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अश्विनी:
वायु प्रकोप, अनिद्रा, मतिभ्रम, बुखार ।
उपचारः चिरचिटे की जड़ को चौहरा कर भुजदंड में बांधने से लाभ । मंत्र: ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम् वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम् । ॐ अश्विनीकुमाराभ्यो नमः
जप संख्या: 5,000 बार ।
भरणीः
आलस्य, तीव्र ज्वर, शरीर - प्रकंपन |
उपचारः आक के पेड़ की जड़ को तिहरा कर पहनने से लाभ । मंत्र: ॐ यमाय त्वा मरखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपते देवस्त्वा सविता मध्वा
नक्तु ।
पृथिव्या स्पशुस्पाहि अर्चिरसि शोचरसि तपोसि। ॐ यमाय नमः । जप संख्या: 10,000 बार ।
कृत्तिकाः
नेत्र पीड़ा, अनिद्रा, शरीर में जलन, घुटने में दर्द ।
उपचारः कपाल की जड़ तिहरा कर भुजदंड में बांधे ।
मंत्र: ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपां रेतांसि जिन्वति । ॐ अग्नये नमः |
जप संख्या: 10,000 बार ।
रोहिणीः
ज्वर, सिरदर्द, घबराहट ।
उपचार: चिरचिटे की जड़ को तिहरा बनाकर बांह में पहनें । मंत्र: ॐ ब्रह्मज्ज्ञानं प्रथम पुरस्ता द्विसीमत: सुरुचो वेन आवः । सुबुधन्या उपमा अस्यविष्ठा संतश्च योनिमतश्च विवः ॐ ब्रह्मणे नमः
जप संख्या: 5,000 बार ।
मृगशिराः
नजला, जुकाम, खांसी, ताप, मलेरिया, जलभय ।
उपचारः जयंती घास की जड़ को चौहरा कर पहनें।
मंत्र: ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाव महते
जानराज्यायेन्द्रास्येन्द्रियाथ ।
इम मनुष्य पुत्रमभ्रष्यै पुत्र मस्य विष एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्माणामां राजा । ॐ चंद्रमसे नमः
जप संख्या: 10,000 बार |
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र-विचार 43
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