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________________ चंद्रमा की दृष्टि उसे वाचाल पर उग्र-स्वभाव वाला बनाती है। __ मंगल की दृष्टि के फलस्वरूप वह कला-निपुण और ईमानदार होता है। उसका व्यक्तित्व भी लोगों को आकर्षित करता है। गुरु की दृष्टि उसे विद्वान और धनी बनाती है। उसे शासन से लाभ भी मिलता है। ___ शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप वह शत्रु-हंता होता है। विवाद सुलझाने में वह कुशल होता है। शनि की दृष्टि उसे सुशील स्वभाव का, सबका आदर करने वाला बनाती है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में गरु की स्थिति पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में गुरु सामान्यः शुभ फल ही देता है। लेकिन पारिवारिक जीवन में पत्नी के कारण तनाव बना रहता है। प्रथम चरणः यहाँ गुरु समस्त भौतिक सुख प्रदान करता है। यही नहीं, व्यक्ति मान-सम्मान और आदर भी पाता है। लेकिन पारिवारिक जीवन की दृष्टि से यह स्थिति अच्छी नहीं होती। पत्नी संदेह करती रहती है और फलस्वरूप तनाव बना रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ गुरु प्रसिद्ध, परोपकारी बनाता है और व्यक्ति शासन अथवा राजनीति के क्षेत्र में उच्चपद प्राप्त करता है। यहाँ भी पत्नी की संकीर्ण मनोवृत्ति उसे व्यथित रखती है। तृतीय चरण: यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है। व्यक्ति शासन, सार्वजनिक क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। यदि इस चरण में गुरु के साथ सूर्य की युति हो तो व्यक्ति उच्च राजनेता या मंत्री बनता है। चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु अत्यंत प्रसिद्ध बनाता है लेकिन जातक को न तो सुख नसीब होता है और न धन-दौलत। मित्र और संबंधी उसे दुखी करते हैं। पराये लोग उसे देव तुल्य मान कर सम्मान करते हैं। विभिन्न ग्रहों की दृष्टि पुनर्वसु स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल इस प्रकार हैं। सूर्यः शुभ फल, अच्छी पत्नी, योग्य संतति तथा संबंधियों को आदर, मान-सम्मान। चंद्रः अच्छे व्यवहार के कारण लोकप्रिय, यशस्वी, ग्रामों एवं नगरों में प्रशासन-भार की भी संभावना। मंगलः प्रतिरक्षा सेनाओं में जाने की संभावना। अनेक अवरोधों के बाद जीवन में सफलता। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 104 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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