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इसी तरह यदि रोहिणी, हस्त या श्रवण नक्षत्र में जन्म होगा तो चंद्र की 20 वर्ष की महादशा लगेगी।
इसी प्रकार मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म होने पर मंगल की 6 वर्ष की।
आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर बुध की 17 वर्ष की।
पुनर्वसु, विशाखा या पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म होने पर गुरु की 16 वर्ष की।
भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढा नक्षत्र में जन्म होने पर शुक्र की 20 वर्ष की। ____ पुष्य, अनुराधा या उत्तराभाद्र नक्षत्र में जन्म होने पर शनि की 19 वर्ष की।
आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा नक्षत्र में जन्म होने पर राहु की 18 वर्ष की, तथा .
अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र में जन्म होने पर केतु की 7 वर्ष की दशा . का प्रारंभ माना जाएगा।
विंशोत्तरी महादशा में ग्रहों की महादशा का क्रम इस प्रकार रखा गया है-कारण? इसका आधार नक्षत्र है।
सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु एवं शुक्र।
दूसरे शब्दों में यदि सूर्य की दशा में जातक का जन्म हुआ तो आने वाले जीवन में ग्रहों की महादशाएं उपरोक्त क्रम में आएंगी।
- अब यदि किसी जातक का जन्म गुरु की महादशा में होता है तो उपरोक्त क्रम के अनुसार गुरु के बाद शनि की, फिर बुध केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु की दशाएं आएंगी। यही सिद्धांत अन्य ग्रहों की जन्म समय की महादशा के बाद लागू होगा।
इस तरह हम देखते हैं कि महादशा के निर्धारण में नक्षत्रों की एक विशिष्ट भूमिका होती है।
हम नक्षत्र का चरण ज्ञान कैसे जान सकते हैं ?
नक्षत्र के चरण ज्ञान की विधि इस प्रकार है :
किसी भी नक्षत्र के कुल समय अर्थात् भभोग मान को चार से विभाजित करने पर उस एक चरण का समय पर भोग जाना जा सकता है। चार से भाग इसलिए कि प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण माने गये हैं, या उसके अंशों को चार हिस्सों में बांटा गया है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 34
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