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________________ तृतीय चरणः यहाँ राहु चिकित्सा के क्षेत्र में सफल बनाता है। जातक अत्यंत भावुक होता है और इसी कारण उसे परेशानी भी उठानी पड़ती है। चतुर्थ चरण: यहाँ राहु जीवन में अवरोधक बनता है। यहाँ तक कि परिवार वाले ही बाधाएं उत्पन्न करने लगते हैं। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में केतु प्रथम चरणः यहाँ केतु चिकित्सा क्षेत्र की ओर प्रवृत्त करता है। स्त्रियों की कुंडली में में स्थित राहु सफल. डॉक्टर बनाता है। ... द्वितीय चरणः यहाँ केतु जातक को साहसी और निर्भीक बनता है। उसकी धर्म-कर्म में भी रुचि होती है। पर पिता के व्यवहार फलस्वरूप उसे कष्ट भोगना पड़ता है। तृतीय चरण: यहाँ केतु जातक को वैज्ञानिक दृष्टि वाला बनाता है। विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में वह सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ चरण: यहाँ केतु जातक को व्यापार में सफल बनाता है। मित्रों के मामले में वह बेहद सौभाग्यशाली होता है। उसकी उन्नति में भी वे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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