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मानस नक्षत्र कहलाता है। 19वां नक्षत्र आधान नक्षत्र कहलाता है ।
उपरोक्त छह नक्षत्र अशुभ माने गये हैं तथा उनमें शुभ कार्य नहीं करना चाहिए । यदि ये नक्षत्र 'पीडित' हैं तो विशेष अशुभ फल मिलते हैं। जैसे आद्य नक्षत्र पीड़ित हो तो रोगादि के अतिरिक्त धनक्षय होता है। कर्म नक्षत्र आदि अशुभ स्थिति में है तो संकल्प पूरे नहीं होते, सार रूप में कर्मों का क्षय या हानि होती है। सोलहवें नक्षत्र - साधातिक नक्षत्र के पीड़ित होने से संबंधियों के व्यवहार से हानि उठानी पड़ती है। अठारहवें नक्षत्र समुदाय नक्षत्र के पीड़ित होने से सुख में न्यूनता आती है । तेइसवें नक्षत्र वैनाशिक नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्याधि, मृत्यु आदि के योग बनते हैं तथा पच्चीसवें नक्षत्र मानस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति मानसिक क्लेश, चिंताओं से मुक्त रहता है।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो यह नक्षत्र अर्थात् अश्विनी नक्षत्र उसके लिए आद्य नक्षत्र होगा ।
अश्विनी से दसवां नक्षत्र मघा कर्म नक्षत्र, सोलहवां विशाखा नक्षत्र सांघातिक नक्षत्र, अठारहवां ज्येष्ठा समुदाय नक्षत्र, तेइसवां धनिष्ठा वैनाशिक नक्षत्र और पच्चीसवां पूर्वाभाद्रपद मानस नक्षत्र माना गया है।
अन्य नक्षत्रों में जन्म होने पर इसी क्रम से उपरोक्त नक्षत्रों का पता लगाया जा सकता है। नक्षत्र पंचक
ज्योतिष शास्त्र में पांच नक्षत्रों को पंचक नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है। इन नक्षत्रों में कुछ कार्यों को करने का निषेध है। जैसे - आवास निर्माण के लिए लकड़ी आदि का क्रय या संग्रह, दक्षिण दिशा की यात्रा, मृतक का दाह, घर छवाना या छत डालना, खाट बनवाना, चूल्हा बनाना, झाडू खरीदना आदि ।
ये पांच नक्षत्र हैं
1. धनिष्ठा, 2. शतभिषा, 3. पूर्वाभाद्रपद, 4. उत्तराभाद्रपद, 5. रेवती । इनमें हानि या लाभ पाँच गुना होता है।
नक्षत्र एवं रोग
नक्षत्र के कारण व्यक्ति रोगादि से भी पीड़ित होता है तथा उसके निवारण के लिए जड़ी - विशेष को शरीर पर धारण करने एवं नक्षत्र के देवता का मंत्र जाप करने से रोग दूर हो जाते हैं, ऐसा विश्वास है ।
पाठकों के लाभार्थ यहाँ सारांश में प्रस्तुत है, विभिन्न नक्षत्रों के पीड़ित होने के कारण हो सकने वाले रोग आदि एवं निवारण के उपाय:
ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार
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