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पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती मघा, मूल, अश्विनी
पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, भरणी
शनि
बुध
केतु
शुक्र
19 वर्ष
17 वर्ष
7 वर्ष
20 वर्ष
प्रश्न किया जा सकता है कि क्या किसी नक्षत्र विशेष में जन्म लेने पर जातक को उसके स्वामी ग्रह की पूरी अवधि की दशा लगती है या उसका कुछ भाग ।
क्योंकि कुंडलियों में अक्सर 'भुक्त' एवं भोग्य काल का उल्लेख होता है । तो 'भुक्त' एवं 'भोग्य' से क्या तात्पर्य है ?
यह कोई पेचीदा विषय नहीं है। 'भुक्त' का सामान्य अर्थ है, भोगा हुआ। और भोग्य का अर्थ है - जिसे भोगा जाना है I
नक्षत्रों का कारकत्व
भारतीय ज्योतिष में जिस तरह ग्रहों को कुछ बातों, कुछ वस्तुओं का कारक माना गया है, उसी प्रकार नक्षत्रों का भी कारकत्व निर्धारित किया गया है । कारक का सामान्य अर्थ है
यहाँ हम विभिन्न नक्षत्रों के कारकत्व का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं
अश्विनी (केतु) : वैद्य, सेवक, वैश्य, स्वरूपवान पुरुष, अश्व, अश्वारोही ।
क्रूर
भरणी (शुक्र) : आसक्ति युक्त, गुण हीन व्यक्ति, मांस भक्षी,
कर्मी ।
कृत्तिका (सूर्य) : द्विज, पुरोहित, ज्योतिषी, कुंभकार (कुम्हार) नाई, श्वेत पुष्प ।
रोहिणी (चंद्र) : राजा, धन-संपन्न व्यक्ति, योगी, कृषक, दुकानदार,
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सुव्रती ।
मृगशिरा (मंगल) : कामी, वस्त्र, पद्म, फल-फूल वनचर मृग, नभचर
(पक्षी)
आर्द्रा (राहु) : भरणी - उच्चाटण प्रिय, मिथ्याभाषी, परनारी आसक्त । पुनर्वसु (गुरु) : राज्य सेवक, बुद्धिमान, यशस्वी, धनी, सत्यवादी, उदार । पुष्य (शनि) : मंत्रज्ञ, मछुआरे, यज्ञ के प्रति आसक्तं, साधु, अन्न, (जौं गेहूँ, चावल ) ईंख ।
ज्योतिष- कौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र विचार 36
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