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________________ चंद्रमा की दृष्टि के फल शुभ नहीं कहे गये हैं। जातक अभाव-ग्रस्त, क्रूर-मना, कुसंगति में रहने वाला कहा गया है। ___मंगल की दृष्टि जातक को घोर स्वार्थी बनाती है। साथ ही दूसरों से अपनी विरुदावलि स्वयं गाने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। बुध की दृष्टि पारिवारिक सुख में न्यूनता लाती है। जातक अवैध मार्गों से संपत्ति अर्जित करने की ओर प्रवृत्त हो सकता है। ___ गुरु की दृष्टि के फल शुभ होते हैं। जातक शासन में उच्च पद पाने की योग्यता रखता है। उसे धन-संपत्ति, अच्छी पत्नी, अच्छे बच्चों का भी सुख मिलता है। . शुक्र की दृष्टि जातक में कामभावना तीव्र करती है। उसे यात्राएं करने में भी अतीव आनंद आता है। अश्विनी स्थित राह के फल अश्विनी के तृतीय चरण अर्थात् 6.40 से 10.00 अंशों के मध्य न होने पर अन्य शेष चरणों में राहु प्रायः अच्छे फल ही प्रदान करता है। । प्रथम चरण में राहु स्थित हो तो जातक हष्ट-पुष्ट, बुद्धिमान तथा पितृभक्त होता है। अपने वरिष्ठों से उसे समय-समय पर सहायता भी मिलती रहती है। द्वितीय चरण में राहु हो तो जातक विदेशों में भ्रमण का इच्छुक होता है। यों वह धार्मिक परंपराओं का पालन करने वाला भी होता है लेकिन अपनी अस्थिर मनोवृत्ति के कारण भटकाव की स्थिति में रहता है। __ तृतीय चरण में स्थित राहु घोर दरिद्रता का सूचक माना गया है। वैवाहिक जीवन भी कलहमय होता है। लेकिन अपनी दार्शनिक प्रवृत्ति के कारण वह इन सबसे असंपृक्त रहता है। चतुर्थ चरण में स्थित राहु के फलस्वरूप जातक दुबली-पतली काया वाला होते हुए भी साहसी, निर्भीक होता है। यहाँ राहु हो तो जातक को अपच और वायु प्रकोप की शिकायत हो सकती है। अश्विनी के विभिन्न चरणों में केतु अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु ही माना गया है। यहाँ स्वक्षेत्री होते हुए भी केतु मिले-जुले फल देता है। प्रथम चरणः अन्य चरणों की अपेक्षा इस चरण में केतु से शुभ फल मिलते हैं। जैसे जातक अच्छी शिक्षा पाता है। वह लोकप्रिय एवं समृद्ध भी ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 62 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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