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में आने वाले नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों का भी परिचय दे रहे हैं। उद्देश्य यही है कि पाठक यह समझने की कोशिश करें कि किसी व्यक्ति के जीवन में, ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतानुसार भी न तो अकेला नक्षत्र, न अकेली राशि और न अकेला कोई ग्रह प्रभाव डालता है। किसी भी व्यक्ति पर इन सबका सम्मिलित प्रभाव ही पड़ता है।
कृपया राशियों एवं उनके नक्षत्रों का परिचय दीजिए ?
प्रथम राशि, मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। मेष राशि में अश्विनी (स्वामी : केतु), भरणी (स्वामी : शुक्र) के सभी चार-चार चरण तथा कृत्तिका (स्वामी : सूर्य) का एक चरण आता है।
एक राशि में तीस अंश माने गये हैं। यहाँ अश्विनी के 13.20, भरणी के 13.20 तथा कृत्तिका के प्रथम चरण 3.20 मिलकर 30 अंश पूरे होते हैं। । अब यदि मेष राशि में जन्मे दो व्यक्तियों के नक्षत्रों में अंतर है तो फलों में भी अंतर पड़ेगा, यद्यपि वह व्यक्ति मेष राशि में जन्मा माना जाएगा तथापि मेष राशि के अश्विनी, भरणी अथवा कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने से कुछ न कुछ फर्क अवश्य पड़ेगा।
यही बात शेष राशियों एवं उनके नक्षत्रों पर भी लागू होती है। - मेष के बाद वृषभ अथवा वृष दूसरी राशि है। कुंडली में 2 के अंक से इसे संकेतित किया जाता है। इसका स्वामित्व शुक्र को दिया गया है।
वृष राशि में कृत्तिका (स्वामी : सूर्य) के शेषं तीन चरण (प्रथम चरण मेष में होता है), रोहिणी (स्वामी : चंद्र) के चारों चरण (13.20) और मृगशिरा (स्वामी : मंगल) के दो चरण (6.40) होते हैं।
मिथुन राशि (स्वामी : बुध) में मृगशिरा के शेष दो चरण (6.40), आर्द्रा (स्वामी : राहु) के चारों चरण (13.20) एवं पुनर्वसु (स्वामी : गुरु) के तीन चरण (10.00) होते हैं।
कर्क राशि (स्वामी : चंद्र) में पुनर्वसु का अंतिम चरण (3.20) पुष्य (स्वामी : शनि) के चारों चरण (13.20) तथा आश्लेषा (स्वामी : बुध) के चारों चरण (13.20) शामिल हैं।
सिंह राशि (स्वामी : सूर्य) में मघा के चारों चरण (13.20), पूर्वा फाल्गुनी (स्वामी : शुक्र) के चारों चरण (13.20) तथा उत्तरा फाल्गुनी (स्वामी : स्वयं सूर्य) का प्रथम चरण (3.20) होता है। - कन्या राशि (स्वामी : बुध) में उत्तरा फाल्गुनी के शेष तीन चरण (10.
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 21
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