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तक पर्याप्त संघर्ष करना पड़ता है। कभी-कभी उनके छोटे-छोटे काम भी रुक जाते हैं।
ऐसे जातक अपने परिवार को बेहद प्यार करते हैं। लेकिन कहा गया है कि ऐसे जातकों को पिता से न पर्याप्त प्यार मिलता है, न कोई सहायता। हाँ, मातृपक्ष के लोग उसकी सहायता के लिए तत्पर होते हैं। उन्हें परिवार से बाहर के लोगों से भी पर्याप्त सहायता मिलती है।
ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी होता है। आम तौर पर सताइस से तीस वर्ष के मध्य उनके विवाह का योग बनता है। इसी तरह पुत्रियों की अपेक्षा पुत्र अधिक होने का भी योग बताया गया है।
अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम : मंगल, द्वितीय : शुक्र, तृतीय : बुध और चतुर्थ : चंद्रमा।
अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं
अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं में प्रायः उपरोक्त चारित्रिक विशेषताएं होती हैं। अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है। जातकों की तुलना में उनके नेत्र मीन की भांति छोटे एवं चमकीले होते हैं।
अश्विनी नक्षत्र में जातिकाएं धैर्यवान, शुद्ध हृदय और मीठी वाणी की धनी होती हैं। वे परंपराप्रिय, बड़ों का आदर करने वाली तथा विनम्र भी होती हैं। ऐसी जातिकाओं में काम भावना कुछ प्रबल पायी जाती है। . ऐसी जातिकाएं यदि अच्छी शिक्षा पा जाएं तो वे एक कुशल प्रशासक भी बन सकती हैं। लेकिन वे परिवार के लिए अपनी नौकरी त्यागने में भी नहीं हिचकतीं। परिवार का कल्याण, उसका सुख ही उनकी प्राथमिकता होती है।
विवाहः कहा गया है कि ऐसी जातिकाओं का विवाह तेइस वर्ष के बाद ही करना चाहिए अन्यथा दीर्घ अवधि के लिए पति से विछोह, या तलाक अथवा पति के चिरवियोग के भी फल बताये गये हैं।
संतान: ऐसी जातिकाओं को पुत्रों की अपेक्षा पत्रियां अधिक होती हैं। वे अपनी संतान का पर्याप्त श्रेष्ठ रीति से पालन-पोषण करती हैं। • एक फल यह कहा गया है कि यदि अश्विनी के चतुर्थ चरण में स्थित शुक्र पर चंद्रमा की दृष्टि पड़े अर्थात् चंद्रमा तुला राशि में हो तो संतानें तो अधिक होती हैं, पर बच कम पाती हैं।
स्वास्थ्यः ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्राय: ठीक ही रहता है। जो भी ज्योतिष-कोमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 52
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