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________________ आश्लेषा के विभिन्न चरणों में शनि आश्लेषा के द्वितीय चरण को छोड़कर विभिन्न चरणों में शनि शुभ फल नहीं देता । जातक प्रायः माता-पिता के सुख से वंचित रहता है । प्रथम चरणः यहाँ शनि माता के सुख से वंचित रहता है । या तो मां होती नहीं और होती भी है तो जातक उसके द्वारा लालन-पालन के सुख से वंचित रहता है । द्वितीय चरणः यहाँ शनि शुभ फल देता है। जातक सुशिक्षित और चतुर • होता है। विज्ञान संबंधी विषयों में उसकी रुचि होती है। वह विदेश - यात्राएं भी करता है । तृतीय चरण: यहाँ शनि पिता के सुख से वंचित रखता है। जातक हमेशा संदेहशील बनता रहता है। चतुर्थ चरणः यहाँ शनि जातक को पितृ-विरोधी बनाता है। उसका पिता मद्य-प्रिय हो सकता है। फलतः माता-पिता के बीच संबंध ठीक नहीं होते । पिता के प्रति वैर भाव के कारण जातक पारिवारिक संपत्ति भी नष्ट कर सकता है। आश्लेषा स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि पारिवारिक जीवन दुखी रखती है। जातक को पत्नी से पूर्ण सुख नहीं मिलता । चंद्र की दृष्टि भी शुभ फल नहीं देती। जातक परिवार वालों के लिए दुःख का कारण बन जाता है। मंगल की दृष्टि शासन से लाभ दिलवाती है । बुध की दृष्टि के फलस्वरूप जातक घमंडी और कटु वचन कहने वाला बन जाता है। गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी और पत्नी तथा संतान सुख पाता है । शुक्र की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। व्यापार में वह सफल होता है। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में राहु प्रथम चरणः यहाँ राहु जातक को दीर्घजीवी बनाता है । द्वितीय चरण: यहाँ राहु विशेष शुभ फल नहीं देता । Jain Education International ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 121 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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