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इसी प्रकार वर-कन्या में से यदि किसी का गण मनुष्य हो और दूसरे का राक्षस तो इसे घोर अशुभ माना जाता है। किसी एक की मृत्यु का भी फलादेश कहा गया है। एक का देव तथा दूसरे का राक्षस होने पर दोनों में परस्पर वैर भाव बना रहता है। ___ मेलापक में नाड़ी कूट को सर्वाधिक गुण दिये गये हैं। विभिन्न नक्षत्रों का आदि, मध्य, अंत नाड़ी में विभाजन किया गया है। यह आयुर्वेद की प्रकृति नाड़ी वात, पित्त, कफ से मिलती है।
एक ओर जहाँ वर-कन्या के गणों का एक होना शुभ माना गया है, वहीं दोनों की नाड़ियों के एक होने पर विवाह की वर्जना की गयी है।
यहाँ प्रस्तुत है, नक्षत्रों का आदि, मध्य, अंत नाड़ी में विभाजन:.. आदि नाड़ी : अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उ.फा., हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद __ मध्य नाड़ी : भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पू.फा: चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद
अंत नाड़ी : कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, रेवती
सर्वतोभद्र चक्र क्या है ?
“फल दीपिका' के अनुसार, यह चक्र तीनों लोकों को प्रकाशमान करने वाला है। सर्वतोभद्र चक्र का उपयोग गोचर फल कहने के लिए किया जाता है। इस सर्वतोभद्र चक्र का निर्माण इस प्रकार किया जाता है
सर्वप्रथम दस खड़ी एवं दस रेखाएं बना कर 81 वर्गों वाला एक चक्र तैयार किया जाता है। इसमें शीर्षस्थ अर्थात् ऊपर वाली दिशा को उत्तर, उसके बाद दायीं दिशा को पूर्व, बायीं दिशा को पश्चिम तथा ठीक सामने वाली दिशा को दक्षिण दिशा माना जाता है।
। इसके उपरांत उत्तर पूर्व कोण में 'अ', दक्षिण पूर्व में 'आ' दक्षिण पश्चिम में इ एवं पश्चिमोत्तर कोण में 'ई' अक्षर लिखे जाते हैं।
ग्रहों की महादशा एवं नक्षत्र
भारतीय ज्योतिष में अनेक प्रकार की दशाओं के उल्लेख मिलते हैं। किसी भी जातक के जीवन में कब कौन-सा ग्रह प्रमुख प्रभाव डालते हुए शुभ या अशुभ फल देगा, यह उस व्यक्ति के जीवन में आने वाली ग्रहों की महादशा से जानने का प्रयत्न किया जाता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 32
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