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होते हैं। तथापि उनका एक दोष यह है कि वे किसी पर विश्वास नहीं करते। सदैव संशय से घिर रहते हैं। और कहा गया है-'संशयात्मा विनश्यति।' फल यह होता है कि अक्सर लोग भी ऐन वक्त पर उन्हें धोखा दे जाते हैं। संशय की प्रवृत्ति ऐसे जातकों को भीतर से भीरु भी बना देती है।
ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सामान्यतः सुखी बीतता है, किंतु पत्नी के सदैव रोगिणी रहने के फल भी कहे गये हैं। जातक का वैवाहिक जीवन यों तो सुखी बीतता है तथापि उसके संशयपूर्ण तथा हठी स्वभाव के कारण संबंध कुछ समय के लिए तनावपूर्ण भी हो सकते हैं।
ऐसे जातकों का बचपन में रुग्ण होना बताया गया है। निरंतर कब्ज के कारण उन्हें उदर रोग भी हो सकते हैं।
मृगशिर नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं छरहरी, तीखे नयन-नक्श वाली तथा अत्यंत बुद्धिमती होती हैं। उनमें सदैव सर्तकता, हाजिर जवाबी भी रहती है तथापि उनकी वाणी का व्यंग्य लोगों को तिलमिला देता है।
ऐसी जातिकाओं की शिक्षा भी अच्छी होती है तथा वे मैकेनिकल या इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रानिक्स आदि क्षेत्रों में भी सफल हो सकती हैं।
ऐसी जातिकाओं में समाज सेवा की भावना भी होती है।
ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। भले विवाह पूर्व उनके प्रणय संबंध रहे हो, विवाह के बाद ये पति के प्रति एकनिष्ठ रहती हैं।
ऐसी जातिकाओं को अपने मासिक धर्म में आने वाले दोषों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अन्यथा वे तरह-तरह के रोगों का शिकार भी हो सकती हैं।
मृगशिर नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरण: शुक्र, चतुर्थ चरणः मंगल।
मृगशिर नक्षत्र में सूर्य के फल
प्रथम चरणः यहाँ सूर्य हो तो जातक भाग्यशाली, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, बुद्धिमान एवं धनी होता है। उसे मुख, नेत्र आदि के रोगों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
द्वितीय चरणः यहाँ सूर्य हो तो भी जातक का व्यक्तित्व शानदार होता है। उसकी गायन-वादन में भी रुचि होती है।
तृतीय चरणः यहाँ सूर्य हो तो जातक आर्थिक जगत में उच्च पद पाता है। वह जन-संपर्क में भी कुशल, सफल होता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 89
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