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________________ उदाहरण के लिए किसी का जन्म कालिक भभोग या पूर्ण समय 60. घड़ी 40 पल है तो उसके नक्षत्र का चरण मान इस प्रकार निकाला जा सकता है: 60.40 4 तथा = 15.10 इस तरह प्रथम चरण = 15.10 तक दूसरा चरण 30.20 तक तीसरा चरण = 45.30 तक चौथा चरण = 60.40 तक होगा । - नक्षत्र के चरण ज्ञान का क्या महत्त्व है ? इसके लिए हमें महादशा के सिद्धांत को समझना पड़ेगा। इसकी चर्चा विस्तृत रूप से ही की जा सकती है। फिर भी सुविधा के लिए हम आवश्यक जानकारी सार रूप में ही दे रहे हैं। ज्योतिष शास्त्र में चंद्र राशि, जिसे आम तौर पर जन्म राशि भी कहते हैं, का अर्थ है, किसी भी जातक के जन्म के समय चंद्रमा किस नक्षत्र में स्थित था । (यह नक्षत्र जिस राशि के अंतर्गत आता है, उस राशि को ही उस व्यक्ति की चंद्र राशि या जन्म राशि मान लिया जाता है ।) हमने यह देखा कि प्रत्येक नक्षत्र का एक ग्रह-विशेष स्वामी होता है । जैसा अश्विनी नक्षत्र का केतु, भरणी का शुक्र । दशाएं भी कई प्रकार की हैं। उत्तर भारत में विंशोत्तरी दशा का प्रचलन हैं । विंशोत्तरी दशा में जातक की आयु 120 वर्ष मान कर उसका विभिन्न ग्रहों की महादशाओं में विभाजन किया जाता है। ग्रहों की इन दशाओं की अवधि समान नहीं है । निम्नलिखित तालिका से पाठक यह भी जान जाएंगे कि किस नक्षत्र में जन्म लेने पर किस ग्रह विशेष की दशा में जन्म माना जाएगा । स्वामी ग्रह नक्षत्र कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा रोहिणी, हस्त, श्रवण मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा पुनर्वसु विशाखा, पूर्वाभाद्रपद सूर्य चंद्र मंगल दशा काल 6 वर्ष 10 वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only 7 वर्ष राहु 18 वर्ष गुरु 16 वर्ष ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार ॥ 35 www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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