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क्या तारे रेडियो तरंगें भी प्रवाहित करते हैं ?
1968 में खगोलशास्त्रियों ने ऐसे तारों का पता लगाया जो नियमित रूप से रेडियो तरंगें प्रवाहित कर रहे थे तथा एक क्षण में या सेकंड में तीस 'बार चमकते थे। कुछ तारों की ऐसी ही रेडियो तरंगों के कारण इस अनुमान ने भी जन्म लिया कि शायद अंतरिक्ष में कहीं कोई और सभ्यता है, जो इस तरह की रेडियो तरंगें प्रवाहित कर रही है।
तारों के संबंध में यह संक्षिप्त विवरण ही है। पर तारों के संबंध में जानना इसलिए जरूरी है कि वे ही 'नक्षत्र' की रचना करते हैं ।
नक्षत्र की परिभाषा हमने पहले पढ़ी कि 'न क्षरति, न सरति । ऐसी बात नहीं है। चूंकि तारों की स्थिति में करोड़ों-करोड़ों वर्षों में परिवर्तन आता है, अतः वे धरती पर रहने वाले नश्वर मनुष्य को, जिसका जीवन इन तारों के जीवन की तुलना में किसी बुदबुदे से भी बेहद गौण होता है, वे स्थिर नजर आते हैं ।
तो फिर क्या तारे ही नक्षत्रों का आधार हुए ?
हाँ, तारे ही नक्षत्रों का आधार हैं। मनुष्य हजारों वर्षो से इन तारों को देखता आया है । सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने आकाश में सतत चमकने वाले इन तारों के समूहों में कुछ आकृतियां आरोपित कर दीं। कालांतर में वे नक्षत्र या 'कांस्टलेशन' कहलाने लगे। प्राचीन काल में इन नक्षत्रों की सहायता से नाविक और यात्री दिशा निर्धारित करते थे । इसीलिए अरब में इन्हें 'मनाजिल' कहा जाने लगा ।
नक्षत्रों का नामकरण कब हुआ और उसका आधार क्या है ?
माना जाता है कि प्राचीन यूनानियों को लगभग 49 कांस्टलेशन या नक्षत्रों का ज्ञान था और उनका नामकरण उन्होंने अपने वीर नायकों और देवताओं के नाम पर किया था। बाद में रोमन खगोलशास्त्रियों ने उन्हें जो नाम दिये, वे आज तक प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कांस्टलेशन 'उर्सा मेजर' या 'ग्रेट बीयर' है, (भारतीय लोग इसे सप्तऋषि तारामंडल कहते थे) जिसके सात मुख्य तारे एक हल के फल की रचना करते हैं। इसे 'प्ला' भी कहा जाता है। इस 'प्ला' के दो तारे प्वाइंटर कहलाते हैं, क्योंकि वे हमेशा ध्रुव तारे की ओर होते हैं। इसे 'पोलारिस' भी कहा जाता है तथा यह हमेशा उत्तरी ध्रुव के पास नजर आता है ।
आज के खगोलशास्त्रियों ने 88 कांस्टलेशन या नक्षत्रों की पहचान की
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 16
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