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चित्रा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर, स्वतंत्रताप्रिय तथा कभी-कभी गैर-जिम्मेदार व्यवहार करने वाली होती हैं। उनकी विज्ञान में रुचि होती है और उसी में शिक्षा प्राप्त करती हैं। ऐसी जातिकाओं के विवाह के समय कुंडली-मिलान आवश्यक कहा गया है अन्यथा वैवाहिक जीवन के दुखी अथवा जीवन साथी से विलगाव की आशंका बनी रहती है।
चित्रा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम चरण: सूर्य, द्वितीय चरणः बुध, तृतीय चरण: शुक्र एवं चतुर्थ चरणः मंगल।
चित्रा के विभिन्न चरणों में सूर्य
प्रथम चरणः यहाँ सूर्य जातक को धनी बनाता है। उसकी मशीनों में दिलचस्पी होती है और वह एक सफल मैकेनिक बन सकता है। ऐसा जातक अपनी पत्नी की कोई बात टालता नहीं।
द्वितीय चरण: यहाँ सूर्य व्यक्ति को औषधियों, रसायन अथवा मादक द्रव्यों के व्यवसाय में प्रवृत्त करता है।
तृतीय चरणः यहाँ सूर्य जातक की धार्मिक विषयों में अभिरुचि बढ़ाता है। वह विद्वान भी होता है। ____ चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य प्रथम चरण की भांति मशीनों के प्रति दिलचस्पी बढ़ाता है। जातक एक सफल-कुशल मैकेनिक बन सकता है।
चित्रा स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
चंद्र की दृष्टि जातक को जल संबंधी व्यवसाय में लाभ देती है। उस पर अनेक स्त्रियों के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व भी होता है।
मंगल की दृष्टि उसे साहसी और वैभव-संपन्न बनाती है। बुध की दृष्टि से उसे लेखन प्रतिभा प्राप्त होती है। गुरु की दृष्टि से उसे सत्ता पक्ष से लाभ मिलता है।
शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप राजनीतिक क्षेत्र में उच्च पद-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
शनि की दृष्टि मनोवृत्ति संकीर्ण बनाती है। कामाधिक्य के फलस्वरूप व्यक्ति अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियों से भी संबंध जोड़ लेता है।
चित्रा के विभिन्न चरणों में चंद्र
प्रथम चरण: यहाँ चंद्र मृदुभाषी बनाता है। ललित कलाओं में जातक की विशेष अभिरुचि होती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 152
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