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का रूप धर लेते हैं। इन्हें 'रेड जाइंट' कहा जाता है अर्थात् 'लाल राक्षस ।
अंत में जब तारे के तमाम उदजन 'ईंधन' का इस्तेमाल हो चुका होता है तो वह सिकुड़ कर 'व्हाइट ड्वार्फ' अर्थात् 'श्वेत वामन' का रूप धर लेता है और धीरे-धीरे ठंडा होकर धूमिल पड़ने लगता है। यह उसके अवसान' का संकेत माना गया है ।
तारों के जन्म और मरण की इस क्रिया में करोड़ों-करोड़ों वर्ष लगते हैं ।
इसीलिए मनुष्य की पिछली अनेक पीढ़ियों ने उन्हें सदा एक-सा देखा है। उन्हें वे स्थिर प्रतीत होते हैं, 'न क्षरति, न सरति
पर वास्तविकता इसके विपरीत है। करोड़ों वर्षों की अवधि के बाद तारों का भी एक न एक दिन अवसान होता ही है ।
सन् 1054 ईस्वी में एक दिन अचानक आकाश में एक दैदीप्यमान तारा नजर आया। दो वर्षों तक वह आकाश में चमकता रहा, इतना कि उसे दिन में भी देखा जा सकता था। लेकिन धीरे-धीरे वह तिरोहित होता चला गया । अब उसके स्थान पर गैस का केवल एक समूह नजर आता है । मध्यम चमक वाले इस गैस समूह को नाम दिया गया है - 'क्रैब नेबुला' ।
तारों के आकार के बारे में बताइए ?
टिम - टिम करते या झिलमिलाते इन तारों में कुछ तारे तो इतने विशाल हैं कि यदि हमारे सूर्य को उनके मध्य रखा जाए तो हमारी पृथ्वी भी उनमें समा जाएगी।
कुछ तारे सूर्य से भी छोटे हैं।
तारों का वर्गीकरण
धरती से दिखायी देने वाले तारों के प्रकाश के आधार पर उनका वर्गीकरण भी किया गया है। तारों की चमक को 'मेग्नीट्यूड' कहा जाता है पर इस मेग्नीट्यूड से किसी भी तारे की असली चमक का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता ।
तारों के इन प्रकाश के आधार पर उन्हें तरह-तरह के नाम दिये गये हैं ।
तारों के ऐसे अध्ययनों ने खगोल शास्त्रियों को अंतरिक्ष को तो समझने में मदद की ही है, वे उनके प्रकाश से उनके 'हल्के' या भारी होने का भी पता लगा सकते हैं ।
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ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 15
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