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________________ मृगशिर राशि पथ में 53.20 अंशों से 66.40 अंशों के मध्य मृगशिरा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। अरबी में उसे 'अल अकाई' कहते हैं। इसके अन्य पदाधिकारी नाम हैं- सौम्य, चंद्र, अग्रहायणी, उडुप । चंद्रमा को इस नक्षत्र का देवता तथा मंगल को इसका अधिपति ग्रह माना जाता है। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं जिन्हें हिरण अर्थात् मृग के सिर की तरह कल्पित किया गया है। इसके साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई । ब्रह्मा ने जब मृग का रूप धर कर अपनी बेटी रोहिणी का पीछा किया तो इस अपराध के कारण उनका सिर काट दिया गया। यही कटा सिर मृग शिर नक्षत्र के रूप में है । लोकमान्य तिलक के अनुसार इस नक्षत्र का नाम अग्रहायणी इसलिए पड़ा कि वैदिक युग में वसंत सपांत बिंदु इस नक्षत्र के मध्य पड़ता था, अतः इसका नाम अग्रहायणी पड़ा । इस नक्षत्र के प्रथमं दो चरण वृष राशि के अंतर्गत आते हैं और अंतिम दो चरण मिथुन राशि में । वृष का स्वामी शुक्र है, मिथुन का बुध । गणः देव, योनिः सर्प एवं नाड़ी: मध्य है । चरणाक्षर हैं- बे, बो, क, की । मृगशिर नक्षत्र में जन्मे जातक बलिष्ठ, सुंदर, लंबे कंद के होते हैं । ऐसे जातक सरल प्रवृत्ति के, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय तथा राय देने में हमेशा ईमानदारी बरतते हैं। वे सुशिक्षित तथा विभिन्न कार्यों को करने में सक्षम ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 88 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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