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________________ चित्रा चित्रा नक्षत्र राशिपथ में 173.20 से 186.40 अंशों के बीच स्थित है । त्वष्टा एवं सरवर्द्धक इसके पर्यायवाची नाम हैं । अरबी में चित्रा को 'अज सिमक' कहा जाता है । इस नक्षत्र के प्रथम दो चरण कन्या राशि (स्वामी : बुध) एवं शेष दो चरण तुला राशि (स्वामी : शुक्र) में आते हैं। चित्रा में एक ही तारे की स्थिति मानी गयी है और उसे मोती के समान माना गया है। चित्रा का नक्षत्र देवता त्वष्टा एवं स्वामी ग्रह मंगल है। गणः राक्षस, योनिः व्याघ्र एवं नाड़ी: मध्य है । चरणाक्षर हैं- पे, पो, रा, री चित्रा नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः छरहरे होते हैं । वे बेहद बुद्धिमान, शांतिप्रिय तथा अंतर्ज्ञान शक्ति से संपन्न होते हैं। अक्सर उन्हें स्वप्न में भावी का ज्ञान हो जाता है। यद्यपि ऐसे जातक स्वार्थी नहीं होते तथापि वे अपनी जिद के भी पक्के होते हैं । फलतः जीवन में उन्हें पग-पग पर विरोध का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह विरोध और बाधा उनकी प्रगति का ही कारक बनता है। ऐसे जातकों में समाज के वंचित वर्गों के प्रति सच्ची सहानुभूति होती है तथा उनके उत्थान के लिए वे चेष्टारत भी रहते हैं । 1 ऐसे जातकों का बत्तीस वर्ष तक की अवस्था का जीवन संघर्षमय रहता है। तैंतीसवें वर्ष से उनके जीवन में जैसे स्वर्णकाल का पदार्पण होता है। चित्रा नक्षत्र में जन्मे जातकों को पिता से विशेष स्नेह एवं संरक्षण तथा उसकी स्थिति का लाभ भी मिलता है । तथापि ऐसे जातकों के वैवाहिक जीवन में अनबन जैसे स्थायी पारिवारिक सदस्य बनकर रहने लगती है । ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 151 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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