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सुख मिलता है। जीवन में उसे सारी सुख-सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं।
शनि की दृष्टि के विभिन्न फल होते हैं। एक ओर वह तस्करी जैसे कार्यों में जुट सकता है तो दूसरी ओर उसमें अपने नहीं, दूसरों के धन को बांटने की प्रवृत्ति होती है। ऐसा जातक अपना धन छिपाकर रखता है।
अश्विनी स्थित शनि के फल
अश्विनी स्थित शनि के मिश्रित फल मिलते हैं। कुछ अच्छे. कुछ बुरे। जैसे प्रथम चरण में जातक का बचपन अभाव ग्रंस्त रहता है। लेकिन बाद में जीवन सुखी हो जाता।
प्रथम चरणः यद्यपि जातक दीर्घायु होता है तथापि जीवन प्रारंभ में दुखी रहता है। मध्य आयु के बाद जीवन में सुख और स्थिरता आती है। ऐसे जातकों की इतिहास में गहरी रुचि होती है। उनमें लेखन प्रतिभा मिलती है।
द्वितीय चरण: जातक वनों से संबंधित व्यावसायिक मामलों में दक्ष होता है लेकिन तुनुकमिजाजी और समय देखकर बात न करने की आदत उसे आर्थिक संकट में डाल सकती है। जातक का वर्ण श्यामल, शरीर कृशकाय होता है।
तृतीय चरण: जातक यात्रा-प्रिय होता है। व्यवसाय में वह चतुर ही नहीं होता वरन् अपने अधीनस्थ लोगों की सुख-सुविधाओं और हितों का भी पर्याप्त ध्यान रखता है।
चतुर्थ चरण: जातक में धार्मिक वृत्ति होती है, पारिवारिक जीवन भी प्राय: सुखी ही रहता है तथापि जुआरी वृत्ति के फलस्वरूप व्यवधान आ सकते हैं।
अश्विनी स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि उसे पशु-पालन के व्यवसाय में ले जा सकती है। जातक सद्कार्यों में प्रवृत्त रहता है।
यह कहा गया है कि यदि किसी जातिका की कुंडली में अश्विनी के चतुर्थ चरण स्थित शनि पर सूर्य की दृष्टि है तो वह विवाह प्रतिबंधक योग बनाती है। यदि विवाह हो भी गया तो दुर्भाग्यपूर्ण ही सिद्ध होता है।
लेकिन यह फल पढ़कर एकाएक किसी निर्णय पर पहुँचना बुद्धिमानी नहीं होगी। यदि जातिका की कुंडली में अन्य ग्रहों के योग अच्छे हैं तो यह फल धूमिल भी सिद्ध हो सकता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 61
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