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________________ 1. जन्म, 2. सम्पत, 3. विपत, 4. क्षेम, 5. प्रत्यरि, 6. साधक, 7. वध 8: मित्र, 9. अतिमित्र। (केवल मुहुर्त शास्त्रों में) नाम ही इन ताराओं का अर्थ एवं महत्त्व स्पष्ट कर देते हैं। जन्म नक्षत्र 1 से इष्ट दिवस तक नक्षत्र संख्या गिनकर उसमें नौ का भाग देने पर शेष तुल्य तारा प्राप्त होती है। 3, 5, 7 संज्ञा वाली ताराओं को छोड़कर शेष ताराएं अर्थात् 1, 2, 4, 6, 8, 0 ताराएं शुभ होती हैं। 3, 5, 7 ताराओं में यात्रा, विवाह, आदि प्रतिबंधित माने गये हैं। नक्षत्रों का नेष्ट काल किसी भी व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के संदर्भ में कुछ अन्य नक्षत्रों के चरण विशेष उस व्यक्ति के लिए अशुभ माने गये हैं। जैसे-जन्म नक्षत्र से ग्यारहवें, बारहवें एवं इक्कीसवें नक्षत्र के प्रथम चरण को घातक या अशुभ माना गया है। उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो उसके लिए अश्विनी से ग्यारहवें नक्षत्र में पूर्वा फाल्गुनी एवं बारहवें नक्षत्र में उत्तरा फाल्गुनी तथा इक्कीसवें नक्षत्र में उत्तराषाढ़ा का पहला चरण अशुभ होगा। इसी तरह किसी भी जन्म नक्षत्र से चौथे एवं चौदहवें नक्षत्रों का दूसरा चरण तथा सातवें, सोलहवें एवं चौबीसवें नक्षत्र का तीसरा चरण तथा सत्रहवें नक्षत्र का चौथा चरण अशुभ होगा। 4, 11, 17, 24 सुविधा के लिए सूत्र रूप मेंजन्म नक्षत्र से 11, 12, 21वें नक्षत्र का प्रथम चरण जन्म नक्षत्र से 4, 14वें नक्षत्र का दूसरा चरण जन्म नक्षत्र से 7, 16, 24वें नक्षत्र का तीसरा चरण जन्म नक्षत्र से 17वें चरण का चौथा चरण पाठक चाहें तो किसी भी वांछित वर्ष में इन नक्षत्रों के चरणों का काल लिख लें और इन चरणों के अशुभ समय में सावधान रहें। पंचांगों में प्रत्येक नक्षत्र का काल समय दिया जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का जन्म किसी न किसी नक्षत्र के काल में होता है। व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है, उसे आद्य नक्षत्र (आधान नक्षत्र) या आदि नक्षत्र कहते हैं। ___ आद्य नक्षत्र से दसवें नक्षत्र को कर्म नक्षत्र कहा गया है। (आद्य नक्षत्र भी कर्म नक्षत्र कहलाता है)। इसी तरह इस जन्म नक्षत्र से सोलहवां नक्षत्र सांधातिक नक्षत्र, अठारहवां समुदाय नक्षत्र, तेइसवां वैनाशिक नक्षत्र, पच्चीसवां ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार ।। 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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