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________________ प्रथम चरण: इस चरण में गुरु की स्थिति हो तो जातक के व्यक्तित्व में एक चुंबकीय आकर्षण होता है। विवेकपूर्ण वाणी का धनी ऐसा जातक अपने आसपास के लोगों को सहज ही प्रभावित करता है । अगर वह भाषण करे तो उसके विचारों को सुनने के लिए भीड़ एकत्र हो जाती है। जातक की अध्ययन में गहरी रुचि होती है । दार्शनिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में उसकी गहरी पैठ होती है। एक विद्वान के रूप में समाज में प्रतिष्ठित ऐसा जातक भौतिक उन्नति भी करता है। इसमें मित्रों एवं अन्य लोगों की उसे पर्याप्त सहायता मिलती है। पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद उसका यश बढ़ने लगता है। द्वितीय चरण: यहाँ भी गुरु की स्थिति अच्छी मानी गयी है। जातक लेखन के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा सकता है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक, स्वभाव उदार एवं परोपकारी होता है । वह पूर्ण निष्ठा से हर कार्य करता है । फलतः सभी के स्नेह एवं आदर का पात्र भी बन जाता है। हाँ, धन के मामले में - उसे शायद अभावग्रस्त रहना पड़ सकता है। तृतीय चरणः यहाँ भी गुरु जातक को बौद्धिक एवं भौतिक क्षेत्र पर्याप्त उन्नति दिलाता है। जातक विद्वान एवं अधिकार संपन्न होता है । चतुर्थ चरण: यहाँ गुरु जातक को सर्वोत्तम फल देता है । अर्थात् ए ओर जहाँ उसे अपार कीर्ति मिल सकती है तो दूसरी ओर उसे धन का अभाव नहीं रहता। उसे परिवार का भी पूर्ण सुख मिलता है। उसकी संतां भी योग्य एवं आज्ञाकारी होती है । अश्विनी स्थित गुरु पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि सूर्य की दृष्टि जातक को सदैव वैध कार्य करने के लिए प्रेरित की है। जातक अवैध कार्यों से डरता है। ईश्वर पर अगाध आस्था वाला सा जातक समाज में परोपकारी कार्य भी करना चाहता है । चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक धन, मान-सम्मान एवं य से युक्त होता है। मंगल की दृष्टि जातक को सत्ता पक्ष से लाभ पहुँचाती है ऐसा जातक स्वभाव से कुछ उग्र, और कभी-कभी क्रूर भी हो सकता है बुध की दृष्टि उसे सद्व्यवहार करने वाला बनाती है लेकिन उसमें औरों के निरर्थक विवादों में जान-बूझकर फंसने की भी प्रवृत्ति हो है । शुक्र की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों का प्रिय होता है। स्त्रिों के उपयोग की सामग्री के व्यापार से वह लाभान्वित भी हो सकता है। ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र - विर 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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