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भरणी
भरणी द्वितीय नक्षत्र है और उसका अधिकार क्षेत्र 13.30 अंश से 26. 40 अंश तक है। भरणी में तीन तारे हैं और वे एक त्रिकोण की रचना करते हैं। भरणी का देवता यम को माना गया है। यम विवस्वत के पुत्र के रूप में भी वर्णित है। भरणी का स्वामी शुक्र है। भरणी राजस वृत्ति का नक्षत्र है और शरीर के भाग पर उसका अधिकार माना गया है ।
गणः मनुष्य, योनिः गज एवं नाड़ी: मध्य है।
चरणाक्षर हैं: ली, लू, ले, लो ।
भरणी नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद के होते हैं। उनकी आँखें चमकीली, दांत सुंदर और माथा चौड़ा होता है। स्वभाव से ऐसे व्यक्ति उदार, शुद्ध हृदय, किसी का अप्रिय, अहित न करने वाले होते हैं। तिकड़मबाजी से दूर सदैव स्पष्ट तौर-तरीकों को अपनाने में विश्वास रखते हैं । वे अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते और फलतः उनकी साफगोई कभी-कभी औरों को बुरी भी लग जाती है। पर उन्हें इसकी चिंता नहीं होती। भले उनके संबंध खराब हो जाएं और ऐसी स्थिति में वे संबंधों की चिंता नहीं करते। ऐसे जातक किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करते। अपने स्वभाव के कारण औरों से उनके स्थायी संबंध बहुत कम बन पाते हैं। अगर ऐसे जातक व्यर्थ के वाद-विवाद, तर्क से बचें तो अच्छा है क्योंकि उनकी मूल प्रवृत्ति येन-केन अपना वर्चस्व बनाये रखने की होती है । कभी-कभी वे अपनी कार्य सिद्धि के लिए अफवाहें भी फैलाने से बाज नहीं आते। विशेषकर यदि जन्म के समय भरणी की स्थिति अशुभ है तो व्यक्ति दूसरों को धोखा देने से भी परहेज नहीं करता । भरणी की ऐसी स्थिति उसे निम्न कार्य करने वाला बना देती है। भरणी का स्वामी शुक्र है। शुक्र एक
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र-विचार 64
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