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आश्लेषा के विभिन्न चरणों में शुक्र
आश्लेषा के चतुर्थ चरण में शुभ फल देने के अलावा विभिन्न चरणों में शुक्र मिले-जुले फल देता है, पर वैवाहिक जीवन की दृष्टि यहाँ शुक्र की स्थिति शुभ नहीं मानी जा सकती।
प्रथम चरण: यहाँ शुक्र विशेष फल नहीं देता है। इस चरण में चंद्र के साथ शुक्र की युति संबंध-विच्छेद की नौबत ला देती है।
द्वितीय चरणः यहाँ शुक्र अपने अन्य फलों के साथ-साथ व्यक्ति को काम-पिपासु बनाता है। काम वासना का आधिक्य पारिवारिक जीवन में विग्रह उत्पन्न करता है। दो पत्नियों का भी योग बनाता है। ऐसे जातक के जीवन का अंतिम चरण दुखदायी होता है। वह अपने कमों के फलस्वरूप अकेला रह जाता है।
तृतीय चरण: यहाँ भी शुक्र अच्छे फल नहीं देता। प्रथम चरण की भांति इस चरण में भी चंद्र-शुक्र युति अच्छे फल नहीं देती। वह मानसिकता को बिल्कुल अनैतिक बना देती है।
चतुर्थ चरण: यहाँ शुक्र शुभ फल देता है। जातक राजनीति के क्षेत्र में विशेष सफल होता है। लेकिन कामाधिक्य उसे परस्त्रीगामी बना देता है। फलतः उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता।
आश्लेषा स्थित शुक्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि शुभ नहीं होती। जातक को स्त्रियों की कोप-दृष्टि का शिकार होना पड़ता है।
चंद्र की दृष्टि माता के लिए अशुभ होती है। ____ मंगल की दृष्टि उसे बुद्धिमान, कला-प्रिय ही नहीं वरन् कलाओं में विख्यात भी बनाती है।
बुध की दृष्टि उसे विवेकपूर्ण बनाती है और परिवार के लोगों के व्यवहार से दुखी रहने के बावजूद वह अपने पारिवारिक दायित्वों को निष्ठा से पूरा करता है। ____ गुरु की दृष्टि उसे धनी और बेहद चतुर बनाती है। उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी रहता है। ___ शनि की दृष्टि का फल अच्छा नहीं होता। व्यक्ति अभावग्रस्त रहता है। चरित्र हीनता के कारण वह हेय दृष्टि से भी देखा जाता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 120
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