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________________ हर कार्य सुचारू रूप से करना चाहती हैं, पति के साथ-उनकी नोक झोंक चलती ही रहती है। ऐसी जातिकाएं चर्म रोग, तपेदिक आदि की आसानी से शिकार हो सकती है, अतः सावधानी अपेक्षित है। श्रवण नक्षत्र के चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरणः मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरणः चंद्र। श्रवण नक्षत्र के विभिन्न चरणों में सूर्य श्रवण नक्षत्र में सूर्य कोई विशेष अच्छे फल नहीं देता। विशेषकर यदि सूर्य पर चंद्र या बुध की दृष्टि हो। जैसे प्रथम चरण: सूर्य एवं चंद्र की युति पर शनि की दृष्टि हो तो वह माता-पिता, दोनों के लिए घातक मानी गयी है। द्वितीय चरण एवं तृतीय चरण में भी कोई उल्लेखनीय फल नहीं मिलते। चतुर्थ चरणः यहाँ जातक कामुक वृत्ति का, वेश्यागामी तक हो सकता है। उसके अनेक शत्रु भी होते हैं। श्रवण नक्षत्र स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि चंद्र की दृष्टि सुखहीन जीवन का संकेत करती है। जातक महिलाओं के माध्यम से धन अर्जित करता है। मंगल की दृष्टि हो तो जातक वकालत के पेशे में सफल हो सकता है। बुध की दृष्टि हो तो दूसरों के लिए परेशानी पैदा करने वाला होता है। उसका व्यवहार वृहन्नालाओं की भांति देखा गया है। गुरु की दृष्टि जातक को उदार, परोपकारी बनाती है। वह बुद्धिमान भी होता है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। स्त्रियों से भी उसे आर्थिक लाभ होता है। शनि की दृष्टि जातक को शत्रुहंता बनाती है तथापि वह दंभी भी होता है। श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति श्रवण नक्षत्र में चंद्र की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं। प्रथम चरण: यहाँ चंद्र मान-सम्मान में वृद्धि करता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 211 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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