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टुकड़े परस्पर निकट आये होंगे तो वे टकराये भी होंगे। इस प्रकार वह सामग्री पिंडीभूत हुई होगी और उसका तापमान भी बढ़ गया होगा। वह जलने और चमकने भी लगी होगी। इस प्रकार तारों अथवा सूर्यो की उत्पत्ति हुई होगी।
ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई, इस विषय में धर्मग्रंथों एवं वैज्ञानिक जगत में अनेक सिद्धांतों का अनुमान लगाया गया है। एक सिद्धांत यह है कि ब्रह्मांड अथवा महादांद या शून्य का आरंभ एक आणविक विस्फोट से हुआ, जिसके कारण पदार्थ के छिटकने से अनेक तारों, ग्रहों तथा तारामंडलों का निर्माण हुआ। __ 1046 में जॉर्ज गैमक ने आर.ए. एल्फर के साथ मिलकर सृष्टि के उदय के पूर्व एक उच्च तापीय स्थिति की कल्पना की तथा अनुमान लगाया कि ब्रह्मांड का प्रारंभ दस अरब से बीस अरब वर्ष पूर्व एक विस्फोट के फलस्वरूप हुआ। इस विस्फोट को ही 'बिग बैंग' कहा जाता है। इस विस्फोट के तत्काल बाद ब्रह्मांड सशक्त विकिरणों से भरा था। इन विकिरणों से एक ऐसे क्षेत्र का निर्माण हुआ, जो तीव्रता से फैलता चला गया। इसे आद्य अग्निपिंड भी कहा जाता है। प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक जयंत विष्णु नारलीकर का कहना है कि एक नहीं, अनेक विस्फोट हुए। उन्हीं के कारण ब्रह्मांडों की रचना हुई।
हमारे भारतीय ज्ञान की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र है। अतः ब्रह्मांड के वैज्ञानिक विकास को तात्विक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ते हैं। उनके अनुसार बिंदु विस्फोट का प्रयोजन ब्रह्मांड के साथ-साथ तीन दैवी शक्तियों को जन्म देना भी था। बिंदु के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा जिन तीन दैवी शक्तियों, त्रिमूर्ति में विभाजित होती है, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश माना गया है। __वैज्ञानिकों की मान्यता है कि जिन तत्वों से ग्रहों एवं तारों की रचना हुई है, उन्हीं तत्वों से पृथ्वी और उसमें उत्पन्न, विकसित जीवों का भी निर्माण हुआ है। अब यह भी सिद्ध हो चुका है कि मंगल, शुक्र की रचना का पृथ्वी से अद्भुत साम्य है। सृष्टि के निर्माण के इस विवरण से यह माना जा सकता है कि भारतीय ज्योतिष में ग्रहों के मनुष्य जीवन पर पड़ने का जो सिद्धांत है, उसका एक वैज्ञानिक आधार है।
सूर्य और चंद्र का प्राणी-जगत एवं वनस्पति-जगत पर पड़ने वाले प्रभाव से सभी परिचित हैं। सूर्य से ही धरती पर जीवन है, पर वैज्ञानिकों ने शोध कर पता लगाया है कि यदि चंद्रमा या गुरु ग्रह न होता तो भी सूर्य के होने के बावजूद धरती पर आज जैसा जीवन नहीं होता। यदि चंद्रमा न
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 5
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