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में निष्णात होता है। 12.00 से 13.20 अंशों के मध्य जन्मे जातक चिकित्सा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। यदि वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहें तो वे वहाँ भी सफल होते हैं।
अश्विनी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि जातक को उदार एवं परोपकारी बनाती है। उसे सत्ता पक्ष से भी अधिकार एवं अन्य बातों का लाभ मिलता है। ___मंगल की दृष्टि जातक के जीवन को परावलम्बी बना सकती है। उसे दंत एवं कर्ण पीड़ा भी हो सकती है।
बुध की दृष्टि हो तो जातक का जीवन सुखी, धन-धान्य एवं यश से परिपूर्ण रहता है। . गुरु की दृष्टि हो तो जातक अत्यंत विद्वान ही नहीं, श्रेष्ठ गुरु भी सिद्ध होता है। समाज में उसकी काफी ऊँची प्रतिष्ठा होती है तथा उसके अधीनस्थ कई लोग काम करते हैं। ___शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी एवं अनेक स्त्रियों की संगति भी पाता है। ..
शनि की दृष्टि जातक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। वह अनुदार भी होता है, साथ ही अच्छी संतान के सुख से वंचित भी।
अश्विनी के विभिन्न चरणों में मंगल
अश्विनी में मंगल की स्थिति का दूसरा अर्थ है, मंगल का स्वराशिस्थ भी होना। कारण अश्विनी मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है और मेष राशि का स्वामी मंगल माना गया है। अतः अश्विनी में स्थित मंगल सामान्यतः शुभ फल ही देता है तथापि अश्विनी के द्वितीय चरण में मंगल की स्थिति के अशुभ फल दर्शाये गये हैं। । प्रथम चरणः यदि मंगल अश्विनी के प्रथम चरण में हो तो जातक/जातिका गणित, इंजीनियरिंग एवं सैन्य सेवाओं में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उत्तम स्वास्थ्य से युक्त ऐसे लोग समाज में भी उच्च प्रतिष्ठा पाते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में तो वे प्रतिष्ठित होते ही हैं।
द्वितीय चरण: यहाँ मंगल की स्थिति के अशुभ फल वर्णित हैं, यथा दरिद्रतापूर्ण जीवन, निःसंतान होने की पीड़ा आदि। ऐसे लोगों में प्रतिहिंसा की भी भावना होती है। .
तृतीय चरणः वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन के सुख की दृष्टि से इस ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 56
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