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स्वाति के विभिन्न चरणों में चंद्र
प्रथम चरण: यहाँ चंद्र जातक को विद्वान और धार्मिक बनाता है।
द्वितीय चरण: यहाँ जातक को सुशील और कृतज्ञ बनाता है। वह स्वयं को मिली सहायता कभी भूलता नहीं।
तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को व्यापारिक बुद्धि देता है। वह उदार, परोपकारी भी होता है और अपने इन गुणों के कारण वह लोकप्रिय भी होता है।
- चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र जातक को ललित कलाओं में निष्णात बनाता है। उसे अच्छी आय भी होती है। वह महत्त्वाकांक्षी और शत्रुहंता होता है।
स्वाति स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि जातक को गुह्य विद्याओं का प्रेमी बनाती है। सूर्य की अशुभ दृष्टि उसके पुरुषत्व पर प्रभाव डालती है। __ मंगल की दृष्टि उसे सत्यवादी बनाती है। पुरुषत्व के लिए यह दृष्टि अशुभ कही गयी है।
बुध की दृष्टि उसे उद्भट विद्वान और जीवन में सदैव सफल बनाती है। गुरु की दृष्टि उसे धार्मिक, उदार और सफल बनाती है। शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक व्यापार में प्रवृत्त होता है। शनि की दृष्टि विशेष शुभ फल नहीं देती।
स्वाति नक्षत्र में मंगल के फल
स्वाति नक्षत्र में मंगल शुभ फल नहीं देता। । प्रथम चरणः यहाँ मंगल हो तो जातक कामाधिक्य के कारण किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता है। उसमें ईमानदारी का अभाव भी बाधाएं ही उत्पन्न करता है।
द्वितीय चरणः यहाँ मंगल विशेष फल नहीं देता। ऐसा फल कहा गया है कि यदि लग्न में रोहिणी नक्षत्र हो तथा इस चरण में मंगल के साथ शनि हो तो जातक को कैंसर रोग होने की आशंका रहती है।
तृतीय चरण: यहाँ मंगल हो तो जातक साहसी, अस्थिर मति, यायावरी तबीयत का होने के साथ-साथ क्रूर हृदय भी होता है।
चतुर्थ चरण: यहाँ मंगल हो तो भी जातक में ईमानदारी का अभाव होता है तथा उसके कारण उसे दंड भी भुगतना पड़ता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 154
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