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यह संबंध काल्पनिक है अथवा उसका कोई वैज्ञानिक आधार है ?
इस तरह की जिज्ञासाएं होना स्वभाविक है । और, इन जिज्ञासाओं का सम्यक् समाधान ही हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायक हो सकता है। हम सभी जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य-परिवार अर्थात् सौर मंडल का अंग है। इस सौर मंडल के केंद्र में सूर्य है और पृथ्वी सहित अन्य हमारे ज्ञात ग्रह अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि अपनी-अपनी कक्षा में इसी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है, जो उसकी परिक्रमा करता हुआ, उसके साथ-साथ ही सूर्य की परिक्रमा कर रहा है।
चंद्रमा जैसे उपग्रह अन्य ग्रहों के भी हैं, जैसे गुरु एवं शनि की परिक्रमा करने वाले अनेक उपग्रह हैं।
भारतीय ज्योतिष में राहु-केतु सहित नव ग्रहों की चर्चा है । अर्थात् सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु (राहु-केतु पार्थिव ग्रह नहीं, काल्पनिक है, इसीलिए उन्हें छाया ग्रह कहा जाता है ।) इधर पाश्चात्य खगोलविदों ने तीन और ग्रहों की खोज की है, ये हैं- नेपच्यून, यूरेनस और प्लूटो ।
अब यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरिक्ष में हमारे सौर मंडल की भांति अनेक सौर मंडल हैं, असंख्य सूर्य हैं। इसी तरह हमारा सौर मंडल जिस आकाश गंगा या 'गैलेक्सी' में स्थित है, वैसी आकाश गंगाएं भी असंख्य हैं। इन्हें नीहारिकाएं नाम भी दिया गया है। नीहार कहते हैं, रूई के फाये के समान गिरते हुए बर्फ को । आकाश में जो इस प्रकार के बर्फ या धुएं या हल्के बादल के समान फैले हुए धब्बे दिखायी पड़ते हैं, उन्हें नीहारिका कहते हैं। इनकी भी संख्या लाखों में है। ज्योतिषियों का अनुमान है कि कम से कम एक अरब नीहारिकाएं तो हैं ही और प्रत्येक नीहारिका में लगभग इतने ही तारे अर्थात् सूर्य हैं।
हमारी आकाश गंगा एक खासी बड़ी नीहारिका है। इसका व्यास लगभग 30,000 पासैक है और एक पासैक 191 खरब मील के बराबर होता है । हमारे सबसे निकट जो नीहारिका है, उसे एंड्रोमीडा नाम दिया गया है। T एंडोमीडा की दूरी बीस लाख प्रकाश वर्ष से अधिक है। जानकारी के लिए बता दें कि एक प्रकाश वर्ष 58,69,71,36,00,000 मील का होता है। दूसरे शब्दों में प्रकाश एक वर्ष में इतनी दूरी तय करता है ।
अनुमान किया जाता है कि आरंभ में गैस और रजकण का फैलाव था । लेकिन यह सर्वत्र समान नहीं, कहीं अधिक कहीं ज्यादा था । आकर्षण के नियम के अनुसार, यह गैस घनीभूत होने लगी होगी ओर ज्यों-ज्यों घनीभूत ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 4
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