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________________ संकेत करते हैं और यदि हम इन संकेतों को समझकर सावधान रहें तो कोई कारण नहीं कि हम उनके दुष्प्रभाव को कम न कर सकें। द्वितीय चरण: इस चरण में स्थित सूर्य उतने अच्छे फल नहीं देता, जितना कि प्रथम अथवा चतुर्थ चरण में। अश्विनी के द्वितीय चरण में सूर्य की स्थिति आयु की दृष्टि से अशुभ मानी गयी है । यदि सूर्य के साथ चंद्र की युति हो जाए तो अशुभ फलों में वृद्धि होती है। हाँ, सूर्य पर मंगल की दृष्टि या उससे युति शुभ परिणाम देती है । तृतीय चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति जातक को वैभव प्रदान करती है। लेकिन अकेला धन या वैभव ही पर्याप्त सुख प्रदान नहीं करता । इस चरण में सूर्य की स्थिति के दो फल बतलाये गये हैं। एक तो जातक की बुद्धि कुटिल हो सकती है। दूसरे, उसका स्वभाव उग्र और कभी-कभी हिंसक भी हो सकता है। इन सब बातों का उसके स्वास्थ्य पर भी घातक असर पड़ता है। पित्त विकार, रक्त विकार उसे ग्रस्त कर सकते हैं। चतुर्थ चरण: इस चरण में सूर्य यदि 10 अंश से 11 अंश के बीच होता है तो फल बहुत अच्छे बताये गये हैं । जैसे जातक कुशाग्र बुद्धि, प्रसिद्ध तथा नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है। यदि वह सेना या सुरक्षा सेवाओं में हो तो उच्च पद प्राप्त करता है और यदि सामाजिक क्षेत्र में है तो वहाँ नेतृत्व की जिम्मेदारी बखूबी निभाता है। अपनी समस्त जिम्मेदारियां वह अत्यंत निष्ठा से पूरी करता है। इसका एक कारण यह भी है कि सूर्य की ऐसी स्थिति वाले जातक निर्मल हृदय, धार्मिक वृत्ति के होते हैं। जैसे-जैसे उनकी जीवन यात्रा आगे बढ़ती है, उन पर सौभाग्य की वर्षा होने लगती है । इस तरह हम देखते हैं कि अश्विनी के प्रथम चरण अर्थात् 00.00 अंश से 3.20 अंश एवं चतुर्थ चरण 10.00 अंश से 13.20 अंश, इसमें भी 10.00 एवं 11.00 अंशों में सूर्य की स्थिति शुभ फल देती है। अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल ग्रहों की शुभ-अशुभ दृष्टि भी ग्रह - विशेष के फलों को प्रभावित करती है। प्रस्तुत हैं, अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फलःचंद्र के फल की पहले चर्चा की गयी है । आयु के लिए यह अशुभ हो सकती है। मंगल की दृष्टि के कारण जातक क्रूर हृदय हो सकता है। कारण सूर्य भी तप्त ग्रह है और मंगल भी जातक के नेत्र भी लालिमा लिये हो सकते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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