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इन सभी दशाओं में नक्षत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहाँ प्रस्तुत है, विभिन्न दशाओं का परिचय ।
किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्वामी ग्रह की दशा का उसके जीवन में प्रारंभ मान लिया जाता है।
जैसा कि पहले कहा गया है, नक्षत्र 27 होते हैं। इन सत्ताइस ग्रहों का स्वामित्व तो ग्रहों को दिया गया है। यथा-यहाँ केवल विशोंतरी में हैं ये स्वामी।
सूर्य के स्वामित्व के नक्षत्र हैं : कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी एवं पूर्वाषाढ़ा।
चंद्रमा का जिन नक्षत्रों पर आधिपत्य माना गया है, वे हैं-रोहिणी, हस्त एवं श्रवण।
मंगल के नक्षत्र हैं-मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा। बुध के नक्षत्र हैं-आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती। गुरु के नक्षत्र हैं-पुनर्वसु, विशाखा तथा पूर्वाभाद्रपद । शुक्र के नक्षत्र हैं-भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।
शनि को जिन नक्षत्रों का स्वामित्व प्रदान किया गया है, वे हैं-पुष्य, अनुराधा एवं उत्तरा भाद्रपद ।
राहु के नक्षत्र हैं-आर्द्रा, स्वाति तथा शतभिषा।
केतु के नक्षत्रों में अश्विनी, मघा एवं मूल की गणना होती है। . विंशोत्तरी दशा पद्धति में जातक की आयु को 120 वर्ष की मान कर विभिन्न ग्रहों का दशाओं में इन वर्षों का काल-विभाजन किया गया है।
जैसेसूर्य की महादशा 6 वर्ष चंद्र की महादशा 10 वर्ष मंगल की महादशा 7 वर्ष राहु की महादशा 18 वर्ष गुरु की महादशा 16 वर्ष शनि की महादशा 19 वर्ष बुध की महादशा 17 वर्ष केतु की महादशा 7 वर्ष शुक्र की महादशा 20 वर्ष
इस तरह यदि किसी जातक का जन्म कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा में होगा तो जन्म के समय उसे सूर्य की 6 वर्ष की दशा का प्रारंभ माना जाएगा।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 33
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