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उग्र संज्ञक नक्षत्र हैं : पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, एवं मघा । ओर मंगलवार
मिश्र संज्ञक नक्षत्रों में विशाखा, कृत्तिका और बुधवार का समावेश है । क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र हैं: हस्त, अश्विनी, पुष्य एवं अभिजित । और गुरुवार
मृदु संज्ञक नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा का समावेश है। शुक्रवार
तीक्ष्ण एवं दारुण संज्ञक नक्षत्र हैं: मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा । शनिवार
नक्षत्रों की इन संज्ञाओं का क्या उपयोग है ?
नक्षत्रों की इन संज्ञाओं से उनके फल का पता चलता है ।
जैसे कहा गया है कि ध्रुव संज्ञक नक्षत्रों अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र में स्थायित्व रखने की कामना वाले कार्य शुरू करने चाहिए । अर्थात् ऐसे कार्य जिनमें हम स्थायित्व चाहते हैं, जैसे गृह-निर्माण, ग्रह शांति, उद्यान एवं बीजारोपण आदि ।
चर संज्ञक नक्षत्रों का संबंध गति से है। अतः जिन कामों में हम गति चाहते हैं, उन्हें चर संज्ञक नक्षत्रों में शुरू करना चाहिए। चर संज्ञक नक्षत्रों में, हमें पता है, स्वाति, पुनर्वसु श्रवण, धनिष्ठा एवं शतभिषा का समावेश है ।
उग्र संज्ञक नक्षत्रों यथा पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी एवं मघा को मारण, शस्त्र-निर्माण, विष प्रयोग आदि के लिए उपयुक्त कहा गया है।
मिश्र संज्ञक नक्षत्रों जैसे विशाखा, कृत्तिका आदि को यज्ञादि एवं मिश्रित कार्य के लिए श्रेष्ठ बताया गया है।
क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र शास्त्र अध्ययन, आभूषण निर्माण, हस्तशिल्प के कार्य, दुकानदारी शुरू करने के कार्य तथा रतिकर्म के लिए शुभ कहे गये हैं। क्षिप्र एवं लघु संज्ञक नक्षत्र हैं - हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित ।
मृदु संज्ञक नक्षत्र ललित कला, विशेषकर गायन आदि, खेलकूद, उत्सव, वस्त्राभूषण आदि कार्यों के लिए शुभ माने गये हैं। मृदु संज्ञक नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा आदि की गणना होती है ।
मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा आदि की गणना तीक्ष्ण एवं दारुण संज्ञक नक्षत्रों में होती है तथा जैसा कि इनकी संज्ञा में स्पष्ट है, ये नक्षत्र मारण, तांत्रिक प्रयोगों, आक्रमण आदि के लिए उपयुक्त पाये गये हैं ।
मुहुर्त चिंतामणि में नक्षत्रों को ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यङमुख भी
ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 27
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