेना में टेक्नीकल विभाग में कार्य करता है। शुक्र के साथ युति हो तो विदेश यात्रा की स्थिति बनती है। रेवती नक्षत्र में गुरु के फल प्रथम चरणः जातक किसी भी पेशे में उच्च पद पर होता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक के दीर्घायु होने की सूचना देता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 237 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय चरणः यहाँ जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। विदेश में प्रवास या बसने के योग भी मिलते हैं। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक दीर्घायुष्य कहा गया है। जीवन भी सुखी होता है। रेवती नक्षत्र में शुक्र के फल प्रथम चरणः यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। जातक बुद्धिमान, कलापिन एवं सुखी वैवाहिक जीवन वाला होता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी शुक्र जातक को कलाप्रिय बनाता है। वैवाहिक जीवन सुखी कहा गया है। तृतीय चरणः यहाँ शुक्र जातक के लिए शुभ सिद्ध होता है। पुत्रियां पुत्रों से श्रेष्ठ सिद्ध होती हैं। चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र दीर्घायुकारक माना गया है। कहा गया है कि रेवती के चतुर्थ चरण में शुक्र की चंद्र युति तथा लग्न में अनुराधा नक्षत्र की उपस्थिति सर्वोच्च पद जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री पर आसीन करवा सकती है। रेवती नक्षत्र में शनि के फल प्रथम चरण: यहाँ शनि जातक को निराशावादी बनाता है। विवाह में विलंब के योग मिलते हैं। द्वितीय चरणः यहाँ जातक विचारवान, व्यावहारिक एवं उत्साह से भरा होता है। तृतीय चरण: यहाँ जातक परिवहन, मनोरंजन आदि के क्षेत्रों में सेवा करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ जातक व्यवसाय में लाभ कमाता है। सामान्यतः प्रसाधन, संगीत, रेडियो आदि के व्यवसाय में वह सफल होता है। रेवती नक्षत्र में राहु के फल . प्रथम चरणः यहाँ जातक शासकीय सेवा में रत होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 238 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय चरण एवं तृतीय चरण में राहु नकारात्मक फल देता है । यही स्थिति चतुर्थ चरण में भी बनती है। रेवती नक्षत्र में केतु के फल प्रथम चरण: यहाँ केतु की शुक्र से युति हो तो चिकित्सा के क्षेत्र में सफल होता है । द्वितीय चरण: यहाँ जातक काफी संघर्ष के बाद सफल होता है। पैंतीस वर्ष तक प्रायः उसे अपने परिवार से अलग जिंदगी बितानी पड़ती है । तृतीय चरणः यहाँ जातक को व्यवसाय के सिलसिले में यात्राएं करनी पड़ सकती हैं। जीवन सुखी बीतता है । चतुर्थ चरणः यहाँ जातक ठेकेदारी का कार्य करता है। वह किसी की भी आधीनता पसंद नहीं करता, इसलिए भी अपने ही स्वतंत्र व्यापार या व्यवसाय में लगना चाहता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 239 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक सूचना पाठकों के सुझाव हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । हम चाहेंगे कि आप हमें लिखें कि इस पुस्तक को पढ़ने पर आपको कैसा लगा ? यदि आप चाहते हैं कि हमारे प्रकाशनों की सूचना नियमित रूप से आपके पास पहुँचती रहे तो हमें एक कार्ड पर अपना पता लिख भेजिए। आज देश में ढोंगी व्यक्तियों का जाल फैला हुआ दिखाई देता है। आज सामान्य से चमत्कार दिखाकर ढोंगी व्यक्ति लोगों को लूट रहे हैं, ठग रहे हैं। आज प्रबुद्ध व्यक्ति तंत्र-मंत्र-ज्योतिष को हेय दृष्टि से देखता है। हम इन विद्याओं के सही और कल्याणकारी रूप से परिचित कराने के लिए कृत-संकल्प हैं। सौभाग्य से हमारे संस्थान को प्रामाणिक तंत्रविदों, ज्योतिषविदों, अंक-शास्त्रियों, हस्तरेखा शास्त्रियों, रत्न शास्त्रियों, वास्तु शास्त्रियों का आशीर्वाद है। यदि आपकी किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या है तो आप हमें लिखें। आपकी जन्मपत्री हो तो उसे भी भिजवायें। पाँच सौ एक रुपये का ड्राफ्ट 'MEGH PRAKASHAN, DELHI-110006' के नाम रजिस्टर्ड पोस्ट से भिजवायें। आपका ड्राफ्ट मिलने के एक माह में आपको हमारा परामर्श प्राप्त हो जायेगा। उसके पूर्व पत्र-व्यवहार न करें। ___ यदि आप लेखक हैं। अपने विषय में पारंगत हैं और पाठकों के लिए सर्वथा उपयोगी पुस्तकें लिखने में सक्षम हैं तथा आपके पास पांडुलिपि तैयार हैं तो विवरण भेजें। साथ में लेखन से संबंधित सभी जानकारियों सहित अपना परिचय भी। मेघ प्रकाशन 239, दरीबाकलां, दिल्ली-110006 दूरभाष-23278761, 22913794 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पं. दुर्गा प्रसाद शुक्ल हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं सुप्रसिद्ध अनुवादक हैं। कुछ वर्षों पूर्व हिन्दी की साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिका 'कादम्बिनी' के डिप्टी-एडीटर पद से सेवा-निवृत्त हुए। इन अवधि में श्री शुक्ल का देश के अनेक प्रख्यात ज्योतियों-हस्तरेखाविदों एवं तांत्रिकों से परिचय हुआ। इस सम्पर्क ने उन्हें इन विषयों के अध्ययन की ओर उन्मुख किया। अपने अध्ययन में उन्होंने पाया कि इन विषयों की अधिकांश पुस्तकें एक परंपरागत शैली पर आधारित हैं जो कहीं-कहीं अस्पष्ट और दुरुह भी हो जाती है। अतः उन्होंने ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्र और तंत्रवेद्या पर ऐसी प्रामाणिक पुस्तकें लिखने का न बनाया जो वास्तविक रूप से पाठकों का मार्गदर्शन करने में सक्षम हो। उनके लेखन की विशेषता पाठकों को अंधविश्वासी न बनाकर, उनमें जिज्ञासु भाव का सृजन करना है। प्रकाशित कृतियाँ-1. द्वादश भाव रहस्य, 2. आपका हाथ-आपका सच्चा मित्र, 3. शनिः कब शुभ, कब अशुभ, 4. मंगल : कब शुभ, कब अशुभ, 5. राहु-केतु : कब शुभ, कब अशुभ, 6. ग्रहों का कामभाव पर प्रभाव, 7. तंत्र विद्या का यर्थाथ, 8. सफलता या असफलता-चुनाव आपका, 8. रत्नप्रश्नोत्तरी, 9. समय की बाँसुरी शीघ्र प्रकाश्य-1. मुखाकृति विज्ञान, 2. स्वप्न विज्ञान, 3. ज्योतिष कौमुदी Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The real wealth of life, a must for every family. SAHAJ-ANAND A Perfect Guide to Ultimate Happiness A Bilingual Quarterly devoted to Quest, Bliss and knowledge in the realm of Spirituality, Religion, Culture, Literature and Universal experiences of Mankind. आज हम अपनी पहचान खो रहे हैं। 'सहज-आनन्द' हमें अपनी पहचान खोने से बचाने में सहायक है। सम्पादन और सामग्री चयन में सुरुचि स्पष्ट दिखाई देती है। -डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवीं, नई दिल्ली निष्पक्ष चयन के कारण ‘सहज-आनन्द' ने पत्रकारिता जगत् में अपना स्थान बना चुकी है। नए और पुराने रचनाकारों का ऐसा संगम विस्मृत करनेवाला है। दूसरी पत्रिकाओं की तरह ज-आनन्द' में न तो दकानदारी की गंध है और न ही यह भाई-भतीजाबाद के रोग से ग्रसित है। बहुत वर्षों में ऐसी सुंदर पत्रिका देखी। -प्रो. एल. सी. जैन, जबलपुर (म.प्र.) 'सहज-आनन्द' में धर्म-दर्शन-इतिहास की अनेक गुत्थियों को सरलता से सुलझाया जाता है। 'सहज-आनन्द' में महत्वपूर्ण सूचनायें हैं; सभी अनुशीलन संस्थाएँ इसका स्वागत करेंगी। ज्ञान के अथाह सागर में देदीप्यमान दुर्लभ मुक्ताओं को चुनकर 'सहज-आनन्द' में प्रकाशित करने का दुष्कर कार्य आपकी गहरी पैठ एवं नीर-क्षीर विवेक का द्योतक है। -डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव, पटना (बिहार) 'सहज-आनन्द' में गंभीर सामग्री, मौलिकता एवं शुद्ध मुद्रण देखकर आश्चर्यचकित हूँ। -डॉ. राजाराम जैन, आरा (बिहार) आध्यात्मिक प्रसंगों से सामाजिक संदर्भो तक विविध आयाम 'सहज-आनन्द' में देखने को मिले। 'सहज-आनन्द' उन स्वादिष्ट व्यंजनों की एक सजी हुई तश्तरी के समान है जिसे शाही भोज के अवसरों पर परोसा जाया करता है।। -दशरथ जैन (पूर्वमंत्री) छतरपुर (म.प्र.) 'सहज-आनन्द' अमोघ संजीवनी की भांति ज्योतिपुंज है। हिंसा, अनैतिकता एवं तनावपूर्ण युग में 'सहज-आनंद' का एक प्रकाशन एक रचनात्मक प्रयास है। -दशर्न लाड़ (फिल्म निदेशक), मुम्बई वार्षिक : 110 रुपये आजीवन : 2000 रुपये MEGH PRAKASHAN मे घ 239, Dariba Kalan, Delhi-110 006 (India) __ Phone : 22913794,23278761 E-mail : meghprakashan@rediffmail.com