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00), हस्त (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) तथा चित्रा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) की गणना होती है।
तुला राशि (स्वामी : शुक्र) में चित्रा के दो चरण (6.40), स्वाति (स्वामी : राहु) के चारों चरण (13.20) तथा विशाखा (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) का समावेश माना गया है।
वृश्चिक राशि (स्वामी : मंगल) में विशाखा का अंतिम चरण (3.20), अनुराधा (स्वामी : शनि) तथा ज्येष्ठा (स्वामी : बुध) के समस्त चरणों की गणना होती है। अर्थात् अनुराधा के (13.20) तथा ज्येष्ठा के (13.20)।
धनु राशि में मूल (स्वामी : केतु) के चारों चरण (13.20), पूर्वाषाढ़ा (स्वामी : शुक्र) के चारों चरण (13.20) तथा उत्तराषाढ़ा (स्वामी : सूर्य) के प्रथम चरण (3.20) का समावेश माना गया है।
मकर राशि (स्वामी : शनि) में उत्तराषाढ़ा के शेष तीन चरण (10.00), श्रवण (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) तथा धनिष्ठा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) की गणना होती है।
कुंभ राशि (स्वामी : शनि) में धनिष्ठा के अंतिम दो चरण (6.40) तथा शतभिषा (स्वामी : राह) के चारों चरण (13.20) तथा पूर्वभाद्रपद (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) का समावेश है। ___मीन राशि (स्वामी : गुरु) में पूर्वभाद्रपद का अंतिम चरण तथा उत्तरा भाद्रपद (स्वामी : शनि) के चारों चरण (13.20) तथा रेवती (स्वामी : बुध) के चारों चरणों (13.20) का समावेश माना गया है।
नक्षत्रों के चरणाक्षर से क्या आशय है ? उनका महत्त्व बताइए?
भारतीय ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण विशेषता है-गोपनीयता के साथ-साथ सरलता। तंत्र शास्त्र में भी यही विशेषता है। जो मंत्र अपने अर्थ की गोपनीयता के कारण निरर्थक प्रतीत होते हैं, वे मंत्र का ज्ञान होने पर अर्थवान् एवं प्राणवान् सिद्ध हो जाते हैं।
प्रत्यक्ष देखने पर प्रत्येक नक्षत्र के पृथक-पृथक चरणों के लिए नियत अक्षर भी अर्थहीन लगते हैं। जैसे अश्विनी के चार चरणों के लिए नियत अक्षर हैं-चू, चे, चो, ला।
अश्विनी को आज प्रथम नक्षत्र माना जाता है, जबकि प्राचीन काल में यह स्थान कृत्तिका का कहा जाता था। इस पर आगे चर्चा प्रसंग अनुसार।
नक्षत्रों के लिए नियत चरणाक्षर आज अपने ज्ञान की सीमा के कारण ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 22
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