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मंत्र: ॐ मातेव पुत्रं पृथ्वी पुरीप्यमग्नि स्वे योनावभारखा, ता विश्वदेव ऋतुभिः संवदानप्रजापतिर्विश्व कर्म विमञ्चतुः ।
ॐ निऋतये नमः
जप संख्या: 7,000 बार ।
पूर्वाषाढ़ाः
सिर में दर्द, शरीर में पीड़ा, कंपन ।
उपचारः कपास की जड़ भुजदंड में धारण करें ।
मंत्रः ॐ अबाधमपकिल्विषमपकृत्यामपोरपः अपामार्गत्वमस्मदषदुःप्वप्यं सुव। ॐ अद्भ्यो नमः ।
जप संख्या: 5,000 बार ।
उत्तराषाढ़ाः
कटि पीड़ा, गठिया, प्रलाप की मनःस्थिति ।
उपचारः कपास की जड़ चौहरी कर हाथ में बांधें ।
मंत्र: ॐ विश्वेदेवा श्रृणुतेमं हवं ये मे अंतरिक्षेय उपद्यविष्ठा ये अग्निजिव्हा उतवा य जत्रा आसद्यास्मिन यज्ञे वर्हिषि मादयध्वम् ।
ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः
जप संख्या: 10,000 बार ।
श्रवणः
अतिसार, ज्वर, अनेक पीड़ाएं।
उपचारः चिरचिटे की जड़ चौहरी कर भुजदंड में बांधे ।
मंत्र: ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नपत्रेस्थोविष्णोः स्यूरसि विष्णोर्धुवोऽसि वैष्णवम सि विष्णवे त्वा ॐ विष्णवे नमः
जप संख्या: 10,000 बार ।
धनिष्ठाः
रक्तातिसार, ज्वरादि ।
मंत्र: ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रभसि सहस्त्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्ष / ॐ वसुभ्यो नमः ।
जप संख्या: 10,000 बार ।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1) नक्षत्र विचार 47
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