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वे हर दबाव का यथाशक्ति प्रतिरोध करते हैं। उनका हर निर्णय सुविचारित तथा विश्वास पात्रों के परामर्शों पर आधारित होता है।
उनमें इतनी अधिक विनम्रता होती है कि वे सदैव कटु वचन कहने से परहेज करते हैं। यदि किसी की राय उन्हें जंचती भी नहीं तो वे प्रत्यक्ष में उससे असहमति व्यक्त नहीं करते। यदि उन्हें कभी अपनी गलती का अहसास हो जाए तो उसे स्वीकार करने में भी नहीं हिचकते।
नरसी मेहता के शब्दों में कहा जाए तो वे वैष्णव जन की भांति होते हैं, जो दूसरों की पीर को जानते हैं, समझते हैं।
लेकिन ऐसे जातक अंततः होते तो मनुष्य ही हैं। औरों द्वारा प्रशंसित होने की चाह उनके मन के किसी कोने में दबी रहती है।
ऐसे जातकों को विवादपूर्ण कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है ताकि बाद में असफलता का सामना नहीं करना पड़े।
ऐसे जातकों का बचपन अच्छा बीतता है लेकिन बाद में परिवार में अनेक झंझटों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों का अट्ठाइस से इक्तीस वर्ष का जीवन महत्त्वपूर्ण होता है।
ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन सुखी रहता है। पत्नी स्नेहिल व्यवहार से युक्त होती है तथापि उसका स्वास्थ्य पति के लिए चिंता का कारण बना रहता है।
ऐसे जातकों को उदर रोगों से सावधान रहना चाहिए। नेत्र विकार भी उन्हें परेशान कर सकता है।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओ में न्यूनाधिक रूप से उपरोक्त गुण होते हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। लेकिन जातकों के विपरीत वे हठी अधिक होती हैं। वे बिना सोचे-समझे कोई भी बात कह देती है। फलतः अनावश्यक विवादों में उलझ जाती हैं। अपने इस स्वभावगत दोष से उन्हें बचना चाहिए।
ऐसी जातिकाएं सुशिक्षित होती हैं तथा अध्यापन अथवा बैंकिग सर्विस में सफलता पाती हैं। . वैवाहिक जीवन वैसे तो सुखी रहता है तथापि पति से अलगाव उन्हें दुखी किये रहता है।
ऐसी जातिकाओं को वायु विकार की शिकायत हो सकती है। उसी तरह उन्हें अपने गर्भाशय से संबंधित किसी भी शिकायत की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 204
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