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________________ व्याधियां होती हैं-वे अनावश्यक चिंता एवं मानसिक अशांति के कारण। ऐसी स्थिति निरंतर बनी रहने पर मस्तिष्क विकार की भी आशंका प्रबल रहती है। ऐसी जातिकाओं को रसोईघर में भोजन बनाते वक्त आग से कुछ ज्यादा सावधान रहने की चेतावनी भी दी जाती है। वे शीघ्र ही दुर्घटनाग्रस्त भी हो सकती हैं। अश्विनी नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति के फल ____ अश्विनी नक्षत्र में स्थित होकर ग्रह कैसा फल देते हैं, जातक/जातिका के जीवन पर कैसा प्रभाव डालते हैं, यहाँ प्रस्तुत है, इसका विवरण। सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी: प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरण : शुक्र, तृतीय चरणः बुध एवं चतुर्थ चरण: चंद्र। अन्य नक्षत्रों के चरणों का स्वामित्व भी इस प्रकार विभिन्न ग्रहों को दिया गया है। - इसका बड़ा महत्त्व है, क्योंकि हम देखते हैं कि कभी-कभी कोई ग्रह किसी नक्षत्र विशेष के भिन्न-भिन्न चरणों में भिन्न-भिन्न फल, यहाँ तक कि विरोधाभासी फल देता है। इसका कारण चरण-विशेष के स्वामी ग्रह से उस ग्रह विशेष की मित्रता, शत्रुता या सम संबंध हो सकते हैं। आगे भी जब पाठक अन्य नक्षत्रों के चरणों में स्थित विभिन्न ग्रहों के फलों को पढ़ें तो उस चरण के स्वामी ग्रह को भी समझने की चेष्टा करें। इससे फलों का आधार बहुत कुछ समझा जा सकता है। अश्विनी नक्षत्र में सूर्य ___अश्विनी नक्षत्र मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है। मेष का स्वामी मंगल माना गया है तथा मेष को सूर्य की उच्च राशि का भी दर्जा दिया गया है। अश्विनी के चारों चरणों में सूर्य, कैसे फल देता है, इसे देखें। प्रथम चरण: अश्विनी के प्रथम चरण में जन्मे जातक हष्ट-पुष्ट, आत्म-विश्वास से भरपूर तथा तर्क-शक्ति में प्रवीण होते हैं। पारिवारिक जीवन में संतान से सुख भरपूर मिलता है। वे दीर्घायु, धनी-मानी भी होते हैं। मंगल एक तप्त ग्रह है। सूर्य भी तप्त है। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से यहाँ सूर्य की स्थिति पित्त एवं रक्त-विकार की संभावना प्रबल बनाती है। ग्रह ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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