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13.20 अंशों को चार से विभाजित करने पर प्रत्येक चरण में 3 अंश 20 कला की स्थिति मानी गयी। - हम आगे देखेंगे कि किस तरह किसी नक्षत्र का एक अंश या चरण किसी एक राशि में आता है, तो दूसरा किसी अन्य पिछली या अगली राशि में।
राशियों में नक्षत्रों की स्थिति का उद्देश्य क्या है ? ___ज्योतिष शास्त्र ने यह सब 'झमेला', अनुमानित ‘झमेला', क्यों खड़ा किया ?
यह 'माथा-पच्ची' अकारण नहीं थी।
दरअसल ज्योतिष शास्त्री क्रांतिपथ के 360 अंशों को बारह से विभाजित कर, (बारह ही क्यों ? (शायद 12 विशेष आकृतियों के कारण) क्योंकि राशियां बारह मानी गयीं) तथा बाद में सत्ताइस नक्षत्रों को बारह राशियों में विभाजित कर, तथा बाद में नक्षत्रों को भी चरणों में विभाजित कर एक दूरी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे ताकि पता लगा सकें कि कोई भी ग्रह विशेष किस समय, किस राशि में और उस राशि में भी किस नक्षत्र में तथा उसके भी किस चरण में है।
कारण यह है कि प्रत्येक नक्षत्र तारों के समूह से बनता है, और प्रत्येक नक्षत्र में आने वाले तारों की भी संख्या एक जैसी नहीं है। यदि आर्द्रा नक्षत्र में मात्र एक तारा है तो शतभिषा में, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, सौ तारे हैं।
जना
शुक्र
नक्षत्रों के नाम बताइए ? क्या राशियों की तरह उनके भी स्वामी होते हैं ?
यहाँ हम प्रारंभ में ज्योतिष शास्त्र में वर्णित एवं उपयोगी सत्ताइस नक्षत्रों के नाम उनके देवता एवं उनके स्वामी ग्रहों का परिचय दे रहे हैं-- क्रम नक्षत्र
देवता
स्वामी 1. अश्विनी
अश्विनी कुमार केतु 2. भरणी
यम (काल) कृत्तिका अग्नि
सूर्य रोहिणी
ब्रह्मा (प्रजापति) चंद्रमा मृगशिरा चंद्रमा
मंगल आर्द्रा शिव (रूद्र)
राहु 7. पुनर्वसु
अदिति (आदित्य) पुष्य
वृहस्पति ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 18
गुरु
शनि
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